हम वो परवाने है जो शमा को देखकर कभी वापस नहीं लौटते…

हम वो परवाने है जो शमा को देखकर कभी वापस नहीं लौटते…


जो अधिक वाचाल है और शरीर की टिपटाप करना चाहता है वह गुरु की इच्छा के अनुसार सेवा नही कर सकता। हर रोज भाव एवं भक्ति से गुरु की चरण कमलों की पूजा करो। अगर अलौकिक भाव से अपने गुरु की सेवा करना चाहता हो तो स्त्रीयों से एवं सांसारिक मनोवृत्ति वाले लोगों से हिलो मिलो नही । गुरु के आशीर्वाद का खजाना खोलने के लिये गुरुसेवा गुरुचाबी है। जहाँ गुरु है वहाँ ईश्वर है यह बात सदैव याद रखो। जो गुरु की खोज करता है वह ईश्वर की खोज करता है और जो ईश्वर की खोज करता है उसे गुरु मिलते हैं। शिष्य को अपने गुरु की कदम कदम का अनुसरण करना चाहिए। गुरु की पत्नी को अपनी माता समझकर उनको इस प्रकार मान देना चाहिए। अपने गुरु से क्षणभंगुर पार्थिव सुखों की याचना मत करना अमरत्व के लिए याचना करना। अपने गुरु से सांसारिक आवश्यकताओं की भीख नही मांगना। सच्चे शिष्य के लिए आचार्य के चरण कमल ही एकमात्र आश्रय है। जो कोई अपने गुरु की भावपूर्वक अहिरनिष् अथक सेवा करता है उसे काम, क्रोध और लोभ कभी सता नहीं सकते।एक बार कुछ दीवाने पतंगे सरफरोशी के गीत गाते हुए एक मंदिर की ओर मुड़े जा रहे थे, अभी मंदिर में प्रवेश करने वाले ही थे वे पतंगे कि किवाड़ पर चिपकी एक छिपकली ने उनके इस जोशीले गीत में खलल डाला। छिपकली के इरादे कुछ ठीक नेक नही थे बैठे बिठाये वह भरपेट भोजन चाहती थी इसलिए मधुर आवाज में बोली “अरे अरे रुको पतंगो जरा ठहरो कहाँ उड़े चले जा रहे हो ?” तुम कौन ? पतंगों ने साश्चचार्य पूछा । “क्या तुमने मुझे पहचाना नही.. मैं तुम्हारी दूर की मौसी हुँ तुम्हारी माँ से मेरा बड़ा गहरा याराना था तुम्हारे मे से बहुतों को तो मैने अपने गोद में खिलाया है। कब से मेरी आँखें तुम्हे देखने के लिए तरस रही थी अच्छा हुआ कि आज तुम सब स्वयं ही मेरे पास यहाँ आ गये। आओ मेरे पास आओ मेरे बच्चों। ” पतंगे उलझन में पड़ गए तभी एक बुद्धिमान पतंगा आगे आकर बोला “अच्छा मौसी जी जरा पहले हमारा एक काम तो कर दो भीतर जाकर देखना तो सही कि क्या देवता की वेदी पर चिराग जल रहा है या नही ।” “बस इतनी सी बात लो मैं अभी देख कर आती हुँ।”छिपकली गई और तुरंत वापस आई लौटकर बोली “हाँ बच्चो एक नहीं वहाँ तो कई चिराग जल रहे हैं ।”सभी पतंगे ठहाका लगाकर हँसे फिर उसे झिझकारते हुए बोले “चल झूठी कहीं की तू हमारी मौसी वौसी नहीं हो सकती तू तो हमारी कुल की ही नहीं है।” क्यूँ ? छिपकली ने सकपकाकर पूछा । क्योंकि हम वो परवाने है जो शमा को देखकर कभी वापस नहीं लौटते हम तो उसके रूप के उसके तेज के दीवाने है। उसकी ओजस्वी चिंगारियों के मजनू है ।हमारे कुल की तो एक ही रीति है, उसकी आँच में आत्मदाह कर देना। अपने को भस्म कर उसमें जस्ब कर देना ।सद्गुरु होते हैं ज्ञान की शमा ,ज्ञान के तेजपुंज और सत्शिष्य होता है परवाना । जो सत्शिष्य को एक बार गुरु की प्राप्ति होती है तो उनका ही पूर्ण रूप से हो जाने में वह सदैव तत्पर बना रहता है। फिर वह वापस मुड़कर संसार की तरफ नहीं देखता। सत्शिष्य गुरूरूपी ज्ञान के तेज में अपने अहम की सहर्ष बली दे देता है और इसीमें वह पूर्ण तृप्ततता का अनुभव करता है। परंतु जो परिस्थितियो के प्रभाव में आकर गुरु का द्वार छोड़ कर पलायन कर जाते है, गुरु का दामन छोड़कर जो सांसारिक कटिली दामन को थामते है उनकी तो शिष्यों की जाति ही नहीं है वह तो छिपकली की जाति के है जो छिपकली की भांति ठगे जाते है और औरो को ठगने मे संलग्न रहते है । पतंगों का जवाब सुनकर छिपकली तो मायुस हो कर चली गयी… परंतु किसी समझदार चिंतक ने एक पतंगे को हिदायत दे डाली कि,*किसे कीहा पतंगे नु सुन यारा, रीत छड दे शमा ते जानवाली।।**तू प्यार करदा उह शाण ते दी, ऐसी शमा है भैडे मानवाली।।* अर्थात ओ यार पतंगे सुन तो तू मजनु की नाई शमा के इर्द गिर्द चक्कर लगाता है उसे दिलोजान से चाहता है ,उसपर अपनी सारी प्रीति लुटाता है और उस शमा को तो देख वह तुझे जला कर रख कर देती है । मेरी मान छोड़ दे शमा पे कुर्बान होने वाली अपनी इस रीति और नीति को। यह सुनकर पतंगा मुस्करा दिया और बोला,अग्गो किहा पतंगे ने हस के ते, तैनु न लगी चोट प्रेम दी बाण वाली।।सारी आशिकादि रीत इक्को, शिष देक्को यार मनानवाली।। अरे तू क्या जाने इस जलने में भी क्या मजा है तुझे प्रेम का बाण जो नही चुभा, इश्क में सराबोर हम आशिकों का तो बस एक ही चलन है कि सिर देके अपने यार अपने सद्गुरु को मनाना, अपने दिलदार को रीझाना।ऐसे ही एक बीरादरी होती है गुरु के पवित्र प्रेम मे मिट गए शिष्यों की।गुरु रूपी शमा के इन परवानों पर भी यही धुन सवार रहती है.. कि अपना शीश देकर अर्थात अहम विलिन कर गुरू को प्रसन्न करना उनकी पवित्र ज्ञान अग्नि में अपनी मैं को स्वाहा कर देना.. अपने अस्तित्व को खाक कर डालना। इन मौजियों को तो अपने सद्गुरु की याद उनकी ही विरह की आग मे अपनी हस्ती को जलाने में ही मजा आता है ऐसे मर्जियोड़ें शिष्यों के सिर एक ही जुनून चढ़ कर बोलता है कि आये है तेरे दर पे तो कुछ कर के हटेंगे या मिलन ही होगा या फिर मरके उठेंगे।

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