वरिष्ठ पत्रकार श्री अरूण रामतीर्थंकर
पूज्य बापू जी के खिलाफ जोधपुर और सूरतत में घृणास्पद आरोप लगाकर एफ आई आर दर्ज करवायी गयी यह बात आप सबको मालूम है। लेकिन एफ आई आर में क्या लिखा है, कितनी सच्चाई है, उसमें कितनी झूठी बातें हैं – यह बात एफ आई आर पढ़ने पर ही पता चल जाती है।
पहले हम उत्तर प्रदेश की लड़की द्वारा दिल्ली में दर्ज की हुई एफ आई आर का परीक्षण करेंगे। वह लड़की खुद को नाबालिक बताती है और उसी समय यह भी कहती है कि ‘मैं 12वीं कक्षा में पढ़ती हूँ।’ 7वीं कक्षा में लड़की ने दो साल गुजारे हैं, विद्यालय का रिकॉर्ड इस बात का प्रमाण है। इस हिसाब से पहली कक्षा में प्रवेश लेते समय लड़की की उम्र 5 साल भी नहीं हो रही है, जबकि प्रवेश के लिए 6 साल या कम से कम 5 साल उम्र होना जरूरी है। वह बालिग है या नाबालिक है, यह ढूँढने की कोशिश जोधपुर पुलिस या किसी चैनल ने नहीं की।
पाकिस्तान में रहने वाला अजमल कसाब खुद को नाबालिग कहता था। उसका स्कूल प्रमाण पत्र या जन्म प्रमाण पत्र पाना मुमकिन नहीं था। कसाब पाकिस्तानी है – यह बात पाकिस्तान मानने को तैयार नहीं था। भारत के डॉक्टरों ने उसकी शारीरिक जाँच की और उसके बाद वह नाबालिग नहीं बालिग है – ऐसा निर्णय दिया, फिर मुकद्दमा हुआ। जोधपुर के केस में लड़की बालिग है या नाबालिग – इसकी मैडिकल जाँच होना आवश्यक है। अहम बात यह है कि लड़की नाबालिग होने से गैर-जमानती ‘पाक्सो एक्ट’ लागू होती है, जो आशारामजी बापू को फँसाने की साजिश का एक भाग है।
साजिश का अगला कदम था बापू जी और श्री नारायण साँईं पर सूरत में दो सगी बहनों को मोहरा बनाकर लगवाया गया बलात्कार और यौन-शोषण का आरोप। ये दोनों बहनें शादीशुदा हैं। इनमें से बड़ी बहन (उम्र 33) ने बापू जी पर और छोटी बहन (उम्र 30) ने नारायण साँईं पर आरोप लगाया है। लेकिन एफ आई आर ही उनके झूठ और उनके साथ मिले हुए षड्यंत्रकारियों की सुनियोजित साजिश की पोल खोल देती है। आइये, नजर डालें उनमें लिखे कुछ पहलुओं परः
बड़ी बहन का कहना है कि उसके साथ सन् 2001 में तथाकथित घटना घटी थी। 2002 में उसकी छोटी बहन आश्रम में रहने के लिए आयी थी। अगर किसी लड़की के साथ कहीं बलात्कार हुआ हो तो वह क्या चाहेगी कि उसकी छोटी बहन भी ऐसी जगह पर रहने आये ? कदापि नहीं। सवाल उठता है कि इसने अपनी छोटी बहन को आश्रम में आने से मना क्यों नहीं किया ? अगर वह सच कहने से डर भी रही थी तो वह कुछ भी बहाना बनाकर उसे आश्रम में आने से मना कर सकती थी। पर ऐसा नहीं हुआ, क्यों ?
कोई भी कुलीन स्त्री बलात्कार करने वाले पुरुष से घृणा करने लगती है, उससे दूर जाने का प्रयास करती है, भले ही पुलिस में शिकायत न की हो। लेकिन यहाँ तो इस महिला (बड़ी बहन) का बापू जी के प्रति बर्ताव हमेशा अच्छा ही रहा था। एफ आई आर में उसने जो बहुत गंदी बात लिखी है, वह अगर सच होती तो उस महिला से आश्रम छोड़ना अपेक्षित था लेकिन लड़की आश्रम वक्ता बनी, प्रवचन किये, मंच पर से हजारों भक्तों के सामने बापू जी के गुणगान गाती रही। इसका मतलब यही है कि वह जो दुष्कर्म वाली बात कहती है ऐसा कुछ हुआ ही नहीं।
बड़ी बहन कहती है कि ‘2001 में बलात्कार की घटना के बाद मैं बहुत डर गयी थी और आश्रम से भागना चाहती थी पर अवसर नहीं मिला।” जबकि स्वयं उसने ही एफ आई आर में लिखवाया है कि “उसका दूसरे शहरों में आना जाना चालू रहता था।” वास्तविकता यह है कक प्रवचन करने हेतु वह विभिन्न राज्यों के कई छोटे-मोटे शहर जैसे – बड़ौदा, नड़ियाद, आणंद, भरूच, मेहसाणा तथा लुधियाना, राजपुरा, अमरावती, अहमदनगर आदि में अनेकों बार गयी थी। यहाँ तक कि वह सूरत में, जहाँ उसके पिता का घर है, वहाँ भी कई बार गयी। जब उसे टी.बी. की बीमारी हुई थी, तब भी वह घर गयी थी। तो क्या उसे 6 सालों तक किसी भी जगह से भागने का अवसर नहीं मिला होगा ? घरवालों को या पुलिस को बताने का अवसर नहीं मिला होगा ? उसे युक्तिपूर्वक भागने की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
बड़ी बहन ने एफ आई आर में कहा है कि ‘तथाकथित बलात्कार के बाद उसे गाड़ी में ले जाकर शालिग्राम के बाद उसे गाड़ी में ले जाकर शालिग्राम बिल्डिंग के पास छोड़ा गया था और वहाँ से वह पैदल महिला आश्रम पहुँची।’ शालिग्राम से महिला आश्रम आधा कि.मी. दूरी पर है। अगर लड़की की कहानी सत्य होती तो उसके पास वहाँ से भागकर जाने का पर्याप्त मौका होते हुए भी वह वहाँ से क्यों नहीं भागी ? शालीग्राम के आसपास कई घर हैं, दुकानें हैं और वहाँ लोगों कीक भीड़ भी रहती है। ऐसे में वह घर भी जा सकती थी, किसी को मदद के लिए पुकार भी सकती थी, वहाँ से पुलिस स्टेशन भी जा सकती थी। उसने इसमें से कुछ भी क्यों नहीं किया ?
छोटी बहन ने आऱोप लगाया है कि 2002 में सूरत में बापू जी की कुटिया में नारायण साँईं जी ने उसके साथ दुष्कर्म किया। उसके बाद वह घर चली गयी और फिर दूसरे ही दिन साँईं जी के हिम्मतनगर स्थित महिला आश्रम में चली गयी, जिसका कारण वह बताती है क साँईं ने फोन करके वहाँ जाने को कहा था।
पहली बात, साँईं कभी बापू जी की कुटिया में नहीं रुकते। दूसरी सोचने वाली बात है कि एक दिन उसके साथ दुष्कर्म हुआ और वह घर चली गयी और दूसरे दिन उन्हीं के फोन पर, वह अपने घर जैसी सुरक्षित जगह को छोड़कर उनके आश्रम चली गयी और 2 साल तक बड़े श्रद्धा-निष्ठा, समर्पणभाव से बतौर संचालिका वहाँ सेवाएँ सँभालीं। इसी से साबित होता है क उसके साथ कभी भी किसी तरह का दुष्कर्म हुआ ही नहीं और यह सिर्फ लोभवश साँईं जी के पवित्र दामन को कलंकित करने की सोची समझी साजिश है।
छोटी बहन के अनुसार जब वह पुनः आश्रम में गयी तो उसके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई तो उसकी श्रद्धा फिर बैठ गयी और फिर 2 साल तक उसके संचालिका पद पर कार्यरत रहने पर साँईं के आने पर हर बार उसके साथ दुष्कर्म होता रहा। ये सारी बातें बेतुकी और हास्यस्पद हैं कि 2 दिन छेड़खानी नहीं हुई तो श्रद्धा फिर टिक गयी और फिर 2 साल तक तथाकथित दुष्कर्म सहती हुई उनके आश्रम में टिकी रही ! जबकि हिम्मतनगर (गुज.) के गाम्भोई गाँव में बसे इतने खुले आश्रम से निकल जाने का मौका उसे कैसे नहीं मिला ? यही नहीं, उस महिला की स्थानीय लोगों से अच्छी जान-पहचान थी और उसका कई बार शहर और बाजार आना-जाना लगा रहता था।
छोटी बहन के अनुसार 2004 में वह आश्रम से उसके घर चली गयी थी और 2010 में उसकी शादी हो गयी। तब भी उसने माँ-बाप को ऐसा कुछ नहीं बताया और 1 अक्टूबर 2013 को ही उसने पहली बार पति को बताया और 6 अक्टूबर 2013 को एफ आई आर दर्ज की गयी। यह कैसे सम्भव है कि पीड़ित महिला 11 वर्षों तक अपने किसी सगे संबंधी को अपनी व्यथा न बताये ! सालों बाद आरोप लगाने से मेडिकल जाँच तो हो नहीं सकती। बलात्कार के केस में मेडिकल रिपोर्ट की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
छोटी बहन के मुताबिक ‘दुष्कर्म के बाद उसने नारायण साँईं के एक आश्रम की संचालिका का पद सँभाला। 2 साल यह पद सँभालने के बाद वह आश्रम छोड़ के घर चली गयी। आश्रम की प्रमुख होने के नाते हिसाब-किताब पूरा करना जरूरी था इसलिए नारायण साँईं ने उसे फोन पर आने को कहा। हिसाब देने के लिए वह घर से निकली और बीच में अपने किसी परिचितत के घर रात को रूकी। वहाँ से वह आश्रम जाने वाली थी और यह बात उसने नारायण साँईं को फोन द्वारा बतायी भी थी।’ आगे यह महिला लिखवाती है कि ‘आश्रम द्वारा भेजी 6-7 महिलाओं ने सुबह के ढाई बजे उसके परिचित के घर पर पथराव किया, जिससे वह डर के वापस अपने घर चली गयी।’ कैसी बोगस बातें हैं ! पथराव की बात सत्य होती तो मकान मालिक अथवा तो पड़ोसियों ने पुलिस में शिकायत की होती। पथराव हुआ इसका कोई सबूत नहीं है। अगर नारायण साँईं को इसे आश्रम बुलाना होता और जब यह खुद जाने को तैयार भी थी तो वे इसके घर पर पथराव भला क्यों करवाते ? इतनी समझ तो किसी साधारण आदमी को भी होती है।
छोटी बहन 2005 में आश्रम छोड़कर घर चली गयी थी। फिर भी बड़ी बहन ने उससे आश्रम छोड़ने का कारण नहीं पूछा और छोटी बहन ने भी अपनी बड़ी बहन को उसके आश्रम छोड़ने की वजह बताने की जरूरत नहीं समझी। क्या ऐसा सगी बहनों के रिश्ते में कभी हो सकता है ?
छोटी बहन बोलती है कि ‘मैं डर के मारे झूठ बोलकर आश्रम से चली गयी। उसके 8 दिन बाद किसी महिला द्वारा संदेश मिलने पर मैंने नारायण साँईं को फोन किया।” लेकिन जब वह आश्रम छोड़कर चली गयी थी तो किसी महिला द्वारा मात्र एक संदेश मिलने पर उसने सामने से नारायण साँईं को फोन क्यों लगाया ? इससे पता चलता है कि ऐसी कोई घटना घटी ही नहीं थी।
दोनों बहनों ने एफ आई आर में लिखवाया है कि ”हम उनके धाक और प्रभाव के कारण किसी को कह नहीं पाते थे, आज तक किसी को नहीं कहा।” 2008 में गुजरात के समाचार-पत्रों में सरकार ने छपवाया था कक आश्रम द्वारा कोई भी पीड़ित व्यक्ति अगर शिकायत करे तो पुलिस उसके घर जाकर उसकी शिकायत दर्ज करेगी और उसका नाम भी गोपनीय रखा जायेगा। ऐसा होने पर भी ये बहनें सामने क्यों नहीं आयीं ? अचम्भे की बात है कि बापू जी का तथाकथित धाक होने के बावजूद भी दोनों बहनों को आश्रम से जाने के 6-8 साल बाद, आज तक भी किसी प्रकार की कोई भी धमकी या नुकसान नहीं पहुँचा, उनके साथ सम्पर्क भी नहीं किया गया। जबकि बलात्कार करने वाला व्यक्ति, जिसके देश-विदेश में करोड़ों जानने-मानने वाले हों, उसे तो सतत यह डर होना चाहिए कि ‘कहीं यह बाहर जाकर मेरी पोल खोल न दे।’ इसके विपरीत बापू जी और नारायण साँईं को तो ऐसा कोई डर कभी था ही नहीं।
गाँव वालों से तफ्तीश करने पर पता चला कि दोनों लड़कियाँ आश्रम छोड़ने के बाद भी सत्संग में जाती थीं। और तो और, 2013 में भी बारडोली (गुज.) में छोटी बहन साँईं जी के दर्शन करने आयी थी और उसके फोटोग्राफ एवं विडियो भी अदालत में प्रस्तुत किये गये हैं, जिसमें स्पष्ट दिख रहा है कि पति-पत्नी दोनों बड़े श्रद्धाभाव से साँईं जी के दर्शन कर रहे हैं। तो सोचने की बात है कि क्या कोई अपने साथ वर्षों तक दुष्कर्म और यौन-शोषण करने वाले के प्रति इतनी निष्ठा व पूज्यभाव रख सकता है ?
अगर कोई सामान्य व्यक्ति भी एफ आई आर के इन पहलुओं पर गौर करे तो यह स्पष्ट होने लगता है कि संत आशारामजी बापू और उनके सुपुत्र श्री नारायण साँईं को एक बड़ी साजिश के तहत फँसाया जा रहा है। ऐसे और भी कई पहलू हैं। कृपालु जी महाराज, स्वामी केशवानंदजी, स्वामी नित्यानंद जी आदि संतों के बादद पूज्य बापू जी व नारायण साँईं पर इस प्रकार के झूठे लांछन भारतीय संस्कृति पर प्रहार हैं। जब उपरोक्त संतों पर झूठे आरोप हुए तब तो उन आरोपों को खूब बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया किंतु जब ये निर्दोष साबित हुए तब मीडिया द्वारा उसे जनता तक क्यों नहीं पहुँचाया गया ? यही बात पूज्य बापू जी के खिलाफ रचे गये अब तक के सभी षड्यंत्रों की पोल खुलने पर भी होती आयी है।
इतने सारे झूठ अपने आप में काफी हैं किसी भी प्रबुद्ध व्यक्ति को सच्चाई समझने के लिए। क्योंकि जो सच बोलता है या लिखता है उससे ऐसी गलतियाँ कभी नहीं हो सकतीं। लेकिन जब मनगढ़ंत और झूठी कहानी पेश करनी होती है तो वहाँ कौन मौजूद था, कौन नहीं, क्या हुआ ? इसमें अक्सर गलतियाँ हो जाती हैं। अतः मेरी सभी देशवासियों से अपील है कि वे अपने स्वविवे का उपयोग करके सत्य को देखें, न कि मीडिया के चश्मे से।
मीडिया कर रहा है गुमराह
नारायण साँईं कहीं भाग नहीं रहे थे, उन्होंने पहले ही सूरत के समाचार पत्रों में छपवा दिया था कि “मैं कहीं भी भागा नहीं हूँ। उचित समय पर सामने भी आ जाऊँगा। मुझ पर लगे सारे आरोप झूठे और बेबुनियाद हैं। कानून के अनुसार हमने न्यायालय का आश्रय लिया है। न्यायप्रणाली पर हमें पूरा विश्वास है और न्यायिक प्रक्रिया के पूरा होने का इंतजार है। संविधान के तहत हर नागरिक अपने आप लगे झूठे आरोपों से बचाव के लिए अग्रिम जमानत की अर्जी दे सकता है।”
साँईं जी देश की कानून-व्यवस्था का सहारा लेकर दुष्टों के षडयंत्र से अपनी व अन्य निर्दोषों की रक्षा करने में लगे थे। अतः उनके खिलाफ अनर्गल भ्रामक प्रचार करना सर्वथा अनुचित है।
साँईं जी के आश्रमवासियों को मिल रही धमकियों के अनुसार षड्यंत्रकारियों के मंसूबे अत्यंत नापाक हैं। उन्होंने अपनी धमकियों में यहाँ तक कह दिया है कि ‘हम उन्हें (साँईं जी को) जिंदा नहीं छोड़ेंगे। जहाँ भी दिखेंगे, जान से मार देंगे। बाहर नहीं मिले तो जेल में ही खत्म कर देंगे। हमारी पहुँच बहुत दूर तक है। एक-एक करके हम सारे आश्रम बरबाद कर रहे हैं। अब तक हमारी ताकत का अंदाजा तुम लोगों को ही आ ही चुका होगा।’
साँईं जी के जयपुर स्थित साहित्य-केन्द्र पर हुआ आतंकी हमला और निवासियों को दी गयी धमकी तथा तदनुसार दर्ज की गयी एफ आई आर एवं पुलिस आयुक्त को सौंपी शिकायत इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
जानकारों के अनुसार ऐसे में साँईं जी का प्रत्यक्ष रूप से सामने आना प्राणघातक हो सकता था। किसी भी माध्यम से जैसे खान-पान, चिकित्सा आदि के बहाने उनकी जान को खतरा होने से न्यायालय का फैसला आने तक अप्रकट रूप से कानूनी लड़ाई लड़ना ही सभी दृष्टियों से हितकर था। क्योंकि पूज्य बापू जी, नारायण साँईं और आश्रम के खिलाफ कई वर्षों से षड्यंत्र चल रहे हैं और ऐसे में कानूनी प्रक्रिया जब तक चल रही है, तब तक अपना बचाव करना उनका संवैधानिक अधिकार है। गुजरात उच्च न्यायालय ने गुजरात पुलिस और सूरतत के सत्र न्यायालय को गलत ठहराते हुए साँईं जी के खिलाफ गैर जमानती वॉरेंट को रद्द कर दिया और साथ ही घोषित किया कि साँईं जी शुरुआत से लेकर आखिरी तक भगौड़े थे ही नहीं, उनको भगौड़ा कहना बिल्कुल गलत था।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 7-10, अंक 252
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