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आरोपों की वास्तविकता


(जनहित में प्रसारित)

पिछले कुछ वर्षों से भारतीय संस्कृति के विरोधियों ने संस्कृति के आधारस्तम्भ सतों सत्पुरुषों को विशेषरूप से निशाना बनाना शुरु किया है। संत श्री आसारामजी बापू एवं उनके आश्रम, जो सत्संग के साथ सेवायोग द्वारा मानवमात्र के उत्थान में लगे हैं, उनके पीछे कुछ विधर्मी तत्त्व काफी लम्बे समय से पड़े हुए हैं – यह आम जनता पहले ही जान चुकी थी। अभी हाल ही में एक स्टिंग ऑपरेशन में उन स्वार्थी तत्त्वों की घृणित साजिशों का पर्दाफाश हो जाने से तो यह सुस्पष्ट हो गया है कि उन्होंने संतों पर कीचड़ उछालने का ठेका ही ले रखा है। प्रस्तुत हैं वे आरोप एवं उस संदर्भ में वास्तविकता-

आरोप 1- जुलाई 2008 में अहमदाबाद गुरुकुल के दो बच्चों की आकस्मिक मृत्यु के संदर्भ में स्वार्थी तत्त्वों द्वारा उकसाये जाने पर बच्चों के परिजनों ने आश्रम में तांत्रिक क्रिया एवं काले जादू के कारण बच्चों की मौत का आरोप लगाया।

खंडनः परिजनों की माँग पर शासन ने सी.आई.डी. (क्राईम) तथा एफ.एस.एल. की एक बड़ी टीम से जाँच करायी। सी.आई.डी. (क्राईम) के डी.आई.जी. श्री जी.एस.मलिक ने पचीसों मीडियाकर्मियों, फोटोग्राफरों तथा पुलिस बल के एक बड़े दल के साथ आश्रम का कोना-कोना, चप्पा-चप्पा छान डाला किंतु उन्हें कोई भी चीज आपत्तिजनक नहीं मिली और उन्होंने मीडिया के समक्ष घोषणा की कि आश्रम में कोई तांत्रिक क्रिया व काला जादू नहीं होता है। सी.आई.डी. (क्राईम) ने उच्च न्यायालय में दायर किये गये शपथ पत्र में स्पष्टरूप से लिखा है कि आश्रम में काला जादू नहीं होता। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी स्पष्ट लिखा है कि बच्चों की मौत पानी में डूबने से हुई है तथा कोई भी ‘एन्टी मोर्टेम इंजरी’ (मृत्यु पूर्व की चोट) नहीं पायी गयी, अपितु मृतदेह को जानवरों ने नोचा था। चिकित्सा विशेषज्ञों के दल ने भी यही अभिप्राय दिया है कि बच्चों की मृत्यु पानी में डूबने के कारण ही हुई है।

विशेषः कुप्रचारकों ने लगातार आधारहीन भ्रामक प्रचार तो बढ़ा-चढ़ाकर किया किंतु वस्तुस्थिति प्रकाश में आने पर उसे समाज से छिपाया। साजिशकर्ताओं ने मीडिया को भी गुमराह किया। आइये देखें, कैसे संत श्री आसारामजी बापू एवं उनके आश्रम पर एक के बाद एक झूठे आरोप लगाये गये।

आरोप 2 – दिनांक 10.8.2008 को एस.आर.शर्मा, निवासी गाँव गालानाड़ी सिणधरी, तह, गुड़ामालानी, जिला बाड़मेर (राजस्थान) ने मीडिया के माध्यम से आरोप लगाया कि उसकी पत्नी शांति देवी व बेटी पूजा को आसारामजी बापू ने अपने एक साधक के द्वारा तांत्रिक प्रयोग कराके आश्रम में कैद कर रखा है। यह खबर गुजरात के अखबारों में दिनांक 11.8.2008 को छपी थी।

खंडनः दिनांक 11.8.2008 को ही दोपहर 1.50 बजे आश्रम परिसर में स्वप्रेरणा से उपस्थित होकर एस.आर. शर्मा की पत्नी श्रीमती शांति देवी एवं बेटी पूजा ने ‘जी न्यूज’, ‘टी.वी.9’, ‘भारत की आवाज’ आदि अनेक चैनलों के कैमरों तथा संवाददाताओं के समक्ष इस आरोप का खंडन करते हुए बताया कि उन्हें एस.आर. शर्मा ने मारपीट कर घर से निकाल दिया है तथा वे आश्रम में नहीं रहतीं बल्कि पूजा के पति विमलेश के साथ राजस्थान में रहती हैं। शांति देवी ने पुनः स्पष्ट किया कि “जब हम आश्रम में रहती ही नहीं है तो फिर तांत्रिक प्रयोग करके आश्रम में कैद करने का आरोप ही कैसे लगाया जा सकता है ! यह आरोप पूर्णतः झूठा है। हमारे घरेलू मामलों से बापू जी एवं आश्रम का कोई लेना-देना नहीं है।”

विशेषः आरोपों को तो बढ़ा चढ़ाकर आप सब प्रबुद्ध लोगों तक पहुँचाया गया किंतु खंडन को जानबूझकर छिपाया गया। आखिर यह पक्षपात क्यों ? सत्य को जानना प्रबुद्ध जनता का मौलिक अधिकार है। आइये, आपको अगले आरोप से अवगत करायें।

आरोप 3- राजेश सुखाभाई सोलंकी नामक शख्स ने 14.8.2008 को मीडिया में खबर देकर आरोप लगाया कि उसकी पत्नी बकुला जो कि संस्कृत में गोल्ड मेडलिस्ट है, उसे बापू के जहाँगीरपुरा, सूरत स्थित आश्रम में नजरबंद करके रखा गया है और उससे तंत्र-मंत्र करवाया जाता है। राजेश ने यह भी कहा कि गुलाब भाई, जो सूरत आश्रम में रहते हैं, आश्रम के मुख्य तांत्रिक हैं। राजेश ने पूज्य बापू जी एवं श्री नारायण साँईं पर अपने अपहरण का आरोप भी लगाया।

खंडनः वस्तुतः राजेश सोलंकी धोखाधड़ी के आरोप में 18 माह की जेल की सजा काट चुका कुप्रसिद्ध ठग है। उसकी पत्नी बकुला ने दिनांक 15.8.2008 को शपथ-पत्र के साथ मीडिया, जिसमें स्टार न्यूज, जी न्यूज, सहारा न्यूज, टी.वी.9, ई.टी.वी. आदि शामिल थे के रिपोर्टरों के समक्ष इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि न तो वह संस्कृत में गोल्ड मेडलिस्ट है और न ही उसने बापू जी का सूरत का या अन्य कोई आश्रम देखा है। वह तो पाँच महीनों से डिंडोली (गुजरात) में अपनी मौसी के यहाँ रह रही है क्योंकि उसका पति राजेश उसे शारीरिक-मानसिक रूप से प्रताड़ित करता था।

कोई नौकरी-धंधा नहीं वरन् ठगी करना ही राजेश का मुख्य कार्य रहा है। उसके गाँव कांगवई, जिला नवसारी (गुजरात) के सरपंच ने लिखित रूप से दिया कि राजेश ने अपने-आपको डिप्टी कलेक्टर बताकर कई बार ठगी की है। बकुला से भी डिप्टी कलेक्टर बताकर ठगी करके शादी की थी। बकुला ने बताया कि उसके पति को बापू का विरोधी मिल गया है एवं अच्छी खासी धनराशी मिली है, इसीलिए वह बापू को बदनाम करने की साजिश कर रहा है। उसे ठगी के आरोप में अदालत द्वारा डेढ़ वर्ष की सजा भी हो चुकी है।

गुलाब भाई बकुला के बहनोई हैं और उन्होंने अपने शपथ-पत्र में कहा है कि वे बापू जी के किसी भी आश्रम में कभी गये नहीं हैं और उनके किसी भी साधक को पहचानते भी नहीं हैं। राजेश के समस्त आरोप झूठे एवं मनगढ़ंत हैं। राजेश ने द्वेषवश उन्हें बदनाम करने के लिए ही उनका नाम भी जोड़ दिया है। (बकुला व गुलाब भाई के शपथ पत्र आज भी आश्रम के पास सुरक्षित हैं, जो चाहे इन्हें देख सकता है। ये सब मीडियाकर्मियों को भी दिये गये थे।)

पुलिस-जाँच में राजेश के सभी आरोप बेबुनियाद साबित हुए। उसके काले कारनामों ने पुनः जेल की सलाखों के पीछे पहुँचा दिया।

विशेषः आप तक राजेश सोलंकी के झूठे, निराधार आरोप तो कुछ लोगों ने खूब मिर्च-मसाला लगाकर जनता तक पहुँचाये परंतु हकीकत बताने वाला बकुला का लिखित बयान नहीं पहुँचाया। जिन्होंने भी उसे जनता तक पहुँचाने का दायित्व निभाया था, उन्हें तो धन्यवाद ! आइये, आगे और जानें।

आरोप 4- दिनांक 14.8.2008 को सिर से लेकर पैर तक पूरी तरह बुरके में ढकी एक औरत, जिसने न अपना नाम बताया न पता, उसने बापूजी पर यौन उत्पीड़न के अनर्गल आरोप लगाये। उस औरत को पेश करनेवाला व्यक्ति था – आश्रम से निष्कासित वैद्य अमृत प्रजापति।

खंडनः अमृत वैद्य प्रजापति ने बुरकेवाली औरत को पेश करके मीडिया के समक्ष कहा था कि यह पंजाब से आयी है और मैं इसे नहीं जानता हूँ। बाद में पुलिस जाँच के दौरान सूरत के रांदेर पुलिस थाने में स्वयं अमृत वैद्य ने ही बयान देकर स्वीकार किया कि बापू के खिलाफ झूठे आरोप लगाने के लिए उसने अपनी ही पत्नी सरोज को बुरका पहनाकर मीडिया के सामने खड़ा किया था। (उसके इस लिखित बयान का दस्तावेज भी आश्रम के पास सुरक्षित है, उसे जो चाहे देख सकता है।) अपनी ही पत्नी को बुरका पहनाकर सुकुमारी बना के आरोप लगाने के लिए खड़ी करना… कितनी नीचता है साजिशकर्ता और उनके हथकंडों की !

विशेषः आश्रम में मरीजों की चिकित्सा-सेवा में संलग्न अमृत वैद्य के खिलाफ जब मरीजों की ढेरों शिकायतें आने लगीं, जैसे – मरीजों से पैसे लूटना, उन्हें निजी पंचकर्म अस्पतालों में भेजकर व अकारण महँगी दवाइयाँ लिखकर कमीशन वसूल करना, गलत उपचार कर मरीजों को गुमराह करना, महिला मरीजों से जाँच के बहाने अभद्र व्यवहार करना आदि-आदि, तब उसे सन् 2005 में आश्रम से निष्कासित करना पड़ा। इसी से द्वेषवश उसने अपनी पत्नी को बुरका पहनाकर उसके द्वारा बापूजी पर झूठे, घिनौने आरोप लगवाये।

एक ऐसे संत जो पिछले 40-45 वर्षों से देश, समाज एवं संस्कृति की सेवा में अपना सर्वस्व न्योछावर कर सेवारत है, उन पर कोई भी राह चलती महिला अपनी पहचान पूर्णतया छुपाकर इस प्रकार के झूठे आरोप लगाये और बिना सोचे-समझे उन्हें समाज में उछाला जाय और फिर बिना किसी ठोस प्रमाण के तूल भी दे दिया जाय, यह सब ऐसे महान संत पर अत्याचार की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है ! क्यों समाज तक सत्य नहीं पहुँच पाता ? कृपया विचार करें। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी प्रशासन ने आश्रम के निवेदनों को कोई महत्त्व नहीं दिया। परिणामतः नये आरोप आपके सामने हैं।

आरोप 5- नयी साजिश के तहत अब एक तथाकथित अघोरी तांत्रिक कैमरे के सामने आया। उसने दिनांक 26.8.2008 को एक ऑडियो रिकार्डिंग जारी करके मीडिया के समक्ष आरोप लगाया कि आसारामजी बापू ने मुझे छः लोगों को मारने की सुपारी दी है।

खंडनः अघोरी उर्फ सुखाराम औघड़ उर्फ प्रीस्ट सुखविन्द्र सिंह उर्फ हरविन्द्र सिंह उर्फ सुक्खा ठग…. जितने नाम उतनी ही जिसकी पत्नियाँ हैं, ऐसे अंतर्राष्ट्रीय ठग सुक्खा की हकीकत ‘प्रेस की ताकत’ आदि अनेक समाचार पत्रों में विस्तार से छप चुकी है। ‘ए टू जेड’ चैनल पर दिखाये गये षड्यंत्रकारी राजू लम्बू के स्टिंग ऑपरेशन में सामने आये तथ्यों में राजू ने स्वयं स्पष्टरूप से कहा है कि कैसे उसने अघोरी को 40 हजार रूपये, शराब व बाजारू लड़कियाँ दिलाकर और मीडिया का सहारा लेकर अघोरी द्वारा बापू पर सुपारी देने का आरोप लगवाया। ‘साजिश का पर्दाफाश’ वी.सी.डी. आश्रम में उपलब्ध है, जिसमें इस साजिश का विस्तारपूर्वक खुलासा किया गया है और इसे कोई भी देख सकता है।

विशेषः राजू लम्बू ने छुपे कैमरे के सामने बड़े मजे से बताया कि वही अघोरी को लेकर आया और पाँच दिन तक उसे अहमदाबा में रखा। उसे रोज शराब की बोतलें तथा व्यभिचार के लिए बाजारू लड़कियाँ देकर छठे दिन ‘संदेश’ (समाचार पत्र) वालों के हवाले कर दिया। सातवें दिन दिल्ली लेकर गया जहाँ अघोरी को इंडिया टी.वी. के हवाले किया। फिर राजू लम्बू मीडिया का मजाक उड़ाते हुए कहता हैः “मीडिया तो बच्चा है, तुम जो कुछ उसे दो वह उसे उछाल देगा। उसकी टी.आर.पी. बढ़ गयी, उसका तो काम हो गया।”

आरोप 6- महेन्द्र चावला नामक शख्स ने आरोप लगाये कि नारायण साँईं तंत्र-मंत्र करते हैं।

खंडनः महेन्द्र चावला के बड़े भाई श्री तिलक चावला ने महेन्द्र की पोल खोलते हुए मीडिया में कहा कि आठवीं पास होने के बाद महेन्द्र की आदतें बिगड़ गयी थीं। वह चोरियाँ करता था। एक बार वह घर से 7000 रूपये लेकर भाग गया था। उसने खुद के अपहरण का नाटक भी किया था और बाद में झूठ को स्वीकार कर लिया था। इसके बाद वह आश्रम में गया। हमने सोचा वहाँ जाकर सुधर जायेगा लेकिन उसने अपना स्वभाव नहीं छोड़ा। और अब तो कुछ स्वार्थी असामाजिक तत्त्वों के बहकावे में आकर वह कुछ का कुछ बक रहा है। उसे जरूर 10-15 लाख रूपये मिले होंगे। नारायण साँई के बारे में उसने जो अनर्गल बातें बोली हैं वे बिल्कुल झूठी व मनगढंत हैं। हम साल में दो तीन बार अहमदाबाद आश्रम में जाते हैं और लगातार महीने भर के लिए भी वहाँ रह चुके हैं लेकिन कभी ऐसा कुछ नहीं देखा-सुना।

महेन्द्र के भाइयों ने बताया कि आश्रम से आने के बाद किसी के पैसे दबाने के मामले में महेन्द्र के खिलाफ एफ.आई.आर. भी दर्ज हुई थी। मार-पिटाई व झगड़ाखोरी उसका स्वभाव है। महेन्द्र के साथ 4-5 लोगों का गैंग है। दूसरों की आवाज की नकर कर ये लोग पता नहीं क्या-क्या साजिश रच रहे हैं!

आरोप 7- आरोप लगाया गया कि आश्रम ने जमीनों पर अवैध कब्जा कर रक्खा है।

खंडनः आश्रम ने जमीनों पर कोई भी अवैध कब्जा नहीं किया है। इस संदर्भ में समय-समय पर ‘ऋषि प्रसाद’ पत्रिका (अंक 205, 188, 161 आदि) में वास्तविकता का बयान किया गया है। स्थानाभाव के कारण उसकी पुनरुक्ति नहीं की जा रही है।

आरोप 8- दिनांक 26.11.2009 को पुलिस प्रशासन ने आरोप लगाया कि साधकों ने पुलिस पर हमला किया।

खंडनः लगातार लगाये जा रहे झूठे आरोपों एवं घृणित, अश्लील कुप्रचारकी सप्रमाण पोल खुलने के बावजूद भी प्रशासन द्वारा साजिशकर्ताओं के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जाने के कारण साधकों ने शांतिपूर्ण प्रतिवाद रैली निकालकर कलेक्टर को ज्ञापन देना चाहा तो कुप्रचारकों के सुनियोजित षड्यंत्र के तहत ‘संदेश’ अखबार और कुप्रचारकों के गुंडों ने साधकों के वेश में रैली में घुसकर पुलिस पर पत्थर फैंके। पुलिस ने सत्य को जानने के लिए कोई सावधानी नहीं बरती तथा 234 निर्दोष साधकों एवं आम जनता, जिसमें अनेक महिलाएँ, छोटे बच्चे व वयोवृद्ध लोग भी थे, उन पर न सिर्फ लाठियाँ बरसायीं बल्कि आँसूगैस के साठ गोले और आठ हैण्डग्रेनेड छोड़े जैसे ये आम जनता न हो, कोई खूँखार देशद्रोही अथवा आतंकवादी हों। उन पर हत्या से संबंधित धारा 307 सहित कुल 14 धाराएँ लगाकर उन्हें जेल में डाल दिया गया। इसके बाद दिनांक 27.11.2009 को स्वयं पुलिस ने ही आश्रम पर हमला बोल दिया और 200 से अधिक निर्दोष साधकों को 26 घंटे तक बिना एफ.आई.आर., बिना किसी केस के बंदी बनाकर अकारण ही गम्भीर शारीरिक पीड़ाएँ, भयंकर मानसिक यातनाएँ एवं घृणित भावनात्मक प्रताड़नाएँ दीं। एक दिन बाद 192 साधकों को छोड़ दिया गया। यदि ये साधक निर्दोष थे तो इन्हें बंदी क्यों बनाया और दोषी थे तो छोड़ा क्यों ? क्या प्रशासन के पास इसका कोई भी जवाब है ? इसी घृणित अत्याचार के विरुद्ध स्थानीय पुलिस थाने में संस्था द्वारा एफ.आई.आर. दर्ज करवाने हेतु आवेदन भी दिया गया, किंतु पुलिस द्वारा न तो कोई एफ.आई.आर. दर्ज की गयी और न ही कोई कार्यवाही की गयी। अतः अब संस्था को न्यायालय के द्वार खटखटाने पड़े हैं।

आरोप 9- दिनांक 5.12.2009 को रात्रि में राजू चांडक उर्फ राजू लम्बू के साथ हुए तथाकथित गोलीकांड के संबंध में दिनांक 6.12.2009 को राजू ने आरोप लगाया कि आश्रम के दो साधकों ने उस पर गोली चलाकर उसकी हत्या का प्रयास किया। आसारामजी बापू के इशारे पर उस पर गोलियाँ चलायी गयी हैं।

खंडनः वर्षों से दीन-दुःखियों एवं मानवमात्र की सेवा में रत पूज्य बापू जी परदुःखकातर एवं करूणा के सागर हैं और ऐसे संत का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से हिंसा से कोई प्रयोजन नहीं होता।

कथित गोलीकांड के समग्र घटनाक्रम में ऐसे अनेक तथ्य एवं विरोधाभास हैं, जो इस गोलीकांड को संदेहास्पद बना देते हैं। जैसे – राजू को तीन गोलियाँ लगने पर वह उस अवस्था में भी बाइक कैसे चलाता रहा ? और वह गोलियों से घायल होने पर भी अस्पताल के बदले घर क्यों गया ? घर से एक निजी अस्पताल में दाखिल होने के बाद फिर तुरंत ही उसे उस अस्पताल से काफी दूर दूसरे निजी अस्पताल में क्यों ले जाया गया ?

राजू ने एक साधक गजानन पर अपने ऊपर हुए इस हमले का आरोप लगाया। पुलिस अधिकारियों ने सघन जाँच-पड़ताल की और गजानन को निर्दोष पाया।

इस समग्र घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए म.प्र. की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती कहती हैं- “राजू, जिसने स्टिंग ऑपरेशन में स्वयं ही अपने गुनाह कबूल कर लिये हैं, उसका जीना तो सच को अदालत में साबित करने के लिए जरूरी है तो उसे मरवाने की कोशिश आश्रम क्यों करेगा ?”

शरीर में जैसे रॉड फिट करा देते हैं ऐसे ही गोली फिट कराके दोषारोपण का नाटक भी अब खुलने की कगार पर है। क्राइम विभाग के कोई मर्द अधिकारी गोली लगने की साजिश की पोल प्रजा के आगे खोलकर अपनी सच्चाई व सेवा की मिसाल रखें तो कितना अच्छा होगा ! यह स्पष्ट है कि राजू चांडक के द्वारा विद्वेषपूर्वक लिखवायी गयी एफ.आई.आर. कानून का दुरूपयोग कर पूज्य बापू जी को कानूनी जाल में फँसाने के लिए रची गयी एक सोची समझी साजिश है।

इस तरह एक-एक करके सब आरोप निराधार व खोखले साबित होते गये, फिर नये-नये आरोप लगाये गये।

‘ए टू जेड’ चैनल के वरिष्ठ संवाददाता ने बताया कि ‘संत श्री आसारामजी बापू पर लगाये जा रहे आरोपों के पीछे जो षड्यंत्रकारी हैं, वे अब सामने आ गये हैं। यह बिल्कुल सही समय है कि इस मामले पर ध्यान देकर पुलिस तुरंत कार्यवाही करे। मैं पूरी जिम्मेदारी से कह सकता हूँ कि मीडिया को इस्तेमाल करने की बात सामान्य है, पर यह तो एक व्यापक साजिश है जिसमें कई लोग हैं, जिसमें मीडिया भी एक इच्छुक खिलाड़ी है, यह मात्र टी.आर.पी. का खेल नहीं है। तमिलनाडू के कांची कामकोटि मठ के शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती जी की घटना. उड़ीसा की घटना आदि को खेला गया है और अब बापू पर आरोप भी उसी व्यापक साजिश का हिस्सा है। इससे स्पष्ट तौर पर जाँचना होगा कि राजू लम्बू को किसने खड़ा किया ? किसने उसको समझाया कि ऐसा-ऐसा करना है और इस तरह साजिश करनी है ? यह सीधी-सी बात है कि इस तरह कि साजिश करने में बहुत लोग भी लगते हैं। अतः वे सब लोग कौन हैं इसकी पूरी जाँच होनी चाहिए।”

ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों पर झूठे आरोप लगाने एवं उन्हें कष्ट देने का यह पहला प्रसंग नहीं है। इतिहास साक्षी है कि गुरु गोविन्दसिंहजी, ऋषि दयानंद, महात्मा बुद्ध, ईसामसीह जैसे कई महापुरुषों को उन्हीं के आश्रय में रह चुके कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों ने साजिश रचकर कष्ट पहुँचाया। यथार्थ में देखें तो महापुरुषों का कुछ बिगड़ा नहीं और ऐसे दुष्टों का कुछ सँवरा नहीं क्योंकि परम लाभ के लिए तो महापुरुष का हृदय से सामीप्य अधिक महत्त्वपूर्ण होता है, न कि शरीर का सामीप्य। प्रकृति का सिद्धान्त है कि वह ऐसे अभागे लोगों को उनके बुरे कर्मों का फल देर-सेवर अवश्य देती है।

षड्यंत्रकारी एवं उनके प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहयोग करने वाले मूढ़ लोग केवल समाजद्रोही, देशद्रोही ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता के द्रोही हैं। अतः मानवता के प्रहरी सज्जनों को हमेशा सजग रहने की आवश्यकता है।

आज स्वामी विवेकानंदजी के नाम पर संस्थाएँ चल रही हैं, स्कूल-कालेज बने हैं, बड़े-बड़े मार्गों को उनका नाम दिया जा रहा है लेकिन जिन रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें स्वामी विवेकानंद जी को बंग प्रदेश के किसी भी श्रीमान ने जमीन का एक टुकड़ा तक नहीं दिया। जिन शिर्डी के साँईं बाबा की आज बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ खड़ी की जा रही हैं, मंदिर बनाये जा रहे हैं, वे ही साँईं बाबा जब हयात थे तो उन्हें कोई दो बूँद तेल नहीं दे रहा था, भिन्न भिन्न ढंग से त्रस्त किया जा रहा था। ऐसे ही आज ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष संत श्री आसारामजी बापू और उनके आश्रम के संचालकों व सेवा करने वाले पुण्यात्माओं पर झूठे आरोप लगाकर, उनके बारे में झूठी बातें फैलाकर कुछ लोगों द्वारा कुप्रचार किया जा रहा है। तो क्या हम अपने विवेक का उपयोग नहीं करेंगे ? एकतरफा, मनगढंत आरोपों एवं कहानियों से भ्रमित होकर इन परमात्मा में सुप्रतिष्ठित ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष का लाभ लेने से वंचित रह जायेंगे अथवा उपरोक्त वास्तविकता को जानकर इन महापुरुष से लाभान्वित होके अपना कल्याण कर लेंगे ? जरा विचारें।

प्रशासन को भी संतों के विरूद्ध हो रहे इतने भयंकर कुप्रचार के पीछे छिपे हुए असली खलनायकों को बेनकाब करना चाहिए तथा देश व समाज में अशांति फैलाने वाले इन देशद्रोहियों के खिलाफ अविलम्ब कठोर कार्यवाही करनी चाहिए। मीडिया के जो सज्जन उपरोक्त वास्तविकता को जनता तक पहुँचाने के मेरे इस प्रयास में सहभागी बनते हैं, उनको मैं हृदयपूर्वक धन्यवाद देती हूँ।

नीलम दूबे

ऋषि प्रसाद, फरवरी 2010, पृष्ठ संख्या 25 से 29, अंक 206

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अधर्मियों का सत्यानाश हो !


इन दिनों प्रातः अनेक टी.वी. चैनलों व समाचार पत्रों में देखने व पढ़ने को मिल रहा है कि संत श्री आसाराम जी बापू पुलिस के पुलिसिया जाल में फँसे हुए हैं। उनके ऊपर गुजरात प्रदेश की पुलिस द्वारा राजू चांडक उर्फ राजू लम्बू के कहने पर गोली मारने व जान लेवा हमले आई.पी.सी. धारा 307 आदि कई धाराओं का मुकद्दमा पंजीकृत कर लिया गया है। यह बात आठवें आश्चर्य जैसी लग रही है कि एक विश्वप्रसिद्ध संत, जो पूरी दुनिया में सनातन धर्म व हिन्दू संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के साथ नशामुक्त जीवन को प्रोत्साहन देना, योग-पद्धति से निरोग रहना सिखाना व अनेक आध्यात्मिक मंत्रों के माध्यम से निराश व्यक्तियों में जान डालना, देश के कोने-कोने में हमारी आगे आने वाली युवाशक्ति को बाल संस्कारों के माध्यम से अच्छे संस्कार देने का कार्य करना तथा हिन्दुओं के प्रमुख त्यौहारों में गरीब व आदिवासी बस्तियों में स्वयं जाकर जीवनोपयोगी सामग्री बँटवाना आदि समाज उपयोगी अने कार्य करके क्या कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को गोली मार सकता है ? कदापि नहीं, कभी नहीं।

पुलिस व प्रशासन के पास शक्ति होती है कि वे तो एक छोटे से साधारण कपड़े को काला सर्प बना देते हैं। अपनी लाठियों के बल पर किसी निर्दोष व्यक्ति से जबरन अपराध साबित करवा लेते हैं। अपराधी को सजा अवश्य मिलनी चाहिए, सबके साथ न्याय होना चाहिए परंतु यह इस देश का दुर्भाग्य है कि वास्तविक अपराधी आज भी कानून के दायरे से बहुत दूर रहते हैं। बापू जी के अहमदाबाद आश्रम में की गयी तोड़ फोड़ की सी.डी. देखकर हम हैरान हो गये और इतिहास के पन्नों में पढ़े हुए अनेक करूण प्रसंग, जिनमें अंग्रेजों द्वारा गुलाम भारत के लोगों को यातनाएँ देकर जंजीरों में जकड़ के मारा-पीटा जाता था, की याद आ गयी और हृदय द्रवित हो गया। न सिर्फ सैंकड़ों साधकों को बाल पकड़कर बंदूक के कुंदों व डण्डों से उनके गुप्तांगों में मारते हुए गाड़ियों में बैठाया गया, बल्कि बेरहमीपूर्वक आश्रम की संपत्ति पुलिस द्वारा नष्ट की गयी, रोकड़ चुरायी गयी, लूटमार की गयी, घण्टों उत्पात मचाया गया। साधकों को इतना मारा-पीटा कि उनके हाथ-पैर व अंग-भंग कर दिये गये। पुलिस का यह अधर्म संविधान की किस धारा के अंतर्गत आता है ? किस कानून व विवेचना में यह लिखा है कि इस तरह से निर्दोष, निरपराध लोगों को मारा पीटा जाये ?

देश के किसी भी प्रदेश की पुलिस के पास क्या इतनी हिम्मत है कि इस तरह खुले रूप से किसी मस्जिद, मदरसे व गिरजाघर में घुसकर (बापू जी के आश्रम की तरह) तोड़फोड़ करे और किसी मौलवी-पादरी को मारे-पीटे ? ऐसा कभी नहीं कर सकते। क्योंकि करेंगे तो उस क्षेत्र में आगजनी हो जायेगी, दंगा हो जायेगा, तबाही मच जायेगी। ये केवल हिन्दू संतों व आश्रमों में ही अपना कानून चलाते हैं। अनेक राजनेता सिमी (आतंकवादी संगठन) के पक्ष में बयानबाजी करते हैं, कोई नेता खुले रूप से भारत माँ को डायन कहता है, कोई अफजल गुरू जैसे क्रूर आतंकवादी को फाँसी न देने की वकालत करता है। पुलिस ऐसे राजनेताओं को स्पष्ट द्रोह के जुर्म में क्यों गिरफ्तार नहीं करती ? क्यों डरती है आतंकवादियों को सरेआम गोली मारने से ? क्यों जेलों में आतंकवादियों को बिरियानी खिलायी जाती है ? 13 सितम्बर 2008 को दिल्ली में बम धमाके हुए। 26 नवम्बर 2008 को देश की औद्योगिक राजधानी मुंबई में बम धमाके हुए। क्या स्वामी आदित्यनाथ पर हमला आतंकवाद नहीं है ? क्या स्वामी लक्ष्मणनंदजी की हत्या आतंकवाद नहीं है ? इस्लामी आतंकवाद के अनेक भयानक चेहरे देशवासियों को भयभीत कर रहे हैं। जिला मुजफ्फरनगर में हिन्दुओं की धार्मिक शोभायात्रा को अपवित्र किया गया, सुल्तानपुर में गणेश चतुर्थी की धार्मिक यात्रा पर आक्रमण हुआ परंतु इन कट्टरपंथी तत्त्वों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई। हिंसक और आतंकी संगठनों को तुष्ट करने के लिए हिन्दू समाज का दमन हो रहा है। हमारे हिन्दू संतों, आचार्यों व हमारे धर्म कोई भी आँख उठाये, जो कोई भी अत्याचार करे, हमें उससे मजबूती से लड़ना होगा। संत श्री आसारामजी बापू के आश्रम पर हमला-यह एक साजिश है। साजिश करने वालों का भी हमको डटकर मुकाबला करना होगा। आने वाले समय में यदि हिन्दू भाइयों के अंदर अपनी संस्कृति व धर्म के खिलाफ अत्याचार करने वालों को सबक सिखाने की भावना व संघर्ष करने की क्षमता न रही तो हो सकता है कि हमको फिर से गुलामी के दिन देखने पड़ें।

‘अखिल भारत हिन्दू महासभा’ ऐसे षड्यंत्रों के प्रति सदैव सजग रहती है। महासभा के कार्यकर्ताओं के अंदर पूज्य वीर सावरकरजी जैसी देशभक्ति की भावना सदैव विद्यमान रहती है। महासभा पूज्य बापू जी के साथ हो रहे इस तरह के अन्याय का विरोध अपनी जान की बाजी लगाकर करेगी। उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जनपद में धरना-प्रदर्शन के माध्यम से पुलिस की इस गंदी कार्यप्रणाली व अत्याचार को रोकने हेतु प्रदर्शन, ज्ञापन व आध्यात्मिक शक्ति के आधार पर कार्य करने की रणनीति प्रांतीय अध्यक्ष श्री महंत नारायण गिरि (पीठाधीश्वर-दुग्धेश्वर नाथ मठ, गाजियाबाद) की अध्यक्षता में आगामी प्रदेश कार्य समिति की बैठक में सम्पन्न होगी। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणी महाराज ने भी इस अमानवीय घटना की निंदा की। उ.प्र. के कार्यकारी अध्यक्ष श्री राकेश कुमार आर्य एडवोकेट ने भी पुलिस के इस अन्यायपूर्ण रवैये की कटु आलोचना की है। अत्याचार की विरोध भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्री परशुरामजी, पवनपुत्र श्री हनुमान जी, महर्षि दधीचि, महर्षि गौतम आदि ने सदैव ही किया है तथा अत्याचारियों को सबक सिखाया है। हम भी अपने आपको उनके अनुयायी मानते हैं तो क्यों अत्याचार, जुल्म बर्दाश्त करें ! मृत्यु तो निश्चित है तो क्यों डरें ! इस देश के अनेक क्रांतिवीरों ने हँसते हुए  अपनी जानें गँवायी हैं, उन क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सपनों को हमें भी साकार रखने के लिए प्रत्येक क्षण सजग रहना होगा। सधन्यवाद !

मनोज त्रिवेदी

सम्पादक, सा.हिन्दू वार्ता

महामंत्री, अखिल भारत हिन्दू महासभा, उ.प्र.

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2010, पृष्ठ संख्या 7,8. अंक 206

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आपका भाव कैसा है ?


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से)

आप भगवान का स्मरण करोगे तो भगवान आपका स्मरण करेंगे क्योंकि वे चैतन्यस्वरूप हैं। आप पैसों का, बँगले का स्मरण करोगे तो जड़ पैसों का, बँगले का स्मरण करोगे तो जड़ पैसों को, जड़ बँगले को पता नहीं है कि आप उनका स्मरण कर रहे हो। आप गाड़ी का स्मरण करोगे तो वह अपने-आप नहीं मिलेगी लेकिन भगवान का स्मरण करोगे तो वे स्वयं आकर मिलेंगे। शबरी ने भगवान का स्मरण किया तो वे पूछते-पूछते शबरी के द्वार पर आ गये। भावग्रही जनार्दनः….. मीरा ने स्मरण किया तो जहर अमृत हो गया। वह हृदयेश्वर आपके भाव के अनुसार किसी भी रूप में कहीं भी मिलने में सक्षम है, अगर सोऽहंस्वरूप में मिलना चाहो तो सोऽहंस्वरूप में भी अपना अनुभव कराने में समर्थ है। केवल अपनी बुद्धि में उसके प्रति भाव होना चाहिए। देवी देवता का, मूर्ति का आदर-पूजन, माता-पिता अथवा गुरु का आदर-पूजन यह हमारी बुद्धि में भगवदभाव को, भगवदज्ञान को, भगवदरस को प्रकट करने का मार्ग है।

भाव की बड़ी महिमा है। मान लो, एक सुपारी है। एक को उसे खाने का भाव है, दूसरे को उससे कमाने का भाव है, तीसरे को उसे पूजने का भाव है। तो फायदा किसने लिया ? खाने वाले ने, कमाने वाले ने कि पूजने वाले ने ? सुपारी तो जड़ है, प्रकृति की चीज है, उसमें भगवदबुद्धि करने से भगवदभाव पैदा होता है और खाने की भावना करते हैं तो तुच्छ लाभ होता है। बेचकर कमाने की भावना करते हैं तो ज्यादा लाभ होता है लेकिन उसमें गणेश जी का भाव करके पूजा करते हैं तो और ज्यादा लाभ होता है। सुपारी तो वही-की-वही है परंतु खाना है तो भोग, कमाना है तो लोभ और पूज्यभाव, भगवदभाव है तो भगवदरस देके भगवान के समीप कर देगी। अब सुपारी को खाके मजा लो, बेचके मजा लो या उसका पूजन करके मजा लो तुम्हारी मर्जी।  खाके मजा लिया तो भोगी, बेचके मजा लिया तो लोभी और सुपारी में गणपति-बुद्धि की तो आप उपासक हो गये, भक्त हो गये और सुपारी का तत्त्व जान के अपना तत्त्व और सुपारी का तत्त्व एकमेव अद्वितीयं कर दिया तो हो गये ब्रह्म !

ऐसे ही अगर आप गुरु से संसारी फायदा लेते हैं तो यह भोगबुद्धि हुई लेकिन गुरु चिन्मय हैं, दिव्य हैं, ब्रह्मस्वरूप हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, तारणहार हैं, व्यापक हैं, सबके अंतरात्मा, भूतात्मस्वरूप हैं, प्राणिमात्र के हितैषी हैं, सुहृद हैं – ऐसा अहोभाव करते हैं और उनके वचनों में विश्वास करते हैं, उनके अनुसार चलते हैं तो कितना फायदा होता है !

आप सुपारी में गणपति का भाव करो तो सुपारी उसी समय आपके लिए ऐसा भाव नहीं कर सकती कि ‘यह मुक्तात्मा हो जाय, चिंतारहित हो जाये…।’ ऐसा सोचकर सुपारी उपदेश नहीं देगी। आपके अपने भाव के अनुसार अंतःकरण की वृत्ति बनेगी लेकिन गुरू के प्रति भगवदभाव, ब्रह्मभाव, अहोभाव करोगे तो गुरूदेव के अंतःकरण से भी आपके उद्धार के लिए शुभ संकल्प की, विशेष कृपा की वर्षा होने लगेगी, उनके द्वारा ऊँचा सत्संग मिलेगा, आनंद-आनंद हो जायेगा। सुपारी वही की वही लेकिन नजरिया बदलने से लाभ बदल जाता है। गुरु वही के वही लेकिन नजरिया बदलने से लाभ बदल जाता है।

कर्मों में भी अलग-अलग भाव अलग-अलग फल देते हैं। जहाँ राग से, द्वेष से सोचा जाता है, वहाँ कर्म बंधनकारक हो जाता है। जहाँ करने का राग मिटाने के लिए सबकी भलाई के, हित के भाव से सोचा और किया जाता है, वहाँ कर्म बंधन से छुड़ाने वाला  हो जाता है। जैसे कोई दुष्ट है, धर्म का, संस्कृति का, मानवता का हनन कर-करके अपना कर्मबन्धन बढ़ाने वाले दुष्कर्म में लिप्त है और न्यायाधीश उसकी भलाई के भाव से उसे फाँसी देता है तो न्यायाधीश को पुण्य होता है। ‘हे प्रभु जी ! अब इस शरीर में यह सुधरेगा नहीं, इसलिए मैं इसे फाँसी दे दूँ यह आपकी सेवा है’ – इस भाव से अगर न्यायाधीश फाँसी देता है तो उसका अंतःकरण ऊँचा हो जाता हो जायेगा लेकिन ‘यह फलाने पक्ष का है, अपने पक्ष का नहीं है…. इसलिए फाँसी दे दो’ – ऐसा भाव है तो फिर न्यायाधीश का फाँसी देना अथवा सजा देना बंधन हो जायेगा।

आपके कर्मों में हित की भावना है, समता है तो आपके कर्म आपको बंधनों से मुक्त करते जायेंगे। अगर स्वार्थ, अधिकार और सत्ता पाने की या द्वेष की भावना है तो आपके कर्म से किसी को लाभ मिलता है तो अपनी संसार का आसक्ति मिटती है, दूसरे की भलाई का, हृदय की उदारता का आनंद आता है लेकिन दूसरे का हक छीना तो संसार की आसक्ति और कर्मबन्धन बढ़ता है।

आप जैसा देते हैं वैसा ही आपको वापस मिल जाता है। आप जो भी दो, जिसे भी दो भगवदभाव से, प्रेम से और श्रद्धा से दो। हर कार्य को ईश्वर का कार्य समझकर प्रेम से करो, सबमें परमेश्वर के दर्शन करो तो आपका हर कार्य भगवान का भजन हो जायेगा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2010, पृष्ठ संख्या 17,18 अंक 206

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