महान संकट की ओर बढ़ रहे थे कदम और बुल्लेशाह अनजान था (भाग – 4)
जख्मी न हुआ था दिल ऐसा सीने में खटकन दिन रात न थी पहले भी लगे थे सदमे बहुत रोया था मगर यह बात न थी मोहब्बत के रास्ते पर छुरिया तो चलती ही रही है दिल को जख्म मिलते रहे हैं सीने में कितनी ही मर्तबा धड़कनों की रफ़्तार महसूस की है आंखो ने …