Monthly Archives: November 2015

हर बच्चा बन सकता है महान


(श्री रंग अवधूत महाराज जयंतीः 20 नवम्बर 2015)
कहते हैं-
होनहार विरवान के होत चिकने पात।
होनहार बालक की कुशलता, तेजस्विता एवं स्वर्णिम भविष्य के लक्षण बचपन से ही दिखने लगते हैं। पांडुरंग नाम का बालक 9 महीने की अल्प आयु में ही सुस्पष्ट और शुद्ध उच्चारण से बातचीत करने लगा। डेढ़ वर्ष की उम्र में तो वह बालक अपने पिता जी के साथ गूढ़ प्रश्नोत्तरी करके अपने और पिता जी के ज्ञान-भंडार को टटोलने लगा।
एक बार अरथी ले जाते लोगों और उसके पीछे रोती-बिलखती स्त्रियों को देख बालक पांडुरंग ने पिता जी से पूछाः “ये सब क्यों रोते हैं ? और ये लोग किसी को इस तरह क्यों ले जाते हैं ?”
पिताः “बेटा ! आदमी मर गया है और उसको जलाने के लिए ले जा रहे हैं। इसलिए उसके संबंधी रो रहे हैं।”
“तो क्या आप भी मर जायेंगे ? मेरी माता भी मर जायेगी क्या ?”
पिता ने बात टालते हुए कहाः “हाँ।”
“आपको भी जला देंगे क्या ?”
“हाँ।” पिता ने संक्षिप्त जवाब और अन्य प्रकार से प्रश्नों को रोकने के प्रयास किये मगर बालक की विचारधारा इन उपायों से रुकी नहीं। उसे तो समाधानकारक उत्तर चाहिए था। दूसरे दिन जब वैसी ही यात्रा की पुनरावृत्ति हुई तो बालक ने फिर शुरु कियाः “पिता जी ! उसको जला क्यों देते हैं ? उसको जलन नहीं होगी क्या ?”
“मर जाने के बाद जलन नहीं होती और दुर्गंध न हो इसलिए उसको जला देते हैं।”
बालक ने और भी ज्यादा गूढ़ प्रश्न पूछाः “मगर वह मर गया माने क्या ?”
“किसी का शरीर जब चलना-फिरना बंद हो जाय, जब वह किसी काम का न रह जाय और जब उसमें से जीव चला जाय, तब ‘वह मर गया’ ऐसा कहा जाता है।”
“वह जीव कहाँ जाता है पिता जी ?”
“अवकाश में कहीं इधर-उधर घूम के फिर से जन्म लेता है।”
“वह जन्म लेता है, मर जाता है, फिर जन्म लेता और फिर मर जाता है…. ऐसा चक्र चलता ही रहता है क्या ?”
“हाँ।”
बालक के पिता अब परेशान होने लगे थे। परंतु उसकी जिज्ञासा रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। उसने फिर पूछाः “इन सब झंझटों से दूर होने का कुछ उपाय नहीं क्या ? जिससे जन्म मरण छूट जाय ऐसी तरकीब नहीं क्या ?”
पिता ने भी इन सबसे छूटने के लिए उत्तर दियाः “है, क्यों नहीं ! राम का नाम लेने से इन सब मुसीबतों से हम पार हो जाते हैं। भगवन्नाम जपने से जन्म-मरण का चक्र छूट जाता है।”
बालक ने इस बात की गाँठ बाँध ली। उसके अंतर-बाह्य सभी अंग पुलकित हो उठे। उसको आज भव-भयनाशक भगवन्नाम मिल गया था। उसको मानो वह कुंजी मिल गयी जिससे अंतर के सभी द्वार खुलने लगते हैं। जिस बालक के मन में डेढ़ वर्ष की उम्र से ही इस प्रकार के गूढ़ आध्यात्मिक प्रश्न उठे हों, ऐसी सत्य की जिज्ञासा जगी हो, वह आगे चलकर महानता के चरम को छू ले, इसमें क्या आश्चर्य ! और हुआ भी ऐसा ही। यही पांडुरंग सदगुरु वासुदेवानंद सरस्वती की कृपा से आत्मज्ञान पाकर संत रंग अवधूत महाराज के नाम से सुप्रसिद्ध हुए। स्वयं तो भवसागर से पार हुए, और के भी पथप्रदर्शक बने।
बचपन की निर्दोष जिज्ञासा को यदि भारतीय संस्कृति के शास्त्रों का ज्ञान, सुसंस्कारों की सही दिशा मिल जाय तो सभी ऐसे महान बन सकते हैं क्योंकि मनुष्य-जन्म मिला ही ईश्वरप्राप्ति के लिए है। सभी में परमात्मा का अपार सामर्थ्य छुपा हुआ है। धन्य है वे माता-पिता, जो अपने बालकों को संस्कार सिंचन के लिए ब्रह्मज्ञानी संतों के सत्संग में ले जाते हैं, बाल संस्कार केन्द्र में भेजते हैं, भगवान के नाम की महिमा बताते हैं ! वास्तव में वे उन्हें सच्ची विरासत देते हैं, सच्ची वसीयत देते हैं। ये ही सुसंस्कार उनके जीवन की पूँजी बन जाते हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 16,17 अंक 275
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क्या युवाधन की सुरक्षा गुनाह है ?


किसी भी देश का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी पर निर्भर होता है किंतु उचित मार्गदर्शन के अभाव में वह गुमराह हो जाती है। वर्तमान में युवाओं में फैशनपरस्ती, अशुद्ध आहार-विहार के सेवन की प्रवृत्ति, कुसंग, अभद्रता, चलचित्र-प्रेम आद बढ़ रहे हैं। इनसे दिनों दिन उनका पतन होता जा रहा है। आज विश्व के कई विकसित देशों में विद्यार्थियों को सही दिशा देने के लिए अरबों-खरबों डॉलर खर्च किये जाते हैं, फिर भी वहाँ के विद्यार्थियों में यौन अपराध, यौन रोग, आपराधिकता, हिंसा आदि बढ़ते ही जा रहे हैं। अमेरिका में किशोर-किशोरियों में यौन उच्छृंखलता के चलते प्रतिवर्ष लगभग 6 लाख किशोरियाँ गर्भवती हो जाती हैं। आँकड़े बताते हैं कि मात्र वर्ष 2013 में अमेरिका में 15 से 19 साल की किशोरियों ने 273000 शिशुओं को जन्म दिया। किशोरावस्था में यौन संबंधों से पैदा होने वाली शारीरिक और सामाजिक समस्याएँ जीवन को अत्यंत कष्टप्रद बना देती हैं, यह बात किसी से छुपी नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था UNICEF द्वारा प्रकाशित इन्नोसंटी रिपोर्ट कार्ड नम्बर 3 के अनुसार ‘अमेरिका के राजनैतिक और आम जनता के एक बड़े वर्ग का यह अभिप्राय बनता जा रहा है कि अविवाहित किशोरों के लिए यौन-संयम का संदेश ही यौन शिक्षा के लिए देना उचित है। अमेरिका के स्कूलों में यौन संयम की शिक्षा देने के लिए 1996 से 2001 के बीच सरकार ने 40 करोड़ से अधिक डॉलर केवल संयम की शिक्षा के अभियान में खर्च किये। अमेरिका के प्रत्येक 3 में से एक हाईस्कूल में इस अभियान के तहत यह शिक्षा दी जाती है।’ यह कार्य भारत में पूज्य बापू जी जैसे दूरदर्शी संतों द्वारा ‘युवाधन सुरक्षा अभियान’ के रूप में सफलतापूर्वक व्यापक स्तर पर किया जा रहा है। उसमें अगर सरकार और मीडिया सहयोग न दे सकें तो कम-से-कम अवरोध पैदा न करें, इसी देश की भावी पीढ़ी का कल्याण है।
क्यों जरूरी है संयम का पालन ?
सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। सुखी-सम्मानित रहना हो, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और उत्तम स्वास्थ्य व लम्बी आयु चाहिए, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है। सिर्फ व्यक्तिगत लाभ के लिए ही नहीं अपितु सामाजिक स्वास्थ्य, पारिवारिक व्यवस्था के लिए और टीनेज प्रेग्नेंसी (किशोरावस्था में गर्भधारण) से पैदा होने वाली विराट समस्याओं से राष्ट्र की रक्षा करने के लिए भी ब्रह्मचर्य की अनिवार्य आवश्यकता है। भारत के ऋषि पहले से ही ब्रह्मचर्य से होने वाले लाभों के बारे में बता चुके हैं। ब्रह्मचर्य से होने वाले लाभों को अब आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार कर रहा है। यू.के. के ‘बायोजेरन्टॉलॉजी रिसर्च फाउंडेशन’ नामक एक विशेषज्ञ-समूह के निदेशक प्रोफेसर आलेक्स जावरॉन्कॉव ने दावा किया है कि ‘शारीरिक संबंध मनुष्य को उसकी पूरी क्षमता तक जीने से रोकता है। इन्सान शारीरिक संबंध बनाना छोड़ दे तो वह 150 साल तक जी सकता है।’ ब्रह्मचर्य का पालन न करने वाले, असंयमित जीवन जीने वाले व्यक्ति क्रोध, ईर्ष्या, आलस्य, भय, तनाव आदि का शिकार बन जाते हैं।
‘द हेरिटेज सेंटर फॉर डाटा एनालिसिस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘अवसाद (डिप्रेशन) से पीड़ित रहने वाली किशोरियों में संयमी लड़कियों की अपेक्षा यौन-संबंध बनाने वाली लड़कियों की संख्या तीन गुना से अधिक हैं। आत्महत्या का प्रयास करने वाली किशोरियों में संयमी लड़कियों की अपेक्षा यौन-संबंध बनाने वाली लड़कियों की संख्या लगभग तीन गुना अधिक है।
अवसाद से ग्रस्त रहने वाले किशोरों में संयमी लड़कों की अपेक्षा यौन-संबंध बनाने वाले लड़कों की संख्या से दो गुना से अधिक है। आत्महत्या का प्रयास करने वाले किशोरों में संयमी लड़कों की अपेक्षा यौन-संबंध बनाने वाले लड़कों की संख्या आठ गुना से अधिक है।’
किशोरावस्था में पीयूष ग्रंथि के अधिक सक्रिय होने से बच्चों के मनोभाव तीव्र हो जाते हैं और ऐसी अवस्था में उनको संयम का मार्गदर्शन देने के बदले परम्परागत चारित्रिक मूल्यों को नष्ट करने वाले मीडिया के गंदे विज्ञापनों, सीरियलों, अश्लील चलचित्रों तथा सामयिकों द्वारा यौन-वासना भड़काने वाला वातावरण दिया जाता है। इससे कई किशोर-किशोरियाँ भावनात्मक रूप से असंतुलित हो जाते हैं और न करने जैसे कृत्यों की तरफ प्रवृत्त होने लगते हैं। उम्र के ऐसे नाजुक समय में यदि किशोरों, युवाओं को गलत आदतों, जैसे हस्तमैथुन, स्वप्नदोष आदि से होने वाली हानियों के बारे में जानकारी देकर सावधान नहीं किया जाता है तो वे अनेक शारीरिक व मानसिक परेशानियों की खाई में जा गिरते हैं। इस समय भावनाओं को सही दिशा देने के लिए किशोर-किशोरियों में संयम के संस्कार डालना आवश्यक है। यही कार्य ‘दिव्य प्रेरणा प्रकाश ज्ञान प्रतियोगिता’ व इससे संबंधित पुस्तकों के माध्यम से छात्र-छात्राओं की सर्वांगीण उन्नति हेतु किया जा रहा है। क्या छात्र-छात्राओं को सच्चरित्रता, संयम और नैतिकता की शिक्षा देना गलत है ?
दिव्य प्रेरणा प्रकाश’ क्या है, इसे क्यों पढ़ा जाय ?
युवा पीढ़ी में संयम सदाचार, ब्रह्मचर्य, मातृपितृभक्ति, देशभक्ति, ईश्वरभक्ति, कर्तव्यपरायणता आदि सदगुणों का विकास हो, इस उद्देश्य से देशभर में ‘दिव्य-प्रेरणा-प्रकाश ज्ञान प्रतियोगिता’ का विद्यालयों-महाविद्यालयों में आयोजन किया जाता है। इस प्रतियोगिता में विद्यार्थी स्वेच्छा से भाग लेते हैं। इसके लिए विद्यार्थियों पर न ही किसी प्रकार की अनिवार्यता रहती है और न ही कोई दबाव होता है। इस प्रतियोगिता में बच्चों को बाल-संस्कार, हमें लेने हैं अच्छे संस्कार, आदि और बड़ी कक्षाओं के छात्रों को दिव्य प्रेरणा प्रकाश पुस्तक दी जाती है। दिव्य प्रेरणा प्रकाश पढ़ने से करोड़ों के जीवन में संयम-सदाचार, देश की संस्कृति में आस्था-विश्वास आदि सदगुणों का विकास हुआ है। ब्रह्मचर्य, संयम, सदाचार की जो महिमा वेदों, संतों-महापुरुषों, धर्माचार्यों, आधुनिक चिकित्सकों और तत्त्वचिंतकों ने गायी है, वह इस पुस्तक में है। इसको अश्लील बोलना बेहद शर्मनाक है ! भोगवाद व अश्लीलता का खुलेआम प्रचार करने वाले माध्यम इस पवित्र पुस्तक पर अश्लीलता फैलाने का बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। ऐसे लोग जो अश्लील चलचित्रों, गंदे विज्ञापनों, यौन-वासना भड़काने वाले सामयिकों एवं अश्लील वेबसाइटों के द्वारा निर्दोष व पवित्र किशोरों और युवावर्ग चरित्रभ्रष्ट करने वालों का विरोध नहीं करते अपितु अपने स्वार्थों के लिए उनको सहयोग देते हैं तथा उनके दुष्प्रभाव से पीड़ित लोगों को संयम-सदाचार का मार्ग बताकर युवावर्ग का चरित्र-निर्माण करने वाले और टीनेज प्रेग्नेंसी, एड्स जैसे यौ-संक्रमित रोगों एवं उनके निवारण हेतु होने वाले अरबों रुपयों के खर्च से देश को बचाने वाले संतों के दिव्य प्रेरणा प्रकाश जैसे सद्ग्रन्थ का विरोध करते हैं वे समाज और राष्ट्र को घोर पतन की ओर ले जाना चाहते हैं या परम उत्थान की ओर, इसका निर्णय पाठक स्वयं करेंगे। और हिन्दू संस्कृति को नष्ट करने वाली विदेशी ताकतों के मोहरे बने हुए ऐसे गद्दारों से स्वयं सावधान रहेंगे व औरों को भी सावधान करेंगे, यह हम सबका राष्ट्रीय कर्तव्य है। मीडियावालों की इन हरकतों से यह सिद्ध होता है कि वे हिन्दू संस्कृति को मिटाने के लिए हिन्दू संतों को बदनाम करके उनको षड्यंत्रों में फँसाकर एवं उनके उपदेशों से समाज को वंचित करके अपना उल्लू सीधा करने वाली विदेशी ताकतों के मोहरे बने हुए हैं।
कई प्रसिद्ध हस्तियों, मंत्रियों, अधिकारियों, प्राचार्यों, अध्यापकों, अभिभावकों व विद्यार्थियों ने दिव्य प्रेरणा प्रकाश पुस्तक की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। अरबों डॉलर संयम की शिक्षा पर खर्च करने के बावजूद विदेशों में युवाओं की हालत दयनीय है जबकि ऋषि-ज्ञान को अपनाकर भारत में करोड़ों युवा सुखी-सम्मानित जीवन जी रहे हैं। ऋषि-मुनियों, शास्त्रों का ऐसा ज्ञान समाज तक पहुँचाने का राष्ट्र-हितकारी सेवाकार्य पूज्य बापू जी के आश्रम, सेवा-समितियाँ व सज्जन साधक कर रहे हैं। ऐसे राष्ट्र हितकारी कार्य में विघ्न डालना क्या उचित है ? वास्तविकता तो यह है कि केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्वभर के युवाओं को दिव्य प्रेरणा प्रकाश जैसी संयम – सदाचार की ओर प्रेरित करने वाली पुस्तकों की अत्यंत आवश्यकता है। (श्री इन्द्र सिंह राजपूत)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 7-9
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शरीर को हृष्ट-पुष्ट व बलशाली बनाने का समयः शीतकाल


शीतकाल के अन्तर्गत हेमंत व शिशिर ऋतुएँ (23 अक्तूबर 2015 से 18 फरवरी 2016 तक) आती है। यह बलसंवर्धन का काल होता है। इस काल में उचित आहार-विहार का नियम पालन कर शरीर को स्वस्थ व बलिष्ठ बनाया जा सकता है।
ध्यान रखने योग्य कुछ जरूरी बातें
जब अच्छी ठंड शुरु हो जाय, तब वायु (वात) का शमन करने वाले, बल, रक्त एवं मांस वर्धक पौष्टिक पदार्थ जैसे चना, अरहर, उड़द, तिल, गुड़, नारियल, खजूर, सूखा मेवा, चौलाई, बाजरा, दही, मक्खन, मिश्री, मलाई, खीर, मेथी, गुनगुने दूध के साथ घी (1-2) चम्मच, पौष्टिक लड्डू एवं विविध पाकों का उचित मात्रा में सेवन लाभदायी है।
घी, तेल, दूध, सोंठ, पीपर, आँवला आदि से बने स्वादिष्ट एवं पौष्टिक व्यंजनों का सेवन करना चाहिए।
सुबह नाश्ते हेतु रात को भिगो के सुबह उबाला हुआ चना या मूँगफली, गुड़, गाजर, शकरकंद आदि सस्ता व पौष्टिक आहार है।
औषधियों में अश्वगंधा चूर्ण, असली च्यवनप्राश, मूसली, गोखरू, शतावरी, तालमखाना, सौभाग्य शुंठी पाक आदि सेवन-योग्य हैं।
सप्तधान्य उबटन से स्नान, मालिश, सूर्यस्नान, व्यायाम आदि स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हितकारी हैं।
शीतकाल में थोड़ा शीत का प्रभाव सहना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है लेकिन शीत लहर से बचें।
इन दिनों में उपवास अधिक नहीं करना चाहिए। रूखे-सूखे, अति शीतल प्रकृति के, वायुवर्धक, बासी, तीखे, कड़वे, खट्टे व चटपटे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
अच्छी ठंड पड़ने पर भी पौष्टिक आहार न लेना, भूख सहना और देर रात्रि में भोजन करना, पोषक तत्त्वों से रहित रूखा-सूखा आहार लेना आदि शीत ऋतु में शरीर एवं स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है।
पुष्टिकारक प्रयोग
2-3 खजूर घी में भून के खायें अथवा रात को घी में भिगोकर सुबह खायें और इलायची, मिश्री तथा कौंच-बीज का चूर्ण (1 से 2 ग्राम) डाल के उबाला हुआ दूध पियें। यह उत्तम शरीर-पुष्टिकारक योग है।
10-10 ग्राम इलायची व जावित्री का चूर्ण तथा 100 ग्राम पिसी बादाम-गिरी मिलाकर रखें। 10 ग्राम मिश्रण गाय के मक्खन के साथ खाने से धातु पुष्ट होती है, शरीर बलवान बनता है।
6 से 12 वर्ष के बालकों को सबल व पुष्ट बनाने के लिए 1 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण 1 कप दूध में डालकर उबालें। 1 या 2 चम्मच घी व मिश्री डाल के पिलायें। यह प्रयोग 3-4 माह तक करें।
2 ग्राम मुलहठी का चूर्ण, आधा चम्मच शुद्ध घी व 1 चम्मच शहद – तीनों को मिला कर सुबह चाट लें। ऊपर से मिश्री मिला हुआ गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पियें। यह प्रयोग 2-3 महीने नियमित रूप से करने शरीर-पुष्टि होने के साथ-साथ वाणी में माधुर्य आता है।
असली सफेद मूसली और अश्वगंधा समभाग चूर्ण मिला कर रखें। सुबह 1 छोटा चम्मच मिश्रण दूध के साथ सेवन करने से मांस, बल और शुक्र धातु की वृद्धि होती है।
5 ग्राम तुलसी के बीज व 50 ग्राम मिश्री मिलाकर रख लें। 5 ग्राम चूर्ण सुबह गाय के दूध के साथ सेवन करें। यह महा औषधि शुक्र धातु को गाढ़ा करने में चमत्कारिक असर करती है। 40 दिन यह प्रयोग करें। सेवनकाल में ब्रह्मचर्य का पालन जरूरी है।
2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण में 5 ग्राम मिश्री, 1 चम्मच शहद व 1 चम्मच गाय का घी मिलायें। रोज सुबह इसका सेवन करने से विशेषतः रक्त, मांस, अस्थि व शुक्र – इन 4 धातुओं व शारीरिक बल की वृद्धि होती है तथा हड्डियाँ, बाल व दाँत मजबूत बनते हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद नवम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 30-31, अंक 275
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