Monthly Archives: June 2021

“शहर को महामारियों से बचाना असम्भव था लेकिन…”


लोभी धन का चिंतन करता है, मोही परिवार का, कामी कामिनी का, भक्त भगवान का चिंतन करता है किंतु ज्ञानवान महापुरुष ऐसे परम पद को पाये हुए होते हैं कि वे परमात्मा का भी चिंतन नहीं करते क्योंकि परमात्मस्वरूप के ज्ञान से वे परमात्ममय हो जाते हैं । उनके लिए परमात्मा निजस्वरूप से भिन्न नहीं होता । हाँ, वे यदि चिंतन करते हैं तो इस बात का कि सबका मंगल, सबका भला कैसे हो ।

वर्ष 2006 में सूरत में भीषण बाढ़ आयी थी, जिससे वहाँ कई गम्भीर बीमारियाँ फैल रही थीं । तब करुणासागर पूज्य बापू जी ने गूगल, देशी घी आदि हवनीय औषधियों के पैकेट बनवाये तथा अपने साधक-भक्तों को घर-घर जाकर धूप करने को कहा । साथ ही रोगाणुओं से रक्षा का मंत्र व भगवन्नाम-उच्चारण की विधि बतायी । विशाल साधक-समुदाय ने वैसा ही किया, जिससे सूरत में महामारियाँ व्यापक रूप नहीं ले पायीं ।

वहाँ कार्यरत प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी) के चिकित्सकों ने जब यह देखा तो कहा कि “शहर को महामारियों से बचाना असम्भव था लेकिन संत श्री आशाराम जी बापू ने यह छोटा-सा परंतु बहुत ही कारगर उपाय दिया, जिससे शहरवासियों की भयंकर महामारियों से सहज में ही सुरक्षा हो गयी ।”

पूज्य बापू जी अपने सत्संगों में वायुशुद्धि हेतु सुंदर युक्ति बताते हैं- “आप अपने घरों में देशी गाय के गोबर के कंडे पर अगर एक चम्मच मतलब 8-10 मि.ली. घी की बूँदें डालकर धूप करते हैं तो एक टन शक्तिशाली वायु बनती है । इससे मनुष्य तो क्या, कीट-पतंग और पशु-पक्षियों को भी फायदा होता है । ऐसा शक्तिशाली भोजन दुनिया की किसी चीज से नहीं बनता । वायु जितनी बलवान होगी, उतना बुद्धि, मन, स्वास्थ्य बलवान होंगे ।” (गौ-गोबर व विभिन्न जड़ी-बूटियों से बनी गौ-चंदन धूपबत्ती आश्रमों में व समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है । उसे जलाकर उस पर देशी घाय के घी अथवा घानीवाले खाद्य तेल या नारियल तेल की बूँदें डाल के भी ऊर्जावान प्राणवायु बनायी जा सकती है ।)

पूज्य बापू जी की ऐसी अनेकानेक युक्तियों से लाभ उठाकर जनसमाज गम्भीर बीमारियों से बच के स्वास्थ्य-लाभ पा रहा है ।

अरबों रुपये लगा के भी जो समाजहित के कार्य नहीं किये जा सकते, वे कार्य ज्ञानवान संतों की प्रेरणा से सहज में  ही हो जाते हैं । संतों-महापुरुषों की प्रत्येक चेष्टा लोक-मांगल्य के लिए होती है । धन्य है समाज के वे सुज्ञ-जन, जो ऐसे महापुरुष की लोकहितकारी सरल युक्तियों का, जीवनोद्धारक सत्संग का लाभ लेते व औरों को दिलाते हैं !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2021, पृष्ठ संख्या 15, अंक 342

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

इच्छा बदलने से भगवत्प्राप्ति-साँईँ श्री लीलाशाहजी महाराज


दुनिया के व्यवसायों, धन इकट्ठा करने, सम्मान प्राप्त करने आदि के लिए आप क्या-क्या नहीं करते ! जान की बाजी लगाने से भी नहीं चूकते । जबकि यह स्पष्ट जानते हैं कि यह सब हमारे साथ नहीं चलेगा, अंत में काम नहीं आयेगा । यदि आप चाहें तो भगवत्प्राप्ति भी कर सकते हैं, जो इस शरीर के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होगी । शर्त यह है कि जो उद्यम आप धन आदि पदार्थों को पाने में लगाते हैं वह भगवत्प्राप्ति हेतु लगायें । केवल इच्छा को बदलना पड़ेगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2021, पृष्ठ संख्या 5 अंक 342

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सद्गुरु के शब्दमात्र से उद्धार होता है – संत दादू दयालजी


सद्गुरु के चरणों में सिर नवाकर अर्थात् उनकी शरण में रहने एवं भगवन्नाम का उच्चारण व जप करते रहने से प्राणी दुस्तर संसार से  पार हो जाता है । वह अनायास ही अष्टसिद्धि, नवनिधि और अमर-अभय पद को प्राप्त कर लेता है । उसे भक्ति-मुक्ति सहज में ही प्राप्त हो कर वह वैकुंठ को (यहाँ वैकुंठ अर्थात् अंकुठित मतिवाला अवस्था को) प्राप्त हो जाता है और अमरलोक की प्राप्ति (जीवन्मुक्ति) के फल को उपलब्ध हो जाता है ।

उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – ये चारों मंगलमय पुरुषार्थ हस्तगत हो जाते हैं क्योंकि प्रभु के तो सभी वस्तुओं के भंडार भरे हैं फिर उनके भक्त को क्या नहीं मिलेगा ? जो तेजस्वरूप हैं, जिनकी स्वरूप-ज्योति अपार है उन्हीं सृष्टिकर्ता प्रभु के स्वरूप में, सद्गुरु-चरणों में मस्तक रखकर तथा भगवन्नाम-चिंतन करके ही हम अनुरक्त हुए हैं ।

जो सद्गुरु-शब्दों में मन लगाकर रहा है उसका हृदय सद्गुरु-शब्दों से वेधा गया है और जो उन शब्दों के द्वारा एक परमात्मा के भजन में लगता है वही जन अहंकारादि वक्रता को त्याग के सरल-स्वभाव बनता है । उसके हृदय पर शब्द की ऐसी मार्मिक चोट लगती है कि वह अपने तन-मन आदि सभी को भूल जाता है और अपने आत्मा के मूल परब्रह्म को अभेदरूप से जान के जीवन्मुक्त हो के जीते जी मृतकवत (अर्थात् संसार के राग-द्वेष, हर्ष-शोक आदि से उदासीन) होकर रहता है । वह अति मधुर चेतनरूप महारस को चित्त से कभी नहीं भूलता । इस प्रकार जिसने निरंजनस्वरूप के बोधक सद्गुरु-शब्दों को ग्रहण किया है उसने परब्रह्म का साक्षात्कार किया है । सद्गुरु के एक शब्द से जिज्ञासु-जन का उद्धार हो जाता है । जिन्होंने एकाग्र मन से सद्गुरु शब्द सुने हैं वे अनायास ही अज्ञान-निद्रा से जगह हैं । जब भी जो श्रद्धासहित गुरु के सम्मुख बैठ के सुनते हैं तब कान के द्वारा गुरुशब्द-बाण जाकर हृदय में लगता है और वे निरंतर अपनी वृत्ति को भीतर एक परब्रह्म में ही अनुरक्त करके रहते हैं । जो सद्गुरु-शब्दों में लगकर परमात्मा के सम्मुख रहते हैं वे संसार-दशा से आगे बढ़कर वर्तमान शरीर में ही देखते-देखते अविनाशी ब्रह्म में अभेदरूप से संलग्न हो के मुक्त हो गये हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2021, पृष्ठ संख्या 5 अंक 342

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ