एक आदमी ने एक भूत सिद्ध किया तो भूत ने अपनी शर्त बताते हुए कहाः “जब तक तुम मुझे काम देते रहोगे तब तक मैं तुम्हारे पास रहूँगा और जैसे ही तुम काम देना बंद करोगे, मैं तुम्हें मार डालूँगा।” उसने शर्त स्वीकार कर ली। अब वह आदमी जो भी काम बताये, भूत उसे दो पाँच मिनट में ही खत्म कर दे और फिर सामने खड़ा हो जाय, ‘लाओ, दूसरा काम बताओ।’ काम बताते-बताते वह आदमी थक गया। जब कोई काम शेष नहीं बचा तो बेचारा बड़ा घबराया कि ‘अब क्या करें, यह तो मुझे मार देगा !’
समस्या से बचने के लिए वह भागा-भागा एक महात्मा के पास पहुँचा। महात्मा ने पूरी बात सुनी और कहाः “अच्छा, तुम घबराओ मत। भूत से कहना कि एक इतना लम्बा बाँस लाओ जिसे ऊँचा बाँस दुनिया में दूसरा न हो। फिर उसे ऐसा गाड़ो कि कभी नहीं उखड़े। जब गड़ जाय तो कहना कि जब तक मैं अगली आज्ञा न दूँ, तब तक तुम इस बाँस पर चढ़ो और उतरो।”
महात्मा की आज्ञानुसार उस व्यक्ति ने भूत से वैसा ही करने को कहा। भूत तुरंत एक लम्बा सा बाँस ले आया और गाड़ दिया। अब तो भूत दिन रात उस बाँस पर चढ़ने और उतरने लगा। उस आदमी ने चैन की साँस ली। उसके मन से भूत का डर बिल्कुल मिट गया।
मनुष्य का मन भी इस भूत की तरह ही है। जब भी यह आपके ऊपर हावी होने लगे तो तुरंत किसी समर्थ सद्गुरु की शरण चले जायें। उनके निर्देशानुसार कार्य करें, उनकी बतायी युक्तियों पर चलें। खाली मन शैतान का घर होता है। इसे हमेशा व्यस्त रखें। आप इसको एक बाँस दे दीजिये कि ‘जिस समय कोई काम न हो, उस समय गुरुमंत्र के जप में, श्वासोच्छवास की गिनते में या सद्गुरुदेव के सुमिरन-चिंतन में लगा रहे।’ इससे आप मनीराम के मानसिक त्रास से मुक्त हो जायेंगे।
वह आदमी यदि महात्मा के कहे अनुसार नहीं चलता तो वह भूत उस आदमी को एक जन्म में ही मारता लेकिन हम आप यदि किन्हीं ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु के मार्गदर्शनानुसार अपने जीवन को नहीं ढालेंगे तो यह मनीरामरूपी भूत हमको कई जन्मों तक मारता रहेगा, जन्म-मरण के चक्कर में भटकाता रहेगा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2011, पृष्ठ संख्या 10 अंक 226
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