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करोड़ों का जीवन सँवारने वाले संत के साथ ऐसा क्यों ?


श्रीमती नूतन भल्ला, स्पेशल एग्जीक्यूटिव ऑफिसर, मुंबई

अभी हाल ही में झूठे केस में फँसाये गये शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती जी न्यायालय से बाइज्जत बरी हुए और स्वामी नित्यानंदजी को बदनाम करने के लिए दिखायी गयी सेक्स सीडी फर्जी निकली। लेकिन वर्षों पहले जब इन पर आरोप लगे, तब से अब तक मीडिया ने जो संतों की इतनी बदनामी कर डाली, उसकी भरपाई कौन और कैसे करेगा ? करोड़ों हिन्दुओं की आस्था को ठेस पहुची, इसका जिम्मेदार कौन है ?

विदेशी ताकतें जो भारत को तोड़ना चाहती हैं, वे भोले-भाले लोगों को आज इस प्रकार भ्रमित कर रही हैं कि भारतवासियों को उनके ही साधु-संतों से नफरत हो जाय। जब संतों के ऊपर झूठे आरोप लगते हैं तो मीडियावाले एक दिन में 8-8 घंटे की ब्रेकिंग न्यूज चलाते हैं लेकिन जब वे न्यायालय से बाइज्जत बरी होते हैं तो मात्र 1-2 मिनट भी उस खबर को चलाते हैं। मीडिया के इस पक्षपातपूर्ण रवैये से भारत के बुद्धिजीवी लोगों का तो मीडिया से विश्वास ही उठ गया है।  मीडिया ने गैंगरेप, हत्या आदि की खबरें दिनभर चला-चलाकर भारत की छवि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अत्यन्त खराब कर दिया है। अरे, भारत में बापू जी जैसे संतों द्वारा कितने निष्काम सेवाकार्य अविरत चल रहे हैं ! ये भी तो कभी मीडियावालों को दिखाने चाहिए। 14 फरवरी के दिन लाखों-करोड़ों बच्चे अपने माता-पिता की आरती-पूजा कर जीवन में आगे बढ़ने हेतु उनसे आशीष पाते हैं…. ये खबरें दिखाने के लिए मीडियावालों को फुर्सत नहीं है क्या ?

आज लगभग 7-8 करोड़ लोग बापू जी कारण अच्छाई के मार्ग पर चल रहे हैं। ये लोग अगर बापू जी से जुड़े नहीं होते तो इन्हीं में न जाने कितने लोग तनावग्रस्त, व्यसनी और क्या-क्या होते ! आकलन कीजिये कि जिन्होंने 7-8 करोड़ लोगों को नेकी की राह व स्वदेशी सिद्धांत पर चलना सिखाया हो, उन महापुरुष का इस देश की सुख, शांति व समृद्धि में कितना बड़ा योगदान है !

आज बापू जी की प्रेरणा से देश के विभिन्न स्थानों पर गरीबों में अनाज, वस्त्र, मिठाई, बर्तन आदि जीवनोपयोगी सामग्रियों का वितरण, गौ सेवा आदि की जा रही है। यह सब कानून के डर से नहीं अपितु लोगों की अच्छाई काम कर रही है, जिसे बापू जी जैसे संतों ने जागृत किया है। ऐसे संतों की बिकाऊ मीडियावाले दिन-रात आलोचना करते रहते हैं। कानून अगर बापू जी के लिए है तो मीडियावालों के लिए भी है। उऩ्हें लोगों की भावनाओं के साथ छेड़छाड़ करने का अधिकार नहीं है।

आज करोड़ों लोग जो बापू जी को  मानते हैं क्या वे सब-के-सब अंधश्रद्धालु हैं ? अरे, कोई 500-1000 लोगों को भ्रमित किया जा सकता है लेकिन क्या 7-8 करोड़ लोगों को कोई भ्रमित कर सकता है ? अरे, स्वयं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे उच्च कोटि के बुद्धिजीवी बापू जी के पास 2 घंटे सत्संग सुनने के लिए बैठे रहे। ऐसे और भी कई हैं।

करोड़ों लोगों को जीवन जीने की कला सिखाने वाले बापू जी जैसे संतों के सम्मान की सुरक्षा के लिए भारत के कानून में ठोस प्रावधान होने चाहिए ताकि कोई भी इनकी प्रतिष्ठा और छवि के साथ खिलवाड़ करने का दुस्साहस न कर पाये।

भारतवासियों से अपील है कि आप किसी भी विदेशी षड्यंत्र के शिकार न बनें। हमें जिन संतों ने ध्यान-भजन सिखाया, परिवार में आपसी सौहार्द सिखाया हम उनसे जुड़े रहें व लाभ उठाते रहें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2014, पृष्ठ संख्या 25, अंक 259

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महापुरुषों का भारत को विश्वगुरु बनाने का सत्यसंकल्प श्री नरेन्द्र मोदी जैसे कर्मयोगी द्वारा शीघ्र साकार होगा


हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता और गुरुजनों को प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लेना यह जीवन में सफलता की चाबी कही गयी है। भगवान श्रीराम, भगवान श्री कृष्ण, भक्त पुंडलिक, श्रवण कुमार, छत्रपति, शिवाजी, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, संत श्री आशाराम जी बापू… ऐसे अनेक संत, महापुरुष, भक्त एवं राजनेता हुए हैं जिन्होंने माता-पिता और गुरुजनों के आदर, वंदन एवं सेवा की पावन मिसाल कायम की।

वर्तमान में भी कुछ ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनका जीवन उपरोक्त संस्कारों से परिपूर्ण है। इनमें से एक हैं भारत के प्रधानंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी। वर्ष 2014 के चुनावों में हासिल हुई जीत के बाद श्री नरेन्द्रभाई मोदी ने सबसे पहले अपनी 96 वर्षीया माँ ‘हीरा बा’ के पास जाकर उनके पैर छुए और आशीर्वाद लिया।

ऐसे संस्कृतिप्रेमी राजनेता भगवान व संतों महापुरुषों की कृपा और करोड़ो-करोड़ों भक्तों साधकों की शुभ-भावना एवं स्नेह प्राप्त कर लेते हैं।

श्री नरेन्द्र मोदी एक जिज्ञासु साधक हैं। उन्होंने अनेक बार पूज्य बापू जी के दर्शन, सत्संग व सान्निध्य का लाभ लिया है। उनके वचनों में- “मैंने तो पूज्य बापू जी को हरियाणा में बैठकर सुना है, पंजाब में भी सुना है, राजस्थान में भी सुना है, उत्तर प्रदेश के गलियारों में सुना है। समग्र राष्ट्र में सामूहिक सत्संग के द्वारा एक नयी चेतना जगी है और उसका एक नया प्रभाव शुरु हुआ है।”

“मेरा ऐसा सौभाग्य रहा है कि जीवन में जब कोई नहीं जानता था, उस समय से बापू जी के आशीर्वाद मुझे मिलते रहे हैं, स्नेह मिलता रहा है। मैं मानता हूँ कि बापू के शब्दों में एक यौगिक शक्ति रहती है। उस यौगिक शक्ति के भरोसे हम करोड़ो गुजरातवासियों के सपने साकार होंगे।”

कुछ वर्ष पूर्व श्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तरायण शिविर के अवसर पर पूज्य बापू जी के दर्शन सत्संग का लाभ लिया तथा शुभाशीष पाये थे। उन्होंने कहा थाः “मैं पूज्य बापू जी के श्रीचरणों में प्रणाम करने आया हूँ। मैं मानता हूँ कि भक्ति से बड़ी दुनिया में कोई ताकत नहीं होती और भक्त हर कोई बन सकता है। हम सबको भक्त बनने की ताकत मिले, आशीर्वाद मिले। मैं समझता हूँ कि संतों के आशीर्वाद ही हम सबकी बड़ी पूँजी होती है।

देशभर से आये हुए आप सबको (सत्संगियों को), एक लघु भारत के रूप में मैं अपने सामने देख रहा हूँ। इस पवित्र धरती पर आये हुए आप सभी को मैं नमन करता हूँ।”

बड़ौदा के सत्संग समारोह में पधारे श्री नरेन्द्रभाई मोदी ने कहा थाः “पूज्य बापू जी ! आप देश और दुनिया – सर्वत्र ऋषि-परम्परा की संस्कार धरोहर को पहुँचाने के लिए अथक तपश्चर्या कर रहे हैं। अनेक युगों से चलते आये मानव कल्याण के इस तपश्चर्या-य5 में आप अपने पल-पल की आहुति देते रहे हैं। उसमें से जो संस्कार की दिव्य ज्योति प्रकट हुई है, उसके प्रकाश में मैं और जनता-सब चलते रहें। मैं संतों के आशीर्वाद से ही जी रहा हूँ। मैं यहाँ इसलिए आया हूँ कि लाइसैंस रिन्यू हो जाये। पूज्य बापू जी ने आशीर्वाद दिया और आप सबको वंदन करने का मौका दिया, इसलिए मैं बापू जी का ऋणी हूँ।”

कुछ साल पहले बापू जी ने श्री नरेन्द्रभाई मोदी को शुभाशीष प्रदान करते हुए कहा था कि “हम आपको देश के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।” बापू जी के संकल्प में करोड़ों साधकों भक्तों का संकल्प भी जुड़ गया और आज वह साकार हो चुका है।

संकल्पमूर्ति के लिए इस वर्ष चुनाव के दौरान साधकों ने अनेक स्थानों पर मतदाता जागृति रैलियाँ भी निकालीं एवं देश में परिवर्तन लाकर एक मजबूत, सक्षम सरकार प्रदान कराने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया।

भाजवा एवं सहयोगी दलों के वरिष्ठ राजनेताओं ने समय-समय पर पूज्य बापू जी के सत्संग-दर्शन का लाभ लिया है तथा सुशासन की प्रेरणा प्राप्त की है। बापू जी के प्रति आपके उदगार हैं- “मैं यहाँ पर पूज्य बापू जी का अभिनंदन करने आया हूँ, उऩका आशीर्वचन सुनने आया हूँ….. पूज्य बापू जी सारे देश में भ्रमण करके जागरण का शंखनाद कर रहे हैं, सर्वधर्म-समभाव की शिक्षा दे रहे हैं, संस्कार दे रहे हैं तथा अच्छे और बुरे में भेद करना सिखा रहे हैं। हमारी जो प्राचीन धरोहर थी और जिसे हम लगभग भूलने का पाप कर बैठे थे, बापू जी हमारी आँखों में ज्ञान का अंजन लगाकर उसको फिर से हमारे सामने रख रहे हैं।

बापू जी का प्रवचन सुनकर बड़ा बल मिला है। उनका आशीर्वाद हमें मिलता रहे, उनके आशीर्वाद से प्रेरणा पाकर बल प्राप्त करके हम कर्तव्य के पथ पर निरन्तर चलते हुए परम वैभव को प्राप्त करें, यही प्रभु से प्रार्थना है।

13 दिन के शासनकाल के बाद मैंने कहाः ‘मेरा जो कुछ है, तेरा है।’ यह तो बापू जी की कृपा है कि श्रोता को वक्ता बना दिया और वक्ता को नीचे से ऊपर चढ़ा दिया। जहाँ तक ऊपर चढ़ाया है वहाँ तक ऊपर बना रहूँ, इसकी चिंता भी बापू जी को करनी पड़ेगी।” श्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व प्रधानमंत्री।

यह बात जगजाहिर है कि इसके बाद श्री अटल बिहारी वाजपेयी पहले 13 महीने और फिर 4.5 साल तक प्रधानमंत्री पर रहे।

“मैं जानता हूँ इस सच्चाई को, चाहे इस भारत का कोई मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री क्यों न हो, पूरी पार्टी के द्वारा यदि कोई सार्वजनिक सभा आयोजित करनी हो, तब भी इतनी बड़ा जनसमूह इकट्ठा नहीं किया जा सकता जितना बड़ा जनसमूह आज परम पूज्य बापू जी के दर्शन के लिए यहाँ पर अपनी आँखों के सामने देख रहा हूँ। सुबह 7 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक इतनी भीड़ जुटी रहे ऐसा किसी भी मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री की सभा में नहीं हो सकता, जो मैं यहाँ देख रहा हूँ।

हमारे सबके आस्था व विश्वास के केन्द्र परम पूज्य बापू जी के देशभर में तथा दुनिया के दूसरे देशों में जो प्रवचन चलते हैं, उनके द्वारा अध्यात्म की प्रेरणा हम सबको मिलती रहती है। मैं पुनः उनके चरणों में शीश झुकाकर उन्हें हृदय की गहराइयों से प्रणाम करता हूँ।”

श्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष भाजपा, वर्तमान केन्द्रीय गृहमंत्री

“पूज्य बापू जी द्वारा दिया जाने वाला नैतिकता का संदेश देश के कोने-कोने में जितना अधिक प्रसारित होगा, जितना अधिक बढ़ेगा, उतनी ही मात्रा में राष्ट्रसुख संवर्धन होगा, राष्ट्र की प्रगति होगी। जीवन के हर क्षेत्र में इस प्रकार के संदेश की जरूरत  है।”

श्री लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व केन्द्रीय गृहमंत्री एवं उपप्रधानमंत्री

“जगत के हित और प्यारों के कल्याण के लिए जिन्होंने यह देह धारण की है, ऐसे पूज्य बापू जी के चरणों में मैं प्रणाम करता हूँ। आपने जो कुछ बातें कही हैं, हम उनका पालन करेंगे।”

श्री शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश

“महाराज पूज्य बापू जी ! आपका आशीर्वाद बना रहे क्योंकि मैं राज करने नहीं आयी, धर्म और कर्म को एक साथ जोड़कर मैं सेवा करने के लिए आयी हूँ और वह मैं करती रहूँगी। आप रास्ता बताते रहो और इस राज्यरूपी परिवार की सेवा करने की शक्ति देते रहो।

मैं मानती हूँ कि जब गुरु के साक्षात् दर्शन हो गये हैं तो कुछ बदलाव जरूर आयेगा, राज्य की समस्याएँ हल होंगी व हम लोग जनसेवा के काम कर सकेंगे।” वसुन्धरा राजे सिंधिया, मुख्यमंत्री, राजस्थान।

“बापू जी कितने प्रेमदाता हैं कि कोई भी व्यक्ति समाज में दुःखी न रहे इसलिए सतत प्रयत्न करते रहते हैं। जीवन की सच्ची शिक्षा तो हम भी नहीं दे पा रहे हैं, ऐसी शिक्षा तो पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू जैसे संतशिरोमणि ही दे सकते हैं।” श्रीमती आनंदीबेन पटेल, तत्कालीन शिक्षामंत्री, वर्तमान मुख्यमंत्री।

“हम सबका परम सौभाग्य है कि बापू जी के दर्शन हुए। आपसे आशीर्वाद मिला, मार्गदर्शन भी मिला। आपके आशीर्वाद व कृपादृष्टि से छत्तीसगढ़ में सुख-शांति व समृद्धि रहे। यहाँ के एक-एक व्यक्ति के घर में विकास की किरण आये।”

डॉ.रमन सिंह, मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़

“श्रद्धेय पूज्य बापू जी ने मुझे आशीर्वाद दिया है। उनके आशीर्वाद से मुझे समाज में अच्छा कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी।

करोड़ों लोगों को जीवन जीने का मार्ग आपके विचारों से मिलता है। संस्कार और शिक्षा के माध्यम से आपने यह जो लोक-प्रबोधन किया है, इससे हमारे देश में और समाज में अच्छे नागरिक तैयार होंगे जो देश और समाज का गौरव बढ़ाते जायेंगे।” श्री नितिन गडकरी, तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाजपा, वर्तमान केन्द्रीय सड़क परिवहन राजमार्ग एवं जहाजरानी मंत्री

“परम पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू विद्यार्थियों के लिए देश के कोने कोने में आयोजित होने वाले विद्यार्थी तेजस्वी तालीम शिविरों में दुर्लभ एवं विस्मृत यौगिक क्रियाओं एवं अपने शुभ संकल्पों तथा प्रेरणादायी अनुभवसम्पन्न वचनों द्वारा उनमें आध्यात्मिक चेतना का संचार कर भारतीय संस्कृति से अनुप्रमाणित सुसंस्कारों का सिंचन करते हैं।”

डॉ. मुरली मनोहर जोशी, तत्कालीन केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री

“बापू जी की अमृतवाणी का विशेषकर मुझ पर तो बहुत प्रभाव पड़ता है। आपके दर्शनमात्र से ही मुझे एक अदभुत शक्ति मिलती है। इस हिन्दुस्तान में अमन, शांति, एकता एवं भाईचारा बना रहे इसलिए पूज्य बापू जी से आशीर्वाद लेने आया हूँ।” श्री प्रकाश सिंह बादल, मुख्यमंत्री, पंजाब

“हमें आपके मार्गदर्शन की जरूरत है, वह सतत् मिलता रहे। आपने हमारे कंधों पर जो जवाबदारी दी है, उसे हम भलीप्रकार निभायें। लोगों की, संस्कृति की अच्छे ढंग से सेवा करें। सत्य का मार्ग कभी न छूटे, ऐसा आशीर्वाद दो।”

श्री उद्धव ठाकरे, अध्यक्ष, शिवसेना

श्री नरेन्द्र भाई मोदी और इनके सभी साथी देश का नाम बुलंदियों पर ले जायें, भारत में वैदिक संस्कृति का प्रकाश फैलायें। पूज्य बापू जी एवं महापुरुषों का भारत को विश्वगुरु बनाने का सत्यसंकल्प शीघ्र साकार हो। (श्री आर सी मिश्र)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2014, पृष्ठ संख्या 7-9, अंक 258

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आखिर कौन हैं ये ?


डॉक्टर प्रतिभा शर्मा

एम.ए., एम. फिल., एम.बी.ए, पी. एच. डी.

(एक अदभुत सत्य घटना पर आधारित पुस्तक ‘आखिर कौन हैं ये ?’ भाग – 1 से संक्षिप्त)

एक मुद्दे की सच्चाई जानने की इच्छा हुई जो पिछले 8 महीने से देश-विदेश के मीडिया में छाया हुआ है – ‘नाबालिक के यौन-शौषण के आरोप में विश्व के प्रसिद्ध नामी संत आशाराम बापू जेल में।’ सिर्फ बापू ही नहीं, कई तरह के आरोप विगत कई वर्षों से देश के जाने माने संतों पर लगते रहे हैं और उन्हें जेल भी जाना पड़ा है। लेकिन आज तक किसी भी संत पर कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ है बल्कि वे निर्दोष छूटकर बाहर आये हैं। आज फिर एक संत पर  आरोप लगे हैं और वे जेल में हैं। विचारणीय पक्ष यह है कि इन संत पर लगे आरोप का आधार क्या है ? क्योंकि नये कानून बनने के बाद कइयों पर झूठे आरोप लगने लगे हैं और उसमें कई तो झूठे साबित भी हुए हैं। क्या ये संत भी अन्य संतों की तरह निर्दोष छूटकर बाहर आयेंगे ? अगर ऐसा होता है तो फिर मीडिया जो दिखा रहा है वह झूठ है ? अगर संत आशाराम बापू पर लगे आरोप सही हैं तो फिर उन करोड़ों भक्तों (जिसमें महिलाएँ तथा लड़कियाँ भी शामिल हैं) की श्रद्धा का रहस्य क्या है ? उनके 425 आश्रमों व उनमें रह रहे हजारों साधकों तथा 17 हजार से ज्यादा चल रहे ‘बाल संस्कार केन्द्रों’ आदि की वजह क्या है ? ये सारे प्रश्न मेरे जेहन में लगातार घूम रहे हैं और इन्हीं प्रश्नों का उत्तर ढूँढने के लिए मैंने जोधपुर जाने का निर्णय किया।

सत्य की खोज में जोधपुर की ओर…..

जब मैं जोधपुर के उस केन्द्रीय कारागृह के मुख्य द्वार पर पहुँची, जहाँ बापू कई महीनों से हैं, तो वहाँ खड़े लोगों ने बतायाः “आज रविवार है, कैदियों से मुलाकात का दिन है।”

अभी वहाँ करीब 30-40 लोग ही खड़े थे परंतु कुछ ही समय में लोगों के आने का सिलसिला चालू हुआ तो अच्छी खासी भीड़ जेल के सामने हो गयी, जिसमें सभी आयुवर्ग की महिलाएँ, पुरुष एवं बच्चे थे। उसमें भी महिलाओं की संख्या ज्यादा थी।

मैंने जेल के मुख्य द्वार पर खड़े पुलिसवालों को अपना परिचय देते हुए कुछ जानकारी माँगीः “यहाँ पर आशाराम बापू के अलावा और कितने कैदी हैं ? आज इतनी भीड़ क्यों हो रही है ?”

सिपाहीः “लगभग 700 कैदियों की जेल है, आज कैदियों से मुलाकात का दिन है। ये बाबा के दर्शन की भीड़ है।”

“क्या ये सब लोग आशाराम बापू के ही भक्त हैं या और अन्य लोग भी हैं ?”

इस  पर सिपाही ने थोड़ा चिढ़ते हुए कहाः “अरे ! क्या बतायें, हम तो परेशान हो गये हैं। पहले यहाँ इतनी सख्त डयूटी नहीं करनी पड़ती थी। अभी तो 24 घंटे चौकन्ना रहना पड़ता है। पर मानना पड़ेगा इन लोगों को, इतने महीने हो गये बाबा को यहाँ आये, पर एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब उनके दर्शन करने वालों की भीड़ नहीं आयी हो। समझ में नहीं आता, इतने आरोप लगने के बाद भी इन लोगों की श्रद्धा क्यों टिकी हुई है ! कभी-कभी ऐसा लगता है कि बाबा में कुछ तो है।”

सिपाही की बात सुनकर मेरा माथा ठनका, मैंने कई बार   सुना था कि ‘सबसे ज्यादा भीड़ अगर किसी के सत्संग में होती है तो वे संत आशाराम बापू ही हैं।’ इतने बड़े संत को इस तरह के आरोप में जेल की सजा काटनी पड़ रही है !

यही सब सोचते हुए मैं जेल के मुख्य द्वार के बाहर एक पत्थर पर बैठ गयी। इतने में मेरे नजदीक बैठी एक लड़की के पास एक पुलिस ऑफिसर आकर बोलाः “आप कहाँ से आये हो ?”

उसने बताया कि “मैं महाराष्ट्र से आयी हूँ।”

“आप इतनी दूर से क्यों आये हो ?”

“आशाराम बापू के दर्शन करने।” (यह बोलकर वह लड़की फिर से शांत होकर बैठ गयी।)

“क्या आपको सच में लगता है कि आपके बापू निर्दोष हैं ?”

“मेरे बापू निर्दोष थे, हैं और रहेंगे।” उस लड़की का इतना तेज उत्तर पाकर वह ऑफिसर उस लड़की के थोड़ा पास आया और बोलाः “बहन ! हम भी जानते हैं कि बापू एकदम निर्दोष हैं। और सच में वे कोई साधारण पुरुष नहीं दिव्य पुरुष हैं।”

लड़की ने पलटकर पूछाः “आप यह कैसे कह सकते हैं ?”

तब उस पुलिसवाले ने बतायाः “बापू जी की सुरक्षा में कई ऑफिसर रहते हैं। एक बार मेरा भी नम्बर लगा। मेरी डयूटी बाबा जी को चेक करने की थी। मैं बाबा जी के शरीर को छूकर चेक कर रहा था तो बाबा जी ने कहा कि “बाहर से क्या चेक कर रहे हो ? भीतर चेक करो कि तुम कौन हो ?” यह सुनते ही मुझे कुछ अजीब सा अनुभव हुआ। बस, बहन जी ! तब से हमें तो पक्का हो गया कि बाबा जी बिल्कुल निर्दोष हैं और ये कोई महापुरुष हैं।”

उसने इतना कह दिया कि “बापू जी के आने के बाद हम अहमदाबाद आश्रम में जरूर जायेंगे और मंत्रदीक्षा भी लेंगे।”

ऑफिसर के मुँह से ऐसी बातें सुनकर मैं तो अवाक् रह गयी। फिर तो मेरी जिज्ञासा और बढ़ गयी और मैं सबके साथ आकर भीड़ में शामिल हो गयी।

अगाध श्रद्धा

कुछ महिलाओं से मैंने पूछाः “आप बापू के दर्शन के लिए आयी हो ?”

उन्होंने मुझे सिर से पैर तक देखा, कोई जवाब नहीं दिया, दूसरी ओर चली गयीं। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। इसी बीच एक 30-32 साल का युवक मेरे पास आया और बोलाः “वे आपको पत्रकार समझ रही हैं, इसलिए आपकी बात का उन्होंने जवाब नहीं दिया।”

मैंने कहाः “भाई, अगर मैं पत्रकार हूँ तो भी क्या मेरी बात का जवाब नहीं देना चाहिए ?”

युवकः “दरअसल, पिछले कई महीनों से मीडिया ने बापू जी और आश्रमों पर कई घिनौने आरोप लगाये हैं, जो एकदम झूठे और बेबुनियाद हैं। मीडिया में पक्षपातपूर्ण तरीके से खबरों को तोड़-मरोड़कर दिखाया है, जिससे साधकों में मीडिया के खिलाफ बहुत आक्रोश हैं। आपको मालूम है कि भोलानंद, जिसने अनर्गल आरोप लगाया था कि “जम्मू आश्रम में बच्चे गाड़े गये हैं…..”, उसका भांडा फोड़ हो गया है और उसने पुलिस हिरासत में तथा जाहिर में आकर सभी षड्यंत्रकारी एवं बिकाऊ मीडियावालों की पोल खोल दी है। क्या आपको जानकारी है ?”

मैंने कहाः “नहीं।”

फिर वह युवक आत्मविश्वास से बोलाः “होगी भी कैसे ? मीडिया ने तो यह खबर लोगों तक आने ही नहीं दी। बापू जी के केस में मीडिया के इसी रूख के कारण लोगों का मीडिया पर से विश्वास उठ गया है।”

“आपका नाम क्या है ? और कहाँ से हो ? क्या करते हो ?”

“मेरा नाम अंकित दवे है, मुंबई से हूँ। अभी तो नौकरी छोड़ दी है।”

“नौकरी क्यों छोड़ दी ?”

“जब तक बापू जी बाहर नहीं आ जाते मुंबई नहीं जाऊँगा।”

मैं सुनकर हैरान रह गयी। आज के इस भौतिकवादी समाज में पढ़ा-लिखा, फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाला नवयुवक अंधविश्वासी तो नहीं हो सकता !

हमारे बातें पास में खड़ी एक 20-22 साल की लड़की सुन रही थी।

मैंने उससे पूछाः “आप कहाँ से हो ? यहाँ कब से आयी हो ?”

लडकीः “जम्मू से हूँ। मैं तो 20-25 दिन से ही हूँ यहाँ।”

बातों ही बातों में उसने बताया कि जिस दिन से बापू जेल गये हैं, उसने भोजन छोड़ दिया है, केवल दूध और फल लेती है।

मैंने पूछाः “भोजन कब करोगी ?”

“जब बापू जी बाहर आयेंगे।” (इतना कहते ही उसकी आँखों में आँसू आ गये।)

मैने उसे सांत्वना दी और दूसरी ओर रुख किया। यहाँ पर उपस्थित लोगों की अगाध श्रद्धा देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था और हृदय में कुछ अजीब सी अनुभूति भी। सभी के चेहरे और बातों में एक सच्चाई थी।

आखिर कौन हैं ये ?

बापू की एक झलक पाने के लिए बेताब इस भीड़ में कुछ महिलाएँ एक छोटी सी किताब पढ़ रही थीं।

मैंने पास खड़े एक व्यक्ति से पूछाः “ये महिलाएँ क्या पढ़ रही हैं ?”

व्यक्ति बोलाः “श्री आशारामायण जी का पाठ कर रही हैं।”

“इसमें क्या है ?”

“जैसे भगवान श्रीराम की जीवनलीला रामायण है, वैसे ही पूज्य बापू जी की जीवनलीला श्री आशारामायण है।”

कौतूहलवश मैंने भी यह पुस्तिका ले ली। काव्य के रूप में लिखी इस पुस्तिका में आशाराम बापू का जीवन परिचय और उनके द्वारा की गयी लीलाओं की झलक थी।

बापू के जन्म के बारे में लिखा थाः “इनके जन्मते ही अजनबी सौदागर बड़ा झूला ले आया था। आशाराम बापू के बचपन का नाम आसुमल था। इन्हें बचपन से ही ईश्वरप्राप्ति की लगन थी। विद्यालय में शिक्षक भी उनका आदर करते थे। जब ये बड़े हुए और घरवालों ने उनकी शादी करनी चाही तो घर छोड़कर भाग गये। माँ व भाई ने ढूँढकर समाज में अपनी इज्जत का वास्ता देकर शादी करवायी। लेकिन वे धर्मपत्नी को समझा बुझाकर अपना लक्ष्य ईश्वरप्राप्ति बता के घर छोड़कर चले गये। फिर वे कई गुफाओं, कंदराओं, जंगलों तथा अन्य जगहों में सदगुरु की खोज में घूमते घामते एक ब्रह्मज्ञानी संत साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के चरणों में पहुँचे।”

इतना पढ़कर मन में फिर ठनक हुई कि जिनका जीवन युवावस्था से इतना संयमी व वैराग्यपूर्ण है कि ईश्वरप्राप्ति के लिए शादी क तुरंत बाद ही अपनी पत्नी को छोड़कर चले जाते हैं, क्या वे 74-75 वर्ष की आयु में अपनी पोती की उम्र की लड़की के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं ! एक बार तो ऐसा सोचना भी मुझे पाप लग रहा था। खैर, जैसे तैसे मन को इस उधेड़ बुन से सँभालते हुए मैंने आगे की पक्तियाँ पढ़ीं।

‘ईश्वरप्राप्ति की तीव्र तड़प देखकर साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज ने उनको शिष्यरूप में स्वीकार लिया। आसुमल गुरुसेवा में तितिक्षा सहते हुए बड़ी तत्परता से लगे रहे। और आसोज सुद दो दिवस संवत बीस-इक्कीस को साँईं श्री लीलाशाह जी की कृपा से उन्हें आत्मसाक्षात्कार हुआ।

इसके बाद उनके जीवन में कई चमत्कार हुए। सत्संग पर भगवन्नाम के प्रताप से उन्होंने कितने ही लोगों के रोग-शोक मिटाये, शराब-मांस आदि छुड़वाये और लोगों को भक्ति ज्ञान का रंग लगाया…. आदि।’

यह पुस्तिका पढ़कर मेरा मन आश्चर्य और असमंजता के सागर में गोते खाने लगा कि आखिर कौन हैं ये ?

फिर सोचा, ‘चलो, कुछ और लोगों से मिला जाय।’

मेरी उत्सुकता बढ़ती गयी…..

एक लम्बी सी सुंदर युवती पर मेरी निगाहें ठहर गयीं। मैंने उससे पूछाः “आप कहाँ से आयी हो ?”

उसने सहज भाव से उत्तर दियाः “अमेरिका से।” अब चौंकने की बारी मेरी थी, अमेरिका से….!

“क्यों आयी हो ?”

युवतीः “बापू जी के दर्शन करने।”

“आप तो बहुत दूर से आयी हो, दर्शन गये क्या ?”

“हाँ, कल कोर्ट में तो हुए थे पर बहुत दूर से हुए थे। आज रविवार को जेल के अंदर जाने की अनुमति मिल सकती है, जिससे पास से दर्शन हो सकते है।”

“अगर आप अन्यथा न लें तो एक प्रश्न पूँछूँ ?”

“हाँ-हाँ, पूछिये।”

“देखो, इतने महीनों से दुनिया के सामने बापू जी के खिलाफ माहौल बना है, कई आरोप लगे फिर भी आपकी इतनी श्रद्धा कि अमेरिका से यहाँ दर्शन के लिए आयी हो, मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है। ऐसा क्यों ?”

“मैंने तो समझा था कि आपने मंत्रदीक्षा ली हुई है लेकिन आपक इस प्रश्न से मुझे समझ में आ गया कि आपने दीक्षा नहीं ली है। कोई बात नहीं, मैं आपके प्रश्न का जवाब जरूर देना चाहूँगी।” (यह सारा वार्तालाप अंग्रेजी में चल रहा था।)

लेकिन यह हकीकत है

उस युवती ने बताया कि “मेरा नाम सुची है, मैंने व मेरे पति ने 1998 में पूज्य बापू जी से दीक्षा ली थी। हमारा एक बेटा है। जब वह छोटा था तो एक बार ऐसा बीमारी पड़ा कि किसी दवाई के रिएक्शन से उसे दोनों आँखों से दिखना बंद हो गया। कई डॉक्टरों से इलाज कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। एक दिन मैंने बेटे को बापू जी की फोटो के सामने लिटा दिया और एक चिट्ठी लिखकर बापू जी द्वारा स्पर्श की हुई चरणपादुका पर रख दी, फिर रातभर हम वहीं बैठे रहे। अचानक सुबह-सुबह लगभग 4 बजे मेरा बेटा उठा और हमें देखते हुए बोलाः “पीले कपड़े में बापू जी आये थे, बापू जी की आँखों से रोशनी निकली और मेरी आँखों में समा गयी, मुझे अब सब दिख रहा है।”

हम तो खुशी से झून उठे। जहाँ सभी डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था वहाँ बापू ने हमारे बच्चे को नेत्रदान दिया। मुझे लगता है, शायद आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं होगा लेकिन यह हकीकत है। तब से लेकर आज तक  मैं और मेरे पति साल में 2 बार बापू जी के दर्शन करने भारत आते हैं। यहाँ जो भी लोग खड़े हैं या फिर बापू के जितने भी साधक हैं उनके अपने कई अनुभव हैं इसीलिए सबकी बापू जी में अगाध श्रद्धा है।

जैसा आपने कहा कि मीडिया में इतने दिनों से कई तरह की बातें प्रसारित की जा रही हैं, फिर भी हमारी श्रद्धा में कोई कमी नहीं आयी है तो इसका कारण यही है कि जो बापू जी ने हमें दिया है, उस पर मीडिया का कोई असर नहीं हो सकता। हमारे अमूल्य आध्यात्मिक और लौकिक अनुभवों के आगे मीडिया की वाहियात बातों की कोई कीमत ही नहीं है। जिनकी प्रेरणा से युवा पीढ़ी संयमी हो रही है, घर-घर ‘वेलेंटाइन डे’ की जगह ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ मनाया जा रहा है, आप जरा सोचिये ! क्या ऐसे महान संत ऐसा घृणित कार्य कर सकते हैं ? ऐसा सोचना भी पाप है।”

उस युवती की बातें सुनकर मैं अवाक् रह गयी।

अनोखी गुरुदक्षिणा

अब मेरी नजर उस व्यक्ति पर गयी जो लगातार मुझे ही घूर रहा था। वह व्यक्ति जब मेरे नजदीक आकर बोलाः “पहचाना ?”

“अरे संजय !”

मेरी बहन और संजय ने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से साथ-साथ पी.एच.डी. की थी।

मैंने पूछाः “क्या कर रहे हो आजकल और यहाँ कैसे ?”

संजयः “मैं इंदौर साइंस कॉलेज में प्रोफेसर हूँ और यहाँ बापू जी के दर्शन के लिए आया हूँ।”

“संजय ! मुझे यह जानकर बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि तुम भी बापू के दर्शन करने आये हो ! मैं लेखिका हूँ। बहुत दिनों से मीडिया में बापू के बारे में खबरें सुन-सुनकर अनायास ही इच्छा हुई कि मैं भी इनके बारे में कुछ लिखूँ लेकिन मैं सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करती हूँ। मीडिया द्वारा इतने कुप्रचार के बाद भी एक बात बार-बार सामने आ रही थी कि आशाराम बापू के भक्तों ने कभी अनशन किया तो कभी रैलियाँ  निकालीं, कहीं जेल भरो आंदोलन किया और कइयों ने तो भोजन का ही त्याग कर दिया।

बस, यही जानने के लिए कि आखिर सत्य क्या है ? आखिर कौन हैं ये ? ऐसी कौन सी सच्चाई है जो लोगों तक नहीं पहुँची है…. यही सब जानने के लिए मैं यहाँ आयी हूँ।

अच्छा, तुम तो वैज्ञानिक हो और विज्ञान पढ़े लोग आसानी से किसी बाबा के चक्कर में नहीं आते, तुम कैसे फंस गये ?”

“प्रतिभा ! तुम इस तरह की बातें करोगी तो मैं तुम्हारे किसी भी प्रश्न का जवाब नहीं दूँगा।”

“माफ करना संजय ! मेरा मतलब तुम्हें चोट पहुँचाना नहीं था, मैंने मजाक में ऐसा कह दिया। अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो मैं अपने शब्द वापस लेती हूँ।”

“बापू जी मेरे गुरु हैं और मेरे पूरे परिवार ने उनसे मंत्रदीक्षा ली है। तुम्हें यह जानकर आश्चर्य होगी कि मैं ड्रग्स लेता था और ड्रग्स का इतन आदी हो गया था कि मैंने कॉलेज जाना छोड़ दिया था। मेरी माँ बहुत परेशान हो गयी थी, पिता जी थे नहीं। माँ ने बापू जी से दीक्षा ली हुई थी और एक दिन मुझे बापू के दर्शन के लिए बहुत आग्रह करके ले गयी। बापू जी सत्संग में कह रहे थे कि “मुझे दक्षिणा में अपनी बुराइयाँ दे दो।”

मेरी माँ ने मेरा हाथ पकड़कर ऊपर कर दिया और कहा कि “बोल, मेरी नशे की आदत ले लो।” मैंने मजाक में कह दियाः “मेरी नशे की आदत ले लो।” तुम्हें विश्वास नहीं होगा उस दिन के बाद से आज तक मैंने कभी ड्रग्स नहीं ली और बाद में  मैंने बापू जी से दीक्षा भी ले ली। मैं आज जो कुछ भी हूँ, बापू जी की वजह से हूँ।”

एक पढ़ा-लिखा कॉलेज का प्रोफेसर, वैज्ञानिक किसी के बहकावे में नहीं आ सकता फिर भी मुझे अपने कई प्रश्नों के जवाब चाहिए थे इसलिए मैंने पूछाः “संजय ” मैं तुम्हारी बात समझ रही हूँ लेकिन मेरे कुछ प्रश्न हैं, क्या तुम उनका जवाब देना पसंद करोगे ?”

“हाँ-हाँ, पूछो।”

“मीडिया में इतने दिनों से सब कुछ आ रहा है। उसका कुछ तो कारण होगा…..?”

इतना दुष्प्रचार ! कुछ तो कारण होगा….

“हाँ है, इसके लिए एक नहीं बहुत सारे कारण हैं। आशाराम जी बापू एक विख्यात आध्यात्मिक संत हैं, जिन्होंने करोड़ों लोगों के मन पर भारतीय संस्कृति के संस्कार डाले हैं, भटके हुए लोगों को सत्य और ईश्वर के मार्ग पर लगाया है। पूज्य बापू जी ने धर्मांतरण का शिकार हो रहे हिन्दुओं को जागृत किया है। यह सब संस्कृति-विरोधी टीवी चैनलों और हिन्दु-विरोधी शासकों को मान्य नहीं था। बापू जी का प्रवचन सुनकर बहुत सारे हिन्दू, जिन्हें प्रलोभन देकर या डरा धमकाकर धर्मांतरण के लिए विवश किया जा रहा था, वे धर्म के प्रति जागरूक होने लगे थे, परिणाम यह आया कि धर्मांतरण कराने वाली संस्थाओं के मंसूबों पर पानी फिर गया, जिससे ये संस्थाएँ बापू जी के विरूद्ध हो गयीं।

बापू जी के सत्संगी मांसाहार, शराब फास्टफूड व कोल्डड्रिंक्स जैसी शरीर को हानि पहुँचाने वाली चीजों का त्याग कर देते हैं। इससे कई विदेशी कम्पनियों को नुकसान होने लगा और ये बापू जी की लोकप्रियता खत्म करना चाहती थीं। सौंदर्य-प्रसाधन बनाने वाली बहुत सारी विदेशी कम्पनियों के लिए भारत देश एक बहुत बड़ा बाजार है। लेकिन बापू जी अपने सत्संगों में अनेक बार इन केमिकल प्रसाधनों के नुकसानों के बारे में सचेत कर अनेक देशी और आयुर्वैदिक नुस्खे बताते हैं। इससे इन कम्पनियों को तथा इन कम्पनियों के विज्ञापन से करोड़ों रूपये कमाने वाले मीडिया को भी नुकसान होता है। इसलिए ये भी बापू जी का विरोध करते हैं।

बापू जी ने युवाओं को व्यसनमुक्त कर उन्हें संयम व सादगी का मार्ग दिखाया है। बापू जी से दीक्षा ले के ‘विद्यार्थी तेजस्वी तालीस शिविरों’ में भाग लेने से भारत की बाल एवं युवा पीढ़ी बहुत संयमी, तेजस्वी, निडर और बुद्धिमान हो रही है। बापू जी के द्वारा पूरे विश्व में बच्चों में नैतिक शिक्षा के लिए 17000 से अधिक ‘बाल-संस्कार केन्द्र’ चलवाये जा रहे हैं, ताकि उनमें हमारी संस्कृति के मूल्यों का संवर्धन हो। भारतीय युवावर्ग को बापू जी बार-बार ‘भारत को विश्वगुरु बनाने’ का नारा देकर उत्साहित कर रहे हैं। इसलिए भारत देश की विरोधी शक्तियाँ बापू जी को अपना  दुश्मन मानती हैं……”

है जवाब आपके पास ?

संजय लगातार बोलता जा रहा था। उसका चेहरा लाल हो गया था, उसके चेहरे पर दुःख और क्रोध का मिला जुला भाव स्पष्ट दिख रहा था।

“प्रतिभा ! मैं यही कहना चाहता हूँ कि मीडिया दोनों पक्ष को क्यों नहीं दिखाता है ? आज आठ महीने से लगातार बापू के खिलाफ मीडिया ने मोर्चा सँभाला हुआ है इसलिए मैं तुमसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ।

एक लड़की जो उत्तर प्रदेश की रहने वाली है, छिंदवाड़ा (म.प्र.) में पढ़ रही थी, तथाकथित घटना बताती है जोधपुर की और एफआईआर पाँच दिन बाद दिल्ली जा के रात को 2.30 बजे लिखवाती है, ऐसा क्यों ? इसे मीडिया ने क्यों नहीं दिखाया ?

लड़की की मेडिकल रिपोर्ट में रेप या यौन-शोषण की पुष्टि नहीं हुई फिर चैनलों ने झूठी अफवाहें क्यों फैलायीं कि बलात्कार हुआ है ?

साधक शिवाभाई के पास से अश्लील सीडी बरामद होने का झूठा प्रचार क्यों किया गया ?

अमृत प्रजापति, महेन्द्र चावला, राहुल सचान, अजय, हरेन्द्र, राजू लम्बू आदि कौन हैं ? इनके चरित्र और अतीत के बारे में जनता को क्यों नहीं बताया जा रहा है। अमृत प्रजापति, महेन्द्र चावला, राहुल सचान के ऊपर तो पहले से ही केस चल रहे हैं तो ऐसे चरित्रभ्रष्ट लोगों द्वारा लगाये गये आरोपों को सच बताकर मीडिया उनका समर्थन क्यों कर रहा है ?

जिस भोलानंद के झूठे आरोपों को मीडिया सारे दिन दिखाता था, वही भोलानंद जब स्वीकार करता है कि उसे बापू जी पर झूठे आरोप लगाने के लिए षड्यंत्रकारियों व कुछ मीडिया चैनलों द्वारा मालामाल करने का लालच दिया गया था तो इस खुलासे को मीडिया ने क्यों नहीं दिखाया ?”

मैं असमंजस में खड़ी सुन रही थी, मेरे पास कोई जवाब नहीं था लेकिन संजय मेरे जवाब का इंतजार नहीं कर रहा था, उसके सवाल खत्म नहीं हो रहे थे।

वह फिर बोलने लगाः “वेलेन्टाइन डे को ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ के रूप में बदलकर क्या बापू जी ने कोई अपराध किया है ?

होली, दिवाली आदि हिन्दू त्यौहारों को वैदिक रीति से मनाने का कार्य क्या गलत है ?

संत श्री आशाराम जी के आश्रम में हजारों गायों को कटने से बचाकर उनको पाला जाता है, गरीबों के लिए भंडारा किया जाता है, ‘भजन करो, भोजन करो, रोजी पाओ’ कार्यक्रम चलवाकर लाखों गरीबों का कल्याण किया जाता है। क्या किसी को जीवनदान देना गुनाह है ?

गर्मियों में शरबत, छाछ व टोपी वितरण तथा सर्दियों में जरूरतमंदों में खजूर, कम्बल और ऊनी वस्त्रों, गर्म भोजन के डिब्बों का वितरण करना क्या पाप है ?

देश में जब-जब बाढ़, भूकम्प, सुनामी आदि प्राकृतिक आपदाएँ आयीं तो हजारों बेघर लोगों के लिए बापू जी ने मकान बनवाये, कपड़े, बर्तन आदि की व्यवस्था की। जहाँ प्रशासन नहीं पहुँचा वहाँ बापूजी द्वरा हजारों गरीब लोगों की सेवा करवायी गयी। क्या यह गुनाह है ?

पूज्य बापू जी के सत्संग से मेरे जैसे असंख्य लोग जो व्यसनों में डूबकर तबाह हो चुके थे, उनके जीवन से ड्रग्स, शराब, तम्बाकू, सिगरेट, बीड़ी आदि सदा के लिए अलविदा हो गये और वे कुत्ते की मौत मरने से बच गये। क्या यह उनकी गलती है ?

अगर मीडिया इतना ही देश का भला चाहता है और सच दिखाता है तो उनके सेवाकार्यों को मीडिया ने आज तक कभी क्यों नहीं दिखाया ?

इस बारे में कभी कोई रिपोर्ट क्यों नहीं बनायी जाती है कि संत आशारामजी बापू की महिला शिष्यों की संख्या करोड़ों में है ? उनका अनुभव क्यों नहीं दिखाया जाता है ?

पूरे भारत में बापू जी ने ‘युवाधन सुरक्षा अभियान’ चलाकर स्कूलों और कॉलेजों के विद्यार्थियों को ब्रह्मचर्य और संयम का महत्त्व सिखाया, संयम पर आधारित ‘दिव्य प्रेरणा प्रकाश’ पुस्तक करोड़ों की संख्या में देश-विदेश में बाँटी गयी, क्या इस बात का प्रचार नहीं किया जाना चाहिए था ?

इसलिए हम सभी बहुत व्यथित हैं कि बापू जी को बिल्कुल झूठे, मनगढ़ंत आरोपों में फँसाकर जेल में रखा गया है। भारत की संस्कृति को बदनाम करने के लिए देश के प्रमुख संतों को साजिश का शिकार बनाया जा रहा है। बापू जी ने लोगों को सत्संग ही नहीं, कर्मयोग के सुसंस्कारों के साथ एक नयी दिशा, एक नयी पहचान देकर भारत के कदम विश्वगुरु पद की ओर बढ़ाये हैं।

प्रतिभा ! तुम और हम 4-5 व्यक्ति भी जोड़कर रख सकें तो बड़ी बात है, यहाँ तो करोड़ों लोग बापू जी के भक्त हैं और उऩ करोड़ों लोगों में से एक-एक के अनेकों अनुभव हैं। और इतने वर्षों से बापू जी के सान्निध्य में लोग अपने को उन्नत महसूस करते हैं, आनंदित महसूस करते हैं। लोगों को अब मीडिया या किसी के भी कुछ कहने का कोई असर नहीं हो सकता।

शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वतीजी, साध्वी प्रज्ञा सिंह, स्वामी केशवानंदजी, नित्यानंदजी जैसे हिन्दु संतों को बदनाम कर धर्म को नष्ट करने का षडयंत्र वर्षों से चला आ रहा है, मगर अब परिणाम सबके सामने आ ही गया न ! सारे संत एकदम पाक-साफ साबित हो गये। और आज परम पूज्य बापू जी के साथ फिर से वही इतिहास दोहराया जा रहा है। मगर अफसोस है कि इतने पर भी भारत की जनता की आँखें नहीं खुल रही हैं, वह देशद्रोहियों के प्रति सावधान नहीं हो रही है। धर्मद्रोहियों को इतना जरूर याद रखना चाहिए कि संतों व संस्कृति के विरुद्ध दुष्प्रयत्न करना… स्वयं को बरबाद करना है ! हमारे बापू जी हमारे गुरु हैं, हमारे भगवान हैं और मुझे गर्व है कि मैं संत श्री आशाराम जी बापू का शिष्य हूँ।”

मैं संजय का विश्वास देखकर दंग रह गयी। संजय कुछ देर चुप रहा और फिर सोचकर पुनः बोलाः “प्रतिभा ! मैं तुमसे निवेदन करता हूँ कि तुम अपनी किताब में मेरी ये बातें जरूर लिखना।”

“जरूर, मैने जो तुमसे प्रश्न किये और उसके मुझे जो उत्तर मिले वे तुम मेरी किताब में जरूर पाओगे।”

नये प्रश्नों का जन्म

मैंने वहाँ उपस्थित लोगों की श्रद्धा भक्ति को मन ही मन नमन किया और वापस अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी। ट्रेन में मेरे मन में विचार आया कि जब मैंने यह जेल यात्रा शुरु की तो मैं एक गहरे असमंजस में थी कि आखिर कौन हैं संत आशाराम जी बापू ? जैसा मीडिया दिखाता है वैसे या जैसे इनके करोड़ों भक्त इन्हें मानते हैं वैसे अवतारी संत-महापुरुष !

इस यात्रा के बाद मेरे प्रश्नों का जवाब मिल गया परंतु उन जवाबों से कुछ नये प्रश्नों का जन्म हो गया। उन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पढ़ें पुस्तक – ‘आखिर कौन हैं ये ?’, भाग -2.

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2014, पृष्ठ संख्या 12-18, अंक 257

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