Tag Archives: Sadguru Mahima

चिदानंदमय देह तुम्हारी… – पूज्य बापू जी


एक भोला-भाला आदमी संत-महापुरुष के पास जाकर बोलाः “मुझे गुरु बना दो।”

गुरुजीः “बेटा ! पहले शिष्य तो बन !”

“शिष्य-विष्य नहीं बनना, मुझे गुरु बनाओ। तुम जो भी कहोगे, वह सब करूँगा।”

गुरुजी ने देखा कि यह आज्ञा पालने की तो बात करता है। बोलेः “बेटा ! मैं तेरे को कैसा लगता हूँ ?”

वह लड़का गाय-भैंस चराता था, गडरिया था। बोलाः “बापजी ! आपके तो बड़े-बड़े बाल हैं, बड़ी-बड़ी जटाएँ हैं। आप तो मुझे ढोर (पशु) जैसे लगते हो।”

बाबा ने देखा, निर्दोष-हृदय तो हैं पर ढोर चराते-चराते इसकी ढोर बुद्धि हो गयी है। बोलेः “जाओ, तीर्थयात्रा करो, भिक्षा माँग के खाओ। कहीं तीन दिन से ज्यादा नहीं रहना।”

ऐसा करते-करते सालभर के बाद गुरुपूनम को आया। गुरु जीः “बेटा ! कैसा लगता हूँ ?”

बोलेः “आप तो बहुत अच्छे आदमी लग रहे हो।”

बाबा समझ गये कि अभी यह अच्छा आदमी हुआ है इसीलिए मैं इसे अच्छा आदमी दिख रहा हूँ। सालभर का और नियम दे दिया। फिर आया।

गुरुजीः “अब कैसा लगता हूँ ?”

“बाबाजी ! आप ढोर जैसे लगते हो, आप अच्छे आदमी हो, यह मेरी बेवकूफी थी। आप तो देवपुरुष हो, देवपुरुष !”

बाबा ने देखा, इसमें सात्त्विकता आयी है, देवत्त्व आया है। बाबा ने अब मंत्र दिया। बोलेः “इतना जप करना।”

जप करते-करते उसका अंतःकरण और शुद्ध हुआ, और एकाग्रता हुई। कुछ शास्त्र पढ़ने को गुरु जी ने आदेश दिया। घूमता-घामता, तपस्या, साधन-भजन करता-करता सालभर के बाद आया।

गुरु जी ने पूछाः “बेटा ! अब मैं कैसा लग रहा हूँ ?”

“गुरु जी ! आप ढोर जैसे लगते हैं – यह मेरी नालायकी थी। आप अच्छे इन्सान हैं – यह भी मेरी मंद मति थी। आप देवता हैं – यह भी मेरी अल्प बुद्धि थी। देवता तो पुण्य का फल भोगकर नीचे आ रहे हैं और आप तो दूसरों के भी पाप-ताप काटकर उनको भगवान से मिला रहे हैं। आप तो भगवान जैसे हैं।”

गुरु ने देखा, अभी इसका भाव भगवदाकार हुआ है। बोलेः “ठीक है। बेटा ! ले, यह वेदान्त का शास्त्र। भगवान किसे कहते हैं और जीव किसको कहते हैं, यह पढ़ो। जहाँ ऐसा ज्ञान मिले वहीं रहना और इस ज्ञान का अनुसंधान करना।”

वह उसी ज्ञान का अनुसंधान करता लेकिन ज्ञान का अनुसंधान करते-करते आँखें, मन इधर-उधर जाते तो गुरुमूर्ति को याद करता। गुरुमूर्ति को याद करते-करते गुरु तत्त्व के साथ तादात्म्य होता और गुरु-तत्त्व के साथ तादात्म्य करते-करते सारे देवी-देवताओं का जो सारस्वरूप है – गुरु तत्त्व, उसमें उसकी स्थिति होने लगी। आया गुरुपूनम को।

गुरु ने कहाः “बेटा ! मैं कैसा लगता हूँ ?”

अब उसकी आँखें बोल रही हैं, वाणी उठती नहीं। पर गुरु जी को जवाब तो देना है, बोलाः “गुरु जी ! आप पशु लग रहे थे, यह मेरी दुष्ट दृष्टि थी। अच्छे मनुष्य, देवता या भगवान लग रहे थे, यह सारी मेरी अल्प मति थी। आप तो साक्षात् परब्रह्म हैं। भगवान तो कर्मबंधन से भेजते हैं और आप कर्मबंधन को काटते हैं। देवता राजी हो जाता है तो स्वर्ग देता है, भगवान प्रसन्न हो जायें तो वैकुंठ देते हैं लेकिन आप प्रसन्न हो जाते हैं तो अपने आत्मस्वरूप का दान करते हैं। जीव जिससे जीव है, ईश्वर जिससे ईश्वर है, उस परब्रह्म-परमात्मा का स्पर्श और अनुभव कराने वाले आप तो साक्षात् परब्रह्म-परमात्मा हैं।”

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

साक्षात् अठखेलियाँ करता जो निर्गुण-निराकार परब्रह्म है, वही तुम सगुण-साकार रूप लेकर आये हो मेरे कल्याण के लिए।

इसी प्रकार भागवत में आता है कि जब रहूगण राजा से जड़भरत की भेंट हुई तो उसने जड़भरत को पहले डाँटा, अपमानित किया पर बाद में जब पता चला कि ये कोई महापुरुष हैं तो रहूगण राजा उनको प्रणाम करता है। तब जड़भरत ने बतायाः अहं पुरा भरतो नाम राजा….अजनाभ खंड का नाम जिसके नाम से ʹभारतवर्षʹ पड़ा, वह मैं भरत था। मैं तपस्या करके तपस्वी तो हो गया लेकिन तत्त्वज्ञानी सदगुरु का सान्निध्य और आत्मज्ञआन न होने से हिरण के चिंतन में फँसकर हिरण बन गया और हिरण में से अभी ब्राह्मण-पुत्र जड़भरत हुआ हूँ।” इतना सुनने के बाद भी रहूगण कहता हैः “महाराज ! आप तो साक्षात् परब्रह्म हैं। मेरे कल्याण के लिए ही आपने लीला की है।” वह यह नहीं कहता कि ʹहिरण में से अभी साधु बने हो। मैं आपको प्रणाम करता हूँ।ʹ नहीं, आप साक्षात परब्रह्म हैं। मेरे कल्याण के लिए ही हिरण बनने की और ये जड़भरत बनने की आपकी लीला है।ʹ ऐसी दृढ़ श्रद्धा हुई तब उसको ज्ञान भी तो हो गया !

गुरु को पाना यह तो सौभाग्य है लेकिन उनमें श्रद्धा टिकी रहना यह परम सौभाग्य है। कभी-कभी तो नजदीक रहने से उनमें देहाध्यास दिखेगा। उड़िया बाबा कहते हैं- “गुरु को शरीर मानना श्रद्धा डगमग कर देगा।” गुरु का शरीर तो दिखेगा लेकिन ʹशरीर होते हुए भी वे अशरीरी आत्मा हैंʹ – इस प्रकार का भाव दृढ़ होगा तभी श्रद्धा टिकेगी व ज्ञान की प्राप्ति होगी।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2013, पृष्ठ संख्या 14,15 अंक 246

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

दबंग बापू


ऐसा कोई नाम याद करना चाहें जिनका सब कुछ दबंग हो तो जो नाम मुख में
आता है, वह है – आध्यात्मिक गुरु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू !

दबंग प्राकट्य

जन्म के बाद तो हर कोई खुशियाँ मनाता है, लेकिन बापू जी के धरती पर प्राकट्य से पहले ही एक अजनबी सौदागर सुंदर और विशाल झूला लेकर घर पर आ गया। बोलाः “आपके घर संत-पुरुष आऩे वाले हैं।” और खूब अनुनय-विनय करके भव्य झूला दे गया। है ना दबंग प्राकट्य।

दबंग बाल्यकाल

बाल्यावस्था में किसी ने “ऐ टेणी (ठिंगूजी) !” कहकर बुलाया तो बालक आसुमल ने रोज पुलअप्स करके 40 दिनों में ही पीछे से जाकर उसके कंधे पर हाथ रखाः “ऐं पहचाना ?” वह व्यक्ति बोलाः “अरे भाई साहब ! आप… आप… क्षमा करना !” ऐसी दबंगई कि बोलती बंद !

दबंग युवावस्था

आपकी युवावस्था योग, ज्ञान, वैराग्य की दबंगई से सुशोभित रही। एक बार नदी-किनारे खाली बरामदे में रात्रि को ध्यानस्थ बैठे आपको चोर-डाकू समझकर मच्छीमारों का पूरा गाँव लाठियाँ, भाले, हथियारों से लैस होकर आपको घेर के खड़ा हो गया। लेकिन आप तो शांत भाव से भीड़ को चीरते हुए निकल पड़े, किसी की हिम्मत नहीं कि निहत्थे आपको स्पर्श भी करता। डीसा (गुजरात) में बनास नदी के सुनसान तटवर्ती इलाके में एक शराब की भट्टीवाले ने आपके गले पर धारिया (धारदार हथियार) रखा, बोलाः “खींचूँ ?” “तेरी मर्जी पूरण हो।” – यह उत्तर सुनकर वह गला काटने वाला धारिया एक तरफ फेंका और शातिर, खूँखार व्यक्ति खुद चरणों में गिर पड़ा। वह अपराधी व्यक्ति और उसके साथी भी भक्तिभाववाले हो गये। कैसी दबंगई !

दबंग चुनौती

आपने चुनौती भी दो सीधे ईश्वर कोः “मुझे भला तुम्हें पाने के लिए खूब यत्न करने पड़ रहे हैं किंतु तू मुझे एक बार मिल जा, मैं तुम्हें सस्ता बना दूँगा।” और क्या दबंगई है कि पाया भी और चैलेंज निभाया भी !

दबंग मुहब्बत

एक दिन भूख लगी तो उस समय जंगल में रमते ये जोगी हठ कर बैठ गयेः ʹजिसको गरज होगी आयेगा, सृष्टिकर्ता खुद लायेगा।ʹ और दो किसान दूध व फल लेकर हाजिर !

दबंग सत्संग

शरीर की 72 वर्ष की उम्र में भी – बापू जी एक… पूनम एक.. और पूनम दर्शन-सत्संग 4-4 जगह ! हर जगह, हररोज हवा-पानी का बदलाव और सतत भ्रमण… फिर भी अजब स्फूर्ति, अजब मस्ती, अजब नृत्य और नित्य उत्सव… भारत में ही नहीं पाकिस्तान के ʹगाजी गार्डनʹ में भी अभूतपूर्व उत्सव ! ʹविश्व धर्म संसदʹ में भी भारत का दबंग नेतृत्व ! वहाँ के सबसे प्रभावशाली वक्ता, सत्संग के लिए दूसरों से कहीं ज्यादा समय ! सब कुछ दबंग !

दबंग प्रेरणास्रोत

लौकिक पढ़ाई कक्षा 3 तक लेकिन आध्यात्मिक अनुभूति का ज्ञान अदभुत ! तभी तो कई डी.लिट., पी.एच.डी., आई.ए.एस. आदि तथा कई राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, खिलाड़ी, वैज्ञानिक एवं सुप्रसिद्ध हस्तियाँ चरणों में शीश झुकाकर भाग्य चमका लेती हैं।

दबंग पहल

14 फरवरी को ʹवेलेंटाइन डेʹ के स्थान पर ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ का विश्वव्यापी अभियान आपने शुरु किया, जिसको आज समाज के सभी धर्म, सभी मत-पंथ, सम्प्रदायों के साथ सभी क्षेत्र के अग्रगणियों, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्रियों का भी समर्थन प्राप्त हुआ है। महाराजश्री की इस दबंग पहल का समर्थन करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे राज्यस्तरीय पर्व घोषित कर दिया है।

दबंग समता, धैर्य

ʹसाँच को आँच नहीं और झूठ को पैर नहीं।ʹ

करोड़ों रूपये खर्च करके मीडिया के द्वारा किये गये दुष्प्रचार के तमाम षडयन्त्रों में भी सम, निश्चिंत, प्रसन्न बापू जी का धैर्य लाबयान है। आखिर सर्वोच्च न्यायालय ने भी महाराज श्री व आश्रम पर लगे आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।

दबंग चमत्कार

29 अगस्त 2012 को गोधरा (गुज.) में बापू जी का हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ। मजबूत लौह धातु के भारी-भरकम पुर्जों से बने हेलिकॉप्टर के तो टुकड़े-टुकड़े हो गये लेकिन अंदर बैठे बापू जी और सभी शिष्यों के कोमल शरीरों का पुर्जा-पुर्जा चुस्त तंदरुस्त रहा। जबकि आज तक की हेलिकॉप्टर क्रैश दुर्घटनाओं का इतिहास बड़ा रक्तरंजित है। हादसे के तुरंत बाद बापू जी ने भक्तों के बीच पहुँचकर दबंग सत्संग भी किया। हेलिकॉप्टर हुआ चूर-चूर, दबंग बापू जी ज्यों-के-त्यों भरपूर !

दबंग अठखेलियाँ

अपने उस दिलबर ʹयारʹ के साथ महाराजश्री कभी-कभी बड़ी दबंगई से एकांत में अठखेलियाँ करते हैं। मुहब्बत जब जोर पकड़ती है तो शरारत का रूप ले लेती है। संत श्री कहते हैं-

“कभी-कभी तो मैं कमरे में ही चिल्लाता रहता हूँ, “ऐ हरि…!” मजा आता है। मुझे पता है कि वह कहीं गया नहीं दूर नहीं। इतनी बड़ी हस्ती जिसके बड़प्पन का कोई माप नहीं, उसको चिल्लाकर बुलाता हूँ, “ऐ हरि….!” तो भीतर से आवाज आती है – हाँ, हाजिर है।”

इन महाराज का कसम खाने का तरीका भी बड़ा दबंग है। ये अलमस्त औलिया लाखों की भीड़ के सामने कसम खाते हैं- “यदि मैं झूठ बोलूँ तो तुम सब एक साथ मरो।” है किसी की हिम्मत ऐसी कसम खाने की ? और उसी क्षण सामने उपस्थित लाखों का जनसागर आनंदित-आह्लादित हो जाता है। क्या दबंग प्रेमभरी अठखेलियाँ हैं !

दबंग पोल-खोल

ये महाराज ऐसे दबंग हैं कि भगवान की एक-एक ʹनसʹ जानते हैं, ʹप्लसʹ तो क्या ʹमाइनसʹ भी जानते हैं। मिल गये ऐसे मस्त दबंग कि भगवान पूरे-के-पूरे बेपर्दा हो गये, अपने ʹवीक प्वाइंटʹ भी इनसे छुपा नहीं पाये। और आपका जीवन तो ऐसी खुली किताब है कि आप यह ʹप्राइवेट बातʹ भी भक्तों से, श्रोताओं से छुपा नहीं पाये। खोल दी पूरी पोल और पढ़ा दी ऐसी पट्टी कि अब काल भी भक्तों का बाल बाँका नहीं कर सकता। और इससे वह अकाल, सर्वसुहृद ʹयारʹ भी खुश है बेशुमार ! यह है वह दबंग पोल-खोलः

“आप भगवान को कह दो कि हम नहीं मरते, हम क्यों मरेंगे ! मरता हमारा शरीर है। हमको आप भी नहीं मार सकते, हम तो आपके सनातन अंश हैं। हम आपको नहीं छोड़ सकते तो आप भी हमें नहीं छोड़ सकते लाला ! अब हम जान गये, बलमा को पहचान गये। हम संसार को रख नहीं सकते और आपको छोड़ नहीं सकते और आप भी संसार को एक-जैसा नहीं रखते और हमें छोड़ नहीं सकते। भगवान को चुनौती दो कि आप हमें छोड़ के दिखाइये।”

भगवान को स्वयं चुनौती देने वाले और भक्तों-साधकों से भी दिलाने वाले कैसे दबंग हैं ये महाराज !

महाराज की खुली चुनौती हैः अगर है किसी में ताकत तो ईश्वर के साथ का संबंध तोड़ के दिखा दे। मैं उसका चेला बन जाऊँगा और मेरे सारे आश्रम और सारे शिष्य उसको समर्पित कर दूँगा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2013, पृष्ठ संख्या 2,27,28 अंक 241

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

प्रकृति भी तुम्हारी आज्ञा मानेगी


परब्रह्म परमात्मा की प्रसन्नता व संतुष्टि के लिए ही प्रकृति ने यह संसाररूपी खेल रचा है और जिनकी ब्रह्म में स्थिति हो जाती है, ऐसे महापुरुषों का संकल्पबल असीम होता है। ऐसे निरिच्छ महापुरुष कई बार सर्वमांगल्य के भाव से भरकर प्रकृति को बदलाहट के लिए आज्ञा देते हैं तो कई बार स्वयं प्रकृति ऐसे महापुरुषों की सेवा के लिए तत्पर हो जाती है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमें ब्रह्मनिष्ठ पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के जीवन में कई बार देखने को मिला है।

जो गुरु आज्ञा मानता है…..

एक बार भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज ने बापू जी को कुछ भक्तों को चाइना पीक (वर्तमान में नैना पीक) दिखाने की आज्ञा दी। ओलों की वर्षा और घना कोहरा होने से सभी यात्री वापस लौटने लगे परंतु अपने सदगुरुदेव की आज्ञा पूरी करने हेतु बापू जी उन भक्तों को समझाते बुझाते, कभी सत्संग सुनाते कैसे भी करके युक्ति से गन्तव्य स्थान तक ले गये। वहाँ पहुँचे तो मौसम एकदम साफ हो गया था। भक्तों ने चाइना पीक देखा। वे बड़ी खुशी से लौटे और पूरा हाल साँईं जी को कह सुनाया। जिस पर साँईं श्री लीलाशाह जी का हृदय बापू जी के लिए करूणा-कृपा से छलक उठा और बोलेः “जो गुरु आज्ञा मानता है, प्रकृति भी उसकी आज्ञा मानेगी।” और आज हम देख रहे हैं कि ब्रह्मज्ञानी का यह ब्रह्मवाक्य साकार होकर ध्रुव सत्य के रूप में देदीप्यमान हो रहा है। पूज्य बापू जी के करोड़ों शिष्यों के जीवन इसकी अनंत अदभुत गाथाएँ हैं। प्रकृति और परमेश्वर की इस अदभुत, मधुमय लीला-सरिता से कुछ आचमनः

करूणावत्सल बापू जी अकालपीड़ित भक्तों की करूण पुकार सुनकर अपने संकल्पबल से कहीं वर्षा करने की लीला करते हैं तो कहीं बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं को अपने संकल्पबल द्वारा टाल देते हैं। सितम्बर 2005 में भूकम्प की तबाही से उभरे रापर क्षेत्र के अकालपीड़ित लोगों की व्यथा सुनकर बापू जी ने कहाः “यह सत्संग पूरा करेंगे, फिर वर्षा करना ठाकुर जी !” विनोद-विनोद में भक्तों से भी यही कहलवाया और खुद हो गये चुप ! बापू जी ने एक नजर डाली आकाश पर, भक्तों पर और फिर शुरु कर दिया सत्संग। सत्संग पूरा होते ही लोग अपने-अपने घर पहुँचे और वर्षा ने अपना रंग दिखाया। पूरे रापर, कच्छ में खूब वर्षा हुई। फिर तो सिद्धपुर, विरमगाम, खेरालू… कितने-कितने स्थानों पर यह लीला चलती रही इसकी गिनती कर पाना सम्भव नहीं है।

इसी प्रकार रतलाम के पास नामली गाँव, पंचेड़ में पानी की भारी किल्लत थी, जमीन गहरी खोदने पर भी पानी नहीं निकलता था। भक्तों ने गुरुदेव के श्रीचरणों में प्रार्थना निवेदित कीक। पूज्यश्री ने वहाँ सत्संग किया, फिर जिस स्थान पर जमीन खोदने के लिए गुरुदेव ने आज्ञा की, वहाँ खुदाई करने पर थोड़ी ही गहराई में पानी का स्रोत मिल गया। फिर उस गाँव में जहाँ-जहाँ खुदाई हुई सभी जगह पानी-ही-पानी ! कैसी करूणा है महापुरुषों की !

अभी हाल ही में सभी ने एक ऐसा चमत्कार देखा जिसे सभी ने 21वीं सदी के उस सबसे बड़े चमत्कार के रूप में नवाजा, जिसे पूरे विश्व के लोगों ने देखा और हर कोई आज भी देख सकता है क्योंकि सौभाग्य से वह चमत्कार कैमरे में भी रिकॉर्ड हुआ। (देखें सितम्बर 2012 की ʹऋषि दर्शनʹ विडियो मैगजीन) स्थान था गोधरा व तारीख थी 29 अगस्त 2012 यहाँ हुई हेलिकॉप्टर दुर्घटना में जहाँ 100 फुट की ऊँचाई से गिरे हेलिकॉप्टर के पुर्जे-पुर्जे अलग हो गये, वहीं उसमें सवार पूज्य बापू जी के कोमल शरीर का अंग-प्रत्यंग चुस्त-तंदरुस्त ! हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं के रक्तरंजित इतिहास में यह पहली ही घटना थी, जिसमें किसी भी यात्री का बाल भी बाँका न हुआ हो। उसके अगले ही दिन नौसेना के दो हेलिकॉप्टरों के पंख टकराये और नौ लोगों की मृत्यु हो गयी। बापू जी जिस हेलिकॉप्टर से बिल्कुल सुरक्षित बाहर आये उसकी दशा देखकर तो नास्तिकों का शीश भी संत-चरणों में झुके बिना नहीं रहेगा !

प्रकृति करे सेवा

जिनको कछु न चाहिए, वो शाहन के शाह।

ऐसे अचाह, अलमस्त महापुरुषों की सेवा करके प्रकृति अपना भाग्य बना लेती है। उनके चित्त में बस एक हल्का-सा स्फुरण हो और वह वस्तु हाजिर हो जाय, यह बात विज्ञान की समझ से परे है। बापू जी कहते हैं- “मेरे शरीर को कुछ भी आवश्यकता हो तो पहले चीज आ जायेगी, बाद में लगेगा कि ʹहाँ, चलो ले लो।ʹ पहले चीज आयेगी, बाद में आवश्यकता दिखेगी – ऐसी व्यवस्था हो जाती है। आप ईश्वर में टिक जाओ तो प्रकृति आपकी सेवा करके अपने को आनंदित करती है।

जब मैं डीसा (गुजरात) के एकांत में था तो कुटिया से जब बाहर निकलता तो लोग खड़े रहते और हमारे पास तो कुछ होता नहीं था, तो किसी को बुलाया और कहाः “तुम मूँगफली ले आओ और बच्चों को बाँट दो।” दो रूपये की बहुत सारी मूँगफली मिल जाती थी। तो उसने मूँगफली लाकर बच्चों को बाँट दी। जो गर्म-गर्म मूँगफली बिकती है न ठेले पर, वह। फिर मन में सोचा, ʹअपन किसी से माँगते नहीं और उसको बोला कि इनको मूँगफली लाकर दे दो। उसको पैसे कैसे देंगे ?ʹ अपने पास तो पैसे थे नहीं। फिर हम नदी पर जा रहे थे तो ज्यों नदी पर गये त्यों दो रूपये के चार नोट ऊपर-ऊपर तैरते हुए आ गये। मैंने उन्हें उठा लिया और उस व्यक्ति को दे दिये कि ʹये ले मूँगफली के पैसे।ʹ

ऐसे ही नारायण जब चौदह-पन्द्रह साल का था तब मेरी रसोई की सेवा करता था। जब मैं दुबई गया तो रसोइया साथ चला। मैं सुरमा लगाता था। मैंने कहाः “इधर तो गर्मी बहुत है बेटा ! सुरमा लाया है क्या ?”

बोलेः “साँईं सुरमा तो नहीं लाया मैं।”

“चलो, ठीक है।”

जब दुबई के समुद्र-तट पर घूमने गया तो देखा कि जैसे मिठाई के डिब्बे आते हैं न, वैसे ही छोटा-सा डिब्बा तरंगों पर नाच रहा है। मैंने कहाः “इस बक्से में क्या होगा ?” हाथ लम्बा करके उठा लिया और देखा तो सुरमे की दो शीशियाँ और एक सलाई थी, कई  वर्षों तक चला वह। बिल्कुल पक्की, सच्ची बात है !”

कैसी है आत्मवेत्ता संतों की महिमा, जिनकी सेवा करने के लिए प्रकृति भी सदैव मौका ढूँढती रहती है।

पूज्य बापूजी का अवतरण होने वाला था तो उसके पहले ही परमात्मा ने सौदागर को सत्प्रेरणा दी और वह अत्यन्त सुंदर, विशाल झूला लेकर आ गया था। साधनाकाल में बापू जी की ऐसी ऊँचाई थी कि परमात्मा को चुनौती दे दी कि

जिसको गरज होगी आयेगा, सृष्टिकर्ता खुद लायेगा।।

पूज्य श्री को प्रातः यह विचार आये उससे पहले ही रात को स्वप्न में किसानों को मार्ग बताकर सृष्टिकर्ता ने ब्रह्मवेत्ता संत के भोजन की व्यवस्था कर दी।

सर्वसुहृद पूज्य बापू जी कहते हैं- “आप एक बार उस परब्रह्म-परमात्मा में स्थित हो जाओ तो आपके लिए सब सहज हो जायेगा। मुझे जो गाय दूध पिलाती थी, वह गर्भवती हो गयी थी। अब दूध कहाँ से लाना ? तो मैंने प्यार से गाय की गर्दन को सहलाया, वह फोटो भी है। मैंने कहाः “अब दूध पिलाना बंद कर दिया क्या ?” फिर उस गाय ने जीवन में दूध कभी बंद नहीं किया जब तक वह जीवित रही (वर्तमान में औरंगाबाद आश्रम में भी एक ऐसी ही गाय है, जो वर्षभर दूध देती है।) ऐसे ही आम का वृक्ष बारहों महीने फल देता है और भगवान तो बारह महीनों, चौबीसों घंटे, हर सेकंड फलित-ही-फलित कर रहे हैं।”

सच ही है, परमात्मा तो ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों का स्वरूप है और वही सृष्टिकर्ता, पालनहारा भी है। वही प्रकृति को प्रेरित करके अपने इन साकार स्वरूपों की सेवा में लगाता रहता है। संत कबीर जी ने भी ऐसे महापुरुषों के लिए कहा हैः

अलख पुरुष की आरसी साधु का ही देह।

लखा जो चाहे अलख को इन्हीं में तू लख लेह।।

महापुरुषों से क्या माँगें ?

पूज्य बापू जी

“संतों के पास आकर सांसारिक वस्तुएँ माँगना तो ऐसा ही है जैसे किसी राजा से हीरे न माँगकर आलू, मिर्च, धनिया माँगा जाय। मैं तुम्हें ऐसा आत्म-खजाना देना चाहता हूँ जिससे सब दुःख सदा के लिए दूर हो जायें। तुम अपने दुःख आप मिटा सको, औरों के भी मिटा सको ऐसा लक्ष्य बना लो और मैं तुम्हारा सहयोग करता हूँ, कदम-कदम पर साथ हूँ।”

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2012, पृष्ठ संख्या 2,9,10 अंक 53

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ