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Bhakton Ke Anubhav

एक प्रसाद से कई प्रसाद


आज मेरी जिंदगी में जो भी खुशी है, सब पूज्य बापू जी की कृपा से मिली है। मेरे पिछले किसी जन्म के पुण्यकर्मों का फल है जो बापू जी की पत्रिका ‘ऋषि प्रसाद’ मुझे मिली। इसे पढ़कर मेरे जीवन में आनंद और प्रसन्नता की बहार आ गयी। मेरी शादी को लगभग आठ साल होने को थे पर मैं संतान सुख से वंचित थी। एक दिन मेरी पड़ोसी ने मुझे ऋषि प्रसाद दी और तब इसे पहली बार पढ़ने का सौभाग्य मिला। उसमें एक भक्त का अनुभव छपा था – ‘गुरुकृपा से तीन संतान’। अनुभव को पढ़कर मेरे मन में विचार आया कि जब पूज्य बापूजी ने इसकी गोद भर दी तो मुझ पर भी उनकी कृपा अवश्य बरसेगी। मैंने श्रद्धापूर्वक, सच्चे मन से, पूरे विश्वास के साथ ‘श्री आसारामायण’ के 108 वर्ष बाद एक बेटा हुआ। बेटा 2 महीने का हुआ था कि मेरी 6 वर्ष से रूकी हुई नौकरी भी मुझे मिल गयी। मेरी वीरान जिंदगी अचानक यूँ खुशियों से भर गयी। यह सब मेरे पूज्य बापू जी की कृपा से ही सम्भव हुआ है।

अर्चना भराड़िया,

गाँव इच्छी, जि. काँगड़ा

हिमाचल प्रदेश

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2010, पृष्ठ संख्या 30, अंक 212

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मंत्र ले गया रोग, बंदर ले गये दवा


मैं काफी दिनों से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज एवं कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित था। कुछ ही कदम चलने पर मैं पसीने-पसीने हो जाता था। कंधे भी जकड़े हुए थे, शरीर टूटता था। चिकित्सकों ने मुझे पूर्णरूप से आराम करने की सलाह दी थी परंतु मैं एक समाजसेवी संस्था का संचालन करता हूँ, इससे आराम करने में असमर्थ था। मैंने गुरुपूर्णिमा पर्व पर अहमदाबाद आश्रम में जाकर पूज्य बापूजी के दर्शन करने का विचार किया। परिचितों व चिकित्सकों ने मेरी हालत को देखते हुए न जाने की सलाह दी परंतु मैं जिद करके अहमदाबाद आश्रम गया। वहाँ मुझे कई बार चक्कर आये और मेरी हालत नाजुक हो गयी। अंतर्यामी गुरुदेव शिष्य की व्यथा को समझ गये और लाखों लोगों के बीच से मुझे व्यासपीठ के पास बुलाया। दूसरे की पीड़ा न देख सकने वाले गुरदेव ने मेरा हालचाल पूछा। मैंने सब व्यथा कह दी। बापू जी ने मंत्र दिया और कहाः “मंत्र का प्रतिदिन एक माला जप करना, प्राणायाम करना, सवेरे घूमने जाना और 15 से 17 मिनट सूर्य की किरणें शरीर को लगें ऐसे सूर्यस्नान करना।’

मैंने उनके निर्देशानुसार नियम से जप, प्राणायाम, सूर्यस्नान और घूमना शुरू किया तो मुझे लाभ होने लगा। एक दिन मैं घूमने गया था, घर आया तो पत्नी ने बताया कि ‘लाल मुँह के चार बंदर आये और सारी दवाइयों का पॉलिथीन उठा के ले भागे।’ दूसरी बार दवा ले आया तो फिर से बंदर आकर दवाइयाँ ले भागे। ऐसा 4-5 बार हुआ। सभी को इस घटना का बड़ा आश्चर्य हुआ परंतु मुझे तो इसमें मंत्र का प्रभाव साफ दिखायी दे रहा था, नासै रोग….. हनुमानजी का मंत्र था और हनुमान जी की सेनावाले आये।

मेरी हालत में निरंतर सुधार आता गया। गुरुदेव की कृपा से मैं आज एकदम तंदुरुस्त हूँ। मैं ऐसे भगवद् स्वरूप गुरुदेव के लिए भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि वे चिरंजीवी हों और उनकी इस लोक-मांगल्य की पावन सरिता का लाभ विश्वमानव को मिलता रहे।

कमल किशोर खन्ना, अजमेर (राजस्थान)

मोबाइलः 9587297820

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2010, पृष्ठ संख्या 34, अंक 211

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13 साल की उम्र में 24 पदक


पूज्य बापू जी के श्रीचरणों में शत-शत नमन।

मैंने परम पूज्य बापूजी से 14 जनवरी 1997 को मंत्रदीक्षा ली थी। मेरे परिवार में मेरी दो बेटियाँ और ससुरजी हैं, सबने बापूजी से दीक्षा ली है। गुरुमंत्र के जप से मेरी बेटी शुभांगी (उम्र 18 वर्ष) की प्रतिभा ऐसी निखरी कि उसने राज्यस्तरीय और राष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिताओं में 2 स्वर्ण, 1 रजत और 3 कांस्य पदक जीते। यह सब गुरुकृपा  ही सम्भव हो पाया।

पूज्य बापू जी से दीक्षा लेने के बाद मेरी छोटी बेटी शिवानी (उम्र 13 वर्ष) की प्रतिभा भी इतनी निखरी कि उसने केवल 10 वर्ष की उम्र में मार्शल आर्ट नेशनल चैम्पियनशिप में सुवर्ण पदक प्राप्त किया। इसके बाद उसने राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय अनेक स्पर्धाओं में भाग लिया और कुल 17 स्वर्ण पदक, 4 रजत पदक, 3 कांस्य पदक हासिल किये हैं। 13 वर्ष की उम्र में 24 पदक जीतना, ये सारी सफलताएँ बापू जी के आशीर्वाद का ही फल हैं। ऐसे करोड़ों के उद्धारक प्यारे बापूजी को हमारे बारम्बार प्रणाम !

श्रीमति स्मिता कराले, धार (म.प्र.)

दूरभाष क्र. 07292.232992

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