महामूर्ख से महाविद्वान
(आत्मनिष्ठ पूज्य बापू जी की मधुमय अमृतवाणी) एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध। तुलसी संगत साध की, हरे कोटि अपराध।। जन्म जन्मान्तरों की पाप-वासनाएँ, दूषित कर्मों के बन्धन सत्संग काट देता है और हृदय में ही हृदयेश्वर का आनंद-माधुर्य भर देता है। कितना भी गया-बीता व्यक्ति हो, मूर्खों से भी दुत्कारा हुआ महामूर्ख …