आज मेरी जिंदगी में जो भी खुशी है, सब पूज्य बापू जी की कृपा से मिली है। मेरे पिछले किसी जन्म के पुण्यकर्मों का फल है जो बापू जी की पत्रिका ‘ऋषि प्रसाद’ मुझे मिली। इसे पढ़कर मेरे जीवन में आनंद और प्रसन्नता की बहार आ गयी। मेरी शादी को लगभग आठ साल होने को थे पर मैं संतान सुख से वंचित थी। एक दिन मेरी पड़ोसी ने मुझे ऋषि प्रसाद दी और तब इसे पहली बार पढ़ने का सौभाग्य मिला। उसमें एक भक्त का अनुभव छपा था – ‘गुरुकृपा से तीन संतान’। अनुभव को पढ़कर मेरे मन में विचार आया कि जब पूज्य बापूजी ने इसकी गोद भर दी तो मुझ पर भी उनकी कृपा अवश्य बरसेगी। मैंने श्रद्धापूर्वक, सच्चे मन से, पूरे विश्वास के साथ ‘श्री आसारामायण’ के 108 वर्ष बाद एक बेटा हुआ। बेटा 2 महीने का हुआ था कि मेरी 6 वर्ष से रूकी हुई नौकरी भी मुझे मिल गयी। मेरी वीरान जिंदगी अचानक यूँ खुशियों से भर गयी। यह सब मेरे पूज्य बापू जी की कृपा से ही सम्भव हुआ है।
अर्चना भराड़िया,
गाँव इच्छी, जि. काँगड़ा
हिमाचल प्रदेश
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2010, पृष्ठ संख्या 30, अंक 212
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