Monthly Archives: August 2016

झूठे अकर्तापन से ज्ञान नहीं होता


एक आदमी ने जूतों की चोरी की। पकड़ा गया। उससे पूछा गया कि “तुमने जूतों की चोरी की ?”

बोलाः “नहीं, मैंने नहीं की। मेरे पाँवों ने जूते पहन लिये। मैं चोर नहीं हूँ।”

“अच्छा, तुम्हें फाँसी की सजा दी जायेगी।”

बोला कि “न-न, मैं जूते चुराये ही नहीं हैं तो सजा क्यों ?”

“अरे भाई ! सजा तुमको नहीं तुम्हारे गले को दी जा रही है।”

बोलाः “पाँवों ने जूतों की चोरी की तो गले को क्यों सजा दी जा रही है ?”

अच्छा, गले को सजा नहीं देते, तुम्हारे पाँव काट देते हैं।”

बोला कि “नहीं-नहीं।”

“भाई ! जब तुमने चोरी नहीं की, पाँवों ने चोरी की तो पाँवों को सजा देने में तुम्हें बुरा क्यों लगता है ? इसको कहते हैं अकर्तापन की धज्जियाँ उधेड़ना। इसलिए झूठमूठ अकर्तापने की भावना मत करो क्योंकि अकर्तापन का भाव भी एक मानसिक कर्म है।

अब आप इस बात पर थोड़ा सा विचार करो कि “मैं द्रष्टा हूँ” तो कैसे द्रष्टा हो ? ‘आँख के द्वारा रूप का द्रष्टा हूँ या अंतःकरण के द्वारा कल्पित पदार्थों का द्रष्टा हूँ।’ फिर जब अंतःकरण के द्वारा कल्पित पदार्थों का द्रष्टा हूँ।’ फिर जब अंतःकरण के साथ आपका संबंध बना ही रहा और उसी में ‘मैं द्रष्टा हूँ’ यह दृष्टि भी बनी रही तो आप द्रष्टा कैसे हुए ? अच्छा, आप ईश्वर के द्रष्टा हैं कि नहीं ? दूसरे द्रष्टाओं के द्रष्टा हैं कि नहीं ? यह द्रष्टापन इतनी उलझनों में बस रहा है कि यदि दूसरे द्रष्टा हैं तो आप सच्चे द्रष्टा नहीं हैं क्योंकि दूसरे द्रष्टा तो दृश्य होते नहीं। यदि आप प्रपंच के द्रष्टा हैं तो अंतःकरण के द्वारा द्रष्टा हैं या बिना अंतःकरण के द्रष्टा हैं ? आप ईश्वर की कल्पना के द्रष्टा हैं या ईश्वर के द्रष्टा हैं ? यह बात बहुत गहरी, ऊँची है, समझने योग्य है। जो लोग पाप-पुण्य करते जाते हैं और कहते जाते हैं कि “हम कर्ता नहीं हैं, द्रष्टा हैं।” वे वासना के कारण ऐसे काम करते हैं। वासनावान भी कर्ता होता है। जहाँ विरोध है वहाँ भी कर्ता और जहाँ अनुरोध है वहाँ भी कर्ता है। तब क्या करें ?

तो पहली बात यह है कि निकम्मे मत रहो। दूसरी बात, अच्छे काम करो, बुरे काम मत करो। तीसरी बात, अच्छे काम को सकाम मत रखो। चौथी बात, निष्काम कर्म में भी कर्ता मत बनो और पाँचवीं बात यह है कि अकर्तापन में भी जड़ता को मत आने दो।

यह दुनिया जैसी ईश्वर को दिखती है, वैसी ही आपको दिखती है कि नहीं ? यदि ईश्वर की नज़र से कुछ अलग आपको दिखता है तो दोनों में से एक नासमझ होगा, चाहे ईश्वर चाहे आप। एक ही चीज को देखना है। उसको ईश्वर दूसरे रूप से देख रहा है और आप दूसरे रूप से । जब ईश्वर की आँख से अपनी आँख मिल जाती है तो सारा भेद मिट जाता है। इसलिए आप ईश्वर की नज़र से अपनी नज़र मिलाने की कोशिश कीजिए। ईश्वर के साथ मतभेद रखकर आप कभी सुखी नहीं हो सकते। ईश्वर के साथ जिसका कोई मतभेद नहीं है उसी का नाम ब्रह्मज्ञानी है। जब ईश्वर की आँख से आपकी आँख मिल जायेगी तब ईश्वर जैसे सबको अपने स्वरूप से देखता है, वैसे ही (सर्वव्यापक) हरि के सिवाय आपको और कुछ नहीं दिखेगा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2016, पृष्ठ संख्या 11, अंक 284

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घर-परिवार को कैसे रखें खुशहाल ?


पूज्य बापूजी

आजकल की महिलाएँ झगड़े के पिक्चर, नाटक देखती सुनतीं हैं, गाने गाती हैं- ‘इक दिल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहाँ गिरा कोई वहाँ गिरा’ तथा भोजन भी बनाती जाती हैं।

अब जिसके दिल के ही टुकड़े हजार हुए उसके हाथ की रोटी खाने वाले का तो सत्यानाश हो जायेगा। इसलिए भगवन्नाम या गुरुमंत्र का जप, भगवद्-सुमिरन करते हुए अथवा भगवन्नाम-कीर्तन सुनते हुए भोजन बनाइये और कहिये ‘नारायण-नारायण-नारायण…..’

दूसरी बात, कई माइयाँ कुटुम्बियों को भोजन भी परोसेंगी और फरियाद भी करेंगी, उनको चिंता-तनाव भी देंगी। एक तो वैसे ही संसार में चिंता-तनाव काफी है। उन बेचारियों को पता भी नहीं होता है कि हम अपने स्नेहियों को, अपने पति, पुत्र, परिवार वालों को भोजन के साथ जहर दे रही हैं।

“बाबा जी ! जहर हम दे रही हैं ?”

हाँ, कई बार देती हैं देवियाँ। भोजन परोसा, बताया कि ‘बिजली का बिल 6000 रूपये आया है।’

अब उसकी 18000 रुपये की तो नौकरी है, 6000 रूपये सुनकर मन चिंतित होने से उसके लिए भोजन जहर हो गया। ‘लड़का स्कूल नहीं गया, आम लाये थे वे खट्टे हैं, पड़ोस की माई ने ऐसा कह दिया है…’ इस प्रकार यदि महिलाएँ भोजन परोसते समय अपने कुटुम्बियों को समस्या और तनाव की बातें सुनाती हैं तो वह जहर परोसने का काम हो जाता है।

अतः दूसरी कृपा अपने कुटुम्बियों पर कीजिये कि जब वे भोजन करने बैठें तो कितनी भी समस्या, मुसीबत की बात हो पर भोजन के समय उनको तनाव-चिंता न हो। यदि चिंतित हों तो उस समय भोजन न परोसिये, 2 मीठी बातें करके ‘नारायण-नारायण-नारायण….. यह भी गुजर जायेगा, फिक्र किस बात की करते हो ? जो होगा देखा जायेगा, अभी तो मौज से खाइये पतिदेव, पुत्र, भैया, काका, मामा !…. ‘ जो भी हों। तो माताओं-बहनों को यह सदगुण बढ़ाना चाहिए।

भोजन करने के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक व्यक्ति को खुशदिल, प्रसन्न रहना चाहिए ताकि भोजन का रस भी पवित्र, सात्त्विक और खुशी देने वाला बने। भोजन का रस अगर चिंता और तनाव देने वाला बनेगा तो वह जहर हो जायेगा, मधुमेह पैदा कर देगा, निम्न या उच्च रक्तचाप पैदा कर देगा, हृदयाघात का खतरा पैदा कर देगा। इसलिए भोजन करने के पहले, भोजन बनाने के पहले तथा भोजन परोसते समय भी प्रसन्न रहना चाहिए और कम-से-कम 4 बार नर-नारी के अंतरात्मा ‘नारायण’ का उच्चारण करना चाहिए।

भाइयों को भी एक काम करना चाहिए। रात को सोते समय जो व्यक्ति चिंता लेकर सोता है वह जल्दी बूढ़ा हो जाता है। जो थकान लेकर सोता है वह चाहे 8 घंटे बिस्तर पर पड़ा रहे फिर भी उसके मन की थकान नहीं मिटती, बल्कि अचेतन मन में घुसती है। इसलिए रात को सोते समय कभी भी थकान का भाव अथवा चिंता को साथ में लेकर मत सोइये। जैसे भोजन के पहले हाथ, पैर और मुँह गीला करके भोजन करते हैं तो आयुष्य बढ़ता है और भोजन ठीक से पचता है, ऐसे ही रात को सोते समय भी अपना चित्त निश्चिंतता से, प्रसन्नता से थकानरहित हो जाये ऐसा चिंतन करके फिर ‘नारायण-नारायण…..’ जप करते-करते सोइये तो आपके वे 6 घंटे नींद के भी हो जायेंगे और भक्ति में भी गिने जायेंगे। तुम्हारा भी मंगल होगा, तुम्हारे पितरों की भी सदगति हो जायेगी और संतानों का भी कल्याण होगा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2016, पृष्ठ संख्या 18, अंक 284

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गौपालक और गौप्रेमी धन्य हो जायेंगे… ध्यान दें


देशवासियों व सरकार के नाम पूज्य बापू जी का राष्ट्र-हितकारी संदेश

गोझरण अर्क बनाने वाली संस्थाएँ एवं जो लोग गोमूत्र से फिनायल व खेतों के लिए जंतुनाशक दवाइयाँ बनाते हैं, वे 8 रूपये प्रति लिटर के मूल्य से गोमूत्र ले जाते हैं। गाय 24 घंटे में 7 लीटर मूत्र देती है तो 56 रूपये होते हैं। उसके मूत्र से ही उसका खर्चा आराम से चल सकता है। गाय के गोबर, दूध और उसकी उपस्थिति का फायदा देशवासियों को मिलेगा ही।

ऋषिकेश और देहरादून के बीच आम व लीची का बग़ीचा है। पहले वह 1 लाख 30 हजार रूपये में जाता था, बिल्कुल पक्की व सच्ची बात है। उनको गायें रखने की सलाह दी गयी तो वे 15 गायें जो दूध न देती थीं, लगभग निःशुल्क ले आये। उस बगीचे का ठेका दूसरे साल 2 लाख 40 हजार रुपये में गया। उनके अनुसार गायें उस धरती पर घूमने से, गोमूत्र व गोबर के प्रभाव से अब वह बग़ीचा 10 लाख रूपये में जाता है। अपने खेतों में गायों का होना पुण्यदायी, परलोक सुधारने वाला और यहाँ सुख-समृद्धि देने वाला साबित होगा।

अगर गोमूत्र, गौ-गोबर का खेत खलिहान में उपयोग हो जाये तो उनसे उत्पन्न अन्न, फल, सब्जियाँ प्रजा का कितना हित करेंगी, कल्पना नहीं कर सकते ! देशी गाय के दूध, छाछ, झरण, गोबर आदि से अनेक बीमारियों से रक्षा होती है और गौ-चिकित्सा के अंतर्गत इनके प्रयोग से विभिन्न बीमारियाँ मिटायी भी जाती हैं। पंचगव्य से तो कई असाध्य रोग भी मिटाये जाते हैं। गौ-चिकित्सा एवं आयुर्वेदिक, प्राकृतिक आदि चिकित्सा-पद्धतियों को बढ़ावा दिया जाय ताकि विदेशी दवाओं के लिए होने वाले हजारों करोड़ रूपयों के खर्च और उनके दुष्प्रभावों (साइड इफेक्टस) से बचा जा सके।

ऐसे मीडिया की 7-7 पीढ़ियाँ सुखी, समृद्ध व सद्गति को प्राप्त होंगी

प्रजा हितैषी जो सरकारें हैं, उन मेरी प्यारी सरकारों को प्यार भरा प्रस्ताव पहुँचाओगे तो मुझे खुशी होगी। मानव व देश का भला चाहने वाले प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया इस बात के प्रचार का पुनीत कार्य करेंगे तो मानव के स्वास्थ्य व समृद्धि की रक्षा करने का पुण्य भी मिलेगा, प्रसन्नता भी मिलेगी व भारत देश की सुहानी सेवा करने वाले मीडिया को देशवासी कितनी ऊँची नज़र से देखेंगे और दुआएँ देंगे ! उनकी 7-7 पीढ़ियाँ इस सेवाकार्य से सुखी, समृद्ध व सद्गति को प्राप्त होंगी

केमिकल की फिनायल व उसकी दुर्गंध से हवामान दूषित होता है। गौ-फिनायल से आपकी सात्त्विकता, सुवासितता बढ़ेगी ही।

सज्जन सरकारें, प्रजा का हित चाहने वाली सरकारें मुझे बहुत प्यारी लगती हैं। गौ-गोबर के कंडे से जो धुआँ निकलता है, उससे हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं। शव के साथ श्मशान तक की यात्रा में मटके में गौ-गोबर के कंडे जलाकर ले जाने की प्रथा के पीछे हमारे दूरद्रष्टा ऋषियों की शव के हानिकारक कीटाणुओं से समाज की सुरक्षा लक्षित है।

अगर गौ-गोबर का 10 ग्राम ताजा रस प्रसूति वाली महिला को देते हैं तो बिना ऑपरेशन के सुखदायी प्रसूति होती है।

गोधरा (गुजरात) के प्रसिद्ध तेल-व्यापारी रेवाचंद मगनानी की बहू के लिए गोधरा व बड़ौदा के डॉक्टरों ने कहा थाः “इनका गर्भ टेढ़ा हो गया है। उसी के कारण शरीर ऐसा हो गया है, वैसा हो गया है…. सिजेरियन (ऑपरेशन) ही कराना पड़ेगा।” आखिर अहमदाबाद गये। वहाँ 5 डॉक्टरों ने मिलकर जाँच की और आग्रह किया कि “जल्दी सिजेरियन के लिए हस्ताक्षर करो, या तो संतान बचेगी या तो माँ, और यदि संतान बचेगी तो वह अर्धविक्षिप्त होगी। अतः सिजेरियन से एक की जान बचा लो।”

परिवार ने मेरे से सिजेरियन की आज्ञा माँगी। मैंने मना करते हुए गौ-गोबर के रस का प्रयोग बताया। न माँ मरी न संतान मरी और न कोई अर्धविक्षिप्त रहा। प्रत्यक्ष प्रमाण देखना चाहें तो देख सकते हैं। अभी वह लड़की महाविद्यालय में पढ़ती होगी। अच्छे अंक लाती है। माँ भी स्वस्थ है। कई लोग देख के भी आये। कइयों ने उनके अनुभव की विडियो क्लिप भी देखी होगी। गौ-गोबर के रस द्वारा सिजेरियन से बचे हुए कई लोग हैं।

विदेशी जर्सी तथाकथित गायों के दूध आदि से मधुमेह, धमनियों में खून जमना, दिल का दौरा, ऑटिज्म, स्किजोफ्रेनिया (एक प्रकार का मानसिक रोग), मैड काऊ, ब्रुसेलोसिस, मस्तिष्क ज्वर आदि भयंकर बीमारियाँ होने का वैज्ञानिकों द्वारा पर्दाफाश किया गया है। परंतु भारत की देशी गाय के दूध में ऐसे तत्त्व हैं जिनसे एच.आई.वी. संक्रमण, पेप्टिक अल्सर, मोटापा, जोड़ों का दर्द, दमा, स्तन व त्वचा का कैंसर आदि अनेक रोगों से रक्षा होती है। उसमें स्वर्ण-क्षार भी पाये गये हैं। गाय के दूध-घी का पीलापन स्वर्ण-क्षार की पहचान है। लाइलाज व्यक्ति को भी गौ-सान्निध्य व गौसेवा से 6 से 12 महीने में स्वस्थ किया जा सकता है।

पुनः, गोमूत्र, गोबर से निर्मित खाद एवं गौ-उपस्थिति का खेतों में सदुपयोग ! भारत को भूकम्प की आपदायों से बचाने के लिए मददगार है गौसेवा !

लोग कहते हैं कि ‘आप 8000 गायों का पालन पोषण करते हैं !’ तो मैं तुरंत कहता हूँ कि ‘वे हमारा पालन-पोषण करती हैं। उन्होंने हमसे नहीं कहा कि हमारा पालन-पोषण करो, हमें सँभालो। हमारी गरज से हम उनकी सेवा करते हैं, सान्निध्य लेते हैं।’

महाभारत (अनुशासन पर्वः 80.3) में महर्षि वसिष्ठ जी कहते हैं- “गौएँ मेरे आगे रहें। गौएँ मेरे पीछे भी रहें। गौएँ मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में निवास करूँ।”

हे साधको ! देशवासियो ! सुज्ञ सरकारो ! इस बात पर आप सकारात्मक ढंग से सोचने की कृपा करें।

आप सभी का स्नेही

आशाराम बापू, जोधपुर।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2016, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 284

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