पूरी मानवता को ईश्वरप्राप्ति हेतु उत्साहित करने वाला दिवस – पूज्य बापू जी

पूरी मानवता को ईश्वरप्राप्ति हेतु उत्साहित करने वाला दिवस – पूज्य बापू जी


(पूज्य बापू जी का 50वाँ आत्मसाक्षात्कार दिवसः 26 सितम्बर)

मनुष्य जन्म की सर्वोपरि उपलब्धि आत्मसाक्षात्कार

ईश्वर तथा देवता अनेक हैं और वे अपने-अपने विभाग के अधिष्ठाता हैं लेकिन उन सब ईश्वरों में देवों में जो एक आत्मा है, उस आत्मा-परमात्मा के साथ एकाकार होने की ऊँची अऩुभूति का नाम है आत्मसाक्षात्कार।

वह परब्रह्म-परमात्मा जो करोड़ों-अरबों के अंतःकरणों में, दिलों में सत्ता, स्फूर्ति, चेतना देता है, जो सब यज्ञ और तप के फल का भोक्ता है और ईश्वरों का ईश्वर है, उस परमेश्वर के साथ एकाकार होने का नाम है आत्मसाक्षात्कार।

वाणी से परे, अलौकिक व अद्वितीय अनुभूति

आत्मसाक्षात्कार की व्याख्या जीभ से हो नहीं सकती। भगवान राम के गुरु श्री वसिष्ठजी कहते हैं कि “राम जी ! ज्ञानवान का लक्ष्ण स्वयंवेद्य है, वह इन्द्रियों का विषय नहीं है।” फिर भी कुछ लक्षणों का वर्णन करते हैं बाकी पूरा वर्णन नहीं होता। गुरु नानक जी कहते हैं-

मत करो वर्णन हर बेअंत है,

क्या जाने वो कैसो रे। जिन पाया तिन छुपाया।

जिसने उस साक्षात् उस परब्रह्म-परमात्मा के अनुभव को पाया, उसने फिर छिपा दिया क्योंकि सब आदमी समझ नहीं पायेंगे।

बोलेः “जन्मदिवस है, हैप्पी बर्थ डे !” लेकिन भैया ! तेरा अकेले का नहीं है। रोज धरती पर पौने दो करोड़ लोगों का जन्मदिवस होता है। जन्मदिवस तो बहुत होते हैं, शादी के दिवस भी लाखों होंगे और भगवान के दर्शन के दिवस भी सैंकड़ों मिल सकते हैं लेकिन भगवान जिससे भगवान हैं, उस आत्मा-परमात्मा का गुरुवर ने साक्षात्कार कराया हो किसी शिष्य को, वह तो धरती पर कभी-कभी, कहीं-कहीं देखने-सुनने को मिलता है। इसलिए आत्मसाक्षात्कार धरती पर बड़े-में-बड़ी घटना है और आत्मसाक्षात्कार दिवस बड़े-में बड़ा दिवस माना जाये तो कोई हरकत नहीं। लेकिन प्रचलन जिस बात का है, वैसे ही राजकीय ढंग से मीडिया प्रचार-प्रसार करता है वरना तत्व-दृष्टि से देखा जाय तो पूरी मानवता को उत्साहित करने वाला दिवस आत्मसाक्षात्कार दिवस है। पूरी मानवता को अपने परम तत्व को पा सकने की खबर देने वाला दिवस ‘आत्मसाक्षात्कार दिवस’ है।

एक साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज या श्री रामकृष्ण परमहंस, श्री रमण महर्षि या किसी संत को साक्षात्कार हुआ तो जैसे वे खाते-पीते, जन्मते हैं और दुःख-सुख, निंदा-स्तुतियों के माहौल से गुजरते हैं, फिर भी सम स्वरूप में जाग जाते हैं, ऐसे ही आप भी जागऽ सकते हैं। जब एक व्यक्ति सम-स्वरूप में जाग सकता है तो दूसरा भी जाग सकता है। जब एक की नजर चाँद तक पहुँच सकती है तो सभी चाँद को देख सकते हैं। आत्मसाक्षात्कारी पुरुषों के इस पर्व को समझने सुनने से आत्म-चाँद की यात्रा करने का मोक्ष-द्वार खुल जाता है।

भगवद्-दर्शन और साक्षात्कार

भगवान के दर्शन में और साक्षात्कार में क्या फर्क है ? ध्रुव को भगवान का दर्शन हुआ और भगवान ने आशीर्वाद दिया कि ‘तुझे संत मिलेंगे और तुझे आत्मसाक्षात्कार होगा। बेटा ! तेरा मंगल होगा।” भगवान का दर्शन अर्जुन को, हनुमानजी को भी हुआ था लेकिन अर्जुन और हनुमानजी को जब तक आत्मसाक्षात्कार नहीं हुआ था, तब तक यात्रा अधूरी थी। कृष्ण तत्व के साक्षात्कार के बिना अर्जुन विमोहित हो रहे थे। जब श्रीकृष्ण ने उपदेश दिया, तब अर्जुन क आत्मसाक्षात्कार, स्मृति हुई, फिर अर्जुन कहते हैं-

नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।

आपके उपदेश के प्रसाद से अब मैं अपने सोऽहम् स्वभाव में, अपने आत्मस्वभाव में स्थिर हो गया। पहले तो व्यक्तित्व में था, अब मैं अस्तित्व में स्थिर हो गया हूँ। अब मेरे सारे संशय मिट गये।

श्रीरामकृष्ण परमहंस को काली माता का दर्शन हुआ था लेकिन काली माता ने कहाः “तोतापुरी गुरु के पास जाओ, दीक्षा लो।”

गुरु के पास जाकर आत्मसाक्षात्कार किया तब रामकृष्णजी की साधना पूर्ण हुई।

मैंने बहुत साधन किये, कई जगह मैंने किस्म-किस्म के पापड़ बेले लेकिन सत्संग जो दे सकता है वह हजारों वर्ष की तपस्या, समाधि भी नहीं दे सकती। ब्रह्मज्ञान का सत्संग जो ऊँची भावना, ऊँची स्मृति, ऊँचा जप-ध्यान और चौरासी लाख जन्मों के चक्कर से निकलने की कुंजी देता है, वह दूसरे किसी साधन से नहीं मिलती।

हमारा जन्म हुआ उसके पहले सौदागर झूला ले आया, पिता जी ने कहाः “भाई ! हम तो धनवान हैं, हमें दान का नहीं लेना है।” उसने कहाः “मेरे  को रात को सपना आया था, भगवान ने प्रेरणा की है कि तुम्हारे घर महान आत्मा का जन्म होने वाला है।” और हमारे लिए झूला आया, बाद में हमारे शरीर का जन्म हुआ। कुलगुरु ने कहाः “ये संत बनेगा।” पिताजी, शिक्षक और पड़ोस के लोग भी आदर करते थे। 3 साल की उम्र में, 5-10 साल की उम्र में चमत्कार भी हो जाते थे, फिर भी 22 साल की उम्र तक हमने बहुत सारे पापड़ बेले। समझते थे कि बहुत कुछ मिला है, तब भी आत्मसाक्षात्कार बाकी था और वे पुण्य घड़ियाँ जिस दिन आयीं, वह दिन था-

आसोज सुद दो दिवस, संवत बीस इक्कीस।

मध्याह्न ढाई बजे, मिला ईस से ईस॥

यह पावन दिवस है जब सदियों की अधूरी यात्रा पूरी करने में जीवात्मा सफल हो गया।

सब संतों का एक ही मत

मेरे पास एक परिचित मित्रसंत थे जिनकी साधना की एकाग्रता के बल से मानसिक शक्तियाँ विकसित हुई थीं। मेरे सामने लोहे का कड़ा किसी सरदार का ले लिया, “देखो ! मैं इसे सोने का बनाता हूँ।” उन सज्जन संत ने उसे सोने का बना दिया। चाँदी की कोई अँगूठी ली किसी से, सोने की बनाकर दिखा दी। इन्हीं आँखों से मैंने देखी। ऐसे-ऐसे महापुरुष धरती पर अभी भी हैं लेकिन आत्मसाक्षात्कार…. बाप रे बाप ! उसके सामने ये चीजें भी कोई मायना नहीं रखती हैं। ऐसे भी मेरे एक परिचित संत हैं जो अदृश्य हो जाते थे, जो पेड़ पर छोटी सी मचिया बना के हवा पीकर रहते थे, 135 साल के थे। उनकी मानसिक शक्तियाँ तो विकसित हो गयी थीं, अच्छे हैं वे महापुरुष लेकिन ऐसे सभी संतों का अनुभव है कि आत्मसाक्षात्कार सर्वोपरि अवस्था है।

सत्संगियों का संदेश

सत्संगी लोग अपना लक्ष्य ऊँचा बना लो और लक्ष्य के अनुकूल रोज संकल्प करो कि ‘जो साक्षात् परब्रह्म परमात्मा है, जिसको मैं छोड़ नहीं सकता और जो मुझे छोड़ नहीं सकता उसका अनुभव करने के लिए मैं संकल्प करता हूँ, हे अंतर्यामी आत्मा-परमात्मा ! मेरी मदद करो।’ भगवान उनकी सहायता करते हैं जो खुद की सहायता करते हैं।

किसी ने 7 दिन में साक्षात्कार करके दिखा दिया, किसी ने 40 दिन के अंदर करके दिखा दिया, मैं तो कहता हूँ कि 40 साल में भी परमात्मा का साक्षात्कार हो जाये तो सौदा सस्ता है ! करोड़ों जन्म ऐसे ही बीत गये। और बिना परमात्म-साक्षात्कार के तुम इन्द्र भी बन जाओगे तो वहाँ से पतन होगा, प्रधानमंत्री भी बन जाओगे तो कुर्सी से हटना पड़ेगा, आत्मसाक्षात्कार एक बार हो जाये तो फिर कभी पतन नहीं होता। आत्मसाक्षात्कार माने प्रलय होने के बाद भी जो परमात्मा रहता है, उसके साथ एकाकारता, फिर शरीर मरेगा तो तुम्हें यह नहीं लगेगा कि ‘मैं मर रहा हूँ।’ शरीर बीमार होगा तो तुम्हें यह नहीं लगेगा कि ‘मैं बीमार हूँ।’ लोग शरीर की जय-जयकार करेंगे तो तुमको यह नहीं लगेगा कि ‘मेरा नाम हो रहा है’, अभिमान नहीं आयेगा। और कोई पापी अथवा निंदक शरीर की निंदा करेगा तो तुमको यह नहीं लगेगा कि ‘मेरी निंदा हो रही है’, आप सिकुड़ोगे नहीं, हर हाल में मस्त ! देवता तुम्हारा दीदार करके अपना भाग्य बना लेंगे तो भी तुमको अभिमान नहीं होगा। आत्मसाक्षात्कार तो ऊँची चीज है, आत्मसाक्षात्कारी महापुरुष का चेला होना भी बहुत ऊँची चीज है। इसलिए जन्म दिवस मनाने की बहुत-बहुत रीतभात हैं लेकिन आत्मसाक्षात्कार मनाने की कोई रीतभात प्रचलित ही नहीं हुई। फिर भी सत्शिष्य अपने सदगुरु का प्रसाद पाने के लिए अपने ढंग से कुछ-न-कुछ कर लेते हैं, अमाप पुण्य व अदभुत ज्ञानस्वरूप प्रभु की प्राप्ति में प्रवेश पा लेते हैं। भगवान शंकर ने कहा हैः

धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोदभवः।

धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद् गुरुभक्तता॥

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 4-6

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