Monthly Archives: June 2017

सर्वसुलभ, बहूपयोगी, स्वास्थ्यरक्षक मेवेः किशमिश व मुनक्के


आज लगातार बढ़ रही बीमारियों एवं उनके महंगे उपचार को देखते हुए रोगप्रतिरोधक, पोषक व सर्वसुलभ प्राकृतिक उपहारों को जानना व उनका लाभ उठाना आवश्यक हो गया है। ऐसे ही प्रकृति के वरदान हैं किशमिश व मुनक्के। इनकी शर्करा शरीर में अतिशीघ्र आत्मसात हो जाती है, जिससे शीघ्र ही शक्ति एव स्फूर्ति प्राप्त हो होती है। 100 ग्राम किशमिश में 1.88 मि.ग्रा. लौह तत्त्व, 50 मि.ग्रा. कैल्शियम एवं 3.07 ग्राम प्रोटीन पाया जाता है।

मुनक्का किशमिश की अपेक्षा ज्यादा गुणकारी है। मुनक्के पचने में भारी, कफ-पित्तशामक एवं वीर्यवर्धक होते हैं। इनका उपयोग खाँसी, पेशाब की जलन एवं शौच साफ लाने के लिए किया जाता है। इनके सेवन से शरीर में शक्ति की वृद्धि होती है और रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। रक्त और वीर्य की कमी में काले मुनक्कों का सेवन लाभकारी है। बच्चों को नियमित मुनक्के खाने को दें तो उनके शारीरिक विकास में सहायता मिलती है। किशमिश पचने में हलकी, मधुर, शीतल, रुचिकारक, वात-पित्तशामक, शारीरिक मानसिक कमजोरी एवं मुख के कड़वेपन को दूर करने वाली होती है।

किशमिश का पेय

25 से 50 ग्राम किशमिश को 250 से 500 मि.ली. पानी में मंद आग पर पकायें। आधा पानी बचने पर उतार लें, मसलें तथा छान के सेवन करें। इसमें नींबू का रस भी मिला सकते हैं। यह पेय थकावट में बहुत लाभकारी है तथा सुस्ती को दूर कर शरीर में नयी स्फूर्ति का संचार करता है। दूध के अभाव में या जिन्हें दूध अनुकूल नहीं पड़ता हो उनके लिए इसका उपयोग लाभदायी है।

पित्त-प्रकोपजन्य समस्याओं में…..

50 ग्राम किशमिश रात को पानी में भिगो दें। सुबह मसलकर रस निकाल लें। उसमें आधा चम्मच जीरे का चूर्ण व मिश्री मिला के  पियें। इससे पित्त-प्रकोपजन्य जलन, तृष्णा, पित्त ज्वर, रक्तपित्त आदि व्याधियों में लाभ होता है।

आवश्यक निर्देशः अंगूर, किशमिश या मुनक्कों को अच्छी तरह गुनगुने पानी से धोने के बाद ही उनका उपयोग करें. जिससे धूल-मिट्टी, कीड़े, जंतुनाशक दवाई आदि निकल जाय।

स्वास्थ्य लाभ के अनुपम प्रयोग

आधासीसी में देशी गाय का शुद्ध घी 2-4 बूँद प्रातःकाल दोनों नथुनों में डालें।

लहसुन के रस से सिद्ध किया सरसों का तेल कान के दर्द को तुरंत दूर कर देता है। आश्रम व समिति के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध कर्णबिन्दु कानदर्द में बहुत लाभकारी हैं।

कमरदर्द में खसखस और मिश्री समभाग लेकर चूर्ण बना के रख लें। प्रतिदिन 10 ग्राम चूर्ण चबा के खायें व ऊपर से घूँट-घूँट गर्म दूध पियें।

खाज-खुजली पर गोबर का रस लगाने से राहत मिलती है।

जले हुए स्थान पर ग्वारपाठे का रस लगाने से जलन शांत होती है।

मुँह में छाले हों तो रात को 1 चम्मच देशी गाय का घी दूध में मिला के सेवन करें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2017, पृष्ठ संख्या 32, अंक 294

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23 वर्ष की उम्र में बना डिप्टी मेयर !


मैंने 2010 में पूज्य बापू जी से सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा ली थी, उसके बाद आश्रम में शिविर भी भरा। दीक्षा लेने से मेरे जीवन में काफी सुधार आया। आध्यात्मिकता व सदगुणों का विकास हुआ। पूज्य बापू जी से मिले मंत्र का जप करने से मनोबल, प्राणबल बढ़ा तथा निर्णयशक्ति भी अच्छी हुई। संयम और शांति का धन बढ़ा।

अगस्त 2013 में मैं डिप्टी मेयर के चुनाव में खड़ा हुआ और 23 वर्ष की उम्र में ही नगर निगम, हिसार का डिप्टी मेयर बन गया।

दीक्षा से पहले मेरा मन इधर-उधर की कल्पनाओं में भटकता रहता था पर अब जीवन में संतोष है। पहले खुद के जीवन में अशांति रहती थी लेकिन अब दीक्षाप्राप्ति के बाद दूसरों को शांति, सांत्वना देने की सेवा करके अपना जीवन भी शांतिमय अनुभव कर रहा हूँ।

मेरी ये सभी उपलब्धियाँ पूज्य बापू जी के बताये मार्ग पर चलने तथा माता पिता व गौसेवा से प्राप्त हुई हैं। मेरे जीवन निर्माण में पूज्य बापू जी की कृपा का मुख्य हाथ है। मैं परम पूज्य गुरुदेव का सदैव ऋणी रहूँगा। – श्री भीम महाजन

डिप्टी मेयर, नगर निगम, हिसार (हरि.) सचल दूरभाष 9215611112

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2017, पृष्ठ संख्या 33 अंक 294

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गुरुदेव की शरण रहना परम आत्मधर्म है – स्वामी मुक्तानंद जी


परम दैवत (देवता) रूप श्री गुरुदेव की शरण हो जाना, सब धर्मों को छोड़कर, सब देवी-देवता, सब मत-मतांतर, सर्व-सम्प्रदाय, सर्वमिथ्या कर्मकांड को त्याग के ईश्वररूप श्री गुरुदेव का ध्यान करना, उनके चरणों में प्रीति करना परम आत्मधर्म है। यही मनुष्य की अपनी अंतरात्मा-स्थिति है।

गुरु बारम्बार शिष्य के अंदर अपने को उसके भाव के अनुरूप प्रकट करते हैं। बाहर से दूर होने पर भी गुरु अंदर बहुत नजदीक हैं। इसीलिए मैं बार-बार बोलता हूँ कि ‘गुरु, मंत्र, ईश्वर और अपने को अभेदरूप जानकर मंत्र जपो, तब मंत्र फलीभूत होगा।’

एक ही जीवन में मनुष्य का 2 बार जन्म होने के कारण उसके जन्मदाता भी 2 होते हैं-

एक होता है वीर्यशक्ति सम्पन्न पिता, जो अपने वीर्यदान से बच्चे को जन्म देता है। दूसरा मंत्रवीर्य शक्ति सम्पन्न पिता, जो मंत्रशक्ति अथवा निज आत्मशक्ति को शिष्य के अंदर प्रतिष्ठित करके उसे नया जन्म देता है।

स गुरुर्मत्समः प्रोक्तो मन्त्रवीर्यप्रकाशकः।

जैसे वीर्यरूप में पिता ही आप पुत्र बनकर जन्मता है, वैसे ही गुरु मंत्र साधनरूप से शिष्य में बढ़ते हैं। गुरु आपका अंतरात्मा हैं – घट-घटवासी। मुझको ‘एक’ समझो नहीं, एक होकर भी मैं अनेक हूँ। इसीलिए गुरु का सबका समानरूप से समाधान करना कोई चमत्कार नहीं, सहज स्वाभाविक है।

गुरु आज्ञा पालन से सर्व काम हो जाते हैं

जिसने गुरु के कहे हुए वचनो में पूरी तरह अपना मन धो डाला हो, जो सदगुरु के शब्दों को पूरा पालता हो, उनका काटता नहीं, तोड़ता नहीं, उनको भंग नहीं करता, आज्ञापालक शिष्य है। ‘जो आपने कहा, वही करूँगा।’, यह इस वाक्य का अर्थ है और यही सर्व धर्म का शिखर धर्म भी है।

बाबा (मुक्तानंद जी के सदगुरुदेव स्वामी नित्यानंद जी) हमको जो बोलते थे, वही हम करते थे। हमको कहाः “इधर बैठ जाओ।” तो आज तक हम उधर ही हैं। मुझे रूद्रस्तोत्र में बहुत रूचि थी। कही भी नदी किनारे बालू एकत्र करता, लिंग बनाता था, कमंडल से पानी डालकर रूद्रस्तोत्र बोलता ही रहता था। एक दिन ऐसे ही लिंग बनाकर अभिषेक करत हुआ रूद्रस्तोत्र बोल रहा था।

बाबा (निषेधात्मक स्वर में) बोलेः “क्या पूजता है रे, क्या पूजता है ?” मैं आधे में ही अभिषेक छोड़ दिया। पाठ भी पूरा नहीं किया। मुझे पुस्तक पढ़ने का भी बहुत व्यसन था। बाबा के पास जाते समय भी बगल में एकाध पुस्तक दबाकर ले जाता था। एक बार बाबा बोलेः “पुस्तक का ज्ञान क्या ? मिट्टी ! मस्तक का ज्ञान श्रेष्ठ।” तब से सब पुस्तकें पुस्तकालय को दे दीं।

मनुष्य वचनभ्रष्ट होकर सदा कष्टी है। 100 में से 19 लोग वचनभ्रष्ट हो जाते है। वे तपस्या को जल्दी सिद्ध नहीं कर सकते। ‘करिष्ये वचनं तव।’ का अर्थ है ‘पूर्ण गुरुआज्ञा पालन।’ गुरु का कहना नहीं मानना ही पाप है। गुरुवचनों में बहुत शक्ति होती है, इन्हीं के अनुरूप आचरण से सर्व सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2017, पृष्ठ संख्या 27 अंक 294

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