हृदयरोग सुरक्षा व उपाय

हृदयरोग सुरक्षा व उपाय


पूरे विश्व में हृदयरोग से मृत्यु पाने वालों में भारतीयों की संख्या सर्वाधिक है । सर्वेक्षण के अनुसार भारत का हर पचीसवाँ व्यक्ति हृदयरोग से पीड़ित है । हृदय मन, चेतना व ओज का आश्रय-स्थान व मर्मस्थल है । यह अविरत कार्यरत रहता है । यह एक घंटे में शरीर के अंग-प्रत्यंगों में 300 लीटर रक्त प्रसारित करता है । हृदय को दो छोटी-छोटी धमनियों से रक्त मिलता है । उनमें अवरोध उत्पन्न होने से हृदय की मांसपेशियों को पर्याप्त रक्त नहीं मिल पाता और वे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं । परिणामतः हृदय को आपन कार्य करने में कठिनाई होती है व हृदयदौर्बल्य, हृदयशूल, हृदयावरोध, हृदयाघात आदि गंभीर व्याधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं । तीव्रता से बढ़ने वाले इस रोग का मुख्य कारण सदोष आधुनिक जीवनशैली है ।

गरिष्ठ आहार, शारीरिक परिश्रम का अभाव, मानसिक तनाव, धूम्रपान, मादक द्रव्यों व औषधियों का सेवन, क्षमता से अधिक कार्य, कलह, क्रोध, र्ईर्ष्या – ये हृदयरोग के प्रमुख कारण हैं ।

हृदयरोग की सरल, अनुभूत चिकित्साः

लौकी हृदय के लिए हितकर, कफ पित्त शामक व वीर्यवर्धक है । एक कटोरी लौकी के रस में पुदीने व तुलसी के 7-8 पत्तों का रस, 2-4 काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीयें । इससे हृदय को बल मिलता है और पेट की गड़बड़ियाँ भी दूर हो जाती हैं ।

नींबू का रस, लहसुन का रस, अदरक का रस व सेवफल का सिरका समभाग मिलाकर धीमी आँच पर उबालें । एक चौथाई शेष रहने पर नीचे उतारकर ठंडा कर लें । तीन गुना शहद मिलाकर काँच की शीशी में भरकर रखें । प्रतिदिन सुबह खाली पेट 2 चम्मच लें । इससे रक्तवाहिनियों का अवरोध खुलने में मदद मिलेगी ।

अगर सेवफल का सिरका न मिले तो पान का रस, लहसुन का रस, अदरक का रस व शहद प्रत्येक 1-1 चम्मच मिलाकर लें । इससे भी रक्तवाहिनियाँ साफ हो जाती है । लहसुन गरम पड़ता हो तो रात को खट्टी छाछ में भिगोकर रखें ।

उड़द का आटा, मक्खन, अरण्डी का तेल व शुद्ध गूगल समभाग मिला के रगड़कर मिश्रण बना लें । सुबह स्नान के बाद हृदयस्थान पर इसका लेप करें । 2 घण्टे बाद गरम पानी से धो दें । इससे रक्तवाहिनियों में रक्त का संचारण सुचारु रूप से होने लगता है ।

एक ग्राम दालचीनी चूर्ण एक कटोरी दूध में उबालकर पियें । दालचीनी गरम पड़ती हो तो एक ग्राम यष्टिमधु चूर्ण मिला दें । इससे कोलेस्ट्रॉल की अतिरिक्त मात्रा घट जाती है ।

भोजन में लहसुन, किशमिश, पुदीना व हरा धनिया की चटनी लें । आँवले का चूर्ण, रस, चटनी, मुरब्बा आदि किसी भी रूप में नियमित सेवन करें ।

औषधि कल्पों में स्वर्णमालती, जवाहरमोहरा पिष्टि, साबरशृंग भस्म, अर्जुनछाल का चूर्ण, दशमूल क्वाथ आदि हृदयरोगों का निर्मूलन करने में सक्षम हैं ।

हृदय के लिए हितकर पदार्थ

देशी गाय का दूध व घी, आँवला, अनार, बिजौरा नींबू, नींबू, लहसुन, अदरक, सोंठ, आम, करौंदा, बेर, कोकम, खजूर, गन्ना, गेहूँ, केसर, नारियल जल व गंगाजल हृदय के लिए विशेष हितकर हैं ।

सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर खुली हवा में 2-3 कि.मी. घूमना, प्राणायाम, ध्यान-धारणा, सूर्यनमस्कार व आसन (वज्रासन, पवनमुक्तासन, शलभासन, मयूरासन, सर्वांगासन, शवासन) आदि करना खूब लाभदायक है । पीपल के वृक्ष का स्पर्श करने से व उसके नीचे बैठने से भी लाभ होता है । हाथ की छोटी उँगली में सोने की अँगूठी पहनने से हृदय को बल मिलता है । पेट हलका रहे, पेट में वायु न हो व कब्ज न रहे इसका ध्यान रखें । रात को सोने से पहले त्रिफला अथवा छोटी हरड़ का चूर्ण लिया करें । हफ्ते में एक दिन उपवास रखें । दिन में सोना, रात्रि जागरण, रात को देर से भोजन सर्वथा त्याग दें । मन को शांत, निश्चिंत व प्रसन्न रखें ।

जिन्होंने पूज्यश्री से मंत्रदीक्षा ली है उन्हें एक आशीर्वाद मंत्र मिलता है, जिससे उच्च रक्तचाप, निम्नरक्तचाप, हृदयरोग, पीलिया नहीं होता और जिन्हें मंत्र लेने से पहले ये व्याधियाँ हुई हों उन्हें लाभ होता है । इस मंत्र के जप के प्रभाव से शनिपीड़ा शांत होती है । हृदयरोग वालों को तुरंत पूज्य श्री से वह आशीर्वाद मंत्र लेना चाहिए ।

स्रोतः ऋषि  प्रसाद, अगस्त 2009, पृष्ठ संख्या 29,32 अंक 200

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