जब आपके मन में चिंता होती है तो शरीर पर शिकन पड़ती है, भय होता है तो घिग्गी बंध जाती है। काम आने पर उत्तेजना होती है, क्रोध आने पर आँखें लाल हो जाती हैं, खाने का लोभ आने पर जीभ पर पानी आ जाता है। तो इनसे स्पष्ट है कि मनोभावों का प्रभाव शरीर पर पड़ता है। राग और द्वेष होने पर आप क्या-क्या नहीं कर बैठते हैं ? तब क्या श्रद्धा-विश्वास हमारे मन में आयेंगे तो उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा ? क्या वे इतने तुच्छ हैं कि आपको मनोबल की किंचित भी सहायता न करें ?
श्रद्धा-विश्वास आपके शरीर को शांत करते हैं, मन को निःसंशय करते हैं, बुद्धि को द्विगुणित-त्रिगुणित कर देते हैं, अहंकार को शिथिल कर देते हैं। श्रद्धा-विश्वास दीनता, अधीनता, मलिनता को नष्ट करते हैं, शरीर में ऐसे रासायनिक परिवर्तन करते हैं कि मन-विक्षेप दूर हो जाये, रोग-शोक दूर हो जाय। महात्माओं के अनुभव ग्रहण करने के लिए यह अचूक उपाय है।
जब ईश्वर पर श्रद्धा-विश्वास हृदय में क्रियाशील होता है तो सारी मलिनताओं को धो बहाता है। काम के स्थान पर शांति, क्रोध के स्थान पर उदासीनता, मोह के स्थान पर समता, लोभ के स्थान पर संतोष – ये हृदय में आ जाते हैं। श्रद्धा-विश्वास के ऐसे मानसिक तत्त्व हैं, जो सहारा तो लेते हैं ईश्वर और महात्मा का, परंतु स्वयं में अतिशय बलवान हो जाते हैं। जब श्रद्धा-विश्वास भगवान की भक्ति का रूप धारण करता है तब भय, मूर्खता, दुःख, भेद-बुद्धि इनके चंगुल से मनुष्य छूट जाता है। आप जैसे शारीरिक कर्म को महत्त्व देते हैं, वैसे ही श्रद्धा-विश्वास को महत्त्व दीजिये। यह आपके रग-रग में, रोम-रोम में, जीवन-मन-प्राण में ऐसा रासायनिक परिवर्तन लायेगा, जिसको समझने में अभी यांत्रिक उपायों को बहुत विलम्ब होगा।
आइये, लौट आइये ! यांत्रिक और आनुमानिक ज्ञान से मुक्त हो जाइये। यह संशय ग्रस्त है, अनिश्चित है। उसका कभी अंत नहीं होगा। आप श्रद्धा विश्वास के द्वारा संसारी भावनाओं से निवृत्त हो जाइये और अपने हृदय में अंतर्यामी की जो ललित लीला हो रही है, उसको निहारिये। वह मधुर-मधुर, लोल-लोक, अमृत-कल्लोल एक बार आपको दर्शन दे तो आपके सारे दुःख-शोक तुरन्त दूर हो जायेंगे। ईश्वर में विश्वास तत्काल मोहजन्य पक्षपात और क्रूरता से मुक्त कर देता है।
श्रद्धा-विश्वास जीवन के मूलभूत तत्त्व हैं। यह मेरी माँ है – इस पर भी श्रद्धा ही करनी पड़ती है, माँ के बताये व्यक्ति को अपना पिता मानना पड़ता है। नाविक पर, पाचक पर, नौकर पर, चिकित्सक पर – विश्वास ही करना पड़ता है। बिना विश्वास के जीवन एक क्षण भी नहीं चल सकता। आप ईश्वर के दर्शन और ज्ञान का प्रयास फिर कभी कर लीजियेगा और वह तो होगा ही होगा, पहले आप ईश्वर पर पूरी श्रद्धा रखिये।
- ब्रह्मलीन ब्रह्मनिष्ठ स्वामी अखंडानंद जी सरस्वती
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2002, पृष्ठ संख्या 13,14 अंक 119
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