हवन विधि
यज्ञ कर्म विधि
आचमन-
ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः, ॐ ऋषिकेशाय नमः इति हस्तप्रक्षालनम्।
पवित्रिकरण-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः।।
तिलक-
ॐ स्वस्तिस्त्वया विनाशाख्या पुण्य कल्याण वृद्धिदा।
विनायकं प्रिया नित्यं त्वां च स्वस्तिं ब्रुवंतुनः।।
रक्षासूत्र (मौली) बंधन- (हाथ में)
येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे माचल माचल।।
दीप पूजन- पूर्णाहुति
भो दीप देवरूपस्त्वं कर्म साक्षीह्यविघ्नकृत्।
यावत् पूजासमाप्तिः स्यात् तावत् त्वं सुस्थिरो भव।।
ॐ दीपदेवताभ्यो नमः, ध्यायामि, आवाहयामि, स्थापयामि, सर्वोपचारैः गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि।।
देवता स्मरण- हाथ जोड़कर
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः। श्रीगुरुभ्यो नमः। इष्टदेवताभ्यो नमः। कुलदेवताभ्यो नमः। ग्रामदेवताभ्यो नमः। वास्तुदेवताभ्यो नमः। स्थानदेवताभ्यो नमः। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। उमामहेश्वाराभ्यां नमः। वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः। शचीपुरन्दनाभ्यां नमः। मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः। सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
पूजन का संकल्प- हाथ में जल-पुष्प लेकर संकल्प करेंगे।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्राह्मणोअह्नि द्वितिये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे, कलि प्रथम चरणे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतवर्षे, …… प्रदेशे ….. नगरे …… ग्रामे मासानां मासोत्तमेमासे महामांगलिक मासे ….. मासे शुभे ….. पक्षे ….. तिथौ वासराधि ….. वासरे अद्य अस्माकं सद्गुरु देव संत श्री आशाराम जी बापूनां आपदा निवाराणार्थे आयुः, आरोग्य, यशः, कीर्ती, पुष्टि तथा आध्यात्मिक शक्ति वृद्धि अर्थे ॐ ह्रीं ॐ मंत्रस्य हवन काले संकल्पं अहं करिष्ये।
गुरुपूजन- हाथ में अक्षत पुष्प लेकर सदगुरु देव का ध्यान करें-
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः…….. तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
कलश पूजन- हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर कलश में वरुणदेवता तथा अन्य सभी तीर्थों का आवाहन करेंगे-
ब्रह्माण्डोदरतीर्थानि करैः स्पृष्टानि ते रवे।
तेन सत्येन में देव तीर्थं देहि दिवाकर।।
(अक्षत पुष्प कलश पर चढ़ा दें।)
यज्ञ कर्म प्रारंभ
रक्षा विधान-
बायें हाथ में अक्षत लेकर दायें हाथ से दशों दिशाओं में छाँटते हुए निम्न मंत्र बोलें।
अपक्रमन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशः।
सर्वेषामविरोधेन यज्ञकर्म समारम्भे।।
अग्नि स्थापन- यज्ञकुंड पर घृत की कटोरी के पास जल की कटोरी स्थापित करें।
इस मंत्र के उच्चारण से अग्नि प्रज्वलित करें-
अग्निं प्रज्वलितं वन्दे जात वेदं हुताशनम्।
हिरण्यवर्णममलं समिद्धं विश्वतोमुखम्।।
इसके बाद- ॐ गं गणपतये नमः स्वाहा। (8 आहुतियाँ)
ॐ सूर्यादि नवग्रह देवेभ्यो नमः स्वाहा। (1 आहुति) दें।
पश्चात – ॐ ह्रीं ॐ मंत्र की 11 माला आहुतियाँ दें।
कटोरी में बची हुई पूरी सामग्री को निम्न मंत्रों के साथ तीन बार में ही डाल दें-
ॐ श्रीपतये स्वाहा।
ॐ भुवनपतये स्वाहा।
ॐ भूतानांपतये स्वाहा।
ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा इदं अग्नये स्विष्टकृते न मम।
पूर्णाहुति होम- नारियल को होमें।
पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते।। ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।
वसोधारा- यज्ञकुंड में घृत की धार करें।
आरती- ज्योत से ज्योत जगाओ……
कर्पूर गौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं
सदावसन्तं हृदयारविंदे भवं भवानि सहितं नमामि।
दोहा-
साधक माँगे माँगणा, प्रभु दीजो मोहे दोय।
बापू हमारे स्वस्थ रहें, आयु लम्बी होय।।
घृतावघ्राणम्- यज्ञकुंड पर जलपात्र में टपकाया गया घृत दोनों हथेलियों पर रगड़ लें। यज्ञकुंड पर तपा कर सुगंध लें।
भस्माधारणम्- भस्म बापू जी को लगाकर स्वयं लगायें।
पुष्पांजलि-
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा, बुद्धयात्मनावा प्रकृतेः स्वभावात्।
करोमि यद् यद् सकलं परस्मै, श्रीसद्गुरुदेवायेति समर्पयामि।।
ॐ श्री सद्गुरु परमात्मने नमः। मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।
ततो नमस्कारम् करोमि।
प्रदक्षिणा- सभी लोग यज्ञकुंड की परिक्रमा करें।
यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणः पदे-पदे।।
साष्टांग प्रणाम- सभी साष्टांग प्रणाम करेंगे।
क्षमा प्रार्थना- हाथ जोड़कर सभी क्षमा प्रार्थना करें।
ॐ आवाहनं न जानामि, न जानामि तवार्चनम्।
विसर्जनं न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर !।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं, भक्तिहीनं सुरेश्वर !
यत्पूजितं मया देव ! परिपूर्णं तदस्तु में।।
विसर्जनम्- पूजन के लिए आवाहित देवी-देवताओं के विसर्जन की भावना करते हुए हाथ में अक्षत लेकर देव स्थापन पर चढ़ायेंगे।
ॐ गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ, स्वस्थाने परमेश्वर !
यत्र ब्रह्मादयो देवाः, तत्र गच्छ हुताशन ! ।।
जयघोष करें। ‘तं नमामि हरिं परम्।’ -3
।। पूर्णाहुति।।
‘तं नमामि हरिं परम्।’ -3
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