Monthly Archives: April 2019

मनोबल – बुद्धिबल विकसित करने के लिए….. – पूज्य बापू जी


कमजोर मन का, कमजोर हृदय का व्यक्ति हो या भोंदू से भोंदू (बुद्धु) अथवा कितना भी दब्बू विद्यार्थी हो, वह पीपल, तुलसी की परिक्रमा करे, उन्हें स्पर्श करे (रविवार को पीपल का स्पर्श करना वर्जित है) और वहाँ प्राणायाम करे । गहरा श्वास लेकर भगवन्नाम जपते हुए 1 मिनट अंदर रोके । फिर श्वास धीरे-धीरे छोड़ दे और स्वाभाविक 2-4 श्वास ले । फिर पूरा श्वास बाहर निकाल के 50 सेकंड बाहर रोके । दोनों मिलाकर एक प्राणायाम हुआ । ऐसे 4-5 प्राणायाम शुरु करे । धीरे-धीरे कुछ दिनों के अंतराल में 5-5 सेकंड श्वास रोकना बढ़ाता जाय । इस प्रकार 80-100 सेकंड श्वास भीतर रोके और 70-80 सेकंड बाहर रोके । इससे प्राणबल, मनोबल, बुद्धिबल व रोगप्रतिकारक बल बढ़ेगा ।

पीपल की परिक्रमा से हृदय के रोगियों को भी फायदा होता है । हम भी बचपन में पीपल को सींचते थे और थोड़ी प्रदक्षिणा करते थे । हम दब्बू नहीं हैं यह हमें भरोसा है । थोड़ा सा ही पढ़ते थे पर 100 में से 100 अंक लाते, कक्षा में प्रथम स्थान आता था । पढ़ के फिर चले जाते किसी शांत जगह पर और ध्यान में बैठ जाते थे ।

जिनको बुद्धि विकसित करनी हो, बुद्धि का काम जो करते हैं उनको प्याज, लहसुन और तामसी भोजन (बाजारू, बासी व जूठा भोजन, चाय, कॉफी, ब्रेड, फास्टफूड आदि) से बचना चाहिए । देर रात के भोजन से बचना चाहिए । सात्त्विक भोजन करने से बुद्धि और ज्ञानतंतु पुष्ट होते हैं और सुषुप्त ऊर्जा जागृत होती है ।

विद्यार्थी के जीवन में अगर सारस्वत्य मंत्र व साधक के जीवन में ईश्वरप्राप्ति का मंत्र और मार्गदर्शन मिल जाय किन्हीं परमात्म-अनुभूतिसम्पन्न महापुरुष द्वारा तो वह व्यक्ति तो धन्य हो जायेगा, शिवजी कहते हैं-

धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोद्भवः ।

धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद गुरुभक्तता ।।

उसके माता पिता, कुल-गोत्र भी धन्य हो जायेंगे, समग्र धरती माता धन्य हो जायेगी ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2019, पृष्ठ संख्या 18 अंक 316

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सेवा-धर्म देता है अनमोल हीरा – पूज्य बापू जी


एकांत में जप करना सरल है, उपवास करना सरल है, तप करना सरल है पर हर घड़ी प्रभु की सेवा में तत्पर रहना बहुत बड़ी बात है । राम जी का मंदिर हो तो उसमें हनुमान जी चाहिए, चाहिए, चाहिए पर हनुमान जी का मंदिर हो तो अकेले चलें । हनुमान जी की दुगनी पूजा हो गयी, कारण कि रामचन्द्र जी का ज्ञान हनुमान जी का ज्ञान हो गया और इसके उपरांत सेवा हो गयी । सब तें सेवक धरमु कठोरा । सेवा-धर्म निभाना, सेवा का कर्तव्यपालन करना दूसरे सभी धर्मों से कठिन है । इसलिए इस धर्म को तत्परता से निभाने वाले उतने ही मजबूत, समतावान, उदार, सुखी, शांत और प्रसन्न स्वभाव के धनी हो जाते हैं ।

सेवा सचीअ मां जिन लधो, लधो लाल अणमुलो

ते स्वामी सचीअ सिक सां, सदा सेवा कन

सच्ची सेवा से जिन्होंने आत्मशांति, आत्मानंद रूपी अनमोल हीरा पाया है, वे सदा सच्ची प्रीति से सेवा करते हैं और सेवा करते समय अपमान, निंदा, बदनामी भी सहेंगे फिर भी सेवा से पीछे नहीं हटेंगे । ऐसे जो लोग होते हैं उनकी गाथा तो अमर हो जाती है । सेवा लेने में उतना सुख नहीं मिलता जितना सेवा करने में मिलता है । भोजन करने में उतना मज़ा नहीं आता जितना भोजन कराने में आता है । सेवा करते-करते सेवक इतना बलवान हो जाता है कि सेवा का बदला वह कुछ नहीं चाहता है फिर भी उसे मिले बिना नहीं रहता है – चित्त की शांति, आनंद, विवेक ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2019, पृष्ठ संख्या 17 अंक 316

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भगवान किनसे पाते हैं अपने घर की समस्या का हल ?


एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने देवर्षि नारदजी से कहाः “देवर्षे ! मनुष्य किसी व्यक्ति में बुद्धि-बल की पूर्णता देखकर ही उससे कुछ पूछता या जिज्ञासा प्रकट करता है । मैं आपके सौहार्द पर भरोसा रखकर आपसे कुछ निवेदन करता हूँ । मैं अपनी प्रभुता दिखा के कुटुम्बीजनों को अपना दास बनाना नहीं चाहता । मुझे जो भोग प्राप्त होते हैं, उनका आधा भाग कुटुम्बीजनों के लिए छोड़ देता हूँ और उनकी कड़वी बातें सुन के भी क्षमा कर देता हूँ ।

बड़े भाई बलराम में असीम बल है, वे उसी में मस्त रहते हैं । छोटे भाई गद में अत्यंत सुकुमारता है (अतः वह परिश्रम से दूर भागता है), रह गया बेटा प्रद्युम्न, वह अपने रूप-सौंदर्य के अभिमान से मतवाला बना रहता है । वृष्णिवंश में और भी बहुत से वीर पुरुष हैं, जो महान बलवान, दुस्सह पराक्रमी हैं, वे सब सदा उद्योगशील रहते हैं । ये वीर जिसके पक्ष में न हों, उसका जीवित रहना असम्भव है और जिसके पक्ष में चले जायें वह विजयी हो जाय । परंतु परनाना आहुक और काका अक्रूर ने आपस में वैमनस्य रख के मुझे इस तरह अवरूद्ध कर दिया है कि मैं इनमें से किसी एक का पक्ष नहीं ले सकता । आपस में लड़ने वाले दोनों ही जिसके स्वजन हों, उसके लिए इससे बढ़कर दुःख की बात और क्या होगी ?

मैं इन दोनों सुहृदों में से एक की विजयकामना करता हूँ तो दूसरे की भी पराजय नहीं चाहता । इस प्रकार मैं सदा दोनों पक्षों का हित चाहने के कारण दोनों ओर से कष्ट पाता रहता हूँ । ऐसी दशा में मेरा अपना तथा इनका भी जिस प्रकार भला हो वह उपाय बताने की कृपा करें ।”

देवर्षि नारद जी ने कहाः “श्री कृष्ण ! आप एक ऐसे कोमल शस्त्र से, जो लोहे का बना हुआ ना होने पर भी हृदय को छेद डालने में समर्थ है, परिमार्जन1 और अनुमार्जन2 करके उन्हें मूक बना दें (जिससे फिर कलह न हो) ।

1 क्षमा, सरलता और कोमलता के द्वारा दोषों को दूर करना 2 यथायोग्य सेवा-सत्कार से हृदय में प्रीति उत्पन्न करना ।

श्रीकृष्ण ने पूछाः “उस शस्त्र को मैं कैसे जानूँ, जिसके द्वारा परिमार्जन, अनुमार्जन कर सकूँ ?”

“अपनी शक्ति के अनुसार सदा अन्नदान करना, सहनशीलता, सरलता, कोमलता तथा यथायोग्य आदर-सत्कार करना – यही बिना लोहे का बना हुआ शस्त्र है । जब सजातीय बंधु आपको कड़वी तथा ओछी बातें कहना चाहें, तब आप मधुर वचन बोल के उनके हृदय, वाणी तथा मन को शांत कर दें ।

आप इस यादव संघ के मुखिया हैं । यदि इसमें फूट हो गयी तो इस समूचे संघ का विनाश हो जायेगा । अतः आप ऐसा करें जिससे आपको पाकर इसका मूलोच्छेद न हो जाय ।

श्रीकृष्ण ! सदा अपने पक्ष की उन्नति होनी चाहिए जो धन, यश तथा आयु की वृद्धि करने वाली हो और जिससे कुटुम्बीजनों में से किसी का विनाश न हो । यह सब जैसे भी सम्भव हो, वैसा कीजिये ।

माधव ! आप जैसे महापुरुष का आश्रय लेकर ही समस्त यादव सुखपूर्वक उन्नति करते हैं ।

जो महापुरुष नहीं है, जिसने अपने मन को वश में नहीं किया है वह कोई भारी भार नहीं उठा सकता । अतः आप ही इस गुरुतर भार को वहन करें ।”

जब भगवान के जीवन में ऐसी समस्याएँ आ सकती हैं तो अन्य किसी के जीवन में आ जायें तो क्या आश्चर्य ! परंतु समस्या आने पर निराश न हो के ब्रह्मज्ञानी महापुरुष का, सदगुरु का, उनके सत्संग का आश्रय लिया जाय तो कठिन-से-कठिन समस्या को सुलझाने की सुकोमल सूझबूझ निखर आती है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2019, पृष्ठ संख्या 11, 23 अंक 316

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