सात्विक श्रद्धा की ओर
(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से) सत्तवानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत। श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः।। ‘हे भारत ! सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अंतःकरण के अनुरूप होती है। यह पुरुष श्रद्धामय है, इसलिए जो पुरुष जैसे श्रद्धावाला है, वह स्वयं भी वही है।’ (भगवदगीताः 17.3) भगवान श्रीकृष्ण की जगत-उद्धारिणी वाणी भगवदगीता विश्ववंदनीय …