एक बार मेरी पत्नी अचानक बीमार हो गयी। उसे ऐसा सर्वाइकल पेन (गर्दन के मनकों का दर्द) हुआ कि तुरंत अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। डॉक्टर ने कहाः “इनको कम-से-कम सात दिन अस्पताल में रहना पड़ेगा।”
उसके हाथ, पैर और गर्दन पर वजन लटकाकर लिटा दिया। 3-4 दिन बाद पूज्य बापू जी का सत्संग हरिद्वार में होने वाला था। हम लोगों ने वहाँ जाने का विचार पहले से ही बना लिया था पर ऐसी हालत में किस प्रकार हरिद्वार जायें ! जाना आवश्यक था। मैंने अपनी पत्नी से बात की तो वह बोलीः “मुझे तो सत्संग में जाना ही जाना है।” डॉक्टर से बात की तो वे बोलेः “जाने में मरीज को बहुत खतरा है बल्कि आप इनको घर भी नहीं ले जा सकते।”
मैंने डॉक्टर से कहाः “एक दो दिन की छुट्टी दे दीजिए ताकि हम अपना पूजा-पाठ कर लें। फिर दुबारा हम इसे दाखिल करा देंगे।”
डॉक्टर ने ‘हाँ’ की तो हम लोग उसे हरिद्वार ले गये। पत्नी महिलाओं की लाइन में बैठ गयी। इतने में बापू जी पधारे। बापू जी भक्तों के बीच दर्शन देते हुए, कृपा बरसाते हुए घूम रहे थे। बापू जी के हाथों में एक आम था। उसको एक हाथ से दूसरे हाथ में लेकर वे उछाल ले रहे थे। बापू जी ने वह आम मेरी पत्नी को प्रसाद के रूप में ऐसा फेंककर मारा कि जहाँ पर उसे दर्द था। वहीं आकर लगा और उसकी झोली में आ गिरा।
इस घटना को 5 साल हो गये, अस्पताल में जाने की बात तो दूर रही आज तक न तो कोई दवा खायी और न दर्द हुआ। यह सब तो पूज्य गुरुदेव की असीम कृपा का फल है।
अनूप शर्मा, दिल्ली।
मो. 09213416373
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2010, पृष्ठ संख्या 30, अंक 207
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