ब्रिटिश शासन के दौरान गवर्नर रॉबर्ट क्लाइव को पता चला कि गायों की सहायता के बिना भारत में खेती करना मुश्किल है। यहाँ किसान बैलों से हल चलाते हैं, गोमूत्र की कीटनाशक तथा गोबर को खाद रूप में उपयोग करते हैं। इसीलिए सन 1730 में उसने कोलकाता में पहला कत्लखाना खुलवाया जिसमें प्रतिदिन 30000 से ज्यादा गायों-बैलों की हत्या होने लगी तथा कुछ ही समय में अन्य स्थानों में भी कई कत्लखाने खुलवाये गये। गायों की कमी से जैविक खाद और गोमूत्र की उपलब्धता घट गयी, जिससे लोग औद्यौगिक खादों का उपयोग करने के लिए बाध्य हो गये। ‘महाभारत’ (अनुशासन पर्व 89.34) में आता है-
द्रुह्येन्न मनसा वापि गोषु नित्यं सुखप्रदः।
अर्चयेत सदा चैव नमस्कारैश्च पूजयेत्।।
‘गौओं के साथ कभी मन से भी द्रोह न करे, उन्हें सदा सुख पहुँचाये, उनका यथोचित सत्कार करे और नमस्कार आदि के द्वारा उनका पूजन करता रहे।’
इसी शास्त्र वचन का उल्लघंन करने से रॉबर्ट क्लाइव शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक समस्याओं से ग्रस्त होकर अल्पायु में ही आत्महत्या करके मर गया।
जिन्होंने भी गायों को सताने का पाप किया है उन्हें उसका फल अवश्य ही भुगतना पड़ा और जिन्होंने गौसेवा की उनका जीवन खुशहाल हुआ है, सुख-समृद्धि व शांति से सम्पन्न हुआ है।
गायों में अपने परिवार के सदस्यों की तरह हमारे सुख-दुःख के प्रति संवेदनशीलता देखने को मिलती है, तभी तो गाय को माता के रूप माना गया है।
आपदाकाल में गायों ने बचायी जान
गढ़मुक्तेश्वर (उ.प्र.) में ब्रह्मचारी रामचन्द्र नामक एक तपस्वी अपनी माँ के साथ रहते थे। वे गायों की बड़े प्रेम से सेवा करते थे। माँ गायों को जब ‘गंगादेई’, ‘जमुनादेई’ आदि नामों से पुकारतीं तो वे दौड़ी-दौड़ी आती थीं। जंगल से गायों के आने में तनिक भी देर हो जाती थी तो वृद्ध माँ गायों को ढूँढने जंगल में चली जाती थीं। किसी दिन गायें आ जातीं और मैया न दिखतीं तो वे रँभाने लगतीं तथा मैया को ढूँढने लगती थीं।
एक दिन रामचन्द्र जी किसी दूसरे गाँव गये थे। दोपहर के समय भयंकर आँधी आयी और टीनवाली झोंपड़ी, जिसमें मैया रहती थीं, उखड़ गयी व टीन मैया के ऊपर गिरे जिससे वे दब गयीं। उन्होंने सोचा इस निर्जन स्थान में कौन इन टीनों से मुझे निकालेगा ?’
शाम को जंगल से सभी गायें आयीं। झोंपड़ी टूटी पड़ी देख व मैया को न पा के वे रँभाने लगीं। मैया ने आवाज दीः “अरी गंगादेई ! मैं तो टीनों के नीचे दबी हूँ।”
गायें आवाज सुनते ही मैया को बचाने आयीं और एक साथ अपने सींगों से टीनों को उठा लिया, जिससे मैया बाहर निकलीं। फिर गायें आँखों में आँसू भरकर मैया को चाटने लगीं।
संत उड़िया बाबा जी ने यह घटना सुनी तो उन्होंने उन वृद्ध माँ से कहाः “मैया ! जो उत्तम गति बड़े-बड़े ज्ञानियों-ध्यानियों, त्यागी-तपस्वियों को भी मिलनी दुर्लभ है, ऐसी उत्तम गति तुम्हें अनायास इन पूज्या गौमाताओं की कृपा से अवश्य प्राप्त होगी, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2016, पृष्ठ संख्या 9, अंक 288
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