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Sharir Swasthya

Rishi Prasad 270 Jun 2015

स्वास्थ्य के लिए परम हितकारी – पीपल


पीपल के सभी अंग उपयोगी व अनेक औषधीय गुणों से भरपूर हैं। जहाँ एक ओर यह वृक्ष आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व रखता है, वहीं दूसरी ओर आयुर्वेदिक और आर्थिक तौर पर भी महत्वपूर्ण है। पीपल में भगवद्भाव रखकर जल चढ़ाने तथा परिक्रमा करने से आध्यात्मिक लाभ के साथ स्वास्थ्य लाभ सहज में ही मिल जाता है। पीपल शीत, कफ-पित्तशामक, रक्तशुद्धिकर व घाव ठीक करने वाला है। यह मेध्य, हृदयपोषक व बल-वीर्यवर्धक है।

पीपल के औषधीय उपयोग
वातरक्त (गाउट) – प्रोटीन्स के अत्यधिक सेवन से शरीर में यूरिक ऐसिड की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे वातरक्त हो जाता है। इसमें शरीर के सभी जोड़ों में दर्द व सूजन हो जाती है। 20 ग्राम पीपल की जड़ की छाल 320 मि.ली. पानी में डालकर उबालें। चौथाई पानी शेष रह जाने पर उस काढ़े को गुनगुना होने दें। 1 चम्मच शहद के साथ पीने से गम्भीर वातरक्त भी ठीक हो जाता है।

खूनी बवासीर– पीपल के फूलों को सुखाकर चूर्ण बना लें। एक चम्मच चूर्ण का 10 मि.ली. आँवला रस व 10 मि.ली. शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करें।
रक्तपित्त- पीपल के फल का चूर्ण व मिश्री समभाग मिला के रख लें। 1-1 चम्मच चूर्ण दिन में 3 बार पानी के साथ लें।

घाव– पीपल के हाल ही में गिरे हुए सूखे पत्तों का चूर्ण लगाने से घाव जल्दी भर जाता है।

सिरदर्द व जुकाम– पीपल के चार कोमल पत्ते चबा-चबाकर उनका रस चूसें तथा बाद में पत्तों को थूक दें। दिन में 2-3 बार ऐसा करने से कफ-पित्तजन्य सिरदर्द ठीक हो जाता है। यह जुकाम में भी उपयोगी है।

धातु-दौर्बल्य व मासिक धर्म के विकार– छाया में सुखाये गये पीपल के फलों का चौथाई चम्मच चूर्ण 1 गिलास गुनगुने दूध में मिलाकर रोज पीने से धातु-दौर्बल्य दूर होता है। स्त्रियों का पुराना प्रदर-रोग और मासिक की अनियमितता दूर हो जाती है। इससे कब्ज में भी लाभ होता है।

कब्जनाशक प्रयोग– पीपल के सूखे फल, छोटी हरड़ व सौंफ समभाग मिला के पीस के रखें। 3 से 5 ग्राम चूर्ण रात को गुनगुने पानी से लेने से कब्ज दूर होता है।

पेट के रोग- 5-5 ग्राम पीपल के पके हुए सूखे फल, छोटी हरड़, सौंफ और 15 ग्राम मिश्री – सबको पीसकर चूर्ण बना लें। रात को सोते समय 3 ग्राम चूर्ण गुनगुने पानी से लें। इसमें जठराग्नि प्रदीप्त होती है, मल साफ आता है व पेट के कई रोग शांत होते हैं।
फोड़ा, बालतोड़- पीपल के दूध का फाहा फोड़े या बालतोड़ पर लगाने से वह कुछ ही दिनों में सूख जाता है।

हृदयरोग- 3 ग्राम पीपल के फल का चूर्ण दूध के साथ सेवन करने से कुछ ही दिनों में हृदयरोग में लाभ होता है।

हृदय व दमा रोगियों के लिए विशेष प्रयोग
पीपल के पत्तों में हृदय को बल और आरोग्य देने की अदभुत क्षमता है। पीपल के 15 हरे कोमल पत्ते, जो पूरी तरह विकसित हों, उनका ऊपरी व नीचे का भाग कुछ काट दें। पत्तों को धोकर एक गिलास पानी में धीमी आँच पर पकने दें। पानी आधा शेष रहने पर छान के पियें। इस पेय को हृदयाघात के बाद 15 दिन तक सुबह शाम लगातार लेने से हृदय पुनः स्वस्थ हो जाता है।

पीपल के सूखे पत्तों को जलाकर उनकी 5 ग्राम राख को सुबह शहद के साथ 40 दिन तक लेने से दमे में लाभ होता है। ऊपर बतायी गयी विधि से बनाया गया पेय दमा के रोगियों के लिए भी खूब लाभदायी है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2015, पृष्ठ संख्या 31,32 अंक 270
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स्वास्थ्य व सत्त्व वर्धक बिल्वपत्र


 

बिल्वपत्र (बेल के पत्ते) उत्तम वायुशामक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक हैं। ये कृमि व शरीर की दुर्गंध का नाश करते हैं। (बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, संग्राही (मल को बाँधकर लाने वाले) व सूजन उतारने वाले हैं। ये मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं, अतः मधुमेह में लाभदायी हैं। बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं। इनके सेवन से मन में सात्त्विकता आती है।

कोई रोग न भी हो तो भी नित्य बिल्वपत्र या इनके रस का सेवन करें तो बहुत लाभ होगा। बेल के पत्ते काली मिर्च के साथ घोंट के लेना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हितकर है। इनके रस में शहद मिलाकर लेना भी लाभकारी है।

औषधीय प्रयोग

मधुमेह (डायबिटीज)- बिल्वपत्र के 10-15 मि.ली. रस में 1 चुटकी गिलोय का सत्त्व एवं 1 चम्मच आँवले का चूर्ण मिला के लें।

स्वप्नदोषः बेलपत्र, धनिया व सौंफ समभाग लेकर कूट लें। यह 10 ग्राम मिश्रण शाम को 125 मि.ली. पानी में भिगो दें। सुबह खाली पेट लें। इसी प्रकार सुबह भिगोये चूर्ण को शाम को लें। स्वप्नदोष में शीघ्र लाभ होता है। प्रमेह एवं श्वेतप्रदर रोग में भी यह लाभकारी है।

धातुक्षीणता- बेलपत्र के 3 ग्राम चूर्ण में थोड़ा शहद मिला के सुबह शाम लेने से धातु पुष्ट होती है।

मस्तिष्क की गर्मी– बेल की पत्तियों को पानी के साथ मोटा पीस लें। इसका माथे पर लेप करने से मस्तिष्क की गर्मी शांत होगी और नींद अच्छी आयेगी।

छोटी पर निरोगता की लिए जरूरी बातें

शक्कर की बनी मिठाईयाँ, चाय, कॉफी अति खट्टे फल, अति तीखे, अति नमकयुक्त तथा उष्ण-तीक्ष्ण व नशीले पदार्थों के सेवन से वीर्य में दोष आ जाते हैं।

प्रातः उठते ही 6 अंजलि जल पियो। सूर्यास्त तक 2 से ढाई लीटर जल अवश्य पी जाओ। गर्मियों में जब शरीर से श्रम करो, तब इससे अधिक जल की आवश्यकता होती है।

जिन सब्जियों का छिलका बहुत कड़ा न हो, जैसे गिल्की, परवल, टिंडा आदि, उन्हें छिलके सहित खाना अत्यंत लाभकारी है। जिन फलों के छिलके खा सकते हैं जैसे सेवफल, चीकू आदि, उन्हें खूब अच्छी तरह धो के छिलकों के साथ खाना चाहिए। दाल भी छिलके सहित खानी चाहिए। चोकर अथवा छिलके में पोषकतत्त्व होते हैं और इनसे पेट साफ रहता है। सब्जी, फल आदि धोने के बाद कीटनाशक आदि रसायनों का अंश छिलकों पर न बचा हो इसका ध्यान रखें, अन्यथा नुक्सान होगा। सेवफल को चाकू से हलका-सा रगड़कर उस पर लगी मोम उतार लेनी चाहिए।

घी-तेल में तले हुए पकवानों का कभी-कभी ही सेवन करना चाहिए। नित्य या प्रायः तली हुई पूड़ी पकवान, पकौड़े, नमकीन खाने से कुछ दिनों में पेट में कब्ज रहने लगेगा, अनेक बीमारियाँ बढ़ेंगी।

खटाई में नींबू व आँवले का सेवन उत्तम है। कोकम व अनारदाने का उपयोग अल्पमात्रा में कर सकते हैं। अमचूर हानिकारक है।

भोजन इतना चबाना चाहिए कि गले के नीचे पानी की तरह पतला हो के उतरे। ऐसा करने से दाँतों का काम आँतों को नहीं करना पड़ता। इसके लिए बार-बार सावधान रहकर खूब चबा के खाने की आदत बनानी पड़ती है।

अच्छी तरह भूख लगने पर ही भोजन करें, बिना भूख का भोजन विकार पैदा करता है।

भोजन के बाद स्नान नहीं करना चाहिए। अधिक यात्रा के बाद तुरंत स्नान करने से शरीर अस्वस्थ हो जाता है। थोड़ी देर आराम करके स्नान कर सकते हैं।

बदन दर्द के सचोट उपाय

25-30 मि.ली. सरसों के तेल में लहसुन की छिली हुई चार कलियाँ व आधा चम्मच अजवायन डाल के धीमी आँच पर पकायें। लहसुन और काली पड़ जाने पर तेल उतार लें, थोड़ा ठण्डा होने पर छान लें। इस गुनगुने तेल की मालिश करने से वायु प्रकोप से होने वाले बदन दर्द में राहत मिलती है।

100 ग्राम सरसों के तेल में 5 ग्राम कपूर डालें और शीशी को बंद करके धूप में रख दें। तेल में कपूर अच्छी तरह से घुलने पर इसका उपयोग कर सकते हैं। इसकी मालिश से वातविकार तथा नसों, पीठ, कमर, कूल्हे व मांसपेशियों के दर्द आदि में लाभ होता है। मातायें छाती पर यह तेल न लगायें, इससे दूध आना बंद हो जाता है।

सिर व बालों की समस्या से बचने हेतु

सर्वांगासन ठीक ढंग से करते रहने से बालों की जड़ें मजबूत होती हैं, झड़ना बंद हो जाता है और बाल जल्दी सफेद नहीं होते, काले, चमकीले और सुंदर बन जाते हैं। आँवले का रस कभी-कभी बालों की जड़ों में लगाने से उनका झड़ना बंद हो जाता है। (सर्वांगासन की विधि आदि पढ़ें आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘योगासन’ के पृष्ठ 15 पर।)

युवावस्था से ही दोनों समय भोजन करने के बाद वज्रासन में बैठकर दो-तीन मिनट तक लकड़ी की कंघी सिर में घुमाने से बाल जल्दी सफेद नहीं होते तथा वात और मस्तिष्क की पीड़ा संबंधी रोग नहीं होते। सिरदर्द दूर होकर मस्तिष्क बलवान बनता है। बालों का जल्दी गिरना, सिर की खुजली व गर्मी आदि रोग दूर होने में सहायता मिलती है। गोझरण अर्क में पानी मिलाकर बालों को मलने से वे मुलायम, पवित्र, रेशम जैसे हो जाते हैं। घरेलू उपाय सात्त्विक सचोट और सस्ते हैं बाजारू चीजों से।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2016, पृष्ठ संख्या 32,33 अंक 282

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ग्रीष्मकालीन समस्याओं से बचने के उपाय


नकसीरः यह होने पर सिर पर ठंडा पानी डालें। ताजी व कोमल दूब (दूर्वा) का रस अथवा हरे धनिये का रस बूँद-बूँद नाक में टपकाने से रक्त निकलना बन्द हो जाता है। दिन में दो-तीन बार 10 ग्राम आँवले के रस में मिश्री मिलाकर पिलायें अथवा गन्ने का ताजा रस पिलाने से नकसीर में पूरा आराम मिलता है।

आतपदाह(Sunburn)– धूप में त्वचा झुलस जाती है और काली पड़ जाती है। इसमें ककड़ी का रस अथवा ककड़ी के पतले टुकड़े चेहरे पर लगाकर कुछ समय बाद ठंडे पानी से धो लें। साबुन का प्रयोग बिलकुल न करें। बेसन व मलाई मिलाकर उसे चेहरे पर लगाकर चेहरा धोयें। नारियल-तेल लगाने से भी लाभ होता है। दही व बेसन मिलाकर लेप करने से आतपदाह से उत्पन्न कालापन दूर हो जाता है।

घमौरियाँ- मुलतानी मिट्टी के घोल से स्नान करने से लाभ होता है। चौथाई चम्मच करेले के रस में 1 चम्मच मीठा सोडा मिला के लेप करने से 2-3 दिन में ही घमौरियों में राहत मिलती है। घमौरियों से सुरक्षा के लिए विटामिन सी वाले फलों का सेवन करना चाहिए, जैसे आँवला, नींबू, संतरा आदि। ढीले सूती कपड़ों का उपयोग करें।

गर्मी व पित्तजन्य तकलीफें- रात को दूध में एक चम्मच त्रिफला घृत मिलाकर पियें। पित्तजन्य दाह, सिरदर्द, आँखों की जलन में आराम मिलेगा। दोपहर को चार बजे एक चम्मच गुलकंद धीरे-धीरे चूसकर खाने से भी लाभ प्राप्त होता है। सुबह खाली पेट नारियल-पानी में अथवा ककड़ी या खीरे के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से शरीर की सारी गर्मी मूत्र एवं मल के साथ निकल जाती है, रक्त शुद्ध होता है और दाह व गर्मी से सुरक्षा होती है। (त्रिफला घृत संत श्री आशाराम जी आश्रम द्वारा संचालित आयुर्वेदिक उपचार केन्द्रों पर उपलब्ध है। मँगवाने हेतु सम्पर्क करें- 092181122233)

मूत्रसम्बंधी विकार- पेशाब में जलन, पेशाब के समय दर्द पर रुक-रुक कर पेशाब आना, बुखार आदि समस्याओं में 2 ग्राम सौंफ को पानी में घोंटें व मिश्री मिला कर दिन में 2-3 बार पियें। इससे गर्मी भी कम होती है। तरबूज, खरबूजा, ककड़ी आदि का सेवन भी खूब लाभदायी है।

गर्मीजन्य अन्य समस्याएँ- इस ऋतु में मानसिक उग्रता, आलस्य की प्रबलता, पित्ताधिक्य से क्रोधादि लक्षण ज्यादा देखे जाते है। इन समस्याओं में सुबह शीतली प्राणायाम का अभ्यास करना बहुत लाभकारी है।

खीरे खायें, बीजों के फायदे साथ में पायें

खीरा एवं ककड़ी जहाँ गर्मियों में विशेष लाभकारी हैं, वहीं ककड़ी एवं विशेषतः खीरे के बीज पौष्टिक होने के साथ कई प्रकार की बीमारियों में बहुत उपयोगी है। खीरे के बीजों को सुखाकर छील कर रख लें।

खीरे के बीजों में छुपा बीमारियों का इलाज

10 सूखे बीज 1 चम्मच मक्खन के साथ 1 माह तक देने से कमजोर बालक पुष्ट होने लगते हैं। बड़ों को 30 बीज 1 चम्मच घी के साथ देने से उन्हें भी लाभ होता है।

जलन के साथ व अल्प मात्रा में मूत्र-प्रवृत्ति में ताजे बीज अथवा ककड़ी या खीरा खाने से अतिशीघ्र लाभ होता है।

जिन्हें बार-बार पथरी होती हो वे प्रतिदिन 4 माह तक 30 सूखे बीज भोजन से पूर्व खायें तो पथरी बनने की प्रवृत्ति बन्द हो जायेगी।

पेशाब के साथ खून आने पर 1-1 चम्मच बीजों का चूर्ण व गुलकंद तथा 1 चम्मच आँवला-रस या चूर्ण मिला के 1-2 बार लें, खूब लाभ होगा।

श्वेतप्रदर में 1 चम्मच बीज चूर्ण, 1 केला, पिसी मिश्री मिलाकर दिन में 1-2 बार लेने से बहुत लाभ होता है।

ककड़ी एवं खीरे के कुछ खास प्रयोग

गर्मी के कारण सिरदर्द, अस्वस्थता,  पेशाब में जलन हो रही हो तो आप 1 कप ककड़ी के रस में 1 चम्मच नींबू रस तथा 1 चम्मच मिश्री डालकर लेने से पेशाब खुल के आता है और उपरोक्त लक्षणों से राहत मिलती है।

चेहरे के कील-मुँहासे मिटाने के लिए ककड़ी या खीरे के पतले टुकड़े चेहरे पर लगायें। आधा घंटे बाद चेहरा धो दें।

तलवों व आँखों की जलन में ककड़ी, ताजा नारियल व मिश्री खाना उत्तम लाभ देता है।

सावधानीः खीरा या ककड़ी ताजी ही खानी चाहिए। सर्दी, जुकाम, दमा में इनका सेवन नहीं करना चाहिए। इन्हें रात को नहीं खाना चाहिए। खीरा या ककड़ी भोजन के साथ खाने की अपेक्षा स्वतंत्र रूप से खाना अधिक हितकर है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद मई 2016, पृष्ठ संख्या 30,31 अंक 281

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