जवानी निकल गयी तो गये…. पूज्य बापू जी

जवानी निकल गयी तो गये…. पूज्य बापू जी


ईश्वरप्राप्ति के रास्ते चल लो, बस । ऐसी चीज मिलती है कि अपना तो कल्याण, साथ ही लाखों-करोड़ों का कल्याण हो जाय ।  ऐसा है ईश्वर-साक्षात्कार ! कुछ भी नहीं बोले, ईश्वर साक्षात्कार करके चुप भी बैठें तब भी ईश्वरप्राप्त महापुरुषों के श्वासोच्छ्वास, उनकी दृष्टि, उनके परमाणु लोगों का मंगल करते हैं । ऐसी ईश्वरप्राप्ति की महान उपलब्धि है ।

डिग्री क्या पाना ! ‘यह पढूँ, वह पढ़ूँ… यह करूँ, वह करूँ, नाम करूँ…। गन्ने होते हैं न, वे कोल्हू में पिस के खत्म हो जाते हैं । अपने गन्ने हैं क्या, जो पिस के मरें ? जो भी गन्ने हैं, वे तो चिपक के खत्म हो जाते हैं । चाहे शक्कर के कारखाने में भेजो, चाहे गुड़ के कारखाने में भेजो, चाहे बाजार में बेचने भेजो…. रस निकाल के गन्ने के सूखे कचरे को ऐसे फेंक देते हैं, पीछे मुड़कर भी नहीं देखते । जब तक रस हो गन्ने में तब तक गन्ने को अगरबत्ती करेगा दुकान वाला और गन्ना डाल दिया कोल्हू में तो रस निकलने के बाद फिर उसको यूँ फेंक देता है । ऐसे ही जब तक जवानी का, सूझबूझ का रस है तब तक ठीक है, नहीं तो फिर संसार तुमको बुढ़ापे में तो यूँ फेंक देगा । फिर कोने में पड़े रहो, पूछेगी ही नहीं कोई । न पति, न पत्नी, न बेटा…. कोई सामने ही नहीं देखते । गन्ने की तब तक कीमत है जब तक उसमें रस है । रस निकल गया तो गया…. । ऐसे ही जवानी निकल गयी तो गये । अब जवानी प्रेमी-प्रेमिका में, पति में, पत्नी में खत्म करो, लोभ में खत्म करो अथवा ईश्वरप्राप्ति करके फिर संसार में जैसे भी जियो कोई मना नहीं । जवानी को नष्ट करके फिर ईश्वर पाना मुश्किल है । ईश्वर पाकर फिर सब कुछ पाना आसान है । ईश्वर को छोड़कर सब कुछ तो मिलने  वाला नहीं । सब रसहीन, सारहीन हो जाने वाला है, गन्ने का सूखा कचरा बस ! बड़ा मजबूत गन्ना हो तो भी, कमजोर गन्ना हो तो भी, वे सब सूखा कचरा हो जायेंगे । कोई पूछेगा ही नहीं, जलाने के ही काम आयेगा यानी जला देंगे अपन को, कि और कुछ करेंगे ?

ऐ संसार ! क्या-क्या तेरी इच्छाएँ-वासनाएँ कीं, क्या-क्या हेरा-फेरी की, क्या-क्या नहीं किया…. आखिर तूने मेरे को निचोड़ दिया । संसार से सुखी होने के कर्म व्यक्ति को निचोड़ डालते हैं, निस्तेज कर देते हैं, गाल बिठा देते हैं, आँखें ऐसे… बावरा बना देते हैं ।

संसारवाही बैल सम, दिन-रात बोझा ढोय है ।

त्यागी तमाशा देखता, सुख से जगह है सोय है ।।

जिसने संसार की वासना का, विकारों का त्याग किया वह सुख से जगत है, सुख से सोता है, नारायण ! नारायण ! नारायण !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2020, पृष्ठ संख्या 20 अंक 331

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