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रेप के खिलाफ नये कानून से बढ़े झूठे केस


सना शकील, नई दिल्ली, नवभारत टाइम्स, 22-02-2014

दिल्ली गैंग रेप केस (निर्भया प्रकरण) के बाद यौन अपराधों के खिलाफ कानून को और सख्त बनाने के झूठे मामलों की संख्या और बढ़ गयी। आँकड़े बताते हैं कि 16 दिसम्बर 2012 के बाद दिल्ली में ट्रायल कोर्ट में झूठे रेप केसों में फँसाये जाने वाले आरोपियों के दोषमुक्त होने के मामले बढ़े हैं। 2012 में 46 प्रतिशत आरोपी दोषमुक्त हुए लेकिन 2013 के शुरूआती 8 महीनों में ही यह आँकड़ा 75 प्रतिशत पर जा पहुँचा। सूत्र बताते हैं कि आरोपियों के दोषमुक्त होने का यह आँकड़ा इस साल भी ज्यादा ही रहेगा।

‘निर्भया केस’ के मेन प्रॉसिक्यूटर्स में से एक ए.टी.अंसारी इसे दुःखद प्रचलन मानते हुए कहते हैं कि “कई मामलों में तथाकथित पीड़िताएँ बाद में इस अपील के साथ सामने आती हैं कि उन्होंने गुस्से और गलतफहमी की वजह से मुकद्दमा दर्ज कराया था।” एक वरिष्ठ महिला वकील ने कहा कि “झूठे मुकद्दमों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। नये कानून की ‘अस्पष्ट’ व्याख्या की वजह से ही इसका गलत इस्तेमाल हो रहा है।”

विशेषज्ञों का मानना है कि संशोधित कानून ‘अस्पष्ट’ होने के कारण उसका गलत रूप से इस्तेमाल हो रहा है। एक सीनीयर प्रॉसिक्यूटर ने कहाः “दोषमुक्त होने के 90 प्रतिशत मामलों में तथाकथित पीड़िताएँ और आरोपी व्यक्ति के बीच आपसी दुश्मनी जैसी बातें सामने आयी हैं।”

झूठे मामले को दर्ज कराने के अन्य कारणों में जबरदस्ती वसूली, जायदाद (प्रॉपर्टी) विवाद आदि कारण भी शामिल हैं।

इस साल जनवरी में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश श्री विरेन्द्र भट्ट ने झूठे मामले में फँसाये गये व्यक्तियों को क्षतिपूर्ति देने की वकालत भी की। (न्यायाधीश की विस्तृत टिप्पणी हेतु पढ़ें ‘ऋषि प्रसाद’, फरवरी 2014 का पृष्ठ 5)

विडम्बना यह है कि कानून की रहम का आजकल तथाकथित पीड़िताएँ बेहद नाजायज फायदा उठा रही हैं। वे न्यायालय की ओर से भयमुक्त होने के कारण निर्दोष लोगों पर बिना सिर-पैर के लांछन लगाने में तनिक भी नहीं हिचकिचाती हैं।

इन यौन अपराधों की दायर होने वाली झूठी शिकायतों पर फास्ट ट्रैक कोर्ट भी चिंता जाहिर कर चुकी है। बीते साल जुलाई में एक 75 साल के वृद्ध को रेप के आरोप से मुक्त किया गया, उस पर उसकी नौकरानी ने जायदाद हड़पने के लालच में बलात्कार का आरोप लगाया था। तब फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अनुभव किया था कि राजधानी ‘रेप कैपिटल’ होने की बदनामी झेल रही है क्योंकि झूठे रेप केस दर्ज किये जाने की संख्या बढ़ गयी है। इस मामले में कथित पीड़िता ने बाद में माना था कि उसका उद्देश्य आरोपी की जायदाद को हड़पना था।

यौन-अपराधों पर नियंत्रण के लिए बनाये गये नये कानूनों के दुरुपयोग को लेकर  सामाजिक कार्यकर्ता श्री भगवानदीन साहू (छिंदवाड़ा) के पत्र के विषय की गम्भीरता को देखते हुए राष्ट्रपति ने उसे गृह मंत्रालय को अग्रेषित कर दिया, जिसमें पॉक्सो एक्ट पर पुनर्विचार कर बंद करने की माँग की गयी है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2014, पृष्ठ संख्या 29, अंक 256

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पॉक्सो एक्ट पर पुनर्विचार कर करें बंद


राष्ट्रपति ने गृह मंत्रालय को अग्रेषित किया पत्र

राज एक्सप्रेस, नई दुनिया, जनपक्ष (छिंदवाड़ा)। देश में दामिनी कांड के बाद बने रेप के नये सख्त कानूनों के दुरुपयोग को लेकर शहर के सामाजिक कार्यकर्ता भगवानदीन साहू ने दिनांक 7-12-2013 को जिला कलेक्टर, छिंदवाडा के माध्यम से राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपकर पॉक्सो एक्ट पर पुनर्विचार कर उसे शीघ्र बंद करने की मांग की है।

ज्ञापन में उल्लेख था कि ये कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए  लागू किये गये थे लेकिन कानून के लागू होने के बाद से महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध और बढ़ गये हैं। साथ ही देश में इन कानूनों का घोर दुरुपयोग हो रहा है। कुछ गिने चुने दुष्कर्मियों के कारण देश के 65 करोड़ पुरुषों के साथ अन्याय हो रहा है। झूठे रेप केसों के बढ़ते आँकड़ों को देखकर सभ्य परिवारों के पुरुषों एवं महिलाओं को डर लग रहा है। इसके कारण कई सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थान अब महिलाओं को नौकरी नहीं दे रहे हैं तथा नौकरी के पेशेवाली महिलाओं के साथ डर के कारण भेदवाला व्यवहार किया जा रहा है। यह सब महिलाओं के हित में नहीं है। आज देश में भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा का प्रतिशत ज्यादा है। आज भी देश में कई  महिलाएँ अपना शरीर बेचकर परिवार का भरण-पोषण करती हैं। इन गरीब महिलाओं को थोड़ा बहुत पैसे का लालच देकर किसी पर भी झूठा आरोप लगाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। देश में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं। जैसे –

संत आशाराम बापू- इन्होंने पूरे विश्व में आध्यात्मिक क्रांति लायी एवं करोड़ों-करोड़ों लोगों को दुर्व्यसनों से छुटकारा दिलाया, साथ ही धर्मांतरण पर भी रोक लगायी। इसी वजह से विरोधी लोग इनकी ताक में बैठे थे।

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ए.के.गांगुली- ये पश्चिम बंगाल के राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष थे। इन्होंने 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले में 122 टेलिकॉम कम्पनियों के लाइसेंस रद्द किये थे, जिससे इन कम्पनियों को अरबों रूपयों का नुक्सान सहना पड़ा। शायद इसी वजह से उनके विरोधी लोग इनकी ताक में बैठे थे।

ऐसे कई उदाहरण देश के सामने आये हैं। इन सब बातों से श्री साहू ने राष्ट्रपति जी को अवगत कराया। माननीय राष्ट्रपति जी ने विषय की गम्भीरता को देखते हुए 7 फरवरी 2014 को भारत सरकार के गृह मंत्रालय को पत्र क्रमांक पी1-ए-0702140105 के माध्यम से साहू जी के प्रतिवेदन को समुचित कार्यवाही हेतु भेज दिया है, जिसकी एक प्रति आवेदक को भी भिजवायी गयी।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2014, पृष्ठ संख्या 18, अंक 256

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देश में यौन-उत्पीड़न के मामलों की बाढ़ः न्यायालय


केन्द्र सरकार कानून में जरूरी संशोधन करे – मा. न्यायाधीश वीरेन्द्र भट्ट

बलात्कार एवं यौन उत्पीड़न से संबंधित नये कानूनों की आड़ में पिछले एक वर्ष में यौन उत्पीड़न और बलात्कार के झूठे मामलों की बाढ़ आ गयी है। मार्च 2013 में एक व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज हुआ परंतु जाँच में आरोप झूठा पाया गया। इस पर दिल्ली की एक अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह महिला के खिलाफ झूठा मुकद्दमा दर्ज कराने के संबंध में कार्यवाही करे और रिपोर्ट पेश करे। एक परिचित व्यक्ति से उस महिला ने 10 हजार रुपये उधार लिये थे। रूपये वापस माँगने पर महिला ने उसे अपने घर बुलाया तथा उससे और पाँच हजार रुपये छीन के उस कमरे में बंद कर दिया और बलात्कार का आरोप लगाकर पुलिस में शिकायत की। इसके बाद पुलिस के समक्ष महिला ने समझौता करते हुए 40 हजार रुपये और लिये। बाद में उस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया। जब यह पता चला कि उस महिला ने छः सात लोगों पर अलग-अलग थानों में ऐसे ही मुकद्दमे दर्ज करा रखे हैं और यह तथ्य अदालत के समक्ष आये तब उस महिला ने विपक्षी वकील को भी सबक सिखाने की धमकी दी तथा उस वकील पर भी थाने में बलात्कार का मामला दर्ज करा दिया।

‘यह केवल एक वारदात नहीं, ऐसे कई झूठे मामलों के चलते दिल्ली को ‘रेप कैपिटल’ कहा जाने लगा है।‘ – यह टिप्पणी करते हुए जुलाई 2013 में दिल्ली की एक अन्य अदालत ने एक 75 वर्षीय बुजुर्ग को दुष्कर्म के झूठे मामले में बरी कर दिया था। बुजुर्ग पर घरेलु नौकरानी ने बलात्कार करने का झूठा आरोप लगाया था लेकिन बाद में वह अपने बयान से पलट गयी और कहा कि ‘मैंने एक महिला और एक अन्य व्यक्ति के कहने पर यह आरोप लगाया था।’

दिल्ली के ही एक फास्ट ट्रैक कोर्ट की न्यायाधीश निवेदिता अनिल शर्मा ने भी बलात्कार के एक मामले में आरोपी को बरी करते हुए टिप्पणी की कि ‘इन दिनों बलात्कार या यौन-शौषण के झूठे मुकद्दमे दर्ज कराने का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है, जो चिंताजनक है। इस तरह के चलन को रोकना बेहद जरूरी है।’ आरोपी पर उस नौकरानी ने बलात्कार का झूठा आरोप लगाया था।

हाल ही में देश की ऐसी गम्भीर अवदशा को देखते हुए सत्र न्यायाधीश वीरेन्द्र भट्ट ने द्वारका फास्ट ट्रैक कोर्ट में झूठे दुष्कर्म से जुड़े एक और मामले में आरोपी को बरी करते हुए कहाः

“दिल्ली में चलती बस में रेप की घटना के बाद माहौल ऐसा बन गया है कि यदि कोई महिला बयान दे देती है कि उसके साथ रेप हुआ है तो उसे ही अंतिम सत्य मान लिया जाता है और कथित आरोपी को गिरफ्तार कर उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया जाता है। इसके चलते देश में यौन उत्पीड़न के झूठे मामलों की बाढ़ सी आ गयी है, अपराध के आँकड़े बढ़ रहे हैं। अतः दुष्कर्म के झूठे मामले में फँसाने पर आरोपी को मुआवजा देने के आदेश का अधिकार अदालत के पास होना चाहिए। केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह इस दिशा में जरूरी कानूनी संशोधन करे। इसके लिये या तो धारा 347 में संशोधन किये जायें या फिर एक नयी धारा जोड़ने की जरूरत है। ऐसे मामलों में अदालत को सशक्त किया जाना चाहिए ताकि वह दुष्कर्म के झूठे आरोप से मुक्त आरोपी को मुआवजा देने का आदेश राज्य या ऐसा मामला दायर करने वाले को दे सके।”

इस मामले में अदालत ने सख्ती दिखाते हुए शिकायतकर्ता द्वारा अदालत के समक्ष झूठे सबूत पेश करने के लिए सीआरपीसी की धारा 344 के अंतर्गत उस पर अलग से मामला चलाने का भी आदेश दिया। आरोप लगाने वाली महिला ने मार्च 2013 में पुलिस में मामला दर्ज कराया था, जिसमें उसने बताया कि आरोपी ने उसके साथ दुष्कर्म किया और मामले का खुलासा करने पर उसे व उसकी बेटी को मारने की धमकी भी दी। मुकद्दमे की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कथित पीड़िता के बयानों में कई जगह विरोधाभास देखा और बाद में पूरे मामले को झूठा पाया।

न्यायाधीश ने आगे कहा कि ‘दुष्कर्म के कई मामले ऐसे होते हैं जिनमें आरोपी को झूठा फँसाया जाता है। इस दौरान आरोपी को पुलिस हिरासत में या जेल में जाना पड़ता है और मानसिक, शारीरिक प्रताड़ना के साथ सामाजिक तिरस्कार के दौर से गुजरना पड़ता है। बाद में जब सुनवाई के दौरान उस पर लगे आरोप झूठे साबित होते हैं, तब भी उसके लिए समाज में जीना कष्टकर होता है। इन बातों को देखते हुए दुष्कर्म के झूठे मामलों में बरी हुए लोगों को मुआवजा पाने का पूरा हक है।”

(दैनिक जागरण के आधार पर)

गरीबों-आदिवासियों की अथक रूप से सेवा में संलग्न रहने वाले, उनका धर्म-परिवर्तन रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और देशवासियों में भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था व स्वाभिमान जगाने वाले पूज्य बापू जी और उनके परिवार को भी झूठे मामलों में फँसाया गया है। अब देखना यह है कि सरकार इन तीव्र गति से बढ़ते झूठे बलात्कार के मामलों की रोकथाम के लिए कौन से अहम कदम उठाती है।

ऋषि प्रसाद, फरवरी 2014, पृष्ठ संख्या 5,6 अंक 254

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