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मुनक्का एवं किशमिश


अंगूर को जब विशेषरूप से सुखाया जाता है तब उसे मुनक्का कहते हैं। अंगूर के लगभग सभी गुण मुनक्के में होते हैं। यह दो प्रकार का होता है – लाल और काला। मुनक्का पचने में भारी, मधुर, शीत, वीर्यवर्धक, तृप्तिकारक, वायु को गुदाद्वार से सरलता से निकलने वाला, कफ-पित्तहारी, हृदय के लिए हितकारक, श्रमनाशक, रक्तवर्धक, रक्तशोधक, मलशोधक तथा रक्तपित्त व रक्त-प्रदर में भी लाभदायी है।

किशमिश भी सूखे हुए अंगूर का दूसरा रूप है। इसमें भी अंगूर के सारे गुण विद्यमान होते हैं। दूध के लगभग सभी तत्त्व किशमिश में पाये जाते हैं। दूध के अभाव में इसका उपयोग किया जा सकता है। किशमिश दूध की अपेक्षा शीघ्र पचती है। मुनक्के के नित्य सेवन से थोड़े ही दिनों में रस, रक्त, शुक्र आदि धातुओं तथा ओज की वृद्धि होती है। वृद्धावस्था में किशमिश या मुनक्के का प्रयोग न केवल स्वास्थ्य की रक्षा करता है बल्कि आयु को बढ़ाने में भी सहायक होता है। किशमिश और मुनक्के की शर्करा शरीर में अतिशीघ्र पचकर आत्मसात् हो जाती है, जिससे शीघ्र ही शक्ति व स्फूर्ति प्राप्त होती है।

100 ग्राम किशमिश में 77 मि.ग्रा. लौह तत्त्व, 87 मि.ग्रा. कैल्शियम, 2 ग्रा. खनिज तत्त्व तथा 308 किलो कैलोरी ऊर्जा पायी जाती है।

किशमिश एवं मुनक्के के कुछ

स्वास्थ्य-प्रदायक प्रयोग

दौर्बल्यः अधिक परिश्रम, कुपोषण, वृद्धावस्था या किसी बड़ी बीमारी के बाद शरीर जब क्षीण व दुर्बल हो जाता है, तब शीघ्र बल प्राप्त करने के लिए किशमिश बहुत ही लाभदायी है। 10-12 ग्राम किशमिश 200 मि.ली. पानी में भिगोकर रखें व दो घंटे बाद खा लें।

रक्ताल्पताः मुनक्के में लौह तथा सभी जीवनसत्त्व (विटामिन्स) प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। 10-15 ग्राम काला मुनक्का एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें। इसमें थोड़ा-सा नींबू का रस मिलायें। 4-5 घंटे बाद मुनक्का चबा-चबाकर खायें, इससे रक्ताल्पता मिटती है।

अम्लपित्तः किशमिश मधुर, स्निग्ध, शीतल व पित्तशामक है। इसे पानी में भिगोकर बनाया गया शरबत सुबह-शाम लेने से पित्तशमन, वायु-अनुलोमन व मल-निस्सारण होता है, जिससे अम्लपित्त में शीघ्र ही राहत मिलती है। रक्तपित्त, दाह व जीर्णज्वर में भी यह प्रयोग लाभदायी है। इसके सेवन के दिनों में आहार में पाचनशक्ति के अनुसार गाय के दूध तथा घी का उपयोग करें।

कब्जः किशमिश में उपस्थित मैलिक एसिड मल-निस्सारण का कार्य करता है। 25 से 30 ग्राम किशमिश व 1 अंजीर रात को 250 मि.ली. पानी में भिगोकर रखें। सुबह खूब मसलकर छान लें। फिर उसमें आधा चम्मच नींबू का रस व 2 चम्मच शहद मिलाकर धीरे-धीरे पियें। कुछ ही दिनों में कब्ज दूर हो जायगी।

शराब के नशे से छुटकाराः शराब पीने की इच्छा हो तब शराब की जगह 10 से 12 ग्राम किशमिश चबा-चबाकर खाते रहें या किशमिश का शरबत पियें। शराब पीने से ज्ञानतंतु सुस्त हो जाते हैं परंतु किशमिश के सेवन से शीघ्र ही पोषण मिलने से मनुष्य उत्साह, शक्ति और प्रसन्नता का अनुभव करने लगता है। यह प्रयोग प्रयत्नपूर्वक करते रहने से कुछ ही दिनों में शराब छूट जायेगी।

आवश्यक निर्देशः किशमिश, मुनक्का व अंजीर को अच्छी तरह से धोने के बाद ही उपयोग करें, जिससे धूल-मिट्टी, कीड़े, जंतुनाशक दवाई का प्रभाव आदि निकल जायें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2012, पृष्ठ संख्या 31, अंक 235

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किसे छुपायें, किसे बतायें ?


(पूज्य बापू जी की दिव्य अमृतवाणी)

नौ बातें अपने जीवन में गोपनीय रखनी चाहिएः

एक तो अपनी आयु गोपनीय रखनी चाहिए। जिस किसी को अपनी आयु नहीं बतानी चाहिए। महिलाओं को तो अपनी आयु बतानी ही नहीं चाहिए, पुरुषों को भी नहीं बतानी चाहिए। अपना धन गोपनीय रखना चाहिए। घर का रहस्य और अपना मंत्र गोपनीय रखना चाहिए। पति पत्नी का ससांरी व्यवहार, क्या औषधि खाते हैं, किया हुआ साधन-भजन, तप तथा दान करो तो वह भी गोपनीय रखना चाहिए  अपना अपमान भी नहीं जाहिर करना चाहिए। कहीं अपमान हो गया तो बेवकूफी नहीं करना कि ʹमेरा फलाने ने ऐसा अपमान किया, फलाना मेरा दुश्मन है।ʹ यह बात नहीं बतानी चाहिए, नहीं तो आपके ही लोग कभी आपके दुश्मन बन के उसका सहयोग लेंगे और आपको दबोच देंगे। बराक ओबामा, राष्ट्रपति (अमेरिका) अपने भाषण में बोलते हैं कि ʹमेरे विरोधी मुझे कुत्ता समझते हैं।ʹ उन्हें यह शास्त्रज्ञान होता तो वे ऐसा नहीं बोलते।

नौ बातों को तो बिल्कुल खुल्लम-खुल्ला कर दो, उनकी पोल खोल दिया करो। ऋण लेने की बात है तो आप खुली कर दो कि ʹमुझे यहाँ से, इस बैंक से ऋण लेना है, इससे कर्जा लेना है।ʹ ऋण चुकाने की बात सबको बता दो कि ʹमैंने इतना चुकाया है, इतना चुकाना बाकी है। इनका कर्जा मुझे देना है।ʹ इससे आपकी विश्वसनीयता बढ़ जायेगी। शास्त्र कहते हैं, विक्रय की वस्तु को भी खूब जाहिर कर दो कि ʹमुझे यह बेचना है।ʹ क्या पता और भी ज्यादा में खरीदने वाला कोई ग्राहक मिल जाय ! कन्यादान छुप के नहीं करना चाहिए, जाहिर में करना चाहिए। क्या पता दामाद कैसा हो ! दसों लोगों को कहो कि ʹफलाने के साथ मैं अपनी कन्या का संबंध करना चाहता हूँ।ʹ उसके पड़ोसियों को भी कहो। क्या पता कन्या का कहीं अमंगल छुपा हो तो वह प्रकट हो जाये।

आप अपना अध्ययन खुला रखिये कि ʹभाई ! हम तो इतना पढ़े हैं।ʹ इससे लोगों में आपकी विश्वसनीयता और सरलता जाहिर होगी। मैं तो तीसरी कक्षा तक ही पढ़ा हूँ, सच बोलता हूँ। लेकिन डी.लिट्. और पी.एच.डी. पढ़े हुए कई मेरे शिष्य हैं और करोड़ों में श्रोता हैं।

उत्तम वंश और खरीद को छुपाइये मत। एकांत में किया हुआ पाप छुपाइये मत। निष्कलंकता (अनिंदनीय कर्मों) को भी छुपाइये मत।

नौ व्यक्तियों का आप विरोध मत करिये। विरोध हो गया तो तुरंत मीठी भाषाँ से सँवार लीजिये। आपको जो रसोई बना के खिलाते हैं उनका विरोध लम्बे समय मत करिये। न जाने कुभाव से वे कुछ खिला दें तो ? तुरंत अपने रसोइये से समझौता कर लेना चाहिए। आप शस्त्रहीन हैं और सामने शस्त्रधारी है तो उससे अकेले में विरोध मत करिये। बोल दोः ʹहाँ भैया ! ठीक है बाबा !! ठीक है, तुम ठीक कहते हो।ʹ नहीं तो लट्ठधारी है, क्या पता ʹतू-तू, मैं-मैंʹ में दिखा दे कुछ ! उस समय सोच लो-

ʹज्ञानी के हम गुरु हैं, मूरख के हैं दास।

उसने दिखाया डंडा तो हमने जोड़े हाथ।।

फिर उसे कोई बड़ा मिलेगा तो अपने-आप ठीक हो जायेगा। हम क्यों सिरदर्द मोल लें !ʹ

जो आपके जीवन के रहस्य, मर्म जानते हों, उनसे भी आपको नहीं भिड़ना चाहिए। अपने स्वामी, बड़े अफसर, बड़े अधिकारी से भी नहीं भिड़ना चाहिए। भिड़ोगे तो क्या पता तबादला कर दे, कुछ आरोप लगा दे। मूर्ख मनुष्य से भी नहीं भिड़ना चाहिए। धनवान, सत्तावान और वैद्य (डाक्टरः से भी नहीं भिड़ना चाहिए। कवि और भाट से भी न भिड़ें, नहीं तो ये आपका कुप्रचार करेंगे। लेकिन आप संत हैं तो ? आपका तो स्वभाव नहीं है भिड़ने का, फिर भी कोई कुछ करता है तो सम रहकर सब परिस्थितियों के बापस्वरूप ईश्वर में रहना चाहिए। यह दसवीं बात मैंने मिलायी है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2012, अंक 235, पृष्ठ संख्या 11,13

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फिर भी सौदा सस्ता है


(पूज्य बापू जी की ज्ञानमयी अमृतवाणी)

बोलते हैं कि काशी में मरो तो मुक्ति होती है, मंदिर में जाओ तो भगवान मिलेंगे, तो कबीर जी ने कह दियाः

पाहन पूजें हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार।

किसी की भी बात मान लें ऐसे में से कबीर जी नहीं थे। वे पूरे जानकार थे। मिश्री-मिश्री कहने से मुँह मीठा नहीं होता, ऐसे ही राम-राम करने से राम नहीं दिखते। राम के लिए प्रेम होगा तब रामनाम जपने से वास्तविक लाभ होता है। कबीर जी ऐसे दृढ़ थे कि असत्य अथवा पंथ-सम्प्रदाय को नहीं मानते थे। वे ही कबीर जी बोलते हैं-

यह तन विष की बेल री….

यह तन विष की बेल है। पृथ्वी का अमृत अर्थात् गौ का दूध पियो, पवित्र गंगाजल पियो, पेशाब हो जायेगा, कितना भी पवित्र व्यंजन खाओ, सोने के बर्तनों में खाओ, विष्ठा हो जायेगा। खाकर उलटी करो तो भी गंदा और हजम हो गया तो भी मल-मूत्र हो जायेगा। हजम नहीं हुआ तो अम्लपित्त (एसिडिटी) की तकलीफ करेगा।

मिठाई की दुकान पर कल तक जो मिठाइयाँ रखी हुई थीं, जिन्हें अगरबत्तियाँ दिखाई जा रही थीं उन्हीं को खाया तो सुबह उस माल का क्या हाल होता है, समझ जाओ बस !

शरीर क्या है ? जिसको ʹमैंʹ मानते हो यह तो विष बनाने का, मल-मूत्र बनाने का कारखाना है। इसे जो भी बढ़िया-बढ़िया खिलाओ वह सब घटिया हो जाता है।

यह शरीर अपवित्र है। वस्त्र पहने तो वस्त्र अशुद्ध हुए। सोकर उठे तो मुँह अशुद्ध हो गया, बदबू आने लगी। आँखों से, नाक से गंदगी निकलती है, कान से गंदगी निकलती है और नीचे की दोनों इन्द्रियों से तो क्या निकलता है समझ लो….! तौबा है साँई, तौबा ! तुममें भरा क्या है जो खुद को कुछ समझ रहे हो ? यह तो भगवान की कृपा है कि ऊपर चमड़ा चढ़ा दिया। चमड़ा उतारकर जरा देखो तो हाय-हाय ! बख्श गुनाह ! तौबा साँई, तौबा ! ऐसा तो अंदर भरा है।

यह तन विष की बेल री, गुरु अमृत की खान।

ऐसा नापाक, अशुद्ध शरीर ! इस अशुद्ध शरीर में भी कोई सदगुरु मिल जायें तो शुद्ध में शुद्ध आत्मा का ज्ञान करा देते हैं, परमात्मा का दीदार करा देते हैं। जो आत्मसाक्षात्कारी पुरुष हैं वे अमृत की खान होते हैं। आत्मसाक्षात्कार होता है तब हृदय परमात्मा के अनुभव से पावन होता है। वह हृदय जिस शरीर में है उसके चरण जहाँ पड़ते हैं वह भूमि पवित्र हो जाती है। वे पुरुष तीर्थ आदि पवित्र करने वालों को भी पवित्र कर देते हैं। फिर उनके शरीर को जो मिट्टी छू लेती है वह भी दूसरों का भाग्य बना देती है।

यह तन विष की बेल री, गुरु अमृत की खान।

सीस दिये सदगुरु मिलें, तो भी सस्ता जान।।

….तो यह शरीर विष की बेल के समान है और सदगुरु अमृत के समान। सिर देकर भी यदि सदगुरु मिलते हों तो भी सौदा सस्ता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2012, अंक 235, पृष्ठ संख्या 23

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