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भगवान किन पर नाराज और किन पर प्रसन्न होते हैं ? – पूज्य बापू जी


जो धनवान होकर भी सत्कर्म, दान नहीं करता तथा जो विद्वान, बुद्धिमान हो के भी दुष्ट कर्म करता है उस पर भगवान नाराज होते हैं और जो बड़ी उम्र होने पर भी संसार की आसक्ति नहीं छोड़ता उस पर भी भगवान नाराज होते हैं ।

जो भगवान को अपना मानता है, अपने को भगवान का मानता है और प्रीतिपूर्वक भगवान और सद्गुरु को देखता है उस पर भगवान प्रसन्न होते हैं । जैसे ध्रुव पर प्रसन्न हो गये… प्रह्लाद पर प्रसन्न हो गये… समर्थ के भाई बालक रामी रामदास पर प्रसन्न हो गये… लीलाराम जी पर प्रसन्न हो गये तो वे भगवत्पाद लीलाशाह जी प्रभु बन गये । जिन पर सद्गुरु और भगवान प्रसन्न हो गये, समझो उनको सत्संग मिलेगा और जिनको सत्संग मिला उनको समझो देर-सवेर भगवान मिल जायेंगे । ॐ आनंद… छुपा हुआ है, केवल अनुभव में नहीं है… ॐ ॐ ॐ… सत्संग से उसका अपने में ही अनुभव हो जायेगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2022, पृष्ठ संख्या 19 अंक 352

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तब से यमराज का विभाग कभी खतरे में नहीं पड़ा – पूज्य बापू जी


महापुरुषों के द्वारा मैंने एक कथा सुनी थी कि पृथ्वी पर कुछ ब्रह्मवेत्ता महापुरुष आ गये, जिनका दर्शन करके लोग खुशहाल हो जाते थे, जिनके वचन सुनकर लोगों के कान पावन हो जाते थे, जिनके वचन मनन करने से लोगों का मन पवित्र हो जाता था, जिनके ज्ञान में गोता मारने से लोगों की बुद्धि बलवती हो जाती थी, तेजस्वी हो जाती थी । लोग पुण्यात्मा, इन्द्रिय संयमी होते थे । संयम करके सूक्ष्म शक्तियों का विकास करते थे तो लोग तो तर जाते थे, साथ ही वे जिनके कुल में जन्मते थे उनका कुल भी तर जाता था, उनके नरक आदि में पड़े हुए जो पूर्वज थे वे भी तर रहे थे तो नरक खाली होने लगा । नये लोग नरक में जायें नहीं और पुराने नारकीय जीव जो नरकों में सड़ रहे थे, वे भी ब्रह्मवेत्ताओं का सम्पर्क करने वालों के प्रभाव से मुक्त हो रहे थे । नरक एकदम खाली हो गया । यमराज चिंतित हुए कि ‘हमारे विभाग के सब लोग जम्हाइयाँ खा रहे हैं, उनके पास कोई काम नहीं है । मेरा विभाग बंद होने को जा रहा है ।

अपना विभाग चलता है तो शोभा पाता है व्यक्ति, विभाग अगर मंदा हो जाय, ग्राहकी नहीं रहे तो फिर व्यक्ति जरा चिंतित होता है ।

तो चिंतित यमराज ब्रह्मा जी के पास गये, बोलेः ″ब्रह्मन् ! मेरे नरक में नये कोई पापी आते नहीं और पुराने जो हैं उनके मृत्युलोक में जो पुत्र परिवार हैं, वे ब्रह्मज्ञानियों का सत्संग सुन के इतने पुण्यात्मा हो जाते हैं कि उनके पुण्यप्रभाव से नरक से वे पूर्वज सब स्वर्ग में चले जाते हैं, मेरा विभाग खतरे में है, आप कृपा करके कोई उपाय बताइये । कम-से-कम मेरा काम तो चलता रहे ।

ब्रह्माजी ने कमंडल से पानी लेकर पद्मासन बाँधा और जहाँ से योगेश्वरों का योग सिद्ध होता है, जिसमें भगवान शिव जी, भगवान नारायण और ब्रह्मज्ञानी महापुरुष रमण करते हैं उसी आत्मा-परमात्मा के सहज स्वभाव में एक क्षण के लिए रमण करके उपाय ले आये । उपाय यह लाये कि जो ब्रह्मज्ञानियों का सत्संग सुनेगा वह संयमी होगा, भक्तिवाला होगा, पुण्यात्मा होगा, उसका कुल तो तरेगा लेकिन अब से पृथ्वी पर जब भी कोई ब्रह्मज्ञानी आयेंगे तो कोई-न-कोई निंदक लोग पैदा हुआ करेंगे । महापुरुषों की निंदा करके वे लोग भी डूबेंगे और उनके सम्पर्क में आने वाले भी डूबेंगे, वे सब तुम्हारे पास आयेंगे । तुम्हारा विभाग चलता रहेगा । तब से आज तक वह विभाग बंद नहीं हुआ, बढ़ता ही चला गया ।

वसिष्ठ जी कहते हैं- ″ हे राम जी ! मैं बाजार से गुजरता हूँ तो मूर्ख लोग मेरे लिए क्या-क्या बकवास करते हैं, क्या-क्या अफवाह फैलाते हैं, वह सब मुझे पता है लेकिन मेरा दयालु स्वभाव है ।″

क्योंकि यमराज का विभाग चालू रखना है । संत कबीर जी के लिए लोग कुछ-का-कुछ बोलते थे, ऋषि दयानंद को लोगों ने 22 बार जहर दिया, और भी न जाने क्या-क्या बोला, क्या-क्या विरोध-प्रदर्शन किये और क्या-क्या किया, वेश्याओं को भेजा और क्या-क्या गंदी अफवाहें फैलायीं । विवेकानंद जी के लिए, रामकृष्ण जी के लिए, रामतीर्थ के लिए निंदक कुछ भी बकते थे । बुद्ध के जमाने में बुद्ध के विरोधी थे कबीर जी के जमाने में कबीर जी के विरोधी थे । तो जब-जब भी ब्रह्मवेत्ता आये… चाहे जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य आये हों, चाहे कबीर जी आये हों उनके विरोधी भी हुए हैं, होते ही हैं । चाहे श्रीकृष्ण होकर आ जाय वह ब्रह्म, चाहे राम जी हो के आ जाय फिर भी शकुनि और धोबी जैसे निंदक तो बनते ही हैं क्योंकि यमराज का विभाग चालू रखना है ।

उस विभाग में जो अपने परिवार को भेजना चाहता है वह जरूर संतों की निंदा करे, राम जी के विरुद्ध जाय, श्रीकृष्ण के विरुद्ध जाय… शकुनि जैसे होते रहते थे कि नहीं ?

वह अंधा धृतराष्ट्र बोलता है कि ″यह शक्ति कर्ण ने घटोत्कच पर क्यों लगा दी, वह कृष्ण पर लगाता ।″ जानता है कि कृष्ण क्या हैं, कितना प्रभाव है, कितने उदार हैं, कितने ज्ञानी हैं ! बीच-बीच में तो यूँ भी उछलता है कि ‘अगर मेरे को भी कृष्ण कहे तो मैं भी जरूर आज्ञा पालूँ ।’

फिर भी मोह के कारण सोचता है कि कृष्ण पर शक्ति लगती अर्थात् उससे कृष्ण मर जाते तो अच्छा था ।

तो जब श्रीकृष्ण के जमाने में, श्रीराम जी के जमाने में यमराज का विभाग चालू रहा तो अभी क्या बंद हो गया होगा ! कलियुग है, अभी तो वह विभाग बहुत बड़ा बन गया होगा, सुविधाएँ ज्यादा हुई होंगी, ज्यादा व्यक्ति बैठ सकें ऐसी व्यवस्था हुई होगी । नारायण ! नारायण !!

जब वसिष्ठजी को लोगों ने नहीं छोड़ा, कबीर जी और नानक जी को नहीं छोड़ा, राम जी और श्रीकृष्ण को नहीं छोड़ा तो तुम्हारी कोई निंदा करे तो तुम घबराओ नहीं, सिकुड़ो मत, डरो मत । कोई निंदा करे तो भगवान का रास्ता छोड़ो मत । कोई स्तुति करे तो फूलो मत । यह सब इन्द्रियों का धोखा है । निंदा-स्तुति सब आने जाने वाली चीजें हैं, तुम अपने-आप में लगे रहो ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2022, पृष्ठ संख्या 24, 25 अंक 352

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शंखनाद व शंखजल पवित्र क्यों ?


हमारी संस्कृति में पूजा-पाठ, उत्सव, हवन, स्वागत सत्कार आदि शुभ अवसरों पर शंख बजाया जाता है, जो विजय समृद्धि, यश और शुभता का प्रतीक माना जाता है । मंदिरों में प्रातःकाल और सायं-संध्या के समय शंख बजाना, शंख में जल भरकर पूजा स्थल पर रखना और पूजा-पाठ अनुष्ठान आदि समाप्त होने के बाद श्रद्धालुओं पर उस जल को छिड़कना यह परम्परा अनादि काल से चली आ रही है ।

अथर्ववेद ( कांड 4 सूक्त 10, मंत्र 1 ) में कहा गया है कि ‘शंख अंतरिक्ष, वायु, ज्योतिर्मण्डल एवं सुवर्ण से उत्पन्न हुआ है ।’

शंख की ध्वनि शत्रुओं को निर्बल करने वाली होती है । इस संदर्भ में श्रीकृष्ण का ‘पांचजन्य’ व अर्जुन का ‘देवदत्त’ आदि शंख प्रसिद्ध हैं ।

भारत के महान वैज्ञानिक जगदीशचन्द्र बसु ने अपने प्रयोगों से सिद्ध करके बताया कि ‘एक बार शंख फूँकने पर जहाँ तक उसकी ध्वनि जाती है वहाँ तक अनेक बीमारियों के कीटाणु मूर्च्छित हो जाते हैं । यदि यह क्रिया निरंतर जारी रखी जाय तो कुछ ही समय में वायुमंडल इस प्रकार के कीटाणुओं से सर्वथा रहित हो जाता है ।’

शंख दो प्रकार के होते हैं- दक्षिणावर्ती और वामावर्ती । अधिकतर शंख वामावर्ती ही मिलते हैं परंतु शास्त्रों में दक्षिणावर्ती शंख की विशेष महत्ता बतायी गयी है ।

पूज्य बापू के सत्संग-वचनामृत में आता हैः ″संध्या के समय आरती होती है और शंख बजाया जाता है । शंख युद्ध के मैदान में भी बजाया जाता है । बोलते हैं कि ‘संध्या के समय राक्षस, दैत्य आते हैं ।’ दैत्य-राक्षस तो क्या हानिकारक जीवाणुरूपी राक्षस ही संध्या के समय आते हैं । प्रभातकाल में सूर्योदय के पहले और संध्या के समय स्वास्थ्य को नुकसान करने वाले जीवाणुओं का प्रभाव ज्यादा हो जाता है । तो आरती जलाओ, शंख बजाओ, जिससे श्वासोच्छ्वास में हानिकारक जीवाणु आक्रमण न करें ।

आधुनिक विज्ञान को भी होना पड़ा ऋषियों की खोज के साथ सहमत

भारत के ऋषियों ने शरीर की तंदुरुस्ती, आरोग्यता और मन की प्रसन्नता के लिए जो हजारों वर्ष पहले खोजा है उस बात पर आज के विज्ञानियों को सहमत होना पड़ा है ।

बर्लिन विश्वविद्यालय ( जर्मनी ) में अनुसंधान से सिद्ध हुआ कि 27 घन फीट प्रति सेकेण्ड वायु शक्ति से शंख बजाने से 2200 घन फीट दूरी तक के हानिकारक जीवाणु ( बेक्टीरिया ) नष्ट हो जाते हैं और 2600 घन फीट दूरी तक के मूर्च्छित हो जाते हैं । हैजा, मलेरिया और गर्दनतोड़ ज्वर के कीटाणु भी शंखध्वनि से नष्ट हो जाते हैं ।

शिकागो के डॉ. डी. ब्राइन ने 1300 बहरे लोगों को शंख ध्वनि से ठीक किया था लेकिन भारत के ऋषियों ने तो करोड़ों-करोड़ों जीवों को कल्याण के, परमात्मा के पथ पर लगाने के लिए शंखध्वनि मंदिरों में सुबह-शाम बजवाकर बड़ा उपकार कर दिया है । युद्ध के आरम्भ में शंखध्वनि, युद्ध की समाप्ति में शंखध्वनि, पूजा के समय शंखध्वनि, मंगलाचरण के समय शंखध्वनि… जहाँ लाभ हुआ वहाँ वह लाभ सबको पहुँचे, यह हमारे ऋषियों की कैसी सर्वहितदृष्टि है !

शंखध्वनि को धार्मिक परम्परा में नियुक्त करने वाले उन ऋषियों को हमारा प्रणाम है । यह भारतीय ऋषियों की खोज है । धर्म के नाम से भी शरीर में आरोग्यता और प्रसन्नता का संचार करने की उन्होंने व्यवस्था की । इस बात पर आप लोगों को गर्व होना चाहिए कि विश्व में शोध करने वाले आधुनिक वैज्ञानिक पैदा ही नहीं हुए थे उसके पहले ही जिन ऋषियों ने शोध करके शंखनाद की व्यवस्था की उनकी समझ कितनी बढ़िया होगी ! वैज्ञानिकों के दिमाग में बैक्टीरियाओं का गणित है, वे बैक्टीरिया बताते हैं कि हमारे ऋषियों ने बताया की सात्त्विकता का संचार होता है, रजो और तमो गुण क्षीण होता है । शंख से वीर ध्वनि पैदा होती है इसलिए श्रीकृष्ण ने युद्ध के मैदान में शंख फूँका ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 22, 23 अंक 351

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