अवतरण दिवस पर क्या भेंट दें ?

अवतरण दिवस पर क्या भेंट दें ?


(पूज्य बापू जी का 82वाँ अवतरण दिवसः 6 अप्रैल 2018)

भगवान की जयंतियाँ जैसे राम नवमी, जन्माष्टमी मनाते हैं तो हमको ही फायदा होता है, ऐसे ही संतों-महापुरुषों की जयंती, अवतरण दिवस मनाते हैं तो इससे समाज को ही फायदा होता है। ऐसे पर्वों, उत्सवों के निमित्त भगवान के निकट जाने की, दुःखों से छूटने की जो व्यवस्था है वह शास्त्रीय है।

किनका अवतरण दिवस मनायें ?

अपने शरीर का तो जन्मदिन मनाना ही नहीं चाहिए, तुम्हारे माँ-बाप, कुटुम्बी, पड़ोसी भले उसे मनायें। वे मनायें और अगर तुम असावधान रहे तो देहाध्यास पक्का हो जायेगा, यह जोखिम है। उन महापुरुषों का अवतरण दिवस मनाओ जिनके आने से दूसरों का कल्याण हुआ है – श्री कृष्ण, श्री राम, आद्य शंकराचार्य जी, स्वामी रामानंद जी, भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज आदि का मनाओ। अपने शरीर का जन्मदिन मनाना ही चाहो तो जितनी उम्र है उतने बड़दादा (आश्रम के बड़ बादशाह) के फेरे लगा लो और प्रार्थना करो कि ‘इतने वर्ष तो खत्म हो गये, जितने रहे उनकी यात्रा अच्छी हो।’ शरीर का जन्म हुआ, हमारा नहीं हुआ – ऐसा समझना चाहिए।

अपना अहं अर्पित करने की व्यवस्था

माता-पिता को बच्चे के कल्याण में जितना आनंद आता है उससे भी कई गुना ज्यादा आनंद संतों को हम लोगों के उत्थान को देखकर आता है। वे घरबार को, शरीर की सुविधाओं, ऐश आराम को छोड़ के जंगलों, गुफाओं में पहुँचे और हरि से दिल लगाया। जिस परमात्म-सुख के आगे इन्द्र का राज्य भी तुच्छ भासता है ऐसा एकांत समाधि का सुख छोड़कर वे समाज में केवल हमारा उत्थान करने आये हैं।

संतों के पास जाने से लोग संतत्व को उपलब्ध होते हैं। संतों की सेवा करने से लोगों का हृदय शुद्ध होता है। बाकी तो संतों की इन चीजों से कोई बढ़ोतरी नहीं होती है। उनके चरणों में फूल रखने से उनका कुछ बढ़ेगा नहीं और न रखने से कुछ घटेगा नहीं लेकिन फूल रखने के साथ-साथ अपना अहं भी थोड़ा बहुत घटता है, नम्रता का सद्भाव, सदगुण बढ़ता है। आत्मा और परमात्मा के बीच जो हमारा अहं का पर्दा है, इन चीजों को रखने से वह ढीला हो जाता है। ये चीजें हैं तो नश्वर लेकिन शाश्वत के बीच आने वाला जो पर्दा है उसको हटाने में सहायक हैं। गुरुदेव को हम और तो कुछ दे नहीं सकते पर एक माला गुरुमंत्र, आरोग्य मंत्र की जप के गुरुदेव के दीर्घायुष्य, उत्तम आरोग्य के लिए, उनके समाजहितकारी दैवी सेवाकार्य और बढ़ें इसके लिए संकल्प करके अर्पण कर सकते हैं।

तो गुरुदक्षिणा के बदले सेवा करिये

हमें तो आपका रुपया-पैसा नहीं चाहिए पर मुफ्त में सुनोगे तो ज्ञान पचेगा नहीं इसलिए गुरु जी को कुछ तो दक्षिणा रखना चाहिए। तो गुरुदक्षिणा के बदले सेवा करिये, जैसे कि आप कीर्तन करिये, सत्संग सुनिये, दूसरों को प्रोत्साहित करिये, आप तरिये और दूसरों को तारने में मददरूप बनिये…. ऋषि प्रसाद और सत्साहित्य उन तक पहुँचाइये, बचपन में बच्चों में अच्छे संस्कार पड़ें इसलिए उन्हें बाल संस्कार केन्द्र में भेजिये, बाल संस्कार केन्द्र आदि कोई सेवा चालू करिये।

देना ही चाहते हो तो ऐसा दो

कुछ वर्ष पहले की बात है। अवतरण दिवस पर कोई साधक मुझे कुछ भेंट करना चाहते थे। मैंने इन्कार किया लेकिन साधकों का मन दिये बिना मानता नहीं तो मैंने कहा कि “दक्षिणा का लिफ़ाफ़ा मुझे दोगे उससे मैं इतना राज़ी नहीं होऊँगा जितना साधना के संकल्प का लिफ़ाफ़ा देने से होऊँगा। यदि मेरे पास संकल्प लिख के रख दिया जाय कि ‘आज से लेकर आने वाले जन्म दिन तक मैं प्रतिदिन इतने घंटे या इतने दिन मौन रखूँगा अथवा इतने दिन एकांत में रहूँगा…. इतना योगवासिष्ठ का पारायण करूँगा…..’ और भी ऐसा कोई नियम ले लो। वह संकल्प का कागज अर्पण कर दोगे तो मेरे लिए वह तुम्हारी बड़ी भेंटे हो जायेगी।”

अवतरण दिवस पर कुछ देना है तो ऐसी चीज दो कि तुम्हारे अहं को ठोकर लगे और फिर भी तुम्हें दुःख न हो, तुम्हारे अहं को पुचकार मिले फिर भी तुमको आसक्ति न हो तो यह बड़ी उपलब्धि है। एक संकल्प का कागज बना लें कि ‘मैं इस साल कम से कम 10 बार अपमान के प्रसंग में समता रखूँगा।’ तुमने सत्संग तो सुन रखे हैं तो जिस साधन से तुम्हारी आध्यात्मिकता में ऊँचाई आ जाती हो ऐसे साधन का कोई संकल्प कर लो, जैसे कि ‘मैं हिले-डुले बिना इतनी देर एक आसन पर बैठूँगा। हर रोज आधा घंटा नियम से पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख हो आसन में बैठकर ध्यान करूँगा।’ आसन में बैठ गये, ज्ञान मुद्रा कर ली (अँगूठे के पास वाली पहली उँगली और अँगूठा – दोनों के अग्रभागों को आपस में मिला लिया), गहरा श्वास लिया और ‘ॐऽऽऽऽऽ…..’ का गुंजन किया। ऐसा 40 दिन तक रोज नियम से कम से कम आधा घंटा करो, ज्यादा करो तो और अच्छा है, आधा घंटा एक साथ करो या तो 2-3 बार में करो।

जिन कार्यों से हमारा जीवन, हमारी बुद्धि पवित्र होती है, जिन नियमों से हम परमात्मा के करीब जाते हैं उस प्रकार का कोई नियम हम अपने जीवन में रखें। मानो पिछले साल आप सप्ताह में 6 घंटा मौन रखते थे तो इस साल 8 घंटा रखिये, 10 घंटा रखिये । योगवासिष्ठ को एक या दो बार पढ़ चुके हैं लेकिन फिर से जब पढ़ेंगे तो उससे और गहरा रंग चढ़ेगा। इस प्रकार की किसी साधना को जीवन में लाइये।

जब तुम कोई नियम करोगे तो मन इधर-उधर छलाँग मारने को करेगा पर एक बार जो मन के ऊपर आपकी लगाम लग जायेगी तो दोबारा भी लग जायेगी, तिबारा भी लग जायेगी फिर मन आपके अधीन हो जायेगा, मन के आप स्वामी हो जायेंगे।

साधारण व्यक्ति जो भी कर्म करता है सुख पाने की इच्छा से करता है, दुःख मिटाने और अच्छा कहलाने के लिए करता है, कुछ पाने, कुछ हटाने की इच्छा से करता है। इच्छा से कर्म बंधनरूप हो जाते हैं। कर्म परहित के लिए करें तो कर्म का प्रवाह प्रकृति में चला जाता है और कर्ता अपने ‘स्व’ स्वभाव – आत्मस्वभाव में विश्रांति पाता है।

अवतरण दिवस के पीछे उद्देश्य

जो त्यौहार किसी महापुरुष के अवतरण दिवस या जयंती के रूप में मनाये जाते हैं, उनके द्वारा समाज को सच्चरित्रता, सेवा, नैतिकता, सद्भावना आदि की शिक्षा मिलती है।

सनातन धर्म में त्यौहारों को केवल छुट्टी का दिन अथवा महापुरुषों की जयंती ही न समझ कर उनसे समाज की वास्तविक उन्नति तथा चहुँमुखी विकास का उद्देश्य सिद्ध किया गया है।

-पूज्य बापू जी।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2018, पृष्ठ संख्या 4,5 अंक 303

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