यह संस्कृति मनुष्य को कितना ऊँचा उठा सकती है !

यह संस्कृति मनुष्य को कितना ऊँचा उठा सकती है !


वेद-वेदांगादि शास्त्रविद्याओं एवं 64 कलाओं का ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गुरुदेव सांदीपन जी से निवेदन कियाः “गुरुदक्षिणा लीजिये ।”

गुरुदेव ने मना किया तो श्रीकृष्ण ने विनम्र निवेदन करते हुए कहा कि “आप गुरुमाता से भी पूछ लीजिये ।” तब पत्नी से सलाह करके आचार्य ने कहाः “हमारा पुत्र प्रभास क्षेत्र में समुद्र में स्नान करते समय डूब गया था । हमारा वही बेटा ला दो !”

भगवान समुद्र तट पर गये तो समुद्र ने कहा कि “पंचजन नामक एक असुर हमारे अंदर शंख के रूप में रहता है, शायद उसने चुरा लिया होगा ।”

भगवान ने जल में प्रवेश करके उस शंखासुर को मार डाला पर उसके पास भी जब गुरुपुत्र को न पाया तो वह शंख लेकर वे यमपुरी पहुँचे और वहाँ जाकर उसे बजाया ।

यमराज ने उनकी पूजा की और बोलेः “हे कृष्ण ! आपकी हम क्या सेवा करें ?”

श्रीकृष्णः तुम्हारे यहाँ हमारे गुरु का पुत्र आया है अपने कर्मानुसार । उसको ले आओ हमारे पास ।”

यमराज बोलेः “यह कौन सा संविधान (कानून) है ?”

“वह हम कुछ नहीं जानते, हमारा आदेश मानो । अरे, हमारे गुरु ने हमसे माँगा है । हमने कहाः ‘मांगिये’ और उन्होंने माँगा । इसके बाद संविधान की पोथी देखते हो ? संविधान कुछ नहीं, हमारी आज्ञा । …मत् शासनपुरस्कृतः – तुम मेरी आज्ञा स्वीकार करो ।” (श्रीमद्भागवतः 10.45.45)

यमराज ने वह गुरुपुत्र वापस दे दिया । भगवान ने उसे ले जाकर गुरुजी को दे दिया और बोलेः “गुरुदेव ! यह तो गुरुमाता ने माँगा था । आपने तो माँगा ही नहीं है । अब आप अपनी और से कुछ माँग लीजिये ।”

गुरु जी बोलेः “बेटा ! महात्माओं को माँगना पसंद नहीं है ।”

माँगना तो वासनावान का काम है । ‘हमको यह चाहिए और यह चाहिए ।’ वासना भगवान के साथ जुड़ गयी, वासना का ब्याह भगवान के साथ हो गया तो वह उनकी हो गयी और यदि वह भी अपने अधिष्ठान में बाधित (मिथ्या) हो गयी तो वह निष्क्रिय हो गयी । प्रतीयमान होने पर भी उसको कोई प्रतीति नहीं है ।

गुरुजी बोलेः “आपका मैं गुरु हो गया । अब भी क्या कुछ माँगना बाकी रह गया ? अब हम देते हैं, तुम हमको मत दो ।”

“आप क्या देते हैं ?”

“अपने घऱ जाओ, तुम्हारी पावनी कीर्ति हो, तुम लोक-परलोक में सर्वत्र सफल होओगे । वेद-पुराण-शास्त्र जो तुमने अध्ययन किये हैं, वे बिल्कुल ताजे ही बने रहें । जब हम तुम्हारे गुरु हो गये तो तुमने हमें सब दक्षिणा दे दी । अब हमारे लिये क्या बाकी है ?”

यह भारतीय संस्कृति का मनुष्य है जो भगवान का बाप, भगवान का गुरु बनने तक की यात्रा कर लेता है और भगवान को भी लोक-परलोक में सफल होने के लिए आशीर्वाद देने की योग्यता रखता है । हमारा सौभाग्य है कि हम भारतीय संस्कृति में जन्मे हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2021, पृष्ठ संख्या 10 अंक 343

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