Gurubhaktiyog

महान संकट की ओर बढ़ रहे थे कदम और बुल्लेशाह अनजान था (भाग – 4)


जख्मी न हुआ था दिल ऐसा सीने में खटकन दिन रात न थी पहले भी लगे थे सदमे बहुत रोया था मगर यह बात न थी मोहब्बत के रास्ते पर छुरिया तो चलती ही रही है दिल को जख्म मिलते रहे हैं सीने में कितनी ही मर्तबा धड़कनों की रफ़्तार महसूस की है आंखो ने …

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महान संकट की ओर बढ़ रहे थे कदम और बुल्लेशाह अनजान था (भाग-3)


पिछली बार हमने सुना कि किस प्रकार बुल्लेशाह के वालिद इनायत शाह से रजामंदी लेकर बुल्लेशाह को निकाह में शरीफ होने की इजाजत लेकर उसे हवेली के जाते हैं इधर इनायत शाह के प्रतिनिधि के रूप में आश्रम से एक साधक आता है जिसे बुल्लेशाह नज़र अंदाज़ कर देते है वह साधक पेड़ की ओट …

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महान संकट की ओर बढ़ रहे थे कदम और बुल्लेशाह अनजान था (भाग – 2)


कल हमने सुना कि जैसे ही बुल्लेशाह से अपने गुरु भाई को देखा तो उसकी तरफ दौड़ पड़ा परन्तु अचानक रुक गया, उसके पैरो में अदृश्य जकड़न महसूस हुई कुछ बोझ का अहसास हुआ खैर यह सब झेलते हुए उसने फिर हिम्मत की आगे कदम बढ़ाए और गुरु भाई की ओर बढ़ा उधर गुरु भाई …

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