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Sharir Swasthya

कोरोना वायरस पर विशेष


विपदा से पहले लौटें अपनी जड़ों की ओर

मांसाहार व अभक्ष्य आहार का त्याग जैसे भारतीय संस्कृति के सिद्धांतों की अवहेलना के घातक दुष्परिणाम क्या हो सकते हैं यह अब सभी को खूब प्रत्यक्ष हो रहा है । विश्वभर में आतंक मचाकर तबाही कर रहा कोरोना विषाणु (वायरस) इसका एक ताजा उदाहरण है । कोरोना वायरस रोग ने एक महामारी का रूप धारण कर लिया है । केवल 2 महीने में चीन में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 77770 के ऊपर पहुँच गयी है, जिसमें 2666 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है । अब तक यह वायरस ईरान, अफगानिस्तान, ईराक, ओमान आदि 33 से अधिक देशों में फैल चुका है और पूरे विश्व में संक्रमित लोगों की संख्या 80239 से अधिक है । भारत में भी इसने प्रवेश किया था लेकिन फिलहाल स्थिति नियंत्रण में बतायी गयी है । इसके पहले सार्स रोग ने खूब तबाही मचायी थी जो पशुओं से मनुष्य-शरीर में आया था ।

कहाँ से आये ये कोरोना जैसे वायरस ?

वैज्ञानिकों के अनुसार कोरोनावायरस प्राणी से मनुष्य में संक्रमित हुआ वायरस है । मांसाहार करने के लिए जानवरों को प्राप्त करने और मांस तैयार करने की प्रक्रिया में लिप्त मांसाहार के व्यापारी और उसे खाने के शौकीन लोग जानवर के स्पर्श, श्वासोच्छवास, सेवन आदि द्वारा अपने जीवन को जानलेवा बीमारियों एवं अकाल मौत के मुँह में धकेल देते हैं । शाकाहारी जीवन जियें तो क्यों ऐसी महामारियाँ होंगी ? मांसाहारी व्यक्ति केवल अपने लिए प्राणघातक नहीं है अपितु शाकाहारियों के लिए भी खतरा है क्योंकि ऐसे वायरस से रोग फिर मनुष्यों से मनुष्यों में फैलते हैं ।

अब चीन ने जंगली पशुओं के व्यापार और उनके उपभोग पर रोक लगा दी है ।

मांसाहार और पशु-संक्रमण से मनुष्य में प्रविष्ट वायरस व रोग

वायरस का नाम कौन सा रोग फैलाया
नॉवेल कोरोनावायरस कोरोनावायरस रोग 2019
एच.आई.वी. एडस
एच5एन1 एच5एन1 ऐवियन इन्फ्लुएंजा अथवा बर्ड फ्लू
ईबोला ईबोला वायरस रोग
निपाह निपाह वायरस संक्रमण
सार्स कोरोनावायरस सार्स
एच1एन1 स्वाइन फ्लू

कैसे करें रोकथाम ?

1. शाकाहार ऐसे वायरसों से रक्षा करता है ।

2. ये वायरस उन्हीं पर हमला करते हैं जिनकी रोगप्रतिकारक शक्ति कमजोर होती है अतः इसकी रोकथाम का सबसे अच्छा और सरल तरीका है कि देशी गाय के गोबर के कंडे अथवा ‘गौ-चंदन धूपबत्ती’ को जलाकर उस पर देशी घी या नारियल तेल की बूँदें, गूगल, कपूर डाल के धूप करें । इसमें वायरस पनप नहीं सकता । इससे सभी जगह उसकी रोकथाम की जा सकती है । साथ ही इससे विभिन्न बीमारियों के विषाणु, जीवाणु नष्ट होकर आरोग्यप्रद, सुखमय वातावरण का निर्माण होगा । दूरद्रष्टा महापुरुष पूज्य बापू जी ने उपरोक्त प्रकार के गोबर के कंडे के धूप का पिछले कई दशकों से व्यापक प्रचार-प्रसार किया है और स्वास्थ्य, रोगप्रतिरोधक शक्ति वर्धक ‘गौचंदन धूपबत्ती’ एवं इसी के साथ स्मृतिवर्धन का लाभ भी दिलाने हेतु ‘स्पेशल गौ-चंदन धूपबत्ती’ की खोज की । वही तथ्य आज चिकित्सा-ऩिष्णातों की समझ में आ रहा है कि गाय के गोबर के कंडे पर किया गया धूप वातावरण को ऐसे खतरनाक विषाणुओं से भी मुक्त रखने में कारगर है !

3. पूज्य बापू जी के सत्संग में आने वाले एवं ‘ऋषि प्रसाद’ में छपने वाले रोगप्रतिकारक शक्तिवर्धक अन्य उपायों का अवलम्बन लेते रहना चाहिए ।

ठोकर खाने से पहले ही सँभल जायें

कोरोनावायरस रोग की भीषण महामारी से त्रस्त होकर आज विश्व  को शाकाहार और भारत के महापुरुषों के सिद्धान्तों की ओर तो आखिर में मुड़ना ही पड़ रहा है । लेकिन कितना अच्छा होता कि पहले से ही मांस भक्ष्ण न करने की महापुरुषों की उत्तम सीख को मानकर निर्दोष मूक प्राणियों की हिंसा से और इस रोग से बचा जाता !

जब-जब शास्त्रों व महापुरुषों की दूरदृष्टिसम्पन्न हित व करूणाभरी सलाह को ठुकराया जाता है तब-तब देर-सवेर उसके घातक परिणाम भुगतने ही पड़ते हैं और मजबूर होकर शास्त्रों-महापुरुषों के सिद्धान्तों को मानना पड़ता है । ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं-

संयम-ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।  हमारे ऋषियों-मुनियों के इस सिद्धान्त को अनदेखा करके जो देश ‘फ्री-सेक्स’ की विचारधारा अपनाने की ओर चले वहाँ एड्स जैसी जानलेवा बीमारियाँ आ धमकीं, वहाँ से दूर-दूर तक फैलीं और उन देशों को अरबों डॉलर खर्च करके संयम की शिक्षा देनी पड़ रही है और फिर भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं । अंतर्राष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ द्वारा प्रकाशित इऩ्नसेंटी रिपोर्ट कार्ड नम्बर 3 के अनुसार ‘अमेरिका के स्कूलों में यौन-संयम की शिक्षा देने के लिए 1996 से 2001 के बीच सरकार ने 40 करोड़ से अधिक डॉलर (आज के 28 अरब 65 करोड़ रूपये) केवल संयम की शिक्षा के अभियान में खर्च किये ।’ वे ‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश – युवाधन सुरक्षा’ अभियान का लाभ लें तो नाममात्र के खर्च में कितने उत्तम परिणाम उन्हें मिल सकते हैं !

ब्रह्मचर्य या ऋतुचर्या के पालन की बात हो, ॐकार चिकित्सा, मंत्र चिकित्सा हो या ध्यान-प्रार्थना हो – तन मन-मति को स्वस्थ, प्रसन्न, सुविकसित और प्रभावशाली बनाने और बनाये रखने का ज्ञान खजाना पूज्य बापू जी जैसे भारत के महापुरुषों के पास है । इस ज्ञान का महत्त्व न जानने वालों ने स्वास्थ्य और सुविधा के लिए बड़ी-बड़ी महँगी-महँगी दवाइयाँ व मशीनें खोजीं लेकिन समस्याएँ कम न हुईं बल्कि और भी बढ़ीं । आखिर थक-हारकर आज पुनः स्वास्थ्य व शांति के लिए विश्ववासियों को भारत की ऋषिप्रणीत इन प्रणालियों की शरण स्वीकारनी पड़ रही है । इसी प्रकार हमारी गौ-चिकित्सा की ओर भी ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ सहित सारा विश्व आज आशाभरी दृष्टि से टकटकी लगाये देख रहा है ।

विश्व को उपरोक्त जैसी विभिन्न तबाहियों से बचना हो तो भारत के ऋषि-मुनियों और ब्रह्मवेत्ता सत्पुरुषों के ज्ञान की ओर ही मुड़ना होगा… स्नेहपूर्वक न मुड़े तो ठोकरें खाकर भी मुड़ना होगा…. इसके सिवा कोई चारा ही नहीं है । फिर हे प्यारे प्रबुद्धजनो ! हे विश्वमानव ! व्यर्थ में ठोकरें क्यों खाना ?

विदेशी लोग तो चलो, हमारी संस्कृति की महानता से अपरिचित हैं इसलिए वे ठोकर खाकर सँभल रहे हैं पर हमारा जन्म तो भारतभूमि में हुआ है । ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों के सुसंस्कारों की सरिताएँ आज भी हमारे देश में बह रही हैं । व्यापक ब्रह्मस्वरूप में जगह ऐसे संयममूर्ति महापुरुष, जिनके दर्शनमात्र से लोगों की भोग-वासना छूटने लगती है और वे परमानंद पाने के रास्ते चल पड़ते हैं, जिनके आवाहनमात्र से 14 फरवरी के काम-विकार पोषक, विनाशकारक ‘वेलेंटाइन डे’ को मनाना छोड़कर करोड़ों लोग उऩ्नतिकारक निर्विकार, पवित्र प्रेम दिस अर्थात् ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ मनाने लगते हैं, जिन सदाचार के मूर्तिमंत स्वरूप महापुरुष ने शाकाहार पर जोर देकर असंख्य लोगों के शराब, कबाब और व्यसन छुड़ाये और इसीलिए जिनके लिए ‘श्री आशारामायण’ कार ने लिखा हैः ‘कितने मरणासन्न जिलाये, व्यसन मांस और मद्य छुड़ाये ।।’ उन पूज्य बापू जी के सत्संग-मार्गदर्शन की आज समाज को अत्यंत आवश्यकता है… ऐसी समस्त विपदाओं से केवल सुरक्षा के लिए ही नहीं अपितु व्यक्ति, परिवार, देश और विश्व के सर्वांगीण विकास के लिए भी !

एक-एक ठोकर खाकर हमारे महापुरुषों का एक-एक सिद्धान्त स्वीकारने के बजाय अगर हम उन सिद्धान्तों के उद्गमस्वरूप महापुरुष का ही महत्त्व समझें, उनका सत्संग, आदर-सम्मान करें और उनके बताये मार्ग पर चलें तो इन रोग-बीमारियों से मुक्ति तो बहुत छोटी बात है, तनाव चिंता, दुःख, शोक, उद्वेग एवं बड़ी भारी मुसीबतों से भी मुक्ति और अमिट परम आनंद, परम शांति की प्राप्ति करके मनुष्य जन्म का पूर्ण सुफल भी प्राप्त किया जा सकता है । हम इस बात को कब समझेंगे ? कब जागेंगे ? (संकलकः धर्मेन्द्र गुप्ता)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2020, पृष्ठ संख्या 7-9 अंक 327

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गोदुग्ध सेवन करने वाले ध्यान दें


क्या है ‘ए-1’ व ‘ए-2’ दूध ?

गोदुग्ध में पाये गये प्रोटीन में लगभग एक तिहाई ‘बीटा कैसीन’ प्रोटीन है । बीटा कैसीन के 12 प्रकार ज्ञात हैं, जिनमें ‘ए-1’ और ‘ए-2’ प्रमुख हैं । जर्सी, होल्सटीन आदि विदेशी तथाकथित गायों के दूध में ‘ए-1’ प्रोटीन होता है, जिसकी एमिनो एसिड श्रृंखला में 67वें स्थान पर हिस्टिडीन होने के कारण इसकी पाचनक्रिया में बीटा-केसोमॉफिन-7 (BCM7) का निर्माण होता है, जो विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य  विकारों को निमंत्रण देता है ।

‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ साइंस एंड नेचर’ में छपे एक शोध के अनुसार ‘ए-1’ प्रोटीन से मानसिक रोग, टाइप-1 मधुमेह, हृदयरोग आदि हो सकते हैं । परंतु भारतीय नस्ल की गायों के दूध में ‘ए-2’ प्रकार का विषरहित प्रोटीन पाया जाता है, जो ऐसे किन्हीं रोगों को उत्पन्न नहीं करता । अतः भारतीय नस्ल की गायों का ही दूध पीना हितकारी है ।

कहीं आप धीमा जहर तो नहीं पी रहे हैं !

कंज्यूमर गाइडेंस सोसायटी ऑफ इंडिया के महाराष्ट्र में हुए हालिया अध्ययन में पाया गया कि बेचे जा रहे 78.12 % दूध FSSAI के आवश्यक गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करते हैं ।

देश में अन्यत्र भी दूध में मिलावटें होती हैं । शोधकर्ताओं के अनुसार दूध में अधिक मात्रा में हाइड्रोजन परॉक्साइड व अमोनियम सल्फेट की मिलावट हृदयरोग, पेट व आँतों में जलन, उलटी, दस्त जैसी समस्याएँ पैदा कर सकती है । हमारे स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हुए डिटर्जेंट, यूरिया, स्टार्च, शर्करा, न्यूट्रलाइजर आदि अनेक पदार्थ मिला के कृत्रिम दूध तैयार कर बेचा जाता है डेयरियों आदि के द्वारा, जिसे पीने से पेटदर्द, आँखों व त्वचा की जलन, कैंसर, शुक्राणुओं की कमी आदि रोग होते हैं तथा यकृत व गुर्दों को हानि होती है । अतः सावधान ।

अपनी स्वास्थ्य रक्षा हेतु देशी गाय का शुद्ध दूध ही पियें एवं विदेशी तथा संकरित पशुओं के दूध एवं कृत्रिम दूध के सेवन से बचें और बचायें ।

(संत श्री आशाराम जी गौशालाओं की देशी नस्ल की गायों के ‘ए-2’ प्रोटीनयुक्त, शुद्ध, सात्त्विक व पौष्टिक दूध का लाभ अनेक स्थानीय एवं क्षेत्रीय लोग उठा रहे हैं । अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें- 079-61210888)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2020, पृष्ठ संख्या 29 अंक 326

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भोजन में उपयोगी बर्तनों का स्वास्थ्य पर प्रभाव


भोजन की शुद्धि,  पोष्टिकता व हितकारिता हेतु जितना ध्यान हम भोज्य पदार्थों आदि पर देते हैं, उतना ही ध्यान हमें भोजन बनाने, परोसने, रखने व करने वाले बर्तनों पर भी देना चाहिए । बर्तनों के गुण-दोष भोजन में आ जाते हैं । अतः कौन से बर्तन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं और कौन से लाभकारी हैं, आइये जानें-

1 नॉन स्टिक बर्तनः शहरों में रहने वाले अधिकांश लोग भोजन बनाने के लिए नॉन स्टिक बर्तनों का उपयोग करने लगे हैं । ये स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक होते हैं । इन बर्तनों पर कलई करने हेतु टेफ्लॉन का प्रयोग होता है जो अधिक तापमान पर एक प्रकार की गैस छोड़ता है, जिससे टेफ्लॉन-फ्लू (बुखार, सिरदर्द जैसे लक्षण) होने की आशंका बढ़ती है तथा फेफड़ों पर बहुत विपरीत परिणाम होता है । International Journal of Hygiene and Environmental Health में छपे एक शोध के अनुसार नॉन स्टिक बर्तनों में उपयोग किये जाने वाले टेफ्लॉन को बनाने में परफ्लोरोओक्टेनोइक एसिड रसायन का उपयोग होता है । अमेरिका में इसका उपयोग बंद करने पर कम वज़न के शिशुओं का जन्मना और उनमें तत्संबंधी मस्तिष्क-क्षति की समस्या में भारी कमी हुई है ।

2 एल्यूमिनियम के बर्तनः नमकवाले खाद्य पदार्थों के अधिक समय तक सम्पर्क में आने से यह धातु गलने लगती है तथा भोजन में मिलकर शरीर में आ के जमती जाती है । एल्यूमिनियम की अधिक मात्रा शरीर में जाने से कब्ज, चर्मरोग्, मस्तिष्क के रोग, याद्दाश्त की कमी, अल्जाइमर्स डिसीज, पार्किन्सन्स डिसीज जैसे रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है ।

3 स्टेनलेस स्टील के बर्तनः इनमें भोजन बना व खा सकते हैं लेकिन इनसे काँसा, पीतल आदि की तरह कोई अन्य लाभ नहीं मिलते ।

4 ताँबे के बर्तनः ये आकर्षक व टिकाऊ होते हैं । रात को ताँबे के बर्तन में पानी रख के सुबह पीना स्वास्थ्य हेतु अत्यंत लाभदायी है । मधुमेह के रोगियों को ताँबे के बर्तनों में रखे पानी का उपयोग करना लाभदायी है । इनमें खट्टे या नमक वाले पदार्थ न पकायें, न रखें ।

5 काँसे के बर्तनः इनमें भोजन करना बुद्धिवर्धक, रुचिकर, रोगप्रतिकारक शक्तिवर्धक, रक्तशुद्धिकर व रक्तपित्तशामक होता है । इन बर्तनों में खट्टी चीजें पकानी व रखनी नहीं चाहिए क्योंकि वे इनसे रासायनिक क्रिया करके विषैली हो जाती हैं । टूटा हुआ अथवा दरारवाला कांस्यपात्र घर में होना अशुभ माना जाता है । चतुर्मास में काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए ।

6 पीतल के बर्तनः पीतल ऊष्मा का सुचालक होने से इसके बर्तन भोजन पकाते हेतु उपयुक्त हैं । इसके लिए कलई किया हुआ पीतल का पात्र अच्छा होता है । बिना कलई किये हुए पीतल के बर्तनों में खट्टे पदार्थ बनाना व रखना हानिकारक है । पीतल के पात्र में भोजन करना कृमि व कफनाशक है ।

7 लोहे के बर्तनः इन पात्रों में भोजन बनाना बलवर्धक, लौह तत्त्व-प्रदायक तथा सूजन, रक्ताल्पता व पीलिया दूर करने वाला होता है । खट्टे पदार्थों को छोड़ के अन्य पदार्थ लोहे के पात्रों में रखना व बनाना उत्त्म है । इनमें दूध उबालना स्वास्थ्यप्रद है । लौकिक दृष्टि से तो उपरोक्त बात है और ब्रह्मवैवर्त पुराण (श्रीकृष्णजन्म खंड, अध्याय 84, श्लोक 4-5) के अनुसार लोहे के पात्र में दूध, दही, घी आदि जो कुछ रखा जाय वह अभक्ष्य हो जाता है ।

लोहे के पात्र में भोजन बना सकते हैं लेकिन इनमें भोजन करने से बुद्धि का नाश होता है ।

8 मिट्टी के बर्तनः ये भोजन पकाने के लिए उपरोक्त सभी बर्तनों की अपेक्षा उत्तम माने जाते हैं । इनमें भोजन पकाने से वह अधिक स्वादिष्ट व सुगंधित होता है । मिट्टी के पात्र में दही जमाने से वह कम खट्टा होता है । इनमें भोजन बना तो सकते हैं लेकिन भावप्रकाश ग्रंथ के अनुसार इनमें भोजन करने से धन का नाश होता है ।

मिट्टी से बनने के कारण इन बर्तनों की सरंचना वैसी ही होती है जैसी हमारे शरीर के लिए आवश्यक है । मिट्टी में मैंगनीज, मैग्नेशियम, लौह, फॉस्फोरस, सल्फर व अन्य अनेक खनिज पदार्थ उचित मात्रा में होते हैं । इनमें भोजन बनाने में समय थोड़ा ज्यादा लग सकता है पर उत्तम स्वास्थ्य के लिए भोजन धीरे-धीरे ही पकाया जाना हितकारी है ।

9 पत्तों से बने भोजन-पात्र (पत्तल आदि) इनमें भोजन करना जठराग्निवर्धक, रुचिकर तथा विष व पापनाशक होता है ।

10 प्लास्टिक के बर्तनः इन बर्तनों से किसी भी खाद्य व पेय पदार्थों का संयोग स्वास्थ्य हेतु हितकारी नहीं है । कठोर प्लास्टिक में बी.पी.ए. (Bisphenol A ) जैसा विषैला पदार्थ होता है, जिसकी कम मात्रा भी कैंसर, मधुमेह, रोगप्रतिकारक शक्ति के ह्रास और समय से पूर्व यौवनावस्था प्रारम्भ होने का कारण बन सकती है । अतः इनके उपयोग से बचें ।

11 सोने-चाँदी के पात्रः इनमें भोजन करना त्रिदोषशामक, आँखों के लिए हितकर तथा स्वास्थ्यप्रद होता है ।

इन बातों का भी रखें ख्याल

1 पानी पीने के लिए ताँबे व काँच के पात्रों का उपयोग करना चाहिए । इनके अभाव में मिट्टी के पात्र उपयोगी है, वे पवित्र एवं शीतल होते हैं । घी काँच के पात्र में रखना चाहिए ।

2 टूटे हुए, दरारवाले तथा जिसमें खड्डे पड़े हों अथवा छिद्र हों ऐसे पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए ।

3 टूटे-फूटे बर्तनों या अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2019, पृष्ठ संख्या 30,31 अंक 322

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