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ग्यारह-ग्यारह को सब ठीक हो जायेगा..


★ इस संसार में सुख-दुःख का चक्र चलता ही रहता है । जब दुःखका चक्र चलता है तब दुःख के सागर में डूबता उतरता मनुष्य उससे निकलने का मार्ग ढूँढता है । जब सारे प्रयत्न व्यर्थ होते दिखाई देते हैं तब उसका हृदय गहरी ग्लानि से भर जाता है । उस समय किसी संतपुरुष की अगम्य कृपा ही हृदय को शीतलता प्रदान करती है । ऐसे कठिन संसार में संत मरुस्थल के मधुर झरने जैसे लगते हैं ।

★ मेरे जीवन में एक ऐसा प्रसंग बन चुका है । मैंने मंत्रदीक्षा नहीं ली थी, फिर भी सत्संग, दर्शन का अनुपम लाभ मुझे मिला है । पू. बापू जब धाणवा आये तब वसई भी आये थे । उस समय मैंने पू. बापू की आरती उतारी थी ।

★ अमदावाद में जब बी.एड. करती थी तब अपनी छोटी बहन को अनुष्ठान के लिए आश्रम में छोडने के लिए जाती थी । उस समय बापू के फव्वारे से तो भीग जाती किंतु मन उतना नहीं भीग पाता था जितना कि भीगना चाहिए था । इसलिए मैंने निश्चय किया कि जब तक मेरा मन नहीं भीगेगा तब तक मैं नामदान नहीं लूँगी ।

★ हम दोनों बहनों का एक सामाजिक प्रश्न था । इससे मैं रोज अपनी बहन से कहती कि तू यह प्रश्न बापू से क्यों नहीं करती ? तेरे तो वे गुुरु हैं ।

★ एक रात्रि को मुझे स्वप्न आया । स्वप्न में बापू मेरे घर आये । मैं तो बापू को देखकर अत्यंत प्रसन्न हो गयी । मुझे लगा कि आज तो छोटी बहन की बात कह दूँ । ऐसा सोचकर बात करने लगी । फिर मुझे ऐसा लगा कि हम दोनों का प्रश्न तो एक ही प्रकार का है |प्रश्न के साथ दुःख की बात भी कह दूँ जिससे पू. बापू को सारी बात की जानकारी मिल जाये । अभी तो मैं अपनी बात कह ही रही थी कि इतने में मेरी पूरी बात सुने बिना ही पू. बापू कहने लगे :

‘‘ग्यारह-ग्यारह को सब ठीक हो जायेगा ।

★ मैंने अपने स्वप्न घर में सभी को कहा किंतु सभी को वह स्वप्न दिन में की गयी चिन्ता-विचारों का परिणाम लगा ।

उसके बाद बापू मेहसाना आये । सत्संग में मैं अपनी बेटी को लेकर पीछे बैठी थी । तब मैंने बापू से मन ही मन कहा :

‘‘बापू ! अभी जिस नौकरी के लिए अरजी दी है वहाँ डोनेशन नहीं लिया जाता पर मेरिट देखा जाता है । यदि वहाँ नंबर लग जाये तो ही मैं आपको गुुरु बनाऊँगी, नहीं तो नहीं बनाऊँगी ।

★ थोडे दिनों के बाद इन्टरव्यू कॉल आया । दिनांक : ११-११-९२ का कॉल देखकर घर के सभी कहने लगे :

‘‘यह तो स्वप्न में दी हुई तारीख है !

इन्टरव्यू में एक दिन पूर्वसूचि की पूछताछ कराई तो मुझसे मेरिट में एक बहन आगे थी, और वे अपने देश के पास आना चाहती थी । उसके बाद एक भाई एक नंबर से आगे थे । परंतु सभी उम्मीदवारों में मेरी नियुक्ति हो गयी । परिणाम का पता भी उसी दिन चल गया ।

★ तब बापू की असीम कृपा की, अन्तर्यामी गुरु की, सचराचर में व्याप्त मेरे परब्रह्म की, जगत-नियंता खुद विधाता की खबर मिली । शक्ति के पुंज ऐसे बापू ने स्वप्न में जो ‘ग्यारह-ग्यारह को सब ठीक हो जायेगा कहा था वह फलित हुआ ।

★ नौकरी के कारण सामाजिक दुःख थोडा हल्का हुआ । अब मुझे विश्वास है कि बहुत कुछ हो गया । बापू ने मुझे निश्चित तारीख, निश्चित महीना स्वप्न में बताया वह फलित हुआ । अंतर्यामी गुरुदेव के समक्ष कोई दुःख छिपा नहीं रहता इसकी प्रतीति हुई ।

★ मेरे जीवन में वह भाग्यशाली दिन आ गया

याने कि मंत्रदीक्षा का दिन । नामदान (मंत्रदीक्षा) की तारीख पच्चीस । मेरी उम्र भी पच्चीस वर्ष । वार गुरु को मुझे मिले सद्गुरु ।

★ मैंने मूर्ख ने ‘नौकरी मिलेगी तो ही मंत्रदीक्षा लूँगी ऐसा बापू को कहा, इस बात का अब पश्चात्ताप होता है । मुझसे इन भगवान को ऐसा क्यों कहा गया ? बापू ! मुझे क्षमा करना । आखिर तो हम आपके हठी, अवगुणी बालक ही हैं ।

बस, अब तो ऋषि के पुनीत चरणों में हमेशा रहें, उनके प्यारे बनकर रहें यही जीवन भर की आशा है । अब मेरे बापू के विषय में कृतज्ञता के आँसुओं के सिवाय कुछ लिखते नहीं बनता ।

बापू को मेरे लाख-लाख प्रणाम !

कल्पना बहन (एम.ए., बी.एड.)

यूनियन हाईस्कूल, लांघणज, जि. मेहसाना, गुजरात ।

आध्यात्मिक अनुभव : सन 1991 में घटा वह चमत्कार जिसका गवाह था पूरा गाँव


सेवा-एकता-समर्पण-इष्टनिष्ठा विषयक आश्चर्यचकित करे ऐसा चमत्कार…

★ कडोली गाँव (तहसिल हिम्मतनगर, जिला साबरकांठा, गुजरात) के भाविक भक्तों द्वारा वर्णित आश्चर्य जताये ऐसी बात उनके ही शब्दों में :

★ ‘‘हमारे गाँव का अहोभाव है कि परम पूज्य आसारामजी बापू का दिव्य सत्संग समारोह ता : ५ से ८ दिसम्बर १९९१ दरमियान हमारे गाँव कडोली में आयोजित किया गया ।

★ गाँव के स्वयंसेवक, नेता लोग, कार्यकत्र्ता छोटे-बडे सभी इस मंगल पुण्यकार्य में आन्तरिक भाव से जुड गये थे । इस सत्संग समारोह के समय ऐसा एक भी काम न था जिसमें सभी का सहयोग न हो । छोटे या बडें सभी कामों में सभी साथ में मिलकर हिस्सा बँटाते ।

★ पूज्य बापू ने हमारे गाँव में जिस सत्संग की अमृतवर्षा की वह तो सचमुच अद्भुत ही है । प्रत्येक गाँव से भक्तों के समूह पूज्य बापू की अमृतवाणी श्रवण करने उमड पडते थे । मंडप छोटा लगता था । जनता बडी संख्या में आती थी ।

★ हमने चारों दिन डेरी में दूध देना बन्द कर दिया था । समूचा दूध, छाछ आदि दूसरे गाँवों से आनेवाले आगन्तुकों, मेहमानों की सेवा में उपयोग में आता । था : ८ को शाम के समय जब सत्संग समारोह की पूर्णाहुति हुई तब सत्संग में उपस्थित सबको पिडयों में प्रसाद बाँटा गया । उसके बाद पूज्य बापू की शोभायात्रा निकली । उसमें भी खूब प्रसाद बाँटा गया ।

★ किंतु अखण्ड भंडार कहाँ कम होने वाला था । बचे हुये प्रसाद से हमने दूसरे दिन हमारे गाँव और पडोस के गाँव, छोटी बडी दोनों करोली गाँव को भोजन कराया । फिर भी प्रसाद कम नहीं हुआ । तीसरे दिन शाम को हम जीप लेकर प्रसाद वितरण करने निकले । आसपास के पचीस गाँवों में प्रसाद बाँटा फिर भी पूज्य बापू की, परमात्मा की ऐसी कृपा कि प्रसाद कम नहीं हुआ ।

★ प्रसाद बाँटने वाले थके किंतु प्रसाद कम नहीं हुआ । तब हमारा अन्तर भर गया । हम म ही मन पूज्य बापू से प्रार्थना करने लगे कि, ‘बापू ! अब तो बस करो, अब हम बाँट-बाँटकर थक गये हैं । फिर हम रात को तीन बजे अपने गाँव को वापस आये । पूज्य बापू के फोटो के आगे दीपक, अगरबत्ती करके प्रार्थना की कि बापू ! अब तो यह प्रसाद खत्म करो ऐसी प्रार्थना की तब ही प्रसाद समाप्त हुआ ।

★ ‘मेरे-तेरे की खींचातानी चल रही है ऐसे कलियुग में पूज्य बापू की कृपा तो हमारे लिए गंगोत्री से निकली हुई गंगा से भी अधिक पावन है ।

★ कडोगी गाँव के भक्तों ने तीन दिन से दूध डेरी में न देकर ग्राम्यजनों तथा आने-जाने वाले मेहमानों को खुले दिल से देकर स्वागत किया । गाँव की एकता, स्नेह एवं त्याग, अतिथिसेवा और सत्संग में प्रीति अलौकिक थी । कडोली गाँव तो था ही किंतु आसपास के गाँव भी इस पुण्य सरिता में स्नान करने उमड पडे थे । धन्य है इस छोटे से गाँव के नागरिकों को ! काम धंधे तो बन्द किंतु डेरी में दूध जमा करना भी बंद करके ईश्वर-प्राप्ति के, पुण्य-प्राप्ति के दैवी कार्य में सभी लोग सभी तरह से जुड गये थे ।

गुरुकृपा का वह चमत्कार जिसे देख डॉक्टर भी रह गये हैरान


ऑपरेशन के वक्त पू. बापू के दर्शन एवं यौगिक चमत्कार |

★ मैं आमेट का एक नंबर का शराबी था । पानी की तरह शराब पीता रहता था । अपने आपको शेर मानता था । गाँव के लोग मुझसे डरते भी थे । मुझे पू. बापू के प्रथम दर्शन के साथ ही न जाने क्या हुआ कि मैंने पू. बापू से सपरिवार दीक्षा ले ली । इससे मेरी कमाई का बडा हिस्सा जो व्यसनों में बरबाद होता था वह अब बंद हो गया । पहले कई बार मेरे घर में आसुरी दृश्य खडे होते थे । उसकी जगह अब सब में भक्तिभाव का गहरा असर है । अब मेरा पूरा परिवार नियमित रूप से गुरुमंत्र का जप, आसारामायण का पाठ करता है ।

★ एक बार मैं उदयपुर से मोटर साइकिल पर आ रहा था । मेरा गुरुमंत्र जप निरंतर चल रहा था । गाँव केलवा के पास एक जीपवाले ने बुरी तरह झपट में ले लिया । मैं बेहोश था । मुझे आमेट अस्पताल में दाखिल किया गया । जब मुझे होश आया तब मैंने देखा कि मेरे परिवार के लोग पू. बापू को प्रार्थना कर रहे थे ।

★ मेरे बचने की कोई संभावना न थी । मुझे २०७ टांके आये थे । १५ दिन अस्पताल में रहकर आया । परंतु मेरे दाहिने हाथ मैं जो फ्रेक्चर हो गया था उसका दर्द जारी था । अब उदयपुर के डाक्टरों के पास ऑपरेशन होना था । यह ऑपरेशन अगर फेल हो तो हाथ खोने का भय था । सुबह चार बजे ऑपरेशन था । सारी रात मुझे नींद न आयी । रातभर गुरुमंत्र का जप एवं गुरुदेव को प्रार्थना करता रहा ।

★ दिनांक : ३-१२-८७ के दिन ‘अंकित आर्थोपेडिकङ्क (मधुवन, उदयपुर) के डॉ. श्री रतनलाल शर्मा ने मेरा ऑपरेशन किया । ऑपरेशन थियेटर में मुझे बेहोशी में लाने के लिए दो इंजेक्शन दिये गये । पर मेरे गुरुदेव की अलौकिक कृपा का चमत्कार देखो । जहाँ मुझे बेहोश किया जा रहा था, उसी वक्त मुझे होश मिल रहा था । मैं स्थूल शरीर से अलग हो गया । ऑपरेशन थियेटर के मुख्य द्वार के सामने मेरे गुरुदेव पू. बापू श्वेत वस्त्रों में सजे हुये फकीरी चाल में चले आ रहे थे । मैंने साष्टांग दंडवत् प्रणाम किया ।

★ मैं रोने लगा बापू ने कहा :

‘‘अरे ! क्यों रोता है ? तुझे कुछ नहीं होगा चिन्ता मत कर । अभी अपना ऑपरेशन देख ।

मैं एक कोने में खडा रहा । पू. बापू भी वहीं खडे रहे । दो डॉक्टर एक कम्पाउन्डर ऑपरेशन में लगे थे । नर्स ने मेरा हाथ पकडा हुआ था । मैं कभी तो ऑपरेशन को देखता, कभी पू. बापू को गद्गद् होकर देखता । जैसे ही ऑपरेशन पूरा हुआ, पूज्य बापू की कृपा मूर्ति और उसके साथ का श्वेत प्रकाश लुप्त हो गये । मुझे (स्थूल शरीर में) होश आया तब मेरी पत्नी पलंग के सामने गुरुमंत्र का जप कर रही थी ।

★ दूसरे दिन जब डॉक्टर और कम्पाउन्डर मेरा ड्रेसिंग करने आये तब मैं मेरा अलौकिक अनुभव ऑपरेशन का साक्षित्व आदि उन्हें बताया । भौतिकवाद में उलझे

डॉक्टर यह बात समझ नहीं सके कि बेहोश आदमी ने कैसे अपना ऑपरेशन देखा । उन्होंने कहा कि :

‘‘आप को विलक्षण अनुभूति कैसे हुई ? तब मैंने गले में पहना पू. बापू का चाँदी का पेंडल दिखाकर कहा कि यह मेरे मस्त मौला गुरुदेव की अद्भुत चमत्कारिक कृपा का फल है । वेदव्यासजी ने संजय को दिव्य दृष्टि दी और उसने महाभारत का युद्ध मीलों दूर बैठकर देखा । उससे भी विशेष दिव्य दृष्टि मेरे गुरुदेव ने दी जो मैंने बेहोशी में ही होश पाकर अपना ही ऑपरेशन देखा ।

★ फिर तो डॉक्टर, उनकी धर्मपत्नी और दूसरे लोग भी मुझ बापू के कृपापात्र को मिलने आने लगे ।

गुरुकृपा और गुरुमंत्र ने मेरी नई जिंदगी बनायी । भयानक दुर्घटना से भी मुझे मुक्त किया । मैं नित्य आसारामायण का पाठ करता हूँ । तब ये पंक्तियाँ मेरे लिए जानदार हो जाती हैं :

सबको निर्भय योग सिखायें,

सबका आत्मोत्थान करायें ।

सचमुच गुरु हैं दीनदयाल,

सहज ही कर देते हैं निहाल ।।

इनके पाठ पर मेरी आँखे भर जाती हैं ।

★ पू. बापू से मेरी यही प्रार्थना है कि ऐसे घोर कलिकाल में आप हमारे लिए वटवृक्ष हो प्रभु ! आप हमें अपनी छाया का दान देना और सबकी उन्नति करना । हे जगद्गुरु ! आप के श्रीचरणों में कोटि-कोटि साष्टांग दंडवत् प्रणाम्…!

धर्मनारायण कल्याणसिहजी मौर्य

आमेट, जि. राजसमंद (राज.)