फुटपाथी नहीं, वास्तविक शांति

फुटपाथी नहीं, वास्तविक शांति


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से)

भगवान की भक्ति करने वाला, भगवान में प्रीति रखने वाला, गुरु की आज्ञा में चलने वाला व्यक्ति सुखी रहता है, सुख-दुःख में समचित रहता है, शांत रहता है और भगवान को, गुरु को, गुरु के ज्ञान को न मानने वाला सदैव दुःखी रहता है, अशांत रहता है । अशांतस्य कुतः सुखम् ? अशांत को सुख कहाँ ?

लड़का कहना नहीं मानता, बेटी की मँगनी नहीं हो रही, नौकरी में तरक्की नहीं मिल रही, मकान की यह समस्या है, बरसात ऐसी है, खेत में ऐसा है – अशांत हो गये और सब अनुकूल हो गया तो हाश ! शांति । बस नहीं मिलती, अशांति हो गयी । बस आ गयी, हाश ! शांति । लेकिन शाम को फिर बस नहीं आयी तो शांति अशांति में बदल गयी । तो आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक ये तीन शांतियाँ तो बेचारी आती जाती रहती हैं । अगर आत्मानुभूति हो गयी तो परम शांति मिलेगी, फिर आने-जाने वाली फुटपाथी शांति-अशांति की कीमत ही नहीं रहेगी ।

ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ।

‘ज्ञान को प्राप्त होकर वह बिना विलम्ब के, तत्काल ही भगवत्प्राप्तिरूप परम शांति को प्राप्त हो जाता है ।’ (भगवद्गीताः 4.39)

शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् । (गीताः 5.12)

भगवत्प्राप्तिरूप शांति मिल जाती है । कुछ मिले, कोई आये-जाये तब शांति…. नहीं, अपने-आप में तृप्त ! सुख के लिए किसी व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति की गुलामी न करनी पड़े ऐसी वास्तविक शांति, परम शांति की कुंजी मिल जाय तो दुःख मिट सकता है । सारे दुःख मिटाने वाली यह परम शांति चाहिए तो जिन्होंने परम शांति पायी है ऐसे ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों की संगति में जाना चाहिए । उनकी करुणा-कृपा से हृदय की ज्योति जग जाती है और वास्तविक शांति मिल जाती है । जो लोग उनके सत्संग में जाते हैं, जिन पर उनकी निगाह पड़ती है, जिनको उनकी प्रसादी मिलती है वे लोग धन्य हैं !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2009, पृष्ठ संख्या 11 अंक 203

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