तेलों में तिल का तेल सर्वश्रेष्ठ है। यह विशेषरूप से वातनाशक होने के साथ ही बलकारक, त्वचा केश व नेत्रों के लिए हितकारी, वर्ण(त्वचा का रंग) को निखारने वाला, बुद्धि एवं स्मृतिवर्धक, गर्भाशय को शुद्ध करने वाला और जठराग्निवर्धक है। वात और कफ को शांत करने में तिल का तेल श्रेष्ठ है।
अपनी स्निग्धता, तरलता और उष्णता के कारण शरीर के सूक्ष्म स्रोतों में प्रवेश कर यह दोषों को जड़ से उखाड़ने तथा शरीर के सभी अवयवों को दृढ़ व मुलायम रखने का कार्य करता है। टूटी हुई हड्डियों व स्नायुओं को जोड़ने में मदद करता है।
तिल के तेल की मालिश करने व उसका पान करने से अति स्थूल (मोटे) व्यक्तियों का वज़न घटने लगता है व कृश (पतले) व्यक्तियों का वज़न बढ़ने लगता है। तेल खाने की अपेक्षा मालिश करने से आठ गुना अधिक लाभ करता है। मालिश से थकावट दूर होती है, शरीर हलका होता है। मजबूती व स्फूर्ति आती है। त्वचा का रूखापन दूर होता है, त्वचा में झुर्रियाँ तथा अकाल वार्धक्य नहीं आता। रक्तविकार, कमरदर्द, अंगमर्द (शरीर का टूटना) व वात-व्याधियाँ दूर रहती हैं। शिशिर ऋतु में मालिश विशेष लाभदायी है।
औषधीय प्रयोग
तिल का तेल 10-15 मिनट तक मुँह में रखकर कुल्ला करने से शरीर पुष्ट होता है, होंठ नहीं फटते, कंठ नहीं सूखता, आवाज सुरीली होती है, जबड़ा व हिलते दाँत मजबूत बनते हैं और पायरिया दूर होता है।
50 ग्राम तिल के तेल में 1 चम्मच पीसी हुई सोंठ और मटर के दाने के बराबर हींग डालकर गर्म किये हुए तेल की मालिश करने से कमर का दर्द, जोड़ों का दर्द, अंगों की जकड़न, लकवा आदि वायु के रोगों में फायदा होता है।
20-25 लहसुन की कलियाँ 250 ग्राम तिल के तेल में डालकर उबालें। इस तेल की बूँदें कान में डालने से कान का दर्द दूर होता है।
प्रतिदिन सिर में काले तिलों के शुद्ध तेल से मालिश करने से बाल सदैव मुलायम, काले और घने रहते हैं, बाल असमय सफेद नहीं होते।
50 मि.ली. तिल के तेल में 50 मि.ली. अदरक का रस मिला के इतना उबालें कि सिर्फ तेल रह जाये। इस तेल से मालिश करने से वायुजन्य जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है।
तिल के तेल में सेंधा नमक मिलाकर कुल्ले करने से दाँतों के हिलने में लाभ होता है।
घाव आदि पर तिल का तेल लगाने से वे जल्दी भर जाते हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2016, पृष्ठ संख्या 32 अंक 284
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