अजामिल का पतन (भाग-4)….

अजामिल का पतन (भाग-4)….


अजामिल आगे बढ़ा और गुरुदेव के चरणो में बैठकर बोला गुरुदेव आप कुछ उदास लग रहे हैं ? गुरुदेव कुछ पलों तक कुछ न बोले बस एक टक अजामिल को देखते ही रहे। अजामिल की दिल की धड़कने तेज़ हो गईं उसे लगा कि जैसे अभी करारी डाँट पड़ने वाली है। परंतु गुरूदेव तो अजामिल से कुछ सुनना चाहते थे। उसे समय औऱ मौका दे रहे थे कि वह अपने गुनाह को कुबूल कर ले ताकि वे उसे पतन की खाई में गिरने से बचा सके। परंतु जब अजामिल कुछ नही बोला तो गुरुदेव ही बोले- अजामिल मै स्वान पद्धति को लेकर बड़ा चितिंत हूँ।

अजामिल ने थोड़ा ठंडा श्वास लिया चलो शुक्र है गुरुदेव मेरी किसी बात पर रुष्ठ नही है। गुरुदेव ने कहा- मैं सोच रहा हूं कि जब हड्डी में कुछ रस ही नहीं औऱ माँस भी उस पर नहीं तो क्यों स्वान उसे जी जान लगाकर खाता है। अजामिल ने कहा- गुरुदेव! इसमें चिंतित होने वाली क्या बात है। कुत्ते को कुछ तो मिलता ही होगा। गुरुदेव ने कहा- हाँ मिलता है लेकिन सुख नहीं बल्कि दुख क्योंकि हड्ड़ी जब उसको जबड़ों औऱ मसूड़ो पर लगती हैं तो उसमें जख़्म कर रक्त निकाल देती हैं। और इसी रक्त का पान कर स्वान सोचता है कि शायद यह रक्त हड्ड़ी से मिल रहा है परंतु अनन्त: वह अथाह कष्ठ को प्राप्त करता है।

अजामिल बोला- लेकिन गुरुदेव इसमे आपको चिंतित होने की क्या आवश्यकता है यह तो स्वान का मामला है न। गुरुदेव ने कहा- परंतु आज मेरा एक शिष्य भी स्वान सा ही व्यवहार कर रहा है। इससे स्पष्ट गुरुदेव क्या कहते यदि कुछ कहते तो वे जानते थे कि अजामिल एक पल भी और आश्रम में नही रुक पाएगा। उसके सुधरने की सारी संभावनाए खत्म हो जाएगी। उनके अंजान होने का नाटक ही तो अब तक अजामिल को आश्रम मे रोके हुए था इसलिए वे ढके छुपे शब्दों में बार-बार उसे आगाह कर रहे थे परन्तु अजामिल समझ ही नही पा रहा था या समझना ही नही चाह रहा था।

पूरे दिन अजामिल का मन उचाट सा रहा। आश्रम उसे कैदखाना सा प्रतीत हो रहा था। वह दिन औऱ दिनों से कुछ ज्यादा ही लंबा लग रहा था। उसका दिल कर रहा था कि जल्द ही शाम हो और फिर वह उस कामनगरी का मेहमान बने। मन मे भिन्न-भिन्न संकल्प विकल्प आ रहे थे कि आज मैं यह करूँगा आज मै वो करूँगा और इन्ही चक्रियो में चकराया अजामिल गुरुदेव को प्रणाम कर जब आश्रम से निकलने लगा तो गुरुदेव फिर सांकेतिक भाषा मे बोले- अजामिल आज ध्यान से कदम रखना कहीं आज तू कीचड़ में बिल्कुल ही न धस जाए क्योंकि आज अंधेरा कुछ ज्यादा ही प्रतीत हो रहा है। इतना कहकर गुरुदेव आसन से उठे औऱ अपने कक्ष में चले गए परंतु अजामिल कुछ न समझा अगर समझा तो उल्टा ही समझा उसे लगा शायद गुरुदेव पर बुढापा हावी हो रहा है अभी तो ठीक से संध्या भी नही हुई और गुरुदेव को अंधेरा दिख रहा है औऱ दिन मे भी तो क्या बेतुकी चिंता कर रहे थे स्वान जैसे जानवर के लिए परेशान हो रहे थे। अरे सोचना है तो अपने शिष्यों के बारे में सोचे मेरी सोचे।

परंतु मुर्ख अजामिल नहीं जानता था कि गुरुदेव पर बुढ़ापा नही बल्कि उस पर शैतान हावी हो रहा है। गुरुदेव किसी स्वान के बारे में नही उसी के बारे में सोच रहे थे। यह बात और है कि वह स्वान से भी बदत्तर हो चला था। गुरुदेव हर कदम पर स्वयं को प्रकट कर रहे थे लेकिन अजामिल को कुछ दिखाई नही पड़ रहा था और अजामिल आश्रम से घर जाने के लिए निकला नही… घर जाने के लिए वह आज निकला ही नही था क्योंकि घर का नक्शा तो उसके दिमाग में था ही नही वह तो सीधा काम नगरी के लिए ही निकला था औऱ आज गणिकाएं भी सतर्क थी क्योंकि सभी के कानों तक यह खबर पहुंच चुकी थी कि एक नया शिकार दो दिन से बिना शिकार हुए खाली जा रहा है।

नागिन सी बलखाती सड़क पर अजामिल के लिए हर कदम पर डंक था। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि अजामिल को ज़हर की ही प्यास जग गई थी सो वह उनसे बच नही रहा था उनका मज़ा ले रहा था। जल्द ही वह कल वाले गणिका के कोठे के सामने जा खड़ा हुआ, गणिका भी जाल बिछाये हुए बिल्कुल तैयार बैठी थी। शून्य प्रतिरोध करता हुआ अजामिल उस गणिका के जाल में हँसते- हँसते कैद हो गया। रोज़ आश्रम की पवित्र माटी में बढ़ने वाले कदम कोठे की चार दिवारी का स्वाद चखने आज चढ़ गए कैसा दुखद मंजर था वह, जो हाथ गुरु की हाथ मे देने के लिए बना था वह वैश्या के शिकंजे में चला गया।

20 वर्षो से गुरुदेव ने जिसे तराशा था एक मिनट में वह चूर- चूर हो गया और आगे की कहानी तो मात्र कालिख की कहानी रह गई। बहुत समय तो नही लेकिन जितना भी समय अजामिल ने कोठे में गुजारा उससे यह तो तय था कि वह अब सीखा रखने का अधिकार खो बैठा था। कोठे से अजामिल बाहर आया तो स्वयं अपने हाथों से अपना चरित्र की कब्र सजाकर बाहर आया फिर कदम जल्दी-जल्दी समेटता हुआ घर पहुंचा।पिता ने देरी का कारण पूछा तो अजामिल ने पिता को बातो ही बातो में घुमा दिया। घुमाना तो था ही जो गुरु को भरमाने का दम रखता हो उसके लिए पिता चीज़ ही क्या है।

अगली सुबह अजामिल न तो ब्रम्हमुहूर्त में उठा और न ही उसने ध्यान किया क्योंकि सोते-सोते ध्यान कर रहा था उस गणिका का। जब सूरज सिर चढ़ आया तब पिता ने आवाज़ दी- बेटा अजामिल! बेटा अजामिल! क्या आज गुरुकुल नही जाना? गुरुकुल इस शब्द ने तो मानो उसके सिर पर फन दे मारा वह कम्पित सा हो उठा डरा, घबराया, सहमा सा वह आश्रम पहुंचा देखा कि गुरुदेव फूलो को सहला रहे थे मानो उन्हें समझा रहे थे कि अजामिल की तरह तुम भी कहीं मुरझा मत जाना। बहुत भँवरे है जो यहां वहां मंडारते है उन्हें अपने पास फ़टकने भी मत देना। तुम्हे तो पूर्णतः पवित्र रहते हुए प्रभु के चरणों मे चढ़ना है।

अजामिल की आत्मा यह मौन वार्ता सुन पा रही थी फिर गुरुदेव उन फूलो को छोड़ चिड़ियों के पास पहुंच गए और उन्हें दाना डालने लग गए। एक चिड़िया को हाथ में ले उसके पँखो पर हाथ फेरने लगे कहने लगे हे मेरी प्यारी चिड़िया अपने इन पँखो को समझा दे कहीं ये तुझे उड़ाकर काल नगरी न ले जाये।अजामिल दूर से यह सब देख रहा था आज पहली बार गुरुदेव सबको प्यार दे रहे थे बस अजामिल को छोड़कर उसको देखना तो दूर गुरुदेव ने उस दिशा की तरफ भी नही देखा जहाँ अजामिल खड़ा था।

अजामिल के मन में एक टीस सी उठी आखिर गुरुदेव ने मुझे आज प्यार क्यों नहीं दिया, तभी गुरुदेव एकदम पीछे पलटे और अजामिल पर जैसे नज़रे ही गाड़ दी। होठ तो गुरुदेव के अब भी शांत थे लेकिन नज़रे बहुत कुछ कह रही थी अजामिल प्यार खैरात में नही मिलता इसे कमाना पड़ता है और जो तू कृत्य करके आया है उसके बाद तो तू मेरे प्यार का क्या गुस्से का हकदार भी नही रहा।अजामिल 20 वर्षो से मैं तुझ पर काम कर रहा था, तुझे गढ़ रहा था, आकार दे रहा था, तराश रहा था और तूने एक पल में मेरी मूर्ति तोड़ दी। एकबार भी नही सोचा अपने छोटे से सुख के लिए तुमने मुझे कितना कष्ट दिया है तुझे इस बात का एहसास भी नही है।अरे इस पावन दरबार मे आकर तो पशु भी मानवता का आचरण करने लगते है और तू है कि मानव होकर भी पशु निकला इस तरह गुरुदेव बिना कुछ कहे ही सबकुछ कहकर वहां से चले गए।

गुरु के सानिध्य में अजामिल ने वर्षो बिताए थे वह गुरु के प्यार का आदि सा हो गया था इसलिए वह उनकी यह नाराजगी यह पराया पन उसे भीतर तक हिला गया। वह सोचने लगा आखिर मैने कल वह महापाप किया ही क्यो? कभी अजामिल अपने को कोसने लगा तो कभी अपने भाग्य को शायद। उसके पतन की कहानी वापस उत्थान की तरफ करवट ले रही थी लेकिन तभी…. अरे अजामिल! क्या हुआ क्यों खामखां बावरा हुआ जा रहा है मैं ही न अपना तेरा मन तेरा अहित थोड़ी न करूँगा मै।

याद है न कल वाली वह अकल्पनीय शाम चल ऐसा करते है कि आज आखिरी बार गनिकापुरी चलते है वहां उस गणिका से मिलकर उसे बता देते है कि तेरा अब उनसे कोई सम्बंध नही…नहीं तो वो बेचारी बेकार में हर रोज़ तेरी राह ताकेगी परेशान होगी।

मन ने मौका सम्भालते हुए अजामिल के लिए एकबार फिर गिरने का रास्ता तैयार कर दिया गुरु को एक किनारे कर दिया उनकी नाराजगी को एक किनारे कर दोया और दुर्भाग्य देखो कि अजामिल फिर गनिकापुरी पहुंच गया। लेकिन वहां जाते ही उनका क्षणिक वैराग्य कपड़े पर लगी धूल की तरह तुरन्त ही झड़ गया धरती का कण जैसे बवंडर का संग कर कहीं का कहीं जा गिरता है वैसे ही उस गणिका के बवंडर में अजामिल आगे से आगे जा गिरा बस अब वापस लौटने की उम्मीद खत्म हो गई। बालू का रेत अब मुट्ठी से निकल चुका था इसलिए गुरुदेव ने अजामिल के पिता को बुलाकर पूरी हकीकत बता डाली और उसे आश्रम से निकाल दिया गया।

आगे की कहानी कल की पोस्ट में दी जाएगी…..

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