परिप्रश्नेन

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प्रश्नः आत्मदर्शन का सरल उपाय क्या है ?

पूज्य बापू जीः आत्मदर्शन ( आत्मानुभव ) करने का एकदम सादा सरल उपाय है कि पहले तो यह माने कि मैं शरीर नहीं हूँ, मैं मन बुद्धि नहीं हूँ । शरीर को, मन को, बुद्धि को देखने वाला चैतन्य आत्मा हूँ’ – ऐसा मानना शुरु करे । जैसे पृथ्वी गोल है ऐसा बच्चा मानता है फिर आगे चल के जान लेता है ऐसे ही अपने को आत्मा मानना शुरु कर दे । दूसरा, सुख आये तो उसमें चिपके नहीं, दुःख आये तो उससे घबराये नहीं । ये आने-जाने वाली चीजें, रहने वाला मेरा आत्मा है – ऐसा बार-बार व्यवहार में चिंतन करे । योगवासिष्ठ का विचार करे और अजपाजप का अभ्यास करे तो चित्त आत्मदर्शन के योग्य बन जायेगा । ठीक है न !

प्रश्नः मेरे को अहंकार जल्दी आ जाता है, क्या करूँ ?

पूज्य श्रीः जिस बात का अहंकार आता हो उसमें अपने से उन्नत जो लोग हैं उनको मन से देखो और उस विषय के बड़े लोगों के सम्पर्क में रहो तो अहंकार आसानी से मिटेगा । धन का अहंकार, सत्ता का अहंकार, विद्या का अहंकार… किसी भी प्रकार का अहंकार आता हो तो ‘उस विषय में जो आगे बढ़े हैं वे भी चले गये, खाक में मिल गये तो मैं किस बात का अहंकार करूँ ?’ ऐसा चिंतन करो ।

प्रश्नः गुरु में अनन्य प्रीति कैसे बढ़े ?

पूज्य बापू जीः जैसे तुम मेले में जाते हो तो सब लोगों को गले नहीं लगते हो, जिसका बहुत बार नाम लिया है, सुमिरन किया है उस व्यक्ति को मेले में देखते हो तो प्रीति जगती है और गले लगते हो, ऐसे ही जिसमें प्रीति करनी है उसका स्मरण या उसका नाम बढ़ाते जाओ तो प्रीति बढ़ जायेगी ।

प्रश्नः आसपास का माहौल शांति भंग करता है तो उसको भूलने के लिए क्या करना चाहिए ?

पूज्य बापू जीः आसपास के माहौल को न बदलो, न मिटाओ, न महत्त्व दो । मन में अगड़म-तगड़म स्वाहा…. करके उपेक्षित कर दो । यह होता रहता है, अपना जो ( परमात्मप्राप्ति का ) उद्देश्य लेकर बैठे हैं उसमें डट जाओ । फिर भी माहौल का प्रभाव पड़ेगा तो जोर-जोर से ॐकार मंत्र का जप कर सकते हैं तो करो और माहौल को मिथ्या समझो, अगड़म-तगड़म स्वाहा… कर दो । ( आप मराठी हैं तो ) ‘इकड़े-तिकड़े काय करायचे विट्ठल-विट्ठल बोला, ‘हरिॐ’ ‘हरिॐ’ बोला ।’ ( इधर-उधर क्या करना, ‘विट्ठल-विट्ठल’ बोलो, ‘हरि ॐ, हरि ॐ’ बोलो । )… ऐसा करके मन को असंग, निर्लेप बनाना पड़ता है ।

किसी की ‘टें-टें’, किसी की ‘चें-चें’, किसी की ‘में-में’, किसी की ‘भें-भें’ हो रही है तो क्या करें ? तो दुनिया की टें-चें-में-भें…’ बंद नहीं कर सकते हैं, यह तो हिमालय में भी होता रहता है । तो अब ऐसा सोचें कि ‘टें’ की गहराई में, ‘में’ की गहराई में, ‘भें’ की गहराई में मेरा प्रभु है । मेरे चैतन्य की सत्ता से सब हो रहा है । यह वे जानते नहीं, ‘टें-में’ कर रहे हैं लेकिन उनकी गहराई में तो मैं ही मैं, प्रभु ही प्रभु है, वाह-वाह !’ माहौल का प्रभाव हट जायेगा । युक्ति से मुक्ति होती है, नहीं तो माहौल बदलने में तो जिंदगियाँ बदल जाती हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2022, पृष्ठ संख्या 34 अंक 349

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