Monthly Archives: August 2017

मेरे लिए तो स्वयं बादशाह भोजन माँगकर लाये हैं !


एक बार बादशाह अकबर अपने मंत्री बीरबल के साथ शिकार खेलने जंगल में गये। काफी देर हो गयी पर उन्हें कोई शिकार नहीं मिला। वे दोनों रास्ता भटकने से खूब थककर एक जगह पर रुक गये। बीरबल ने जमीन साफ की और बैठकर भगवन्नाम जपने लगेः ‘ॐ राम…. हरि ॐ…. ॐ गुरु….’

कुछ देर आराम करने के बाद अकबर बोलाः “चलो बीरबल ! भूख लग रही है। कहीं भोजन ढूँढते हैं।”

बीरबल तो भगवन्नाम जपते हुए आनंद से पुलकित हो रहे थे। बादशाह ने बीरबल को ऐसे बैठे देखकर पूछाः “क्या तुम नहीं चलोगे ?”

बीरबलः “हुजूर ! ऐसा एकांत तो कभी-कभी मिलता है। मैं यहीं बैठकर भगवान का नाम जपूँगा।”

“बीरबल ! तुम्हारे केवल मंत्रजप से ईश्वर भोजन नहीं दे देंगे। इसके लिए तुम्हें कुछ करना पड़ेगा। बिना प्रयास के कुछ नहीं मिलेगा।”

बीरबल मुस्कराये, बोलेः “ईश्वर की इच्छा से सब कुछ सम्भव है।”

“ऐसा केवल तुम सोचते हो बीरबल !” बादशाह वहाँ से चला गया। कुछ दूरी पर उसे एक घर दिखा, वहाँ पहुँचा। घर में रहने वालों ने उसे सत्कार के साथ भोजन कराया। तृप्त होने के बाद अकबर ने बीरबल के लिए भी भोजन बँधवा लिया।

अकबर जब वापस लौटा तो उसने बीरबल से कहाः “देखो बीरबल ! हमने प्रयास किया तो हमें भोजन मिल गया और खाकर तृप्त भी हो गये। हम तुम्हारे लिए भी भोजन लेकर आ गये हैं। यहाँ खाली बैठ के जपने से तुम्हें क्या मिला ?”

बीरबल मुस्कराये और अकबर के हाथों से भोजन लेकर शांतिपूर्वक उसे खाने लगे। बादशाह ने उनसे दोबारा प्रश्न किया तो बीरबल बोलेः “जहाँपनाह ! मुझे भगवन्नाम-जप की शक्ति का नया एवं प्रत्यक्ष अनुभव हुआ है। आप बादशाह होकर भी भोजन ढूँढने-माँगने गये जबकि जिनके नामजप में मैं तल्लीन था, उन्होंने मेरी भूख का ख्याल रखते हुए बादशाह के हाथों मेरे लिए भोजन भिजवाया और बैठे-बैठे खिलाया। जहाँपनाह ! मेरे अंतर्यामी प्रभु और उनके नामजप की महिमा अपार है।”

बादशाह अकबर बीरबल की ओर विस्मय की दृष्टि से एकटक देखता रहा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2017, पृष्ठ संख्या 28 अंक 296

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

बलवर्धक एवं पुष्टिदायक देशी गाय का दूध


देशी गाय के दूध को सम्पूर्ण आहार माना जाता है। इसे शास्त्रों ने ‘पृथ्वीलोक का अमृत’ कहा है, विशेषतः इसलिए कि यह उत्तम स्वास्थ्य प्रदायक एवं शरीर को दीर्घकाल तक बनाये रखने में सहायक है। गोदुग्ध शरीर की रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाकर रोगमुक्त रखने में सहायक है।

आधुनिक अनुसंधानों के अनुसार देशी गाय के दूध में शरीर के लिए आवश्यक अधिकांशतः सभी पोषक तत्त्व – कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन एवं खनिज तत्त्व प्रचुर मात्रा में पाये जाने के कारण यह एक पौष्टिक आहार है।

दूध शरीर को ताकत देता है, थकान को कम करता है, शक्ति कायम रखता है और आयु व स्मृति बढ़ाता है। बाल्यावस्था में दुग्धपान शरीर की वृद्धि करने वाला होता है। खाँड (कच्ची, लाल चीनी) या मिश्री मिला दूध वीर्यवर्धक तथा वात-पित्तशामक होता है।

देशी गोदुग्ध के कुछ औषधीय प्रयोग

उबाला हुआ गुनगुना दूध पीने से हिचकियाँ आना बंद हो जाता है।

दूध में आधा चम्मच हल्दी डाल के उबाल के पीने से जुकाम में लाभ होता है।

गुनगुने दूध में घी और मिश्री मिला के पीने से शरीर पुष्ट होता है, बल बढ़ता है और वीर्यवृद्धि होती है।

देशी गाय के दूध में दुगना पानी मिलायें एवं मिलाया हुआ पानी वाष्पीभूत होने तक उबालें व ठंडा होने पर मिश्री मिला के पियें। इससे पित्त प्रकोप से होने वाली जलन आदि बीमारियों में लाभ होता है।

पुष्टिप्रद खीर

देशी गाय के दूध की खीर सात्त्विक व बलप्रद होती है। विशेष रूप से शरद ऋतु में खीर खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है।

विधिः 200 ग्राम पके चावल में एक लीटर दूध डालकर 2-4 उबाल आने तक गर्म करें। आवश्यकता अनुसार मिश्री डालें। शीत ऋतु में उचित मात्रा में बादाम, काजू पिस्ता आदि मेवे भी डाल सकते हैं। प्रति व्यक्ति 1-2 काली मिर्च दूध में उबालनी चाहिए, जिससे दूध का वायु दोष दूर हो जाये।

विशेषः शरद पूनम (5 अक्तूबर 2017) की रात को 9 से 11 बजे के बीच खीर को चन्द्रमा की किरणों में रख दें। फिर अपने इष्टदेव, गुरुदेव को मन-ही-मन अर्पित कर भगवत्प्रसाद की भावना करके यह खीर खायें तो इससे आपको शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक प्रसन्नता एवं आध्यात्मिक लाभ भी मिलेगा।

देशी गाय का दूध सभी के लिए अनुकूल रहता है तथापि गैस या मंद पाचन की शिकायतवालों को काली मिर्च सौंठ, इलायची, पीपर, पीपरामूल, दालचीनी जैसे पाचक मसाले मिला के उबाला हुआ दूध लेना चाहिए। थोड़ी सी पीपर या सोंठ डालने से दूध अग्नि प्रदीपक तथा वातहर बनता है।

ध्यान दें- दूध के उपरोक्त लाभ सिर्फ देशी गाय के दूध से मिलेंगे। जर्सी, ब्राउन, स्वीडिश, होल्सटीन, फ्रिजीयन आदि विदेशी नस्लों की तथाकथित गायों का दूध पीने से लाभ की जगह विभिन्न प्रकार के रोग होने की सम्भावना होती है। यदि देशी गाय का दूध प्राप्त न हो सके तो भैंस का दूध ले सकते हैं परंतु विदेशी नस्ल की तथाकथित गाय का दूध नहीं लेना चाहिए।

दूध को ज्यादा उबाल के गाढ़ा बना के उपयोग करना हितकर नहीं है। दूध और भोजन के बीच कम-से-कम 3 घंटे का अंतर रखें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2017, पृष्ठ संख्या 29,33 अंक 296

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

परम सुख की प्राप्ति कैसे ?


श्री योगवासिष्ठ महारामायण में वसिष्ठजी महाराज कहते हैं- हे राम जी ! जो बोध से रहित किंतु चल ऐश्वर्य से बड़ा है उसको तुच्छ अज्ञान नाश कर डालता है, जैसे बल से रहित सिंह को गीदड़, हिरण भी जीत लेते हैं। इससे जो कुछ प्राप्त होता दृष्टि आता है वह अपने प्रयत्न से होता है। अपना बोधरूपी चिंतामणि हृदय में स्थित है, उससे विवेक रूपी फल मिलता है। जैसे जानने वाला केवट समुद्र से पार करता है, अजान नहीं उतार सकता, तैसे ही सम्यक् बोध संसार-समुद्र से पार करता है और असम्यक् बोध जड़ता में डालता है।

पूज्य बापू जीः सम्यक् बोध और असम्यक् बोध…… सम्यक बोध माना सही ज्ञान, वह संसार से, दुःखों से पार कर देता है और असम्यक बोध माना गलत ज्ञान, वह संसार चक्र में फँसा देता है। सही ज्ञान क्या है ? कि हम सुख चाहते हैं, सदा चाहते हैं और स्वतंत्रता चाहते हैं। कुछ भी काम करें, हम सुख को पाने और दुःख को मिटाने के लिए करते हैं और वह सुख सदा रहे यह भी मन में होता है। कोई कहेः ‘भगवान करे कि आप दो घंटे सुखी रहो, बाद में दुःखी हो जाओ’ तो अच्छा नहीं लगेगा। दो दिन सुखी रहो फिर दुःखी होना…. — अच्छा नहीं लगेगा। दो साल आप सुखी रहो फिर दुःखी होना…. – अच्छा नहीं लगेगा। यहाँ जीते जी सुखी रहो फिर नरकों में जाना….. – नहीं अच्छा लगता। तो आप सुख भी चाहते हैं और सदा के लिए भी चाहते हैं। अच्छा, सुखी तो रहो लेकिन बंधन में रहो….. नहीं, बंधन नहीं चाहिए। तो आप स्वतंत्रता भी चाहते हैं। रामायण भी कहता हैः

पराधीन सपनेहूँ सुखु नाहीं।

जो पराधीन होता है उसको तो स्वप्न में भी सुख नहीं है। टुकड़े-टुकड़े के लिए जो जीव-जंतु भटकता है, उसको आप फँसाकर (कैद करके) फिर बढ़िया से बढ़िया खाने को दो तो वह खायेगा नहीं, बाहर निकलने को छटपटायेगा। अपनी मर्जी से आप घंटों भर कमरा बंद करके बैठो, परवाह नहीं लेकिन बाहर से किसी ने कुंडा-ताला लगा दिया तो छटपटाहट होगी। तो आप बंधन भी नहीं चाहते और सदा व शाश्वत सुख चाहते हैं लेकिन गलती यह करते हैं कि जो स्वतंत्र सुख है, सदा सुख है, निर्बंध सुख है उधर का ज्ञान नहीं, उधर की प्रीति नहीं, उधर की रूचि नहीं और जो सदा रहने वाला नहीं है, परतंत्रता देने वाला है उधर चले जाते हैं।

जैसे दीये पर पतंगे आ जाते हैं, गाड़ियों की सामने की बत्ती (हेडलाइट) पर जंतु उड़ते-उड़ते आते हैं, तो आते सुख के लिए हैं, दुःख लेने को नहीं आते लेकिन गलत निर्णय है, गलत बुद्धि है तो दुःखी हो जाते हैं। जहाँ सुख नहीं है, केवल सुख का आभास है, वहाँ सुख समझ के जैसे पतंगे जिंदगी खो देते हैं ऐसे ही आम आदमी भी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार में छटपटा के जिंदगी पूरा कर देता है।

गीता (2.70) में कहा हैः स शान्तिमाप्नोति न कामकामी। शांति वह पाता है जो भोगों से विचलित नहीं होता। जिसको सम्यक् ज्ञान है, सत्य का सुख पाता है, सत्य सुख की माँग है और सत्य सुख में ले जाने वाला सत्संग मिल गया है, वही आत्मसुख में संतुष्ट हो जाता है, भोगों को चाहने वाला नहीं। श्रीकृष्ण कहते हैं- संतुष्टः सततं योगी… विषय विकारों के भोग-सुखों वाला न सदा सुखी रह सकता है, न सदा संतुष्ट रह सकता है। स शान्तिमाप्नोति…. यह मिल जाय तो सुखी हो जाऊँ, यह हट जाय तो सुखी हो जाऊँ, यहाँ चला जाऊँ तो सुखी हो जाऊँ….. हिंदुस्तान से अमेरिका सेट हो जाऊँ तो सुखी हो जाऊँ….. अमेरिका वाले कई आते हैं, बोले, ‘वहाँ कुछ नहीं, अब तो भारत में सेट होना है।’ बाबा, कहीं भी जाओ, जब तक सम्यक् ज्ञान में सजग नहीं हुए, शाश्वत सुखस्वरूप में सजग नहीं हुए, परिस्थितियाँ अपसेट करती रहेंगी और मृत्यु भी जन्म-मरण व चौरासी के चक्कर में अपसेट करती ही रहेगी। परिस्थितियों को अऩुकूल बनाकर सुखी रहना चाहते हो यह बड़े-में-बड़ी गलती है। अपने सुखस्वरूप आत्मस्वभाव को भूलकर परिस्थितियों की अनुकूलता में सुखी रहना चाहते हैं यह भूल है। जहाँ परिस्थितियों की पहुँच नहीं,  परिस्थितियों की दाल नहीं गलती वह सुखस्वरूप अपना आत्मा ज्यों-का-त्यों है, उसका ज्ञान पाओ।

बुद्धि में अज्ञान है ‘धन कमा के सुखी हो जाऊँ, धन छोड़ के सुखी हो जाऊँ…. त्याग कर दिया एकदम लेकिन अकेले त्याग से भी पर सुख नहीं मिलता, अकेले संग्रह से भी परम सुख नहीं मिलता, अकेले होने से भी नहीं मिलता। परम सुख पाने के लिए परम सुख का पता चाहिए, परम सुख की प्रीति चाहिए और परम सुख के अनुभवसम्पन्न महापुरुष का सान्निध्य चाहिए, बस !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2017, पृष्ठ संख्या 11,12 अंक 296

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ