199 ऋषि प्रसादः जुलाई 2009

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

शिक्षा और दीक्षा


शिक्षा मानव-जीवन में सौंदर्य प्रदान करती है, कारण कि शिक्षित व्यक्ति की माँग समाजो सदैव रहती है । इस दृष्टि से शिक्षा एक प्रकार का सामर्थ्य है । यद्यपि सामर्थ्य सभी को स्वभाव से प्रिय है पर उसका दुरुपयोग मंगलकारी नहीं है । अतः शिक्षा के साथ-साथ दीक्षा अत्यंत आवश्यक है । शिक्षा का सदुपयोग …

Read More ..

सबसे बड़ी बात – पूज्य बापू जी


जब मुसीबत पड़ती है तब आपके अचेतन मन में क्या होता है ? यह जरा देखना यार ! जब मार पड़ती है तब ‘हाय !….’ निकलती है कि ‘हरि !….’ निकलता है, ‘डॉक्टर साहब !… इंजेक्शन….’ निकलता है कि ‘शिवोऽहम्… सब मिथ्या है’ यह निकलता है या इससे अलग कुछ निकलता है । यदि कचरा …

Read More ..

दुर्जन की करुणा बुरी, भलो साँईं को त्रास-पूज्य बापू जी


वसिष्ठ जी बोलते हैं- “हे राम जी ! यदि असाधु का संग साधुपुरुष भी करता है तो साधु भी असाधु होने लगता है और यदि साधुओं का संग असाधु कर ले तो असाधु भी साधु होने लगता है । जो परम साध्य साध रहे हैं वे ‘साधु’ हैं और जो अस्थिर संसार के पीछे समय …

Read More ..