Monthly Archives: September 2019

नादानों की नादानी और संत की करुणा


भक्त कोकिल साँईं वृंदावन में निवास करते थे । एक बार वे अयोध्या जा रहे थे तो एक सज्जन ने उन्हें बताया कि “कानपुर में मेरे एक मित्र रहते हैं । आप उनके घर अवश्य जाना । वे कानपुर के आगे आपको जहाँ भी जाना होगा वहाँ की हर व्यवस्था कर देंगे ।” इतना कहकर उन्होंने मित्र के नाम एक पत्र लिख के दिया । कोकिल जी वहाँ गये और उस व्यक्ति को पत्र दिया । उस व्यक्ति का स्वभाव जरा बिगड़ गया था । पत्र पढ़ते ही वह आग बरसाते हुए बोलाः “जान न पहचान, हमारे मित्र बन गये ! जाओ-जाओ ! मैं कोई बंदोबस्त नहीं करता । मेरे पास तुम्हारे बैठने के लिए भी कोई जगह नहीं है ।”

इतना सुनकर भी कोकिल जी बड़े सहज और शांत भाव से उसके घर के सामने जो चबूतरा था, उस पर बैठ गये और अपने साथियों एवं सेवकों से सत्संग-भगवच्चर्चा करने लगे ।

आधे घंटे के बाद उन्होंने एक सेवक से कहाः “जाओ, उनके यहाँ से एक गिलास पानी माँग लाओ ।”

सेवक बोलाः “महाराज ! उस व्यक्ति ने आपका इतना अपमान किया फिर भई आप उसी के घर से जल लाने को भेजते हैं !”

“तुम मेरी आज्ञा मानकर जाओ और पानी ले आओ ।” सेवक पानी ले आया ।

अन्य सेवकों ने पूछाः “महाराज ! आपने ऐसा क्यों किया ?”

उन्होंने कहाः “देखो भाई ! हम उनके यहाँ अतिथिरूप से आये । उन्होंने न हमें बैठाया, न खिलाया, न मीठी वाणी ही बोले । इससे उनके अनिष्ट की आशंका है । इसलिए हमने उनके यहाँ से पानी मँगवाया । पूज्य का अनादर और अपूज्य की पूजा होने से अनिष्ट अवश्यम्भावी है ।”

शास्त्र कहते हैं-

अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूजनीयो न पूज्यते ।

त्रीणि तत्र भविष्यन्ति दारिद्रयं मरणं भयम् ।।

‘अपूजनीय व्यक्तियों का जहाँ आदर, सम्मान, पूजा होती है और पूजनीय व्यक्तियों का जहाँ पूजन नहीं किया जाता, वहाँ दरिद्रता, मृत्यु और भय – ये तीनों संकट अवश्य आते हैं ।’ (शिव पुराण, रूद्र संहिता, सती खंडः 35.9)

अज्ञानी लोगों को भले अपने मनुष्य जीवन की कद्र न हो, अज्ञानवश वे भले उसका ऐसे सर्वनाश करने से हिचकिचाते न हों लेकिन संत तो जानते हैं कि इस जीवन को इस तरह नष्ट नहीं किया जा सकता । प्राणिमात्र के सच्चे हितैषी शास्त्र, संत एवं मनीषीगण ऐसे लोगों को सावधान करते है कि संतों और भक्तों की अवहेलना करने वाले हो नादानो ! हो सके तो संतों-महापुरुषों के दैवी कार्यों में सहभागी होकर अपना भाग्य बना लो और उनके दिखाये मार्ग का अनुसरण करके अपना कल्याण कर लो लेकिन यह न कर सको तो संत-निंदा या संत-अवहेलना करके कम से कम दरिद्रता, मृत्यु और भय के भागी तो मत बनो । याद रखो, संत तो शायद माफ कर दें किंतु प्रकृति देवी संतों-भक्तों की निंदा या अनादर करने वालों को जल्दी माफ नहीं करती ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2019, पृष्ठ संख्या 7 अंक 321

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इस सिंहासन पर भगवान को ही आसीन करो


एक सज्जन के पुत्र ने उनकी सम्मति के बिना विवाह कर लिया । वे बहुत दुःखी हुए । एक महात्मा के पास गये । महात्मा बोलेः “तुम अपने हृदय को क्यों बिगाड़ते हो ? जिस हृदय में भगवान को रहना चाहिए उसमें दूसरे को क्यों बिठाते हो ? तुम ही तो भूल करते हो ! तुम बेटे को अपना क्यों समझते हो ? उसे भगवान का समझो । देखो, यह अपना हृदय खजानों का खजाना है । इसे सुरक्षित रखो । इसे मत बिगाड़ो । यदि हृदय सुरक्षित रहेगा तो सब सुरक्षित रहेगा । हृदय के सिंहासन पर भगवान को ही आसीन करो ।

रक्षत रक्षत कोषानामपि कोषं हृदयं

यस्मिन् सुरक्षिते सर्वं सुरक्षितं स्यात् ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2019, पृष्ठ संख्या 6 अंक 321

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इन देवियों में से तुम कौन सी हो ?


श्रावस्ती के अनाथपिंडक नामक एक सेठ के पुत्र का विवाह साकेत के प्रसिद्ध सेठ धनंजय की पुत्री सुजाता के साथ हुआ था । सुजाता को बड़े कुल की बेटा होने का अभिमान था जो उसके व्यवहार में साफ झलकता था । ससुराल मं वह परिवार के सभी सदस्यों का अनादर करती थी । अनाथपिंडक सेठ की महात्मा बुद्ध के प्रति गहन आस्था थी । एक बार बुद्ध उसके घर ठहरे । उनका प्रवचन सुनने वालों के स्वागत की व्यवस्था सेठ ने की थी । जैसे ही बुद्ध ने कथा प्रारम्भ की तो अंदर से एक स्त्री की कर्कश आवाज सुनाई दी । सुजाता नौकरों को बुरी तरह से डाँट रही थी । बुद्ध तनिक रुके और पूछाः “ये अपशब्द कौन बोल रहा है ?”

सेठ बुद्ध के सामने घर की बात छिपा न सके । उन्होंने कहाः “भंते ! यह मेरी पुत्रवधु की आवाज है । वह सदैव अपने सास-ससुर, पति व नौकरों से दुर्व्यवहार करती है ।”

बुद्ध ने सुजाता को  बुलवाया और स्नेहभरे शब्दों में  बोलेः “सुजाता ! सात प्रकार की पत्नियाँ होती हैं । तुम उनमें से किस प्रकार की हो ?”

“भंते ! कौन से 7 प्रकार होते हैं, मैं नहीं जानती ।”

बुद्धः “देवी ! सुनो, 3 प्रकार की स्त्रियाँ बुरी और अवांछनीय होती हैं । इनमें से पहले प्रकार की स्त्रियाँ परेशान करने वाली होती हैं । वे दुष्ट स्वभाव वाली, क्रोधी व दयारहित होती हैं और साथ ही पति के प्रति वफादार नहीं होतीं, पर पुरुषों में प्रीति रखती हैं ।

दूसरी चोर की तरह होती हैं । वे अपने पति की सम्पदा को नष्ट करती रहती हैं या उसमें से अपने लिए चुराकर रखा करती हैं ।

तीसरी क्रूर मालिक की तरह होती हैं । वे करुणारहित, आलसी व स्वार्थी होती हैं । वे हमेशा अपने पति व औरों को डाँटती रहती हैं ।

अन्य 4 प्रकार की स्त्रियाँ अच्छी और प्रशंसनीय होती हैं । वे अपने अच्छे आचरण से आसपास के लोगों को सुख पहुँचाने का प्रयास करती हैं । इनमें से पहले प्रकार की माँ की तरह होती हैं । वे दयालु होती हैं और अपने पति के प्रति स्नेहभाव रखती हैं जैसे एक माँ का एक पुत्र के प्रति होता है । पति की कमाई, घर की सम्पदा व लोगों की समय-शक्ति का व्यर्थ व्यय न हो इसकी वे सावधानी रखती हैं ।

दूसरी बहन की तरह होती हैं । वे अपने पति के प्रति ऐसा आदरभाव रखती हैं जैसे एक बहन अपने बड़े भाई के प्रति रखती है । वे विनम्र और अपने पति की इच्छाओं के प्रति आज्ञाकारी होती हैं ।

तीसरी मित्र की तरह होती हैं । वे पति को देख उसी तरह आनंदित होती हैं जैसे कोई अपने उस सखा को देखकर आनंदित होता है जिसे उसे बहुत समय से देखा नहीं था । वे जन्म से कुलीन, सदाचारी और विश्वसनीय होती हैं ।

चौथी दासी की तरह होती हैं । जब उनकी कमियों को इंगित किया जाता है तब वे एक समझदार पत्नी के रूप में व्यवहार करती हैं । वे शांत रहती हैं और उनका पति कभी कठोर शब्दों का उपयोग कर देता है तो भी वे उसको सकारात्मक लेती हैं । वे अपने पति की इच्छाओं के प्रति आज्ञाकारी होती हैं ।

सुजाता ! अब तुम बताओ कि इनमें से तुम कौन सी हो ?”

सुजाता को अपने दुर्व्यवहार पर पश्चाताप होने लगा । तत्क्षण उसका हृदय परिवर्तन हो गया । वह नतमस्तक होकर कहने लगीः “भंते ! मैं अपने आचरण से लज्जित हूँ । मैं आपको आश्वासन देती हूँ कि भविष्य में मैं सभी के प्रति सद्व्यवहार करूँगी ।”

(अपने परिवार के लोगों व अपने सम्पर्क में आने वाले अन्य लोगों के साथ अपना व्यवहार कैसा होना चाहिए – यह जानने तथा अपने व्यवहार को मधुर बनाने हेतु पढ़ें पूज्य बापू जी के सत्संग पर आधारित सत्साहित्य ‘मधुर व्यवहार’ व ‘प्रभु-रसमय जीवन’ । ये सत्साहित्य आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं ।)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2019, पृष्ठ संख्या 21,25 अंक 321

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