245 ऋषि प्रसादः मई 2013

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

जानो उसको जिसकी है ʹहाँʹ में ʹहाँʹ – पूज्य बापू जी


संसार का सार शरीर है। शरीर का सार इऩ्द्रियाँ हैं। इन्द्रियों का सार प्राण हैं। प्राणों का सार मन है। मन का सार बुद्धि है। बुद्धि का सार अहं है, जीव है। जीव का सार चिदावली है और चिदावली का सार वह चैतन्य आत्मदेव है। उसी आत्मदेव से संवित् (वृत्ति) उठती है, फुरना (संकल्प) उठता …

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गुणों के चक्र से परे हैं आप !


पराशरजी अपने जिज्ञासु शिष्य मैत्रेय को संसार-चक्र से निकलने की सरल युक्ति बताते हुए कहते हैं- “हे शिष्य ! जैसे आकाश में सप्त ऋषियों से लेकर सूर्य, चन्द्र आदि नक्षत्र तथा तारामंडल का चक्र दिन रात घूमता रहता है परंतु ध्रुव तारा अचल, एकरस रहता है। यदि अन्य तारों की तरह ध्रुव भी चलायमान होता …

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आत्मविकास के 15 साधन – पूज्य बापू जी


आत्मविकास करना हो, आत्मबल बढ़ाना हो और अपना कल्याण करना हो तो विद्यार्थियों को 15 बातों पर ध्यान देना चाहिए। संकल्पः संकल्प में अथाह सामर्थ्य है। दृढ़ संकल्पवान मनुष्य हर क्षेत्र में सफल और हर किसी का प्यारा हो सकता है। आत्मबल बढ़ाने के लिए कोई भी छोटा-मोटा जो जरूरी है, वह संकल्प करें। दृढ़ताः …

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