(वसंत ऋतु (19 फरवरी से 18 अप्रैल तक) हेतु विशेष
वसंत ऋतु में कफ कुपित रहता है। मधुर, नमकीन, चिकनाईयुक्त, शीत, भारी व ज्यादा आहार कफ उत्पन्न करता है। उड़द, तिल, सरसों, ककड़ी, खीरा, भिंडी, सूखे मेवे, सिंघाड़ा, सेब, अनानास, अमरूद, सीताफल, गन्ना, भैंस का दूध, मैदे के पदार्थ, दही, घी, मक्खन, मिश्री आदि कफ बढ़ाते हैं। अतः इनके सेवन से बचें।
कफ शमन में सहायक आहार-विहार
तीखा, कड़वा व कसैला रस अधिक लें। काली मिर्च, हींग तुलसी, अदरक लौंग आदि का सेवन करें। आहार सूखा, सुपाच्य, अल्प व उष्ण गुणयुक्त लें। सहजन, मेथी, हल्दी, राई, अजवायन, मूँग, बिना छिलके के भुने हुए चने खायें एवं व्यायाम करें। फ्रिज का पानी न पियें, भोजन करके न सोयें, बासी और ठंडा व कफवर्धक पदार्थ –केला, चीकू, आईसक्रीम आदि न खायें।
शहद कफ-शमन हेतु सर्वोत्तम है।
पानी 1 लिटर को उबालकर चौथाई भाग (250 मि.ली.) शेष रहे। अनुकूल पड़े तो उसमें सोंठ के टुकड़े डालकर उबालें व पियें।
3 से 5 सूर्यभेदी प्राणायाम (बायाँ नथुना बंद कर दायें से गहरा श्वास ले के एक से सवा मिनट अंदर रोकें, फिर बायें से छोड़ें) दिन में 2 बार करें।
प्रातः गोमूत्र अथवा गोझरण अर्क या गोझरण वटी (आश्रमों व समितियों के सेवाकेन्द्रों में उपलब्ध) की 1-2 गोली का सेवन समस्त कफरोगों में लाभदायी है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2016, पृष्ठ 33 अंक 278
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