भारतवासियो ! अब जागो

भारतवासियो ! अब जागो


संत श्री आसारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से

शास्त्रों में आता हैः

पूर्वे जनुषि या नारी गर्भघातकारी ह्यभूत्।

गर्भपातेन दुःखार्ता सात्र जन्मनि जायते।।

ʹजो स्त्री पूर्वजन्म में गर्भ का घात करती है, वह इस जन्म में भी गर्भपात का दुःख भोगने वाली होती है अर्थात् उसके कोई संतान नहीं होती।ʹ

अपने पेट में दवाएँ डलवाकर अथवा कातिल साधनों द्वारा बालक के टुकड़े-टुकड़े करके गर्भपात करवाना क्या पवित्र कार्य कहा जायेगा ? गर्भपात को पाप ही नहीं, महापाप माना गया है। जिस महिला ने गर्भपात करवाया हो, उस महिला के हाथ का भोजन करने से साधु-संतों की भी तपस्या नष्ट होती है तो उसके घर के लोगों के कितने पुण्य बचते होंगे ?

सोनोग्राफी करायी…. कन्या है तो करवा दो गर्भपात… कई बार तो कन्या होती ही नहीं है, पुत्र होता है, परन्तु पैसों की लालच में सोनोग्राफीवाले कन्या बता देते हैं।

उल्हासनगर, नंबर-3 में एक परिवार में प्रथम एक कन्या आयी। दूसरी सन्तान पुत्र हो, इस कामना से वे दम्पत्ति सत्संग में आये। पाँचवे महीने सोनोग्राफी करायी गयी तो डॉक्टर ने कहाः “कन्या है।” वे लोग घबरा गये। फिर वे अमदावाद आश्रम आये एवं बड़ बादशाह की प्रदक्षिणा करके उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए मनौती मानी।

जब नौवाँ महीना शुरु हुआ तो उन्होंने पुनः सोनोग्राफी करवायी। रिपोर्यो में आया किः ʹलड़की है।ʹ यह सुनकर पति-पत्नी खूब रोये। रात्रि में स्वप्न में उनके गुरुदेव ने कहाः ʹघबराओ नहीं, बेटा होगा।

अतः गर्भपात के महापाप से तो वे बच गये लेकिन उनका रोना जारी रहा। जब प्रसूति हुई और बेटा आया तो बोल पड़ेः “पूज्य बापू जी ने लड़की में से लड़का बना दिया है।”

मैं व्यासपीठ पर बैठा हूँ, सत्य कहता हूँ कि मैंने लड़की में से लड़का नहीं बनाया, वह सचमुच में लड़का ही था। केवल स्वप्न में उन्हें प्रेरणा मिली कि ʹलड़का है, घबराओ नहीं।ʹ

अगर कन्या भी आ जाये तो क्या है ? आऩे वाले 5-7 वर्षों के बाद आप देखेंगे कि अभी जिन कन्याओं के माँ बाप को लड़के के माँ-बाप को हाथ जोड़ने पड़ते हैं उन्हीं को लड़के के माँ-बाप हाथ जोड़ेंगे किः ʹहमारा बेटा कुँवारा है, कुछ कर दीजिये।ʹ

आज से 52-53 वर्ष पूर्व मेरे भाई की जो शादी हुई थी वह हाथा जोड़ी करके ही हुई थी क्योंकि उस जमाने में लड़के ज्यादा थे, कन्याएँ कम। मेरे नगरसेठ पिता ने अपने आदमी के द्वारा एक हलवाई के यहाँ हाथ जोड़कर यह संदेश भिजवाया किः ʹआपके यहाँ कन्या है, हमारे जेठानंद की कुछ व्यवस्था करवा दें।ʹ चौदह वर्षीय जेठानंद कहीं शादी के बिना न रह जाये अतः 12-13 वर्ष की कन्या एवं चौदह वर्षीय जेठानंद का मंगलम् भगवान….ʹ हुआ अर्थात् विवाह हुआ।

विभाजन के बाद भारत आये फिर भी वर्षों तक दोनों को पता ही नहीं था कि वे पति-पत्नी हैं। वे लोग साथ में खेलते थे, मैं भी उनके साथ खेलता था। जब कबड्डी के खेल में मेरा भाई भाभी को हराने के लिए हाथ मारता तो वह कहतीः “परायी कन्या को मारता है ? आज एकादशी है, तुझे शरम नहीं आती है ? मुए !”

उस भाभी को पता नहीं था कि वह जिसे ʹमुआʹ कह रही है वही उसका पति है। वर्षों के बाद उन्हें पति-पत्नी के जगत का ख्याल आया।

कहने का तात्पर्य यह है कि ʹगर्भ में कन्या हैʹ यह मानकर गर्भपात न करवायें। गर्भपात महापाप है। संयम से जियें।

कई लोग ऐसा प्रचार करते हैं किः ʹखुदा की खेती है, बढ़ने दो… बस्ती बढ़ेगी तो ʹवोट बैंकʹ बढ़ेगा, अपने वाले आयेंगे और अपने वालों का यहाँ झण्डा भी लगेगा।ʹ तो कई लोग कहते हैं किः ʹGift of the God.ʹ अर्थात् बच्चा भगवान का दिया हुआ उपहार है। बढ़ाये जाओ… ऐसा होगा तो भारत में हमारा साम्राज्य पुनः स्थापित होने की सम्भावना बढ़ जायेगी….ʹ जबकि गीता-रामायण एवं उपनिषदों में, भगवन्नाम में, परोपकार एवं सहिष्णुता में विश्वास रखने वाली जनता को सिखाया जाता है किः ʹगुलशन में बस एक ही फूल, दूसरी कभी न होवे भूल…. दूसरा अभी नहीं, तीसरा कभी नहीं।ʹ किन्तु दूसरे लोगों के 8-8 और 12-12 हैं, उसका क्या ?

कोई कहे किः ʹउन्हें भले हैं हमें तो सिंह जैसा एक ही बेटा हो तो बहुत है।ʹ परन्तु भैया ! वोटिंग का जमाना है। आपका सिंह पिंजरे में भूखा रहेगा और बकरेवालों का राज्य हो जायेगा। थोड़े समझदार बनो। एक का एक बेटा है…. बेटी तो ससुराल गयी और न करे नारायण.. बेटा पत्नी के संग में आकर घरजमाई बन जाये तो आपका कौन ? विदेश में कमाने गया अथवा देश की सीमा पर गया तो आपका कौन ? न करे नारायण… फिर भी बीमार पड़े या दुर्घटनाग्रस्त हो जाये तो आपका कौन ? थोड़ा समझ जाओ, भैया !

कम-से-कम देश को ऐसे 2-4 बेटे देते जाना जो भारतीय संस्कृति के संस्कारों से सम्पन्न हों। यह भी देश की सेवा है। एकाध परदेश से पैसे खींच लाये, एकाध देश की सेवा के लिए सेना में जाये, एकाध यहीं रहकर समाज एवं धर्म की सेवा में लगे और एकाध माता पिता की सेवा करे।

जल्दबाजी में ऑपरेशन मत करवा लेना। जो शराबी-कबाबी हैं और जिन्हें राष्ट्र से प्रेम नहीं है ऐसे लोग शादी से पहले ही ऑपरेशन करवा दें तो राष्ट्र का भला होगा। लेकिन जिनमें भगवान की भक्ति है, परोपकारिता है, दिव्य ज्ञान है वे कभी ऑपरेशन न करायें, गर्भपात की तो बात भी न करें।

कोई कहेः “बापू ! बस्ती बढ़ जायेगी तो लोग खायेंगे क्या ?”

जनसंख्या-नियंत्रण का काम परमात्मा का है, किसी नेता या व्यक्ति का नहीं। जब भारत की जनसंख्या 40 करोड़ थी तब गेहूँ, खाद्य तेल वगैरह बाहर से आता था। आज 100 करोड़ से भी ऊपर का आँकड़ा है और भारत से चावल एवं अन्य खाद्य सामग्रियाँ विदेशों में जा रही हैं। आवश्यकता आविष्कार की जननी है। जनसंख्या बढ़ेगी तो आवश्यकताएँ भी बढ़ेंगी और आवश्यकताएँ बढ़ेंगी तो नये-नये आविष्कार भी होंगे।

ʹक्या खायेंगे ?ʹ यह सोचकर अपने ही बच्चों को मार देना कहाँ तक उचित है ? जो जीव 84 लाख योनियों में भटकते-भटकते आप जैसे पवित्र कुलों में दिव्य ज्ञान पाने, भक्ति, साधना-सेवा करके मुक्ति के मार्ग पर जाने के लिए आया, उसी को आप पैसे देकर, जहरीले दवाओं-इन्जैक्शनों के द्वारा अथवा कातिल औजारों के द्वारा टुकड़े-टुकड़े करवाकर फिंकवा दोगे ?

डॉक्टरों की एक गुप्त बात हैः ʹWork number on finished or not ?ʹ  अर्थात् पहले नंबर का काम पूरा हुआ कि नहीं ? पहले नंबर का काम क्या है ? गर्भ के अंदर जो बालक है उसके सिर के टुकड़े-टुकड़े हुए कि नहीं ?

आपके यहाँ जो निर्दोष नन्हा-मुन्ना आऩे वाला था, जिसने आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ा था, गर्भ में जिसके आपने मात्र से आपको (गर्भ धारण करने वाली पत्नी को) आनंद मिला था, ऐसे निर्दोष ऋषि के आप टुकड़े-टुकड़े करवाकर कचरे में फिंकवा दो, यह कहाँ तक उचित है ?

यह कर्मभूमि है। जो जैसे कर्म करता है, वैसे ही फल पायेगा।

करम प्रधान बिस्व करि राखा।

जो जस करई सो तस फलु चाखा।।

(श्रीरामचरित. अयोध्याकाण्डः 218-2)

गर्भपात ʹभ्रूणहत्याʹ कहलाती है। इन्सान की हत्या से धारा ʹ302ʹ की कलम लगती है, परन्तु भ्रूणहत्या ऋषि हत्या के तुल्य है। परलोक में उसकी सजा अवश्य भुगतनी पड़ती है।

शास्त्रकारों ने तो ऐसा भी कहा है कि जो महिला गर्भपात कराती है, उसे फिर 10-10 जन्मों तक सन्तान नहीं होती। अतः आज तक जो भूल हो गयी उसका प्रायश्चित करके फिर वह भूल न दोहरायी जाये-इसकी सावधानी रखो।

ʹजनसंख्या बढ़ जायेगी….ʹ ऐसी चिन्ता करवाने वालों को ही इसकी चिन्ता करने दो। वे तो रोज संख्या बता देंगे। थोड़ा विवेक का उपयोग करो, संयम एवं समझ का उपयोग करो।

जो जीव पवित्र कुल, पवित्र वातावरण में आने की इच्छा रखता है उसे टुकड़े-टुकड़े करवाकर नाली में फेंक दोगे और वही जीव फिर आपके देश में ʹबम ब्लास्टिंगʹ करे ऐसे परिवार में जायेगा तो ? आपके देश के टुकड़े करवाने वाली संस्कृति में जाकर जन्म लेगा तो ? आपके देश में हर साल डेढ़ करोड़ बालकों को सात्त्विक लोगों के यहाँ आने से रोककर नाली में फेंक दिया गया, वे ही फिर विधर्मियों के यहाँ जन्म लें तो आपको वर्ष में 3 करोड़ जनसंख्या की हानि होगी। फिर आप कहाँ जाकर रहोगे ?

दुबई में मंदिर बनाने की सख्त मनाई है। एक जगह पर कुछ लोग गुप्त रूप से मंदिर बना रहे थे तो उन पर डंडे पड़े और उन्हें कहा गया किः ʹयहाँ नहीं बनाना है।ʹ अमुक पर्व-त्यौहार पर आप एयरपोर्ट पर उतरो एवं आपके हाथ में कोई अच्छी पुस्तक हो जिसमें किसी देवी-देवता का फोटो हो तो आपको वापस भेज दिया जायेगा। फिर आप कहाँ रहने जाओगे ? जो राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं वहाँ तो दूसरे धर्म के लोग पूजा-स्थल नहीं बना सकते लेकिन जो राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष कहलाते हैं वे भी व्यवहार में अपने धर्म को बढ़ावा देने वाली नीति ही अपनाते हैं। जैसे कि स्विटजरलैण्ड में दूसरे धर्म के लोग अपना पूजा-स्थल नहीं बना सकते। जबकि आपके देश में बीच रास्ते में भी लोग अपना पूजा-स्थल बना लेते हैं। अतः आपके ही देश में आपको सौतेली माँ की संतान के रूप में न चलना पड़े, इसके लिए जरा सावधान हो जाओ।

अपने मन के साथ, अपने शरीर के साथ, अपनी संतानों एवं राष्ट्र के साथ जुल्म न करो। अपने शरीर को स्वस्थ रखो, संयमी बनो एवं राष्ट्र के लिए अपनी संतति को भई स्वस्थ एवं संयमी बनाओ। स्वयं भी महानता के पथ पर चलो और अपनी संतति को भी उसी पर अग्रसर करो। इसके लिए सत्शास्त्रों का अध्ययन, संतों का संग, सत्संग का श्रवण, जप-ध्यान, साधन-भजन करो ताकि आपकी बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आये…. आपकी बुद्धि, बुद्धि न रहे, ऋतंभरा प्रज्ञा बन जाये… तभी आपका मानव जीवन सार्थक होगा, धन्य-धन्य होगा। आप भी तरोगे, अपने सात कुल के भी तारणहार बनोगे।

ૐ आनंद… ૐ….ૐ….

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2001, पृष्ठ संख्या 22-24, अंक 98

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