सत्संगी हो चाहे कुसंगी हो, अच्छा व्यक्ति हो चाहे बुरा व्यक्ति हो, चढ़ाव उतार के दिन तो सबके आते ही हैं । श्रीराम जी के भी आते हैं और रावण के भी आते हैं । उतार के दिन आते हैं तब भी श्रीराम हृदय से पवित्र, सुखी रहते हैं और चढ़ाव के दिन आते हैं तब भी निरहंकारी रहते हैं जबकि पापी व्यक्ति के चढ़ाव के दिन आते हैं तो वह घमंड में मरता है और उतार के दिन आते हैं तो विषाद में कुचला जाता है ।
जो वाहवाही का गुलाम होकर धर्म का काम करेगा उसकी वाहवाही कम होगी या डाँट पड़ेगी तो वह विरोधी हो जायेगा लेकिन जिसको वाहवाही की परवाह ही नहीं है, भगवान के लिए, भगवान भगवान का, गुरु के लिए गुरु का काम करता है, समाज को ऊपर उठाने के लिए सत्कर्म करता है तो उसको हजार फटकार पड़े तो भी वह गुरु का द्वार, हरि का द्वार, संतों का द्वार नहीं छोड़ेगा ।
शबरी भीलन, एकनाथ जी, बाला-मरदाना को पता था क्या कि लोग हमें याद करेंगे ? नहीं, वे तो लग गये गुरु जी की सेवा में बस !
तीन प्रकार के लोग होते हैं । तामसिक श्रद्धावाला देखेगा कि ‘इतना दूँ और फटाक से फायदा हो जाय ।’ अगर फायदा हुआ तो और दाँव लगायेगा । तो तामसी लोग ऐसा धंधा करते हैं और आपस में झगड़ मरते हैं ।
राजसी व्यक्ति की श्रद्धा टिकेगी लेकिन कभी-कभी डिगेगी भी, कभी टिकेगी, कभी डिगेगी, कभी टिकेगी, कभी डिगेगी ।
अगर राजसी श्रद्धा टिकते-टिकाते पुण्य बढ गया, सात्विक श्रद्धा हो गयी तो हजार विघ्न बाधाएँ, मुश्किलें आ जायें फिर भी उसकी श्रद्धा नहीं डिगती और वह पार पहुँच जाता है । इसीलिए सात्त्तिवक लोग बार-बार प्रार्थना करते हैं- ‘हे नियति ! तू यदि धोखा देना चाहती है तो मेरे दो जोड़ी कपड़े, गहने-गाँठे कम कर देना, रूपये पैसे कम कर देना लेकिन भगवान और संत के श्रीचरणों के प्रति मेरी श्रद्धा मत छीनना ।’
श्रद्धा बढ़ती-घटती, कटती-पिटती रहती है लेकिन उन उतार-चढ़ावों के बीच से जो निकल आता है वह निहाल हो जाता है ! उसका जीवन धन्य हो जाता है !
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2020, पृष्ठ संख्या 2 अंक 336
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