मधुर, शीतल, त्रिदोषहर (विशेषतः पित्तशामक), बल-शुक्रवर्धक, शरीर को हृष्ट पुष्ट बनाने वाला तथा अल्प मूल्य में सभी जगह सुलभ कुम्हड़ा गर्मियों में विशेष सेवनीय है।
कुम्हड़ा मस्तिष्क को बल व शांति प्रदान करता है। यह धारणाशक्ति को बढ़ाकर बुद्धि को स्थिर करता है। यह अनेक मनोविकार जैसे स्मृति-ह्रास, क्रोध, विभ्रम, उद्वेग, मानसिक अवसाद, असंतुलन, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, उन्माद, मिर्गी तथा मस्तिष्क की दुर्बलता में अत्यंत लाभदायी है। हृदयरोग व नेत्ररोगों में भी हितकारी है। कुम्हड़े के बीजों में बादाम के समान शक्तिदायी मौलिक तत्त्व पाये जाते हैं। इसके बीज कृमिनाशक हैं। ये सभी गुण पके हुए कुम्हड़े में ही पाये जाते हैं।
पित्तप्रधान अनेक रोगों, जैसे आंतरिक दाह, जलन, अत्यधिक प्यास, अम्लपित्त (एसिडिटी), बवासीर, पुराना बुखार, रक्तपित्त (मुँह, नाक, योनि आदि के द्वारा रक्तस्राव होना) में कुम्हड़ा खूब उपयोगी है। यह कब्ज को भी दूर करता है। पुराने बुखार से जिनके शरीर में हरारत (हलका ज्वर, ताप, गर्मी) रहती है या जिन महिलाओं को लौह तत्त्व की कमी से रक्ताल्पता हो जाती है, उनके लिए यह खूब फायदेमंद है।
उपरोक्त व्याधियों में कुम्हड़े के रस में मिश्री मिला के सुबह शाम पीने से या घी में सब्जी बनाकर खाने से लाभ होता है।
रस की मात्रा- 20 से 50 मि.ली.।
बलवर्धक हलवा
कुम्हड़े को उबाल के थोड़ी सी मिश्री तथा इलायची मिलाकर घी में हलवा बना लें। यह हलवा उत्तम पित्तशामक तथा बलवर्धक है। यह उपरोक्त मानसिक तथा पित्तजन्य विकारों में खूब लाभदायी है। दुर्बल बालकों तथा महिलाओं के लिए भी यह फायदेमंद है। इसमें कुम्हड़े के बीज भी डाल सकते हैं।
सावधानियाँ- कुम्हड़े को उबालकर फिर सब्जी बनायें। इसका उपयोग अधिक मात्रा में नहीं करें। कच्चा कोमल (हरा) अथवा पुराना कुम्हड़ा हानि करता है। जोड़ों के दर्द तथा कफजन्य विकारों में इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।
गर्मियों में दूध का भरपूर लाभ लें
देशी गाय के दूध के शीतल, स्निग्ध गुण से गर्मियों में शरीर में उत्पन्न उष्णता व त्वचा की रूक्षता का शमन होता है। गौदुग्ध पीने से तो अनेकानेक लाभ होते ही हैं, साथ ही इसका बाह्य उपयोग भी बहुत लाभकारी है। गर्मियों में सूर्य की दाहक किरणों से त्वचा व आँखों की रक्षा के लिए निम्नलिखित प्राकृतिक उपाय अधिक उपयोगी, अल्प मूल्यवाले एवं सुलभ साबित होंगे।
कुछ सरल प्रयोग
2 चम्मच कच्चे दूध में 2 चम्मच पानी मिला लें और उसमें रूई का फाहा डुबोकर आँखों पर रखें। इससे आँखों की गर्मी व कचरा निकल जाता है, स्निग्धता आती है तथा पोषक तत्त्वों की भी प्राप्ति होती है। थोड़ी देर बाद पानी से आँखें धो लें।
गाय के दूध में प्रोटीन, कैल्शियम और चिकनाई से भरपूर तत्त्व पाये जाते हैं। गाय के दूध के सेवन तथा चेहरे पर लगाने से त्वचा मुलायम बनती है, उस पर चमक आती है एवं झुर्रियों से छुटकारा मिलता है।
रात को सोने से पहले चेहरे की त्वचा को कच्चे दूध से साफ करने से दाग-धब्बे कम हो जाते हैं।
कच्चे दूध में गुलाबजल मिलाकर शरीर पर लगाने से भी त्वचा मुलायम होती है।
मुलतानी मिट्टी को कच्चे दूध में मिलाकर लेप करने से शीतलता बनी रहती है व गर्मी के प्रभाव से शरीर की रक्षा होती है।
ग्रीष्म ऋतु में तृप्तिकारक पेयः सत्तू
सत्तू, मधुर, शीतल, बलदायक, कफ-पित्तनाशक, भूख व प्यास मिटाने वाला तथा श्रमनाशक (धूप, श्रम, चलने के कारण आयी हुई थकान को मिटाने वाला) है।
सक्तवो वातला रूक्षा बहुर्वचोऽनुलोमिनः।
तर्पयन्ति नरं सद्यः पीताः सद्योबलाश्च ते।।
(चरक संहिता, सूत्रस्थानम् 27.263)
‘सभी प्रकार के सत्तू कफकारक, रूखे, मल निकालने वाले, दोषों का अनुलोमन करने वाले, शीघ्र बलदायक और घोल के पीने पर शीघ्र तृप्ति देने वाले हैं।’
सत्तू को ठण्डे पानी में (मटके आदि का हो, फ्रिज का नहीं) में मध्यम पतला घोल बना के मिश्री मिला के लेना चाहिए। शुद्ध घी मिला के पीना बहुत लाभदायक होता है। 3 भाग चने (भुने, छिलके निकले हुए) व 1 भाग भुने जौ को पीस व छान के बनाया गया सत्तू उत्तम माना जाता है। केवल चने या जौ का भी सत्तू बना सकते हैं।
ग्रीष्मकालीन व्याधियों में उपयोगी प्रयोग
पेशाब की जलन व रूकावट
एक कपड़े को ठंडे पानी में भिगोकर निचोड़ लें। फिर इसे तह करके नाभि के नीचे वाले हिस्से (पेड़ू) पर वस्त्र हटा के रखें। कपड़े को उलटते-पलटते रहें। कपड़ा गर्म हो जाये तो फिर से ठंडे पानी में भिगो के रखें। लेटकर 15-20 मिनट यह प्रयोग करें।
ककड़ी, खरबूजा, नारियल पानी, नींबू की शिकंजी आदि का सेवन करें। शिकंजी में धनिया, सौंफ व जीरे का चूर्ण मिलाकर लें। यथासम्भव हर घंटे-डेढ़ में आधा या एक गिलास सामान्य ठंडा पानी पीते रहें। इससे गर्मी के कारण होने वाली पेशाब की जलन व रूकावट दूर हो जाती है।
पुनर्नवा (साटोड़ी) की गोली या सब्जी खाने से अथवा उसके रस का उपयोग करने से पेशाब व गुर्दे संबंधी तकलीफों में आराम होता है। गोखरू का रस व वरुणादि क्वाथ भी उपयोग में ला सकते हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2015, पृष्ठ संख्या 30,31 अंक 269
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