आप बुराई रहित हो जायेंगे तो भलाई तो सहज में हो जायेगी । और भगवान को भले लोग पसंद हैं, वे तो ढूँढ रहे हैं । भला दिल तो भगवान चाहते हैं प्रकट होने के लिए । जो दूसरों से द्वेष रखते हैं, उनमें अवगुण देखते हैं, दूसरी जगह सुख ढूँढते हैं ऐसे मनुष्य तो बहुत भटक रहे हैं । संत कबीर जी ने कहाः
देश दिशांतर मैं फिरूँ, मानुष बड़ा सुकाल ।
जा देखै सुख उपजै, बा का पड़ा दुकाल ।।
‘देश-देशान्तरों में घूमकर मैंने देखा तो मनुष्यों की कमी नहीं है परंतु जिनके दर्शन से निर्दोष, निर्विकार, सच्चा सुख उत्पन्न हो ऐसे मानव का अत्यंत अभाव है, वे अत्यंत दुर्लभ हैं ।’
आप अगर भगवान को चाहेंगे न, तो लोग आपको चाहेंगे । आपका हृदय भगवान के ध्यान में, ज्ञान में शीतल होगा तो आपके तन के परमाणु वातावरण को शीतलता देंगे । बर्फ की शीतलता अलग बात है और वह अंतःकरण की शीतलता अलग बात है । आपकी आँखों से वे शांतिदायक परम शीतल तरंगे निकलेंगी ।
नजरों से वे निहाल हो जाते हैं, जो ब्रह्मज्ञानी की नज़रों में आ जाते हैं ।
संतों के लिए कितने लोग क्या-क्या बोलते हैं, कितना-कितना कुप्रचार चलता रहता है फिर भी एक-एक सच्चे संत के पीछे हजारों लाखों-करोड़ों लोग अभी तक चल रहे हैं । हमारे गुरु जी ने हमको बुलाया नहीं था, हम ही तो गये थे और उनके सिद्धान्त पर चलने को हम स्वयं ही तत्पर हुए । संत तुलसीदास जी ने थोड़े ही किसी को न्योता दिया था ? उनके रामायण पर चलकर लोग खुद ही अपना भाग्य बना रहे हैं ।
जो लोग कुमानव हैं, कुमना हैं, शराब-कबाब के सेवन में, निंदा-चुगली में लगे रहते हैं, वे चाहे संतों के लिए भक्तों के लिए कुछ-का-कुछ बोलें फिर भी लाखों करोड़ों लोग चलते ही हैं संतों के पीछे, कुछ मिलता है उनको तभी तो !
तो तीन प्रकार के लोग हैं- कुमना लोग, सुमना लोग और महामना लोग । आप अपना नम्बर लगा दीजिये महामना में । कुमना से तो बचे तभी इधर सत्संग में पहुँचे तो अब सुमना में से भी महामना में जायेंगे, बस आप महान तत्त्व ( परमात्म तत्त्व के ज्ञान को पाने ) का उद्देश्य बना लीजिये, महान सुख पाने का उद्देश्य बना लीजिये, महान ज्ञानस्वरूप अपने ‘मैं’ को पहचानने का उद्देश्य बना लीजिये, महामना हो जाइये ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2022, पृष्ठ संख्या 2 अंक 353
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