गुरु की सरणाई…..

गुरु की सरणाई…..


संत नामदेव जी अपने गुरुदेव की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं-

जऊ गुरदेउ त मुलै मुरारि।

जऊ गुरदेउ त ऊतरै पारि।।….

…बिनु गुरदेउ अवर नहीं जाई।

नामदेव गुरकी सरणाई।।

‘गुरुदेव हैं तो मुरारी (ईश्वर) से भेंट हो सकती है। गुरुदेव हैं तो भवसागर से पार हो सकते हो, वैकुंठ प्राप्त कर सकते हो अथवा जीवन्मुक्त भी हो सकते हो। सदगुरु स्वयं सत्य हैं, सत्य हैं, सदा सत्य हैं। अन्य सभी देवता असत्य हैं। सदगुरु सदा भगवन्नाम दृढ़ करवाते हैं। गुरु हैं तो दस दिशाओं में भटकना बंद हो जाता है। सदगुरु मिलें तो पाँचों विकारों से दूर हो जाते हैं, झुर-झुरकर (किसी विकट चिंता या दुःख से अंदर से इतना संतप्त रहना कि शरीर सूखने लगे।) मरना समाप्त हो जाता है और वाणी अमृत के समान हो जाती है। उसकी अवस्था अकथनीय हो जाती है, उसकी देह अमृतसदृश हो जाती है।

गुरुदेव मिलें तो भगवन्नाम जपने की प्रेरणा होती है, त्रिभुवन का ज्ञान हो जाता है तथा उच्चातिउच्च पद प्राप्त होता है। गुरुदेव मिलें को शीश आकाश में स्थित हो जाता है, अमिट शाबाशी मिलती है, सदा के लिए अनासक्ति प्राप्त होती है और मनुष्य परनिंदा त्याग देता है। गुरुदेव मिलें तो मनुष्य के लिए बुरा और भला समान हो जाता है (अर्थात् वह स्थितप्रज्ञ हो जाता है), माथे में भाग्यरेखा चमक उठती है। गुरुदेव मिल जायें तो शरीर का नाश नहीं होता (चैतन्य शरीर में ‘मैं’ भावना हो जाती है), देवालय फिर (पलट) जाता है, भगवान बाहर के मंदिर से अदृश्य होकर हृदय मंदिर में प्रकट हो जाते हैं, शय्या नदी से सूखी हो आती है (मनुष्य भवजल से निर्लिप्त हो पार निकल जाता है)। गुरुदेव का मिलना अड़सठ तीर्थों स्नान है, द्वादश प्रकार के पुण्य की प्राप्ति के समान है। गुरु मिल जायें तो सभी विष मीठे मेवे बन जाते हैं, संशय का निराकरण होता है और मनुष्य भवजल से पार हो जाता है। गुरुदेव के मिलने के पश्चात न जन्म है न मरण। गुरुदेव का मिलन 18 पुराणों का व्यवहार है एवं 18 पूजा में 18 बार वनस्पति अर्पण करने के समान है। गुरुदेव के बिना कोई स्थान नहीं जहाँ शरण ली जाये। नामदेव गुरु की शरण में है।’

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2016, पृष्ठ संख्या 29 अंक 288

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