लोक कल्याण की मूर्तिः देवर्षि नारद जी

लोक कल्याण की मूर्तिः देवर्षि नारद जी


देवर्षि नारद जयंती 11 मई 2017

पूज्य बापू जी

कोई झगड़ालू होता है तो कुछ लोग नासमझी से कह देते हैं कि ‘यह तो नारद है।’ अरे, नारद ऋषि को तुम ऐसी नीची नज़र से क्यों देखते हो ? इससे नारदजी का अपमान करने का पाप लगता है।

नारदजी भक्ति के आचार्य हैं। वेद, उपनिषद के मर्मज्ञ, मेधावी, सत्यभाषी, त्रिकालदर्शी और नीतिज्ञ हैं। इतिहास तथा पुराणों में विशेष गति-प्रीतिवाले हैं। कठोर तपस्वी, मंत्रवेत्ता हैं। ‘नारदभक्तिसूत्र’ के रचयिता तथा प्रभावशाली वक्ता हैं। व्याकरण, आयुर्वेद और ज्योतिष के प्रकांड विद्वान, कवि हैं। देवता तो पूज्य हैं, प्रभावशाली हैं पर नारदजी देवताओं के भी पूजनीय हैं। इन्द्र भी उनका आदर करते हैं। गुरु बृहस्पति का भी शंका-समाधान करने वाले तथा योगबल से लोक-लोकांतर का समाचार जानने में सक्षम हैं। पाँचों विकारों और छठे मन को दोषों पर विजय पाने की प्रेरणा देने वाले हैं।

नारदजी सभी जातियों का भला करने से पीछे नहीं हटते, वे देवताओं और दैत्यों का भी मंगल करते हैं। वे अपने स्वार्थ का कभी सोचते भी नहीं। वे हमेशा सर्वजनसुखाय, सर्वजनहिताय और सारगर्भित बोलते हैं।

नारदजी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के यथार्थ ज्ञाता हैं। समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सर्विद्याओं में निपुण, सर्वहितकारी नजरिये के धनी है। सदगुणों का आधार, परम तेजस्वी, देवताओं और दैत्यों को उपदेश देने में समर्थ हैं।

न्याय-धर्म का तत्त्व न जानने वाले राजा-महाराजाओं, जति जोगियों को अपना सुहृद बनाकर उन्हें भी उपदेश दे के सजग करने वाले हैं।

नारद जी जहाँ देखते हैं कि संधि से या विग्रह के बिना काम नहीं होगा, वहीं झगड़ा कराते हैं। और कलह भी करेंगे-करवायेंगे तो उसके पीछे भी उनका उद्देश्य क्रांति से शांति होता है।

दोनों पक्षों का मंगल हो यह उनका नजरिया होता है। नर-नारी के अयन ‘नारायण’ से जो मिलने की प्रेरणा दें वे ‘नारद’ हैं।

वेदव्यास जी जैसे महापुरुष को श्रीमद्भागवत की रचना की प्रेरणा देने वाले और वाल्मीकि ऋषि को श्रीरामजी के चरित्र सुनाने वाले थे देवर्षि नारद। तीनों लोकों में, लोक-लोकांतर में भी जाने में समर्थ हैं और सब कुछ करते-कराते भी सर्व से असंग आत्मा को जानने-पाने में भी समर्थ रहे हैं।

ताना मारकर भई किसी का मंगल होता है तो भई कर देते थे। किसी को आशीर्वाद देकर उसका मंगल होता है तो वैसा करत देते हैं और किसी का संगठन, विद्रोह या विग्रह से मंगल होता है तो उनके द्वारा भी मंगल करते हैं मंगलमूर्ति नारदजी।

कंस को ऐसा भ्रमित किया कि ‘क्या पता देवकी की कौन-सी संतान आठवीं होगी !’ ऐसा करके जल्दी-जल्दी उसका पाप का घड़ा भरवाकर भी पृथ्वी पर शांति लाने वाले थे नारदजी ! और दैत्यों को भी अलग-अलग प्रेरणा देकर उनकी दैत्य-वृत्तियों से उन्हें उपराम कराने वाले भी थे।

देवर्षि नारद जी ने मीडियावालों का भी मंगल चाहा है। वे कहते हैं कि पत्रकारिता में इस प्रकार की मानसिकता होनी चाहिए कि समाज में सत्य, अहिंसा, संवेदनशीलता, परस्पर भाईचारा, विश्वास फैले। स्नेह और सौहार्द बढ़े, सदाचार तथा शिष्टाचार में लोगों की रुचि हो। नकारात्मक, द्वेषात्मक खबरों को नहीं फैलाना चाहिए। घृणात्मक विचारों को महत्त्व न दें न फैलायों। राग, द्वेष, ईर्ष्या, जलन से रहित, तटस्थ पत्रकारिता आदर्श मानी जाती है।

नारद जी कहते हैं- ‘अपने धर्म में मर जाना अच्छा है, परधर्म भयावह है।’ सैनिक का धर्म है सीमाओं की रक्षा करना और वहाँ से वह भागता है तो धर्मच्युत है, भीरू है, वह दंड का पात्र है लेकिन व्यापारी, हकीम, डॉक्टर आदि सभी लोग युद्ध करने चले जायें, जिससे देश पर और आपत्ति आये तो वे सभी अपने-अपने धर्म से च्युत हो जायेंगे। शिक्षक चले जायें तो आने वाली पीढ़ी विद्याशून्य हो जायेगी। किसान चले जायेंगे तो सैनिकों को अनाज कौन पहुँचायेगा ? तो किसान अपनी काश्तकारी (खेती-बाड़ी) का धर्म निभायें और वकील, डॉक्टर अपना धर्म निभायें, उपदेशक, विद्वान अपना धर्म निभायें और सभी के धर्मों के पीछे सार यह है कि परमात्मा में, समत्व में रहें और संसार के साधनों का ईश्वर की प्रीति के लिए सदुपयोग करें।

नारदजी सभी विषयों में, सभी क्षेत्रों में और सभी जातियों का भला करने में पीछे नहीं हटे। उन्होंने क्या-क्या कहा है इसका विचार करते ही हृदय द्रवीभूत हो जाता है, अहोभाव से भर जाता है। ऐसे मंगलमूर्ति महापुरुष नारदजी का भगवान भी आदर करते हैं।

नारद जी की जयंती के दिन नारद जी के चरणों में प्रणाम हैं, भगवान वेदव्यास जी, परम पूज्य लीलाशाह जी बापू जैसे ब्रह्मवेत्ता संतों के चरणों में प्रणाम हैं ! और भी महापुरुष, जिनके नाम हम नहीं जानते, जो हरि के प्यारे हैं, जगत, हरि और अपने स्वरूप को ब्रह्मरूप से जानकर अद्वैत स्वरूप में एकाकार हो गये हैं, उनको हम नमन करते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2017, पृष्ठ संख्या 24,25 अंक 292

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *