(विजयदशमीः 30 सितम्बर 2017)
असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म, दुराचार पर सदाचार, असुरों पर सुरों की जय का पर्व है विजयदशमी।
भारतीय संस्कृति, उद्यम, साहस व धैर्य की पूजक है, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम की उपासक है। व्यक्ति और समाज में ऐसे सदगुण दृढ़ हो जायें इसलिए अपने पूर्वजों ने जिस उत्सव की व्यवस्था की, वह है दशहरा या विजयदशमी।
सीमोल्लंघन उत्सव
विजयदशमी सीमोल्लंघन का भी उत्सव है। शत्रु अपने यहाँ घुसपैठ करे, लूटपाट करे इसके पहले उसकी बदनीयत भाँपकर उसी की हद में जा के उसे दिन के तारे दिखा देते थे अपने पूर्वज। ऐसे अभियान एवं अन्य किसी भी प्रकार के विजय-प्रस्थान हेतु दशहरे का दिन शुभ माना जाता है। इस दिन राजा रघु ने कुबेर को युद्ध के लिए ललकारा और कौत्स मुनि को गुरुदक्षिणा दिलाने के लिए स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करवायी। छत्रपति शिवाजी ने औरंगजेब को मात देने इसी दिन प्रस्थान किया और वे हिन्दू धर्म की रक्षा करने में सफल हुए।
आंतरिक सीमोल्लंघन
बाहरी शत्रुओं की तरह मानवी मन में भी काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, मत्सर (ईर्ष्या) आदि षड्रिपु घात लगाये बैठे हैं। विकाररूपी ये शत्रु आपको अधीन कर लें उसके पहले ही गुरुकृपा का सम्बल लेकर संयम, साधना, सावधानी, दृढ़ संकल्प, सत्संग रूपी शस्त्रों द्वारा इन जन्मों-जन्मों के आंतरिक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें।
अपने मन को गुरुज्ञान, गुरुनाम के वाद्यों से झकझोरकर जगायें और कहें- ‘उठ ! खड़ा हो ! साधना-सेवारूपी अस्त्र-शस्त्र और गुरुकृपारूपी रक्षा कवच धारण कर कृतनिश्चयी बन के आगे बढ़। विकाररूपी शत्रुओं के सिर उठाने के पहले ही ॐकार गुँजन की गदा का प्रहार करके उन्हें कुचल दे।’
जीवित दशानन का वध करो
रावण का वध होने के बाद भी आज वह दशानन जीवित ही है। सदियों से वह जीवों के मन-बुद्धि से प्रारम्भ कर सामाजिक मनोवृत्ति तक पहुँच के उस पर कब्जा करके बैठा है। दशहरा मानवी मन एवं समाज में घर करके बैठे झूठ-कपट, निंदा, मिथ्या अभिमान, राग, द्वेष, दुराग्रह, आलस्य-प्रमाद, स्वच्छंदता, कृतघ्नता व कटुता रूपी दसमुखी रावण का संहार करने के लिए कटीबद्ध होने की प्रेरणा देने वाला दिवस है।
दशहरे पर पूजन
विजय एवं सफलता का प्रतीक दशहरा पर्व इन्हें दिलाने वालों साधनों, जैसे – शस्त्र, औजार, वाहन, शास्त्रों आदि के पूजन का भी दिन है। भारतीय सेना में आज भी इस पर्व पर अस्त्र-शस्त्रों का पूजन किया जाता है।
शास्त्रों में इस दिन सदगुरु का पूजन करने का विधान है, जिससे आंतरिक व बाहरी शत्रुओं को परास्त करने में सफलता मिल सके।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 11, अंक 297
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