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संत श्री आशारामजी बापू के सामूहिक होली कार्यक्रम से पानी की बरबादी नहीं, राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि


पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के कारण देशभर में कैमिकल रंगों के स्थान पर प्राकृतिक रंगों से होली खेलने का रूझान हर  वर्ष बढ़ रहा है। इससे विदेशी केमिकल कम्पनियों के माध्यम से हो रही अरबों रूपयों की लूट में बाधा पैदा हुई। पूज्य बापू जी ने यह तथ्य नागपुर में विशेष रूप से उजागर किया और नागपुर के अखबारों में छपा। फिर क्या था, जो शिवरात्रि पर शिवजी को अभिषेक पानी की बरबादी है ऐसा दुष्प्रचार करते हैं, दीपावली पर दीये जलाना तेल की बरबादी है, ऐसी बकबास करते हैं, उन्होंने निशाना बनाया होली को।

सामूहिक प्राकृतिक होलीः पानी की महाबचत

आयुर्वेद के ग्रंथों के पलाश-पुष्पों के गुणों का वर्णन है। इनके रंग से आँखों की जलन, शरीर-दाह, पित्त की तकलीफें, एलर्जी, अनिद्रा, खिन्नता, उद्वेग, अवसाद (डिप्रैशन), त्वचारोग जैसे रोगों और कालसर्प योग जैसी दुःसाध्य समस्याओं से रक्षा होती है। स्वास्थ्य, सुहृदता, शरीर की सप्तधातुओं एवं सप्त रंगों का संतुलन आदि विलक्षण लाभ होते हैं।

केमिकल रंगों से होली खेलने में प्रति व्यक्ति 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है। केवल मुँह का रंग निकालने में ही कितना पानी खर्च होता है ! जबकि प्राकृतिक रंगों से होली खेलने पर इसका 10वाँ हिस्सा भी खर्च नहीं होता। और देश की जल-सम्पदा की सुरक्षा हेतु लोकसंत पूज्य बापू जी ने जल की इससे भी अधिक अर्थात् हजारों गुना बचत करना चाहा और देश में प्रति व्यक्ति 30 से 60 मि.ली. से भी कम पानी से सामूहिक प्राकृतिक होली मनाने का अभियान शुरु किया, जिससे आयुर्वेद एवं ज्योतिषशास्त्र में निर्देशित पलाश-पुष्पों के रंग के उपरोक्त अक्सीर औषधीय एवं अलौकिक गुणों का लाभ सभी को मिले। सूखे रंगों से होली खेलने वाली भी रंगों को धोने के लिए इससे ज्यादा पानी खर्च करते हैं।

महाराष्ट्र के नागपुर एवं ऐरोली (नवी मुंबई) में प्रति कार्यक्रम मात्र आधे टैंकर से भी कम (साढ़े तीन हजार लीटर) पानी द्वारा री होली खेली गयी। साजिशकर्ताओं ने पानी की इस परम बचत को भी ʹलाखों लीटर पानी की बरबादीʹ के रूप में दुष्प्रचारित कर देश की जनभावना के साथ खिलवाड़ किया है। इतने बड़े जनसमूह में प्रति व्यक्ति मात्र 30 से 60 मि.ली. (आधे गिलास से भी कम) पानी इस्तेमाल हुआ। इस प्रकार सामूहिक होली के एक कार्यक्रम द्वारा एक करोड़ लीटर से भी अधिक पानी की बचत होती है।

प्राकृतिक होली से कपड़ों की सफाई के लिए जरूरी साबुन, वॉशिंग पाउडर की बचत होती है और कपड़ों की भी बचत होती है। इस प्रकार पूज्य बापू जी के प्राकृतिक होली प्रकल्प से करोड़ों-अरबों रूपये की स्वास्थ्य-सुरक्षा हो जाती है, साथ ही यह करोड़ों रूपयों की आर्थिक सम्पदा को बढ़ाने वाला सिद्ध होता है। उसे पानी के बिगाड़ के नाम से कुप्रचारित करने वाले कौन हैं, सब समझते हैं। यह सब किसके इशारे पर हो रहा है और कौन करवा रहा है, सब समझते हैं।

कैसे किया गया गुमराह ?

ऐरोली (नवी मुंबई) व सूरत कार्यक्रमों के दिन देशवासियों को महाराष्ट्र के बीड़, जालना, सांगली, उस्मानाबाद इत्यादि उन स्थानों के अकालग्रस्तों के इन्टरव्यू दिखाये गये जहाँ होली कार्यक्रम हुआ ही नहीं था। वेटिकन फंड से चलने वाला मीडिया के तबके ने खाली मटके दिखा-दिखाकर, एक परोपकारी महापुरुष के पानी की बचत के इस अभियान से समाज को दूर करने का भरसक प्रयास किया। परंतु इस देश की जागृत जनता पर उसका असर क्या रहा यह इसी पत्रिका के रंगीन मुखपृष्ठों पर देखा जा सकता है।

यह कैसा न्याय है ?

प्रचारित किया गया कि ऐरोली कार्यक्रम में सत्संगियों ने पत्रकारों के साथ मारपीट की। साजिशकर्ता दल के लोगों से जब पूछा गया कि ʹकितनों को मारा ?ʹ तो बोलेः ʹएक को।ʹ

ʹवह तो घूम रहा है। मारने का नाटक करने वाला तुम्हारे ही दल का आदमी था। बापू के भक्त मारेंगे तो एक को ही क्यों मारेंगे ? यह तो तुम्हारी सोची-समझी साजिश थी।ʹ

तो चुप हो गये लेकिन बाद में कुच्रक चलाया गया। कुछ पुलिसवाले सिविल ड्रेस में आकर सत्संग सुन रहे निर्दोष सत्संगियों को ʹसाहब बुला रहे हैं, थोड़ा हमारे साथ चलियेʹ ऐसा झूठ बोलकर धोखे से एक-एक करके ले गये और पुलिस वैन से ले जाकर लॉकअप में बंद कर दिया। एक चैनल के कैमरामैन द्वारा दर्ज मामले में अलग-अलग अनेका धाराएँ लगाकर कुल 25 निर्दोष सत्संगियों व आयोजकों को दो दिन लॉकअप में व एक दिन जेल में बंद रखा गया। कुछ पत्रकारों ने पुलिसवालों को बताया कि ʹये-ये भाई तो हमें बचा रहे थेʹ तो भी उऩ्हें छोड़ा नहीं गया। 25 निर्दोषों को गुनहगारों के बीच जेल में रखा गया। मूल अपराधियों को खोजने की कोई भी कोशिश नहीं की गयी। सम्भव है कि पुलिसवाले उनसे साजिश में मिले जुले हों। इस प्रकार समाज के रक्षक के रूप में तैनात पुलिस ने ही निर्दोष लोगों के भक्षक बनकर भगवान को चाहने वाले भगवान के प्यारों पर जुल्म किया, यह कैसा न्याय है ? समाज की सेवा में तन-मन-धन अर्पित करने वाले परोपकारी पुण्यात्माओं पर अत्याचार का कहर बरसाया गया, यह कहाँ की नीति है ?

देशभर की समितियों और साधकों में बड़ा रोष है। पुलिस अधिकारी नासिर पठान साहब और तुच्छ चैनलों ने हिन्दू समाज की भावनाओं पर भाला घोंपने के कितने पैसे ऐंठे हैं ? सरकार में सच्चाई है तो इस विषय की गहराई से सीबीआई जाँच क्यों नहीं करवाती ? निर्दोषों को फँसाने में सीबीआई का उपयोग होता है। विश्व के करोड़ों हिन्दूओं की भावनाओं पर भाला घोंपनेवालों पर सीबीआई क्यों नहीं बिठाते ? स्वामी रामदेव जैसे संत पर तो सीबीआई बिठा दी, मिला कुछ नहीं। इन मानवताद्रोहियों पर सीबीआई क्यों नहीं बिठाते ? हिन्दू समाज की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले ऐसे अभागे चैनलों पर कार्यवाही और पुलिस अधिकारी नासिर पठान के निलम्बित क्यों नहीं करते ? उऩकी सीबीआई जाँच क्यों नहीं कराते ? क्या सीबीआई हिन्दू संतों को सताने के लिए रखी गयी है ?

पानी का सदुपयोग करने वाले निर्दोष 25 लोगों को जेल में डाला गया। क्या इन सत्संगियों के पक्ष में कोई वकील, न्यायाधीश, राजनेता मानवता की महत्ता दिखा सकता है ? अपना सज्जनता भरा सलाह-मशविरा दे सकता है, आवाज उठा सकता है ? निर्दोषों के साथ जुल्म करने वालों को निलम्बित करा सकता है ? मीडिया और नासिर पठान जैसे पुलिस अधिकारी ऐसे अत्याचार कब तक  करते रहेंगे ?

उल्हासनगर में उल्हास नदी और मुंबई में समुद्र है। मुंबई में इतने बड़े भक्त-समुदाय के लिए होली हेतु केवल साढ़े तीन हजार लीटर पानी इस्तेमाल हुआ, जो कि आधा टैंकर भी नहीं होता। फिर भी 25 निर्दोष आदमियों को घूस खाये हुए पुलिस अधिकारी पठान साहब के कुचक्र से हिरासत में ले लिया गया, झूठा केस कर दिया गया। उनका दोष यही था कि वे होली-कार्यक्रम की सेवा में आये थे। इतना जुल्म हिन्दुस्तान कब तक सहता रहेगा ?

यह है हकीकत !

ʹऐसोसियेटिड चैंबर ऑफ कामर्स एंड इन्डस्ट्रीज ऑफ इंडियाʹ के सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में गत वर्षों में होली के रंगों तथा पिचकारी, गुब्बारे एवं खिलौनों के 15000 करोड़ रूपये के व्यापार के अधिकांश हिस्से पर चीन अधिकार जमा चुका है। उदाहरण के तौर पर पिचकारियों के व्यापार में चीन का 95 प्रतिशत कब्जा है। इस कारण भारत में लघु व मध्यम उद्योगों के क्षेत्र में 75 प्रतिशत लोगों की रोजी रोटी छिन गयी है। लाखों लोग बेरोजगार हुए हैं और अधिकांश पैसा चीन जा रहा है। जबकि प्राकृतिक होली के द्वारा पलाश के फूल इकट्ठे करने वाले देश के असंख्य गरीबों, वनवासियों एवं आदिवासियों को रोजगार मिल रहा है। भारत के लघु एवं मध्यम उद्योगों को पुनर्जीवन मिल रहा है। रोगहारी ब्रह्मवृक्ष पलाश के फूलों से बना शरबत अनकों सत्संगों में करोड़ों लोग अभी तक पी चुके हैं ! पूज्य बापू की प्रेरणा से आश्रम व समितियों द्वारा स्वास्थ्यप्रद पेय जल गर्मी से तप्त भारत के अऩेक क्षेत्रों में पलाश, आँवला या गुलाब शरबत वितरण केन्द्रों तथा छाछ व जल की प्याउओं के माध्यम से कई वर्षों से निःशुल्क बाँटा गया है। ये सुंदर सेवाकार्य क्यों नहीं दिखाते ? यदि धर्मांतरणवालों के होते तो बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते।

पानी की बरबादी किसे कहते हैं ? और वह कहाँ हो रही है ?

महाराष्ट्र के केवल एक देवनगर कत्लखाने में प्रतिदिन 18 लाख लीटर पीने का पानी बरबाद होता है। पानी को बरबाद करने वाले ऐसे अनेकों वैध-अवैध कत्लखाने हैं। 1 लीटर कोल्डड्रिंक बनाने में 55 लीटर पानी बरबाद होता है। देश में सॉफ्टड्रिंक्स बनाने वाली कई विदेशी  कम्पनियाँ हैं। अकेली पेप्सीको कम्पनी प्रतिवर्ष 5 अरब 16 करोड़ 80 लाख लीटर से ज्यादा पानी का दुरुपयोग करती है। देश के 8 सूखाग्रस्त इलाकों में उनके कारखाने चलते हैं, जो स्थानिक लोगों की जल-समस्या का संकट बढ़ाते हैं, विशेषतः ग्रीष्म ऋतु में जब उनका उत्पादन बढ़ जाता है। फाइव स्टार होटलों के आलीशान स्विमिंग टैंक्स व रिसॉर्टस के ʹरेन डान्सʹ, ʹपूल पार्टियोंʹ लाखों लीटर पानी की बरबादी की जाती है। आईपीएल क्रिकेट मैचों हेतु एक मैदान के रख-रखाव के लिए प्रतिदिन 60 हजार लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। यदि 36 दिन में तक आईपीएल मैच चलेंगे तो 21 लाख 60 हजार लीटर पानी प्रत्येक मैदान में खर्च किया जायेगा। तीन मैदानों के लिए कुल 64 लाख 80 हजार लीटर पानी बरबाद होगा। महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता श्री विनोद तावडे ने ये तथ्य उजागर किये हैं। उन्होंने ही राज्य में बियर बनाने के लिए उपलब्ध कराये जा रहे पानी के आँकड़े पेश किये, जो बहुत ही चौंकाने वाले हैं।

दुरुपयोग के लिए छूट

मिलेनियम बियर इंडिया लिमिटेड को 1288 करोड़ लीटर से दुगना करके 2014 लीटर करोड़ लीटर पानी दिया जा रहा है।

फॉस्टर्स इंडिया लिमिटेड को 888.7 करोड़ लीटर से बढ़ाकर 1000.7 करोड़ लीटर।

इंडो-यूरोपियन बीवरेजस को 242.1 करोड़ लीटर से बढ़ाकर 470.1 करोड़ लीटर।

औरंगाबाद ब्रिवरी को 1400.3 करोड़ लीटर से बढ़ाकर 1462.1 करोड़ लीटर।

महाराष्ट्र में शराब बनाने के 90 कारखाने हैं। जिन क्षेत्रों में ये कारखाने हैं, उन्हीं क्षेत्रों में अकाल विकराल रूप धारण करता जा रहा है। इस प्रकार जनता के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य को नष्ट करने वाले शराब व कोल्डड्रिंक्स के कारखानों एवं कत्लखानों में प्रतिदिन करोड़ों लीटर पानी बरबाद होता है।

नागपुर, अमरावती व मुंबई क्षेत्र के समाचार पत्रों के अनुसार वहाँ लाखों लीटर पानी पाइपलाइन लीकेज, टूटे नल आदि के कारण बरबाद हो रहा है। कुछ दिन पहले पिम्परी (पुणे) में एक मुख्य पाइपलाइन टूट जाने से लाखों लीटर पानी बरबाद हो गया। यह जो पानी बहता है, सीधा नालियों में जाता है। होली का पलाश-रंग शरीरों पर गिरता है, जो कि निरोगता, स्वास्थ्य, प्रसन्नता तथा सुहृदता प्रदान करता है।

….तो किसानों को आत्महत्या करने की नौबत नहीं आती !

ʹदिव्य भास्करʹ समाचार पत्र

ʹदिव्य भास्करʹ समाचार पत्र ने सवाल उठाया है कि ʹनागपुर में संत आशारामजी बापू द्वारा जितना पानी उपयोग किया गया, उससे एक लाख गुना ज्यादा पानी सूखाग्रस्त अमरावती स्थित इंडिया बुल्स कम्पनी में उपयोग किया जाता है, फिर भी महाराष्ट्र सरकार के पेट का पानी नहीं हिलता ! अगर यही पानी सिंचाई के लिए किसानों को दिया जाता तो यह पानी 25000 किसानों की खेतों में पहुँचता और किसानों को आत्महत्या करने की नौबत नहीं आती ! महाराष्ट्र सरकार चाहे तो इस पानी के द्वारा अकाल का मुकाबला कर सकती है।ʹ

देश की जनता का सवाल

हिन्दुओं के होली त्यौहार का विरोध करने वाला वह देशद्रोही संगठन शराब, कोल्डड्रिंक्स, गोहत्या आदि के लिए अरबों लीटर पानी की बरबादी की वजह से पानी के अभाव में किसानों की आत्महत्याएँ देखकर भी क्यों अपनी लोभी आँखें मूँदकर बगुले की तरह बैठा है ? हिन्दुओं का साढ़े तीन हजार लीटर पलाश का स्वास्थ्यवर्धक रंग उसे देश के पानी की बरबादी लगती है तो लम्बे समय से हो रही यह अरबों लीटर पानी की बरबादी देखकर भी उसका तथाकथित देशप्रेम कौन-सी हड्डी चबाने चला जाता है ? यह देश की जनता का सवाल है।

जिस दिन वह देशद्रोही अंध संगठन व वेटिकन मीडिया नागपुर में आधे टैंकर से भी कम पानी के लिए अकाल का नाम लेकर हिन्दुओं के होली त्यौहार का विरोध कर रहे थे, उसी दिन महाराष्ट्र के एक मंत्री सूखाग्रस्त इलाकों का दौरा करने अहमदनगर आये थे और उनके हैलिकॉप्टर की धूल न उड़े इसलिए 41 टैंकर (लाखों लीटर) पानी का छिड़काव किया गया। तब ये कहाँ गये थे ? यह वहाँ की जनता का सवाल है।

कुछ देशद्रोही, विदेशी पैसों पर पलने वाले एनजीओ (गैर-सरकारी संगठन) और इनका साथ देने वाली वेटिकन मीडिया लॉबी भारतीय त्यौहारों पर प्रहार कर हमारी सांस्कृतिक विरासत को मिटाने का कुप्रयास कर रहे हैं। अंधश्रद्धा-उन्मूलन के नाम पर सनातन धर्म को नष्ट करने का प्रयास करने वाले कुतर्कवादियों से बड़ा अंधश्रद्धालु मिलना मुश्किल है। अब उनका ही उन्मूलन करना पड़ेगा। ऐसे पाखंडी, छद्म समाजसेवकों से समाज सावधान हो जाये तथा ऐसे बिकाऊ वेटिकन चैनलों को न देखकर इनका बहिष्कार करे क्योंकि धर्मो रक्षति रक्षितः। ʹधर्म उसी की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करता है।ʹ

श्री केशव सेन, मुख्य सम्पादक, न्यूज पोस्ट, समाचार पत्र

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स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2013, पृष्ठ संख्या 4-7, अंक 244

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होली मनायें तो ऐसी


(होलिका दहनः 7 मार्च 2012, धुलेंडीः 8 मार्च 2012)

(पूज्य बापू जी की ज्ञानमयी वाणी से)

होली अगर हो खेलनी, तो संत सम्मत खेलिये।

संतान शुभ ऋषि मुनिन की, मत संत आज्ञा पेलिये।।

तुम संतों और ऋषि-मुनियों की संतान हो। यदि तुम होली खेलना चाहते हो तो भाँग पीकर बाजार में नाचने की जरूरत नहीं है, दारू पीकर अथवा दुर्व्यसन करके अपने आपको अधोगति में डालने की जरूरत नहीं है, होली खेलनी हो तो संत के संग में खेलो। सच्ची होली तो यह है कि ब्रह्मविद्या की अग्नि प्रकट हो जाय, भक्तिरस की अग्नि भभक उठे और उसमें तुम्हारी चिंता, दारिद्रय, मोह, ममता स्वाहा हो जाय। तुम कंचन जैसे हो जाओ, कुंदन जैसे शुद्ध हो जाओ। इसी का नाम होली है। लोग लकड़ियाँ एकत्रित करके अग्नि प्रज्वलित करते हैं, होली जलाते हैं पर यह कोई आखिरी होली नहीं है। होली तब समझो कि संसार जलती आग दिखे। संसार जलती आग है तो सही पर दिखता नहीं है, यह हमारी बुद्धि की मंदता है। जरा-जरा बात में दिन भर में न जाने कितने हर्ष के और कितने शोक के आघात-प्रत्याघात लगते हैं। मेरे-तेरे के कितने बिच्छु काटते हैं….. तो संसार जलती आग है ऐसा दिखे और सब विषय-विकार फीके लगें तो समझो सच्ची होली है, नहीं तो बचकानी होली है, संसार में भटकने वालों की होली है। साधकों की होली निराली होती है।

संसार का दुःख कैसे मिटे, आत्मज्ञान कैसे हो ? आध्यात्मिक शांति, परमात्मशांति कैसे मिले ? – इस बात का ध्यान रहे तो समझो तुम्हारी होली सार्थक है, नहीं तो होली में तुम खुद होली हो गये।

माजून खाई भंग की, बौछार कीन्हीं रंग की।

बाजार में जूता उछाला, या किसी से जंग की।।

भाँग पी, जूते उछाले या किसी से जंग की – यह कोई होली है !

गाना सुना या नाच देखा, ध्वनि सुनी मौचंग की।

सुध बुध भुलाई आपनी, बलिहारी ऐसे रंग की।।

देहाध्यास भूलने का जो तरीका था, होली जिस उद्देश्य से मनायी जाती थी वह अर्थ आजकल दब गया। देहाध्यास भूलने के लिए नेता और जनता की एकता, संत और साधक की एकता, सेठ और नौकर की एकता का, प्राकृतिक नैसर्गिक जीवन जीने का एक दिन था, एक मौका था होली का दिन। ʹमैंʹ और ʹमेरेʹ के व्यवहार से जो बोझा महसूस होता है, वह बोझा उतारने का यह एक सुन्दर कार्यक्रम था लेकिन इस होली में भी आजकल बोझा उतारता नहीं है बल्कि और बढ़ रहा है। सामान्य दिनों में जो काम होता है त्यौहारों में और अधिक काम बढ़ा लेते हैं। सामान्य दिनों में जो मिलना, करना, विकारों में उलझना होता है, त्यौहारों के दिनों में लोग इनमें और अधिक उलझते हैं। होली के दिन सिनेमाघर पर भीड़ ज्यादा होगी। इन दिनों जितने मानसिक अपराध होंगे, उतने अन्य दिनों में नहीं होंगे क्योंकि हम व्यवस्था का दुरुपयोग कर रहे हैं। त्यौहारों की जो व्यवस्था थी जीवन को सरलता की, नैसर्गिकता की तरफ ले जाने की, अहंकार को विसर्जित करने की, त्यौहारों के द्वारा जो कुछ अहंकार को पुष्ट करने का मौका ढूंढ रहा है।

अहंकार का सर्जन, विकारों का सर्जन करने का मौका जितना अधिक लेंगे, उतना जीवनशक्ति का ह्रास होगा। इसलिए फकीरी होली तुम्हें कहती है कि ज्ञान की आग जलाओ। लकड़ियों की आग तो बहुत लोग जलाते हैं और स्वर्ग में, नरक में भटकते रहते हैं, जन्मते-मरते रहते हैं।

यदि हम हमारे जीवन की शक्ति का आदर न करेंगे, हम हमारे जीवन के स्वामी न बनेंगे तो हमारा स्वामी शैतान बन जायेगा। इसलिए होली तुम्हें कहती है कि उस शैतान से बचने के लिए अपने अहंकार को धूल में मिलाओ, धुलैंडी मनाओ, होली जलाओ। अपने अहंकार की सुध-बुध भुला दो, भुला दो देहाध्यास को। गाना गाओ तो गाना बन जाओ और नृत्य करो तो नृत्य, कीर्तन करो तो कीर्तन, सत्संग सुनो तो सत्संग हो जाओ। अपने अहंकार की बलि दे दो। जो भारीपन है वह छोड़ दो। होली हलका होना सिखाती है। कोई साहब हो, सूबेदार हो, भले इन्सपेक्टर हो, चाहे मंत्री हो, लेकिन होली के दिन तो फगुआ लेने वाले बच्चे भी उनका साहबपना, मंत्रीपना भुला देते हैं कि ʹसाहब ! होली का फगुआ दो नहीं तो रँग देंगे।ʹ ऐसी है होली !

अज्ञान को नहीं हटाया, प्रेमाभक्ति का रस नहीं पाया, अपने आपको नहीं पाया तो होली मनाकर क्या पाया ? मोह-ममता के ऊपर धूल नहीं डाली तो धुलेंडी क्या खेली ?

छाती मिलाते शत्रु से, सन्मित्र से मुख मोड़ते।

हितकारी ईश्वर छोड़कर, नाता जगत से जोड़ते।।

धन से, पद से, प्रतिष्ठा से छाती मिलाते हो जो कि तुम्हारे नहीं हैं और जो तुम्हारा है उधर से तो तुम मुख मोड़कर बैठे हो। ईश्वर को छोड़कर जगत से नाता जोड़कर बैठे हो, फिर होली क्या मनाते हो ? होली मनाओ तो बस ऐसी कि जो तुम्हारा है वह प्रकट हो जाये। ऐसा प्रकाश भीतर से प्रकट होने दो कि जो तुम्हारा है उसमें जग जाओ। ऐसे से मिलो जिससे फिर बिछुड़ना न पड़े।

भोले बाबा ने कहा हैः

होली हुई तब जानिये, पिचकारि सदगुरु की लगे।

ऐसी होली खेलिए कि ज्ञान की पिचकारी से अहंकार भाग जाय। ज्ञान की पिचकारियाँ तो चलती रहती हैं। कई बार ऐसी पिचकारियाँ आती हैं और किसी के हृदय में लगकर चली जाती हैं, किसी के हृदय में थोड़ी टिकती हैं, किसी के हृदय से तो आर-पार निकल जाती हैं। अब बचकानी होली छोड़ दो। बहुत दिन खेले, बहुत जन्म खेले तुम ऐसी होली। ऐसे खेलते-खेलते कई होलियाँ आ गयीं, कई दिवालियाँ आ गयीं लेकिन हम वैसे-के-वैसे रहे।

हमारी स्थिति ऐसी न हो कि त्यौहार मनाने के बाद भी हमारा अहंकार बचा रहे। उत्सव मनाने के बाद भी हम परमात्मा के निकट न पहुँचे तो वह उत्सव वास्तव में उत्सव नहीं, वह त्यौहार त्यौहार नहीं, वह तो मौत का दिन है। जीवन का दिन तो वह है कि तुम ईश्वर के रास्ते पर एक कदम आगे बढ़ जाओ। बाह्य उत्सव तुम्हें ईश्वरीय उत्सव में ले जाय, ईश्वरीय ज्ञान, ईश्वरीय माधुर्य, ईश्वरीय दृष्टि, ईश्वरीय प्रेम में परितृप्त कर दे। ईश्वर के रास्ते एक छलाँग तुम्हारी और बढ़ जाय तो समझ लो त्यौहार तुम्हारे लिये सार्थक है। यदि एक छलाँग शैतान की तरफ आगे बढ़ जाती है तो वह त्यौहार तुम्हारे लिए अभिशाप है, वरदान नहीं। जो भी त्यौहार हैं वे सब महापुरुषों ने तुम्हारे लिए वरदानरूप बनाये हैं। उन त्यौहारों का तुम्हें अधिक-से-अधिक लाभ मिले और तुम विराट आत्मा के साथ एक हो जाओ, तुम असली पिता के द्वार तक पहुँच जाओ – त्यौहारों का लक्ष्यार्थ यही है।

सब रंग कच्चे जांय, यक रंग पक्के में रंगे।

नहिं रंग चढ़े फिर द्वैत का, अद्वैत में रंग जाय मन।

विक्षेप मल सब जाय धुल, निश्चिन्त मन अम्लान हो।।

पक्का रंग आत्मा का ज्ञान होता है, बाकी के रंग सब कच्चे होते हैं। संसार के रंग तुम्हारे शरीर तक, मन तक, बुद्धि तक आते हैं। जिसने भीतर की होली खेल ली, जिसके भीतर भीतर का प्रकाश हो गया, भीतर का प्रेम आ गया, जिसने आध्यात्मिक होली खेल ली, उसको जो रंग चढ़ता है वह अबाधित होता है। संसारी होली का रंग हम लोगों को नहीं चढ़ता, हमारे कपड़ों को चढ़ता है, हमारे शरीर को भी तो रंग नहीं चढ़ता ! और यह रंग कपड़ों पर भी टिकता नहीं, टिका तो समय पाकर कपड़े फट जाते हैं लेकिन तुम्हारे ऊपर यदि फकीरी होली का रंग चढ़ जाय….. फकीरी होली का अर्थ है कि जहाँ पहुँचने के बाद फिर गिरना नहीं होता, जो पाने के बाद खोना नहीं होता। यद् गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम। (गीताः 15.6)

काश ! ऐसा कोई सौभाग्यशाली दिन आ जाय कि तुम्हारे ऊपर संतों की होली का रंग लग जाय तो फिर तैंतीस करोड़ देवता धोबी का काम शुरु करें और तुम्हारा रंग उतारने की कोशिश करें तो भी नहीं उतरेगा, बल्कि तुम्हारा रंग उन पर चढ़ जायेगा।

होली के बाद धुलेंडी आती है। धुलेंडी का पैगाम है कि अपनी इच्छाओं को, वासनाओं को, कमियों को धूल में मिला दो। अहंकार को धूल में मिला दो। निर्दोष बालक जैसे नाचता है, खेलता है, निर्विकार आँख से देखता है, निर्विकार होकर व्यवहार करता है, ऐसे ही तुम निर्विकार होकर जियो। तुम्हारे अंदर जो विकार उठें उन विकारों को, शैतान को भगाने के लिए तुम ईश्वरी सामर्थ्य जुटा लो। ईश्वरीय सामर्थ्य ईश्वर-नाम, ईश्वर-ध्यान और ईश्वरप्रीति से जुटता है। इसलिए होली मनायें तो किसी पावन जगह पर मनायें, संत के संग मनायें ताकि जन्म-मरण की भटकान समाप्त हो जाय। आत्मज्ञान, आत्मविश्राम, आत्मतृप्ति…

आप इरादा पक्का करो, बाकी भगवान पग-पग पर सहायता करते ही हैं, बिल्कुल पक्की बात है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2012, पृष्ठ संख्या 12,13,14 अंक 230

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होलिकोत्सव हितोत्सव है


(पूज्य बापू जी की सत्संग-गंगा से)

होलिकोत्सव के पीछे प्राकृतिक ऋतु-परिवर्तन का रहस्य छुपा है। ऋतु परिवर्तन के समय जो रोग होते हैं उनको मिटाने का भी इस उत्सव के पीछे बड़ा भारी रहस्य है तथा विघ्न-बाधाओं को मिटाने की घटनाएँ भी छुपी हैं।

रघु राजा के राज्य में ढोण्ढा नाम की राक्षसी बच्चों को डराया करती थी। राजा का कर्तव्य है कि प्रजा की तकलीफ को अपनी तकलीफ मानकर उसे दूर करने का उपाय करे। कई उपाय खोजने के बाद भी जब कोई रास्ता नहीं मिला तो रघु राजा ने अपने पुरोहित से उपाय पूछा। पुरोहित ने बताया कि इसे भगवान शिव का वरदान है कि उसे देव, मानव आदि नहीं मार सकते, न वह अस्त्र-शस्त्र या जाड़े, गर्मी, वर्षा से मर सकती है किंतु वह खेलते हुए बच्चों से भय खा सकती है। इसलिए फाल्गुन की पूर्णिमा को लोग हँसे, अट्टहास करें, अग्नि जलाएँ और आनन्द मनायें। राजा ने ऐसा किया तो राक्षसी मर गयी और उस दिन को ʹहोलिकाʹ कहा गया।

होलिकोत्सव बहुत कुछ हमारे हित का दे देता है। गर्मी के दिनों में सूर्य की किरणें हमारी त्वचा पर सीधी पड़ती हैं, जिससे शरीर में गर्मी बढ़ती है। हो सकता है कि शरीर में गर्मी बढ़ने से गुस्सा बढ़ जाय, स्वभाव में खिन्नता आ जाय। इसीलिए होली के दिन पलाश एवं अन्य प्राकृतिक पुष्पों का रंग एकत्रित करके एक-दूसरे पर डाला जाता है ताकि हमारे शरीर की गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ जाय और सूर्य की तीक्ष्ण किरणों का उस पर विकृत असर न पड़े। सूर्य की सीधी तीखी किरणें पड़ती हैं तो सर्दियों का जमा कफ पिघलने लगता है। कफ जठर में आता है तो जठर मंद हो जाता है। पलाश के फूलों के रंग से होली खेली जाती है। पलाश के फूलों से, पत्तों से, जड़ से तथा पलाश के पत्तों से बनी पत्तव व दोने में भोजन करने से बहुत सारे फायदे होते हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि कई राज्यों में अब भी पलाश के पत्तों से बनी पत्तल व दोने में भोजन करने की प्रथा है। राजस्थान में पलाश को खाखरा भी बोलते हैं। अभी तो कागज की पत्तलें और दोने आ गये। उनसे वह लाभ नहीं होता जो खाखरे के दोने और पत्तलों से होता है।

पलाश के फूलों से होली खेलने से शरीर के रोमकूपों पर ऐसा असर पड़ता है कि वर्ष भर आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति मजबूत बनी रहती है। यकृत (लीवर) को मजबूत करता है खाखरा। यह यकृत की बीमारी जिससे पीलिया होता है उससे भी रक्षा करता है। जो पलाश के फूलों से होली खेलेंगे उन्हें पीलिया भी जल्दी नहीं होगा, मंदाग्नि भी नहीं होगी।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2012, पृष्ठ संख्या 11, अंक 230

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