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Sharir Swasthya

आरोग्यरक्षक व उत्तम पथ्यः करेला


स्वस्थ व निरोग शरीर के लिए खट्टे, खारे, तीखे, कसैले और मीठे रस के साथ कड़वे रस की भी आवश्यकता होती है। करेले में कड़वा रस तो होता ही है, साथ ही अनेक गुणों को अपने भीतर संजोए हुए है।
करेला पचने में हलका, रुचिकर, भूख बढ़ाने वाला, पाचक, पित्तशामक, मल-मूत्र साफ लाने वाला, कृमिनाशक तथा ज्वरनाशक है। यह रक्त को शुद्ध करता है, रोगप्रतिकारक शक्ति एवं हीमोग्लोबिन बढ़ाता है। यकृत की बीमारियों एवं मधुमेह (डायबिटीज़) में अत्यंत उपयोगी है। चर्मरोग, सूजन, व्रण तथा वेदना में भी लाभदायी है। करेला कफ प्रकृति वालों के लिए अधिक गुणकारी है। स्वास्थ्य चाहने वालों को सप्ताह में एक बार करेले अवश्य खाने चाहिए।
गुणकारी करेले की सब्जी
सब्जी बनाते समय कड़वाहट दूर करने के लिए करेले के ऊपरी हरे छिलके तथा रस नहीं निकालना चाहिए। इससे करेले के गुण बहुत कम हो जाते हैं। कड़वाहट निकाले बिना बनायी गयी करेले की सब्जी परम पथ्य है। (करेले की सब्जी बनाने की सही विधि हेतु पढ़े ऋषि प्रसाद, अगस्त 2014, पृष्ठ 31)
बुखार, आमवात, मोटापा, पथरी, आधासीसी, कंठ में सूजन, दमा, त्वचा-विकार, अजीर्ण, बच्चों के हरे-पीले दस्त, पेट के कीड़े, मूत्ररोग एवं कफजन्य विकारों में करेले की सब्जी लाभप्रद है।
करेले के औषधीय प्रयोग
मधुमेह (डायबिटीज)- आधा किलो करेले काटकर 1 तसले में ले के सुबह आधे घंटे तक पैरों से कुचलें। 15 दिन तक नियमित रूप से यह प्रयोग करने से रक्त-शर्करा (ब्लड शुगर) नियंत्रित हो जाती है। प्रयोग के दिनों में करेले की सब्जी खाना विशेष लाभप्रद है।
तिल्ली व यकृत वृद्धि-
करेले का रस 20 मि.ली., राई का चूर्ण 5 ग्राम, सेंधा नमक 3 ग्राम – इन सबको मिलाकर सुबह खाली पेट पीने से तिल्ली व यकृत (लिवर) वृद्धि में लाभ होता है।
आधा कप करेले के रस में आधा कप पानी व 2 चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पियें।
रक्ताल्पता- करेलों अथवा करेले के पत्तों का 2-2 चम्मच रस सुबह-शाम लेने से खून की कमी में लाभ होता है।
मासिक की समस्या- मासिक कम आने या नहीं आने की स्थिति में करेले का रस 40 मि.ली. दिन में 2 बार लें। अधिक मासिक में करेले का सेवन नहीं करना चाहिए।
गठिया- करेले या करेले के पत्तों का रस गर्म करके दर्द और सूजन वाले स्थान पर लगाने व करेले की सब्जी खाने से आराम मिलता है।
तलवों में जलन- पैर के तलवों में होने वाली जलन में करेले का रस लगाने या करेला घिसने से लाभ होता है।
विशेष- करेले का रस खाली पेट पीना अधिक लाभप्रद है। बड़े करेले की अपेक्षा छोटा करेला अधिक गुणकारी होता है।
सावधानियाँ- जिन्हें आँव की तकलीफ हो, पाचनशक्ति कमजोर हो, मल के साथ रक्त आता हो, बार-बार मुँह में छाले पड़ते हों तथा जो दुर्बल प्रकृति के हों उन्हें करेले का सेवन नहीं करना चाहिए। करेले कार्तिक मास में वर्जित हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2015, पृष्ठ संख्या 31, अंक 272
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वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य-सुरक्षा


(वर्षा ऋतुः 21 जून 2015 से 22 अगस्त 2015 तक)

वर्षा ऋतु का नमीयुक्त वातावरण जठराग्नि को मंद कर देता है। शरीर में पित्त का संचय व वायु का प्रकोप हो जाता है, जिससे वात-पित्त जनित व अजीर्णजन्य रोगों का प्रादुर्भाव होता है।

अपनी पाचनशक्ति के अनुकूल मात्रा में हलका सुपाच्य आहार लेना और शुद्ध पानी का उपयोग करना – इन 2 बातों पर ध्यान देने मात्र से वर्षा ऋतु में अनेक बीमारियों से बचाव हो जाता है। शाम का भोजन 5 से 7 बजे के बीच कर लें। इससे भोजन का पाचन शीघ्र होता है।

इस ऋतु में शरीर की रक्षा करने का एक ही मूलमंत्र है कि पेट और शरीर को साफ रखा जाय अर्थात् पेट में अपच व कब्ज न हो और त्वचा साफ और स्वस्थ रखी जाय। आयुर्वेद के अनुसार कुपित मल अनेक प्रकार के रोगों को जन्म देता है। इससे गैस की तकलीफ, पेट फूलना, जोड़ों का दर्द, दम गठिया आदि की शिकायत हो जाती है। अशुद्ध और दूषित जल का सेवन करने से चर्मरोग, पीलिया, हैजा, अतिसार जैसे रोग हो जाते हैं।

बारिश में होने वाली बीमारियाँ व उनका उपचार

आँत की सूजन (gastroenteritis) गंदे पानी तथा दूषित खाद्य पदार्थों के सेवन से यह रोग फैलता है। इसमें उलटी, पतले दस्त, बुखार, रसक्षय (शरीर में पानी की कमी) इत्यादि लक्षण सम्पन्न होते हैं।

प्राथमिक उपचारः सफाई का ध्यान रखें। भोजन में चावल का पानी (माँड) तथा दही में समान भाग पानी मिला के मथकर बनाया हुआ मट्ठा लें। नमक व शक्कर मिलाया हुआ पानी बार-बार पियें, जिससे रसक्षय (डिहाइड्रेशन) न होने पाये। इसमें नींबू भी मिला सकते हैं। मूँग की दाल की खिचड़ी में देशी घी अच्छी मात्रा में डालकर खायें। अच्छी तरह उबाला हुआ पानी पियें। भोजन ताजा, सुपाच्य लें।

दस्त (bacillary dysentery) उपरोक्त अनुसार।

दमाः वर्षा ऋतु में बादलों के छा जाने पर दमे के मरीजों को श्वास लेने में अत्यधिक पीड़ा होती है। उस समय 20 मि.ली. तिल का तेल गर्म कर पियें। तिल या सरसों के गर्म तेल में थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर छाती व पीठ पर मालिश करें। फिर गर्म रेती की पोटली से सेंक करें।

सर्दी, खाँसी, ज्वरः वर्षाजन्य सर्दी, खाँसी, जुकाम, ज्वर आदि में अदरक व तुलसी के रस में शहद मिलाकर लेने से व उपवास रखने से आराम मिलता है।

जठराग्नि को प्रदीप्त करने के उपाय

भोजन में अदरक, हींग अजवाइन, काली मिर्च, मेथी, राई, पुदीना आदि का विशेष उपयोग करें। तिल का तेल वात-रोगों का शमन करता है।

भोजन में अदरक व नींबू का प्रयोग करें। नींबू वर्षाजन्य रोगों में बहुत लाभदायी है।

100 ग्राम हरड़ चूर्ण में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिला के रख लें। दो-ढाई ग्राम रोज सुबह ताजे जल के साथ लेना हितकर है।

हरड़ तथा सोंठ को समभाग मिलाकर 3-4 ग्राम मिश्रण 5 ग्राम गुड़ के साथ सेवन करने से जठराग्नि निरंतर प्रदीप्त रहती है।

वर्षाजन्य व्याधियों से रक्षा व रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाने हेतु गोमूत्र सर्वोपरि है। सूर्योदय से पूर्व 20 से 30 मि.ली. ताजा गोमूत्र 8 बार महीन सूती वस्त्र से छानकर पीने से अथवा 20 से 25 मि.ली. गोझरण अर्क पानी में मिलाकर पीने से शरीर के सभी अंगों की शुद्धि होकर ताजगी, स्फूर्ति व कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

सावधानियाँ- वर्षा ऋतु में पानी उबालकर पीना चाहिए या पानी में फिटकरी का टुकड़ा घुमायें, जिससे गंदगी नीचे बैठ जायेगी।

शाम को संध्या के समय घर में अँधेरा करने से मच्छर बाहर भाग जाते हैं। थोड़ा बहुत धूप-धुआँ कर सकते हैं। और सुबह घर में अँधेरा छा होने से मच्छर अंदर घुसते हैं। उस समय उजाला करने से मच्छरों का प्रवेश रुकता है। गेंदे के फूलों के पौधे का गमला दिन में बाहर व संध्या को कमरे में रखें। गेंदे के फूलों की गंध से भी मच्छर भाग जाते हैं और मच्छरदानी आदि से भी मच्छरों से बचें, जैसे साधक अहंकार से बचता है।

इन दिनों में ज्यादा परिश्रम या व्यायाम नहीं करना चाहिए। दिन में सोना, बारिश में ज्यादा देर तक भीगना, रात को छत पर अथवा खुले आँगन में सोना, नदी में स्नान करना और गीले वस्त्र जल्दी न बदलना हानिकारक होता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2015, पृष्ठ संख्या 31,32 अंक 271

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Rishi Prasad 269 May 2015

स्वास्थ्य हितकारी कुम्हड़ा


मधुर, शीतल, त्रिदोषहर (विशेषतः पित्तशामक), बल-शुक्रवर्धक, शरीर को हृष्ट पुष्ट बनाने वाला तथा अल्प मूल्य में सभी जगह सुलभ कुम्हड़ा गर्मियों में विशेष सेवनीय है।

कुम्हड़ा मस्तिष्क को बल व शांति प्रदान करता है। यह धारणाशक्ति को बढ़ाकर बुद्धि को स्थिर करता है। यह अनेक मनोविकार जैसे स्मृति-ह्रास, क्रोध, विभ्रम, उद्वेग, मानसिक अवसाद, असंतुलन, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, उन्माद, मिर्गी तथा मस्तिष्क की दुर्बलता में अत्यंत लाभदायी है। हृदयरोग व नेत्ररोगों में भी हितकारी है। कुम्हड़े के बीजों में बादाम के समान शक्तिदायी मौलिक तत्त्व पाये जाते हैं। इसके बीज कृमिनाशक हैं। ये सभी गुण पके हुए कुम्हड़े में ही पाये जाते हैं।

पित्तप्रधान अनेक रोगों, जैसे आंतरिक दाह, जलन, अत्यधिक प्यास, अम्लपित्त (एसिडिटी), बवासीर, पुराना बुखार, रक्तपित्त (मुँह, नाक, योनि आदि के द्वारा रक्तस्राव होना) में कुम्हड़ा खूब उपयोगी है। यह कब्ज को भी दूर करता है। पुराने बुखार से जिनके शरीर में हरारत (हलका ज्वर, ताप, गर्मी) रहती है या जिन महिलाओं को लौह तत्त्व की कमी से रक्ताल्पता हो जाती है, उनके लिए यह खूब फायदेमंद है।

उपरोक्त व्याधियों में कुम्हड़े के रस में मिश्री मिला के सुबह शाम पीने से या घी में सब्जी बनाकर खाने से लाभ होता है।

रस की मात्रा- 20 से 50 मि.ली.।

बलवर्धक हलवा
कुम्हड़े को उबाल के थोड़ी सी मिश्री तथा इलायची मिलाकर घी में हलवा बना लें। यह हलवा उत्तम पित्तशामक तथा बलवर्धक है। यह उपरोक्त मानसिक तथा पित्तजन्य विकारों में खूब लाभदायी है। दुर्बल बालकों तथा महिलाओं के लिए भी यह फायदेमंद है। इसमें कुम्हड़े के बीज भी डाल सकते हैं।

सावधानियाँ- कुम्हड़े को उबालकर फिर सब्जी बनायें। इसका उपयोग अधिक मात्रा में नहीं करें। कच्चा कोमल (हरा) अथवा पुराना कुम्हड़ा हानि करता है। जोड़ों के दर्द तथा कफजन्य विकारों में इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।

गर्मियों में दूध का भरपूर लाभ लें
देशी गाय के दूध के शीतल, स्निग्ध गुण से गर्मियों में शरीर में उत्पन्न उष्णता व त्वचा की रूक्षता का शमन होता है। गौदुग्ध पीने से तो अनेकानेक लाभ होते ही हैं, साथ ही इसका बाह्य उपयोग भी बहुत लाभकारी है। गर्मियों में सूर्य की दाहक किरणों से त्वचा व आँखों की रक्षा के लिए निम्नलिखित प्राकृतिक उपाय अधिक उपयोगी, अल्प मूल्यवाले एवं सुलभ साबित होंगे।

कुछ सरल प्रयोग
2 चम्मच कच्चे दूध में 2 चम्मच पानी मिला लें और उसमें रूई का फाहा डुबोकर आँखों पर रखें। इससे आँखों की गर्मी व कचरा निकल जाता है, स्निग्धता आती है तथा पोषक तत्त्वों की भी प्राप्ति होती है। थोड़ी देर बाद पानी से आँखें धो लें।

गाय के दूध में प्रोटीन, कैल्शियम और चिकनाई से भरपूर तत्त्व पाये जाते हैं। गाय के दूध के सेवन तथा चेहरे पर लगाने से त्वचा मुलायम बनती है, उस पर चमक आती है एवं झुर्रियों से छुटकारा मिलता है।

रात को सोने से पहले चेहरे की त्वचा को कच्चे दूध से साफ करने से दाग-धब्बे कम हो जाते हैं।

कच्चे दूध में गुलाबजल मिलाकर शरीर पर लगाने से भी त्वचा मुलायम होती है।

मुलतानी मिट्टी को कच्चे दूध में मिलाकर लेप करने से शीतलता बनी रहती है व गर्मी के प्रभाव से शरीर की रक्षा होती है।

ग्रीष्म ऋतु में तृप्तिकारक पेयः सत्तू
सत्तू, मधुर, शीतल, बलदायक, कफ-पित्तनाशक, भूख व प्यास मिटाने वाला तथा श्रमनाशक (धूप, श्रम, चलने के कारण आयी हुई थकान को मिटाने वाला) है।

सक्तवो वातला रूक्षा बहुर्वचोऽनुलोमिनः।
तर्पयन्ति नरं सद्यः पीताः सद्योबलाश्च ते।।
(चरक संहिता, सूत्रस्थानम् 27.263)

‘सभी प्रकार के सत्तू कफकारक, रूखे, मल निकालने वाले, दोषों का अनुलोमन करने वाले, शीघ्र बलदायक और घोल के पीने पर शीघ्र तृप्ति देने वाले हैं।’

सत्तू को ठण्डे पानी में (मटके आदि का हो, फ्रिज का नहीं) में मध्यम पतला घोल बना के मिश्री मिला के लेना चाहिए। शुद्ध घी मिला के पीना बहुत लाभदायक होता है। 3 भाग चने (भुने, छिलके निकले हुए) व 1 भाग भुने जौ को पीस व छान के बनाया गया सत्तू उत्तम माना जाता है। केवल चने या जौ का भी सत्तू बना सकते हैं।

ग्रीष्मकालीन व्याधियों में उपयोगी प्रयोग

पेशाब की जलन व रूकावट

एक कपड़े को ठंडे पानी में भिगोकर निचोड़ लें। फिर इसे तह करके नाभि के नीचे वाले हिस्से (पेड़ू) पर वस्त्र हटा के रखें। कपड़े को उलटते-पलटते रहें। कपड़ा गर्म हो जाये तो फिर से ठंडे पानी में भिगो के रखें। लेटकर 15-20 मिनट यह प्रयोग करें।

ककड़ी, खरबूजा, नारियल पानी, नींबू की शिकंजी आदि का सेवन करें। शिकंजी में धनिया, सौंफ व जीरे का चूर्ण मिलाकर लें। यथासम्भव हर घंटे-डेढ़ में आधा या एक गिलास सामान्य ठंडा पानी पीते रहें। इससे गर्मी के कारण होने वाली पेशाब की जलन व रूकावट दूर हो जाती है।

पुनर्नवा (साटोड़ी) की गोली या सब्जी खाने से अथवा उसके रस का उपयोग करने से पेशाब व गुर्दे संबंधी तकलीफों में आराम होता है। गोखरू का रस व वरुणादि क्वाथ भी उपयोग में ला सकते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2015, पृष्ठ संख्या 30,31 अंक 269
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