महान से महान बना देता है सत्संग – पूज्य बापू जी

देवर्षि नारदजी जयंती 27 मई 2021

5 साल का दासीपुत्र था । उसके पिता मर गये थे और विधवा माँ ऐसी थी कि जहाँ कहीं भी काम मिले-बर्तन धोने, झाडू लगाने आदि का, कर लेती थी, पक्की नौकरी नहीं थी । गाँव में संत आये थे तो ब्राह्मणों ने उनकी सेवा के लिए उस दासी को भेज दिया । उसका पुत्र भी साथ आया । दासी तो अपनी रोजी-रोटी में लगे और बेटा सत्संग में बैठे । वही विधवा का अनाथ बालक आगे चलकर देवर्षि नारद बन गये । भगवान श्रीकृष्ण भी उठ के उनका सत्कार करते हैं, युधिष्ठिर जी उनको प्रणाम करते हैं और कभी किसी समस्या में क्या करना चाहिए ऐसा श्री कृष्ण सोचते हैं तो नारद जी प्रकट हो जाते हैं ।

लो ! भगवान को सलाह देने वाली अक्ल आयी… किसको ? दासी पुत्र को । क्यों ? कि ब्रह्मज्ञान का सत्संग मिला न !

देवर्षि नारदजी इतने महान बने कि भगवान वेदव्यासजी को भी मार्गदर्शन देते हैं । वेदव्यास जी ने विश्व का प्रथम आर्षग्रंथ ‘ब्रह्मसूत्र’ रचा, 1 लाख श्लोक वाला महाभारत रचा, 18 पुराण रच डाले फिर भी उनको लगा कि अभी तक लोग दुःखी हैं ! महापुरुष अपनी गलती खोजते हैं- ‘मेरे शास्त्रों में, मेरे मार्गदर्शन में कहीं गलती हो गयी क्या ?’ ऐसा सोचकर वेदव्यासजी चिंतित थे ।

देवर्षि नारद जी आये, बोलेः “आपके शास्त्र में गलती नहीं है लेकिन जीव को जो रस चाहिए वह देने वाले आत्मा-परमात्मा के भगवदीय ज्ञान का वर्णन नहीं किया गया तो जीव की नीरसता नहीं मिटेगी । आपने शास्त्रों में बताया कि ‘यह कर्म करने से ये फायदे होंगे, यह कर्म करने से ये फायदे होंगे….’ परंतु जिनकी बुद्धि छोटी है उनको तो जल्दी फायदे चाहिए ।”

जैसे बच्चे को समझाओ कि ‘हीरा इतना महँगा होता है, सोना व चाँदी इतने के होते हैं । ले बेटे ! यह सोना-चाँदी !’ तो बच्चा सुना-अनसुना कर देगा और उसके आगे चॉकलेट, लॉलीपॉप, बिस्कुट आदि रखोगे तो तुरंत उठा लेगा । ऐसा ही आजकल के लोगों का हाल है । देवर्षि नारदजी आगे समझाते हैं कि “आजकल के लोगों का हाल है । देवर्षि नारदजी आगे समझाते हैं कि “आजकल के लोगों की बचकानी बुद्धि है, जल्दी मिलने वाला लाभ देखते हैं परंतु परिणाम का पता नहीं रहता

लोगों को परिणाम का पता न रहे तो आप कितनी भी छूट-छाट दो और धर्म-ग्रंथों को कितना भी उनके लिए अनुकूल करो, पट्ठे अँधेरी रात में ही दौड़ा करेंगे । इसलिए अँधेरी रात में उजाला करना है तो श्रीमद्भागवत की रचना कीजिये ताकि भगवान की रासलीला, भगवान का माधुर्य, भगवान का चिंतन, मक्खन चोली… आदि-आदि लीलाओं से लोगों का मन भगवान के रस में लगे तो नीरस विकार छूट जायेंगे और जीव रसवान हो जायेंगे ।”

भगवान वेदव्यासजी ने नारदजी का आदर किया और उनके कहे अनुसार ग्रंथ रचा ‘श्रीमद्भागवत’ । वह भागवत कैसा है ?

श्रीमद्भागवतं पुण्यमायुरारोग्यपुष्टिदम् ।

श्रीमद्भागवत आयु बढ़ा देता है, आरोग्य और पुष्टि देता है ।

पठनाच्छ्रवणाद् वापि सर्वपापैः प्रमुच्यते ।।

(स्कन्द पुराण, वैष्णव खंड, मार्गशीर्ष माहात्म्यः 16.47)

उसका पढ़ना सुनना सब पापों से मुक्त कर देता है, पुण्यात्मा बना देता है ।

ऐसे भागवत की रचना वेदव्यासजी ने किसकी आज्ञा से की ? दासी पुत्र से ब्रह्मा जी के मानसपुत्र बने नारद की आज्ञा से ।

तो कुछ भी हो जाय, कभी आप अपना हौसला मत खोना । जाति छोटी, उम्र छोटी, पढ़ाई तो क्या की होगी 5 साल की उम्र में उस जमाने में लेकिन ब्रह्मज्ञान का सत्संग मिल गया तो छोटी जाति, छोटी उम्र, छोटी अक्ल वाले ये दासीपुत्र भी आगे चलकर महान-से-महान देवर्षि नारद जी के रूप में सुविख्यात हो गये ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2021, पृष्ठ संख्या 11,12 अंक 341

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